Monday, 21 July 2025

Article : बुलावा महाकालेश्वर जी का (भाग-2)

सावन के पहले सोमवार पर ‘बुलावा महाकालेश्वर जी का’ के अंतर्गत महाकालेश्वर मंदिर उज्जैन के विषय में अपने अनुभव साझा किए थे।

चलिए, सावन के दूसरे सोमवार में आपको ले चलते हैं अपने साथ, महाकालेश्वर जी की नगरी, उज्जैन, जिसे मंदिरों की नगरी भी कहते हैं। आइए चलते हैं उसके अन्य दर्शनीय स्थल पर...

बुलावा महाकालेश्वर जी का (भाग-2)


महाराजा विक्रमादित्य की राजधानी उज्जैन रही है। महाराजा विक्रमादित्य, सभी राजाओं में सर्वश्रेष्ठ समझे जाते हैं। महाकाल के बाद इनका उज्जैन में विशेष स्थान है, अतः यहां महाराजा विक्रमादित्य से जुड़े बहुत से स्थान हैं। 

उज्जैन, मध्य प्रदेश में कई दर्शनीय स्थल हैं, जिनमें श्री महाकालेश्वर मंदिर, काल भैरव मंदिर, हरसिद्धि मंदिर, राम घाट, भर्तृहरि गुफाएं, जंतर मंतर, सिंहासन बत्तीसी और सांदीपनि आश्रम प्रमुख हैं। 


मुख्य दर्शनीय स्थल :-


1. श्री महाकालेश्वर मंदिर :


सर्वप्रथम तो महाकालेश्वर मंदिर ही है, यह 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है और उज्जैन का सबसे प्रसिद्ध मंदिर है, जिसके विषय में आपको पहले ही बता दिया है।


2. काल भैरव मंदिर :


उज्जैन के काल भैरव मंदिर में लोगों की बहुत आस्था है, अपनी मनोकामना सिद्धि के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं। यहां मदिरा को प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है। भगवान काल भैरव को समर्पित यह मंदिर तांत्रिक प्रथाओं से जुड़ा हुआ है।



3. हरसिद्धि मंदिर :


राजा विक्रमादित्य की आराध्य देवी, देवी हरसिद्धि को समर्पित यह मंदिर है।
मान्यता यह भी है कि यहां देवी सती की कोहनी गिरी थी।
हरसिद्धि माता मंदिर, उज्जैन में दो विशाल दीप स्तंभ हैं, जिनमें कुल मिलाकर 1011 दीपक जलाए जाते हैं। ये दीप स्तंभ, विशेष रूप से नवरात्रि के दौरान, एक अद्भुत दृश्य प्रस्तुत करते हैं।

दीपों की संख्या -
एक दीप स्तंभ में 501 दीपक होते हैं, जिसे 'शिव' माना जाता है।
दूसरे दीप स्तंभ में 510 दीपक होते हैं, जिसे 'पार्वती' माना जाता है।
दोनों दीप स्तंभों को मिलाकर कुल 1011 दीपक होते हैं।

दीप जलाने का कारण -
यह मंदिर राजा विक्रमादित्य की आराध्य देवी हरसिद्धि माता को समर्पित है।
मान्यता है कि राजा विक्रमादित्य ने इन दीप स्तंभों की स्थापना की थी।
दीप स्तंभों पर दीपक जलाना, देवी को प्रसन्न करने और आशीर्वाद प्राप्त करने का एक तरीका माना जाता है।
विशेष रूप से नवरात्रि के दौरान, दीपक जलाने का महत्व और भी बढ़ जाता है।

यह मंदिर महाकालेश्वर मंदिर के पास स्थित है।


4. राम घाट :


क्षिप्रा नदी के किनारे स्थित यह घाट, पवित्र स्नान और धार्मिक अनुष्ठानों के लिए प्रसिद्ध है। 



5. भर्तृहरि गुफाएं :


माना जाता है कि ऋषि भर्तृहरि ने यहां तपस्या की थी, यह गुफाएं धार्मिक महत्व रखती हैं। कहा जाता है कि यहां उपस्थित गुफा से चारों धाम जाने का रास्ता है। पूरी गुफ़ा की इमारत पत्थर की बनी हुई है, पत्थरों पर नक्काशी की गई है। इस गुफा के अंदर शिव जी व काल भैरव के मंदिर भी है।
गुफा भीतर से बहुत बड़ी है, लेकिन इसमें हवा के आने-जाने के लिए कोई खिड़की या दरवाजा नहीं है, अतः वहां एक प्रकार की महक भी रहती है और घुटन भी महसूस होती है। इसलिए गुफा के भीतर बहुत देर तक नहीं रहा जा सकता है।


