आज श्रावण शिवरात्रि का पावन पर्व है, देवों के देव महादेव शिव शम्भू और उनकी शक्ति माँ पार्वती की अर्चना और उपासना का दिन…
भगवान शिव जी और माता पार्वती जी का आशीर्वाद सदैव बना रहे, आप सभी को श्रावण शिवरात्रि पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएँ।
बहुत से लोगों के मन में यह शंका उत्पन्न हो रही होगी कि महाशिवरात्रि पर्व तो बचपन से सुनते आ रहे हैं, जो फाल्गुन मास में होती है, जिसे महादेव और माता पार्वती के शुभ विवाह के उपलक्ष्य में आयोजित किया जाता है, फिर यह श्रावण शिवरात्रि पर्व क्या है और इसे क्यों मनाते हैं।
आज भारत के विरासत अंक में उसे ही साझा कर रहे हैं, साथ ही यह भी बताएंगे कि क्यों है सावन का महत्व? और क्यों होती है इसमें भगवान शिव की आराधना? क्यों भगवान शिव को श्रावण मास प्रिय है? और क्यों शिव भक्त सावन के महीने में मीलों दूर तक पैदल चलकर कांवड़ यात्रा निकालते हैं और अपने आराध्य देव महादेव को प्रसन्न करते हैं?..
श्रावण शिवरात्रि
महाशिवरात्रि और श्रावण शिवरात्रि में अंतर :
महाशिवरात्रि जहाँ ब्रह्मांडीय परिवर्तन और शिव-पार्वती के मिलन का प्रतीक है, वहीं सावन शिवरात्रि श्रावण की आध्यात्मिक ऊर्जा से गहराई से जुड़ी है। दोनों ही त्यौहार भक्ति, आंतरिक शांति और शिव के आशीर्वाद की प्रेरणा देते हैं, और भक्तों को आत्मज्ञान और उत्कर्ष की ओर ले जाते हैं।
श्रावण शिवरात्रि :
सावन की शिवरात्रि, जिसे श्रावण शिवरात्रि भी कहा जाता है, भगवान शिव को समर्पित एक महत्वपूर्ण त्योहार है। इस दिनभक्त भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा करते हैं, व्रत रखते हैं, और शिवलिंग का जलाभिषेक करते हैं। सावन का महीना भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है, इसलिए इस महीने में पड़ने वाली शिवरात्रि का विशेष महत्व है।
पौराणिक कथा :
पौराणिक कथाओं के अनुसार, देव और दानवों में अमृत कलश की प्राप्ति के लिए समुद्र मंथन हुआ था, जो कि लगभग सावन के समय शुरू हुआ था और श्रावण की शिवरात्रि के दिन विष निकला था।
विष के निकलते ही हड़कंप मच गया। क्योंकि समुद्र मंथन से निकली हुई चीजें देव और दानव बारी-बारी से बांट रहे थे।
पर विष (ज़हर) के निकलने पर कोई उसे ग्रहण करने को तैयार नहीं था। विष भी कोई साधारण विष नहीं था, हलाहल विष था, जिसका पान करते ही अर्थात् जिसे पीते ही मृत्यु अवश्यसंभावी थी। पर यह निश्चित था कि जब निकला हुआ रत्न (वस्तु) कोई ग्रहण कर लेगा, आगे का समुद्र मंथन तभी होगा।
सब बेहद दुविधा में पड़ गए कि विष कोई लेगा नहीं, और कोई लेगा नहीं तो आगे मंथन होगा नहीं, और अगर मंथन आगे होगा नहीं तो अमृत कलश निकलेगा नहीं...
ऐसे में देवों के देव महादेव, जो कि अति भोले हैं, सरल हैं, इसलिए उन्हें भोलेनाथ, भोले भंडारी भी कहा जाता है, जो कि बेहद सुहृदय वाले हैं, अपनी चिंता से परे, परहित के लिए सदैव तत्पर रहते हैं, उन्होंने विषपान करना स्वीकार कर लिया।
हलाहल विष का पान करते ही भगवान शिव नीले पड़ने लगे, पर वो तो महायोगी ठहरे तो उन्होंने विष को अपने कंठ में रोक लिया। और किसी में इतना सामर्थ्य नहीं था कि वह विष को कंठ तक ही रोक सके। विष हरने के कारण भगवान शिव जी का कंठ नीला हो गया, और इसी कारण उनका नाम नीलकंठ पड़ा।
विष कंठ में तो रोक लिया, पर उस विष का ताप बहुत अधिक था।
इस विष के प्रभाव को कम करने के लिए सभी देवताओं ने भगवान शिव का जल से अभिषेक किया था और बहुत अधिक वर्षा की।
इसी कारण से इस महीने में वर्षा होती है और सावन शिवरात्रि पर भगवान शिव को जल चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई।
श्रावण मास में भगवान शिव की आराधना :
यही कारण है सावन का महत्व का, इसमें भगवान शिव की आराधना का, भगवान शिव को श्रावण मास प्रिय होने का, और यही कारण है शिव भक्त सावन के महिने में मीलों दूर तक पैदल चलकर कांवड़ यात्रा निकालने का और अपने आराध्य देव महादेव को प्रसन्न करने का...
सावन शिवरात्रि का व्रत रखने और भगवान शिव की पूजा करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं, ऐसा माना जाता है।
सावन शिवरात्रि के दिन, भक्त उपवास रखते हैं, शिवलिंग पर जल, दूध, बेलपत्र, भांग, धतूरा आदि चढ़ाते हैं। रात्रि में जागरण करके भगवान शिव की पूजा-अर्चना करते हैं। कुछ भक्त कांवड़ यात्रा भी करते हैं, जिसमें वे हरिद्वार से गंगाजल लेकर आते हैं और शिवलिंग का अभिषेक करते हैं।
सावन शिवरात्रि का त्योहार उत्तर भारत में विशेष रूप से लोकप्रिय है, जहां पूर्णिमा कैलेंडर का पालन किया जाता है। इस दिन, शिव मंदिरों में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है।
श्रावण मास का पावन पर्व ऐसा पर्व है, जहां भक्त अपने लिए नहीं बल्कि अपने आराध्य के कष्ट को हरने के लिए मीलों दूर तक पैदल चलकर कांवड़ यात्रा निकलता है, जल से भरे हुए कलश को हरिद्वार से लाकर अपने आराध्य का जलाभिषेक करता है।
इसलिए इस समय कांवड़ यात्रियों को बहुत शुभ माना जाता है और उनकी सेवा के लिए किए गए कार्य सर्वोच्च पुन्य माना जाता है।
हर-हर महादेव 🚩 🙏🏻