विरह की अग्नि
थमी थमी सी
रूकी रूकी सी
जिंदगी चलती रही
विरह की अग्नि में जल
वो शमा सी पिघलती रही
न उमंग, न तरंग
जैसी कोई कटी पतंग
पल पल की घड़ी
मन में अब चलती रही
हर पल, उस पल का
इंतज़ार करती हुई
जिंदगी, है जो अपनी,
मगर, अब हर ही पल वो
अजनबी सी लगती रही
हर श्वास, इस विश्वास से
आती और जाती रही
शीध्र होगा मिलन
जिसकी, हूक सी उठती रही