6. सांदीपनि आश्रम :


भगवान कृष्ण और बलराम ने यहां शिक्षा प्राप्त की थी, यह आश्रम धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व रखता है। 
यहां जगह-जगह पर दीवारों पर भगवान श्रीकृष्ण जी की बाल लीलाओं, महाभारत, गीता के उपदेश, द्वारिका के विभिन्न दृश्यों को चित्रित किया गया है, साथ ही उन घटनाओं का वर्णन भी है।

पूरे आश्रम में घूमने के दौरान ऐसा प्रतीत होता है मानो द्वापरयुग में पहुंच गए हैं।

आश्रम में बहुत साफ़ सफ़ाई थी और एक आंतरिक शांति थी, जो हमें स्वतः ही भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन कर दे रही थी। 
महाकाल के दर्शन के पश्चात् यहां आकर एक बार फिर भक्ति में लीन हो गए थे।


7. गढ़कालिका मंदिर :


देवी कालिका को समर्पित यह मंदिर, उज्जैन के प्राचीन मंदिरों में से एक है।


8. मंगलनाथ मंदिर :


क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित यह मंदिर, मंगल ग्रह को समर्पित है।


9. चिंतामन गणेश मंदिर :


भगवान गणेश की एक विशाल मूर्ति के लिए प्रसिद्ध है। मान्यता है कि ब्रह्मा जी, जब सृष्टि का निर्माण कर रहे थे तो उनके मन में बहुत अधिक चिंता विद्यमान थी, अतः उन्होंने यहीं पर योग साधना की थी, जहां पर गणेश जी उनकी सभी चिंताओं को हर लिया था। तब से यह मंदिर चिंतामन गणेश मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हो गया।

यह मंदिर, शहर से 7 किलोमीटर दूर है, और महाकालेश्वर मन्दिर के निकट है।
अतः हमने इस मंदिर के दर्शन पहले दिन ही किए। 

उस दिन कृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव था। अतः वहां कृष्ण जी के बाल रूप को एक बड़े से पालने में बैठाया हुआ था, और सभी भक्तों को उस पालने को झुलाने का अवसर दिया जा रहा था।

हम लोग दर्शन तो भगवान गणेश जी के ही करने गए थे, पर जब पालना झूलाने का अवसर मिला तो, मन भक्ति रस से सराबोर हो गया। एक ही जगह भगवान गणेश जी और भगवान श्रीकृष्ण की एक साथ कृपा, वो भी ऐसे, जिसकी हमने कल्पना भी नहीं की थी।

एक बात और उज्जैन की सराहनीय है कि वहां प्रत्येक दिन आपको व्रत से जुड़े भोज्य पदार्थ, जैसे साबूदाना खिचड़ी, साबूदाना वड़ा, साबूदाना खीर, मेवा खीर‌, मेवे की मिठाई, फल-फूल इत्यादि बहुतायत में मिलते हैं। अतः महाकाल जी की नगरी में पहुंच कर आप प्रत्येक दिन सात्विक भोजन ग्रहण करते हुए व्यतीत कर सकते हैं।
हमारा उस दिन जन्माष्टमी का व्रत था, जो हमारा सुचारू रूप से पूर्ण हुआ।


10. ISKCON मंदिर :


भगवान कृष्ण को समर्पित यह मंदिर, नानाखेड़ा बस stand के पास स्थित है। 
हम यहां जन्माष्टमी महोत्सव के दिन नहीं पहुंच पाए, क्योंकि महाकालेश्वर मंदिर और ISKCON मंदिर, दोनों दूर-दूर हैं।
अतः हम दूसरे दिन ISKCON मंदिर जा पाए।
बहुत सुंदर, स्वच्छ और विशाल मंदिर है।
वहां उपस्थित मूर्तियां मन को मोह लेने वाली हैं।
वहां पहुंच कर हमें पता चला कि वहां कृष्ण जन्मोत्सव एक दिन नहीं बल्कि दो दिन किया जाता है ।
एक और बात की कृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव में भगवान श्रीकृष्ण के बाल रूप की पूजा की जाती है।
और बच्चों की birthday तो बिना cake काटे नहीं मनाई जाती है, अतः दूसरे दिन cake काटा गया था। 
जन्मदिवस के अनुरूप ही प्रसाद में भोजन में पनीर, आलू, छोले, पूरी, चावल के साथ ही cake भी वितरित किया जा रहा था। एक cake खत्म होने पर दूसरा, तीसरा, पर वो प्रसाद का हिस्सा बना रहा।
उस समय वहां बहुत भीड़ थी, सभी लाइन में खड़े अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रहे थे। 
उस लाइन में सब तरह के लोग खड़े थे, जाति-धर्म, ऊंच-नीच, अमीर-गरीब, किसी का कोई भेद नहीं था।
लाइन इतनी लम्बी की ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रही थी। पर फिर भी सभी कुछ बहुत व्यवस्थित और सुचारू रूप से चल रहा था। 
भोग-प्रसाद में भी इतनी बरक्कत थी कि कोई भी बिना प्रसाद लिए रह जाएगा, ऐसा बिल्कुल नहीं था।

