चिंताओं से मुक्ति
राजन का छोटा सा परिवार था, पत्नी रीना और बेटा अक्षय... हंसी-खुशी सब चल रहा था।
सब कुछ अच्छा था, सिवाय इस बात के कि राजन हमेशा अपने परिवार की बहुत ज़्यादा चिंता करता था, साथ ही घर के हर काम पर उसकी नज़र रहती थी।
मतलब अक्षय पढ़ेगा किस स्कूल में, उसके बाद tuition कहां जाएगा। सबके कपड़े, राशन, सब्जी, दवाइयां, घर के अन्य सामान कहां से आएंगे। घर पर कौन कहां सोएगा, कितना सोएगा, कितना और क्या खाएगा, maid कितनी और कितने साल तक काम करेंगी, छोटे-बड़े सामान क्या आएंगे और किस दुकान से आएंगे... आदि जैसी छोटी-छोटी बातें वही निर्धारित करता था।
घर पर सब्जियां लाना, कपड़े धोना, राशन लाना आदि भी वही करता...
अब इतना कुछ करता था तो पूरा घर उसके अनुसार ही चलता था।
अक्षय जैसे-जैसे बड़ा हो रहा था तो रीना चाहती थी कि अक्षय सब काम अपने कंधों पर लेता जाए, जिससे राजन जिम्मेदारियों और चिंताओं से मुक्त हो जाएं।
अक्षय ऐसा करता भी गया, उसने हर छोटे-बड़े घर और बाहर के सारे काम खुद करने शुरू कर दिए। धीरे-धीरे बहुत सारे काम अक्षय के जिम्मे आने लगे।
राजन के पास अब ज्यादा काम नहीं रहता था, पर चिंताओं से मुक्ति उसे अब भी नहीं थी।
दवाई खाई, दरवाजों पर ताले लगे हैं, कोई राशन का सामान कम तो नहीं पड़ रहा, जैसे छोटे-बड़े हर काम..
रीना ने नाराज़गी जताई और कहा कि अब तो चिंताओं से मुक्ति पा जाओ, हमारा बेटा हर काम बखूबी करता है, अब तो टोका-टोकी छोड़ दो।
राजन को भी एहसास हुआ कि अब उसे हर छोटे-बड़े काम की चिंता नहीं करनी चाहिए और उसने सब छोड़ दिया।
लेकिन कुछ दिनों बाद से ही राजन का स्वास्थ्य गिरने लगा, वो frustrated रहने लगा और depression में जाने लगा। रीना को समझ नहीं आ रहा था कि जब सब काम अक्षय संभाल रहा है, तो राजन चिंता मुक्त क्यों नहीं हो जाता।
एक दिन अक्षय राजन को लेकर psychologist के पास ले गया। और कहने लगा न जाने क्यों पापा बीमार ही होते जा रहे हैं, जबकि घर की हर जिम्मेदारी मैंने अपने ऊपर ले ली है।
Psychologist ने कहा, इंसान को बहुत अधिक चिंताओं से मुक्त करना, उसे बीमार और लाचार ही बनाते हैं।
तुम अपने ऊपर बहुत अधिक जिम्मेदारी लेकर खुद भी बीमार पड़ोगे और उन्हें भी बीमार बनाओगे।
सब जिम्मेदारियां छोड़ते-छोड़ते अब उनके पास बेइंतहा समय रहने लगा है, साथ ही उनका अपना एक व्यक्तित्व था, जो सब चिंता छोड़ते-छोड़ते कहीं पीछे छूट गया है।
बेइंतहा समय होने के कारण ही इंसान frustration में जाता है। जबकि दुनिया भर की चिंताओं में रहने के बावजूद इंसान सुखी रहता है, क्योंकि यह सब ही उसे जीवन जीने का मकसद प्रदान करते हैं।
उसे यह एहसास कराते हैं कि वो कितना ज्यादा important है, अपने परिवार के लिए...
साथ ही सारे काम छोड़ते-छोड़ते, उसका अपने परिवार के प्रति मोह भी खत्म होता जा रहा था, इस कारण उसमें जीने की वजह भी कम होने लगी थी।
तुम बहुत अच्छे बेटे हो, जो सब जिम्मेदारियां लेते जा रहे हो, पर कुछ जिम्मेदारियां और चिंताएं उनके पास ही रहने दो, चिंता से पूर्णतया मुक्त मत करो। यह चिंताएं ही इन्हें जीने की वजह प्रदान करती हैं, मकसद देती हैं, उनकी परिवार में importance को...
मत बदलो उन्हें इतना, कि वो निर्विकार हो जाएं...
अक्षय ने पुनः कुछ जिम्मेदारियां और चिंताएं राजन पर छोड़ दी।
राजन ने फिर से रोकना-टोकना शुरू कर दिया और स्वस्थ हो गये।