हमने उस दिन दाल बाफले खाने का plan किया था। यह उज्जैन का विशेष भोजन है।
पर जब सामने कृष्ण लला के जन्मोत्सव का प्रसाद वितरित हो रहा हो तो उसके आगे कुछ भी विशेष नहीं।
हमने भी प्रसाद ग्रहण करने का सौभाग्य प्राप्त किया।
प्रसाद का स्वाद ऐसा था कि मन-मस्तिष्क में समा गया, और तृप्ति इतनी की लग रहा था मानो भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव में शामिल हैं और कान्हा सब पर अपनी स्नेह वर्षा कर रहे हों।


11. चौबीस खंभा मंदिर :


यह मंदिर महाकाल मंदिर के पास स्थित है और इसमें 24 खंभे हैं।


12. सिंहासन बत्तीसी :


उज्जैन नगरी महाकाल जी की नगरी है, अतः प्रथम दर्शन उन्हीं के करें। पर साथ ही यह महाराजा विक्रमादित्य की भी राजधानी रही है। अतः सिंहासन बत्तीसी व कालिदास जी की academy भी ज़रूर देखें।
यहां महाराजा विक्रमादित्य, उनका सिंहासन बत्तीसी, उनके नौ रत्नों और महान कवि कालिदास की स्मृति में स्थापित, यह अकादमी संस्कृत और कला के अध्ययन का केंद्र है।
सिंहासन बत्तीसी के सभी प्रश्न, उनके उत्तर, महाराजा विक्रमादित्य व उनके सभी नौ रत्नों की विशाल मूर्ति व उनके विषय में विस्तार से वर्णन किया गया है।
इस जगह आकर महान महाराजा विक्रमादित्य, उनके नौ रत्नों, विशेष रूप से कालिदास जी से रुबरु होने का, अपने महान इतिहास से जुड़ने का अवसर मिला, जो कि अद्भुत था।

13. नवग्रह मंदिर (त्रिवेणी) :


शिप्रा नदी के त्रिवेणी घाट पर स्थित यह मंदिर, नौ ग्रहों को समर्पित है। यहां लोग दूर-दूर से आकर नवग्रह शांति की पूजा करवाते हैं और अपने जीवन में सुख शांति की कामना करते हैं।

आखिर दिन उज्जैन से निकलते हुए हमने एक restaurant में दाल बाफले का आनन्द लिया। सचमुच बहुत स्वादिष्ट भोजन है और उससे अधिक आनन्द इसमें आया कि वहां भोजन परोसने वाले बड़े प्रेम और आत्मीयता से भोजन परोस रहे थे। जिससे सभी को भोजन ग्रहण करके तृप्ति का अनुभव हो रहा था। 

वैसे हमने भी दाल बाफले की recipe डाली हुई है, आप चाहें तो link पर click करके उसे बनाना सीख सकते हैं।

पूरा विवरण खत्म करने से पहले आपको बता दें कि चाहे हम खंडवा से ओंकारेश्वर गये या वहां से उज्जैन... 

हरियाली बहुत ज़्यादा थी, pollution न के बराबर, लोग बहुत अच्छे, बहुत सीधे-सादे, सच्चे और सरल, tourist की help करने वाले, उनको support करने वाले, कहीं कोई ठगी, कोई बेइमानी नहीं। फिर चाहे वो आश्रम हो, resort हो, cab वाले हों, e-rickshaws वाले हों, shopkeepers हों, सब में यही देखने को मिला… और न‌ के बराबर कीड़े-मकौड़े मच्छर आदि, चाहे वो कमरे हों, नदी का तट या swimming pool...

जैसा कि होना चाहिए, MP वैसा ही लगा, बाकी states को भी यह सीखना चाहिए, जिससे पूरा भारत बहुत अच्छा हो जाए।

इसी के साथ हमारा महाकाल की नगरी उज्जैन का सफ़र सुखपूर्वक पूर्ण हुआ। वहां कुछ और स्थान भी थे, पर समय के अभाव के कारण हम वहां नहीं जा सके, अतः हमने वहां का वर्णन नहीं किया है।

आप सभी को सावन के दूसरे सोमवार पर विशेष शुभकामनाएं 

हर हर महादेव, जय शिव शंभू 🙏🏻🚩