Friday, 17 January 2025

India's Heritage : संकष्टी गणेश चतुर्थी

संकष्टी चतुर्थी का मतलब होता है संकटों का नाश करने वाली चतुर्थी। महिलाएं आज अपने बच्चों की सलामती की कामना करते हुए पूरे दिन निर्जला उपवास करती हैं। शाम को चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद इस व्रत का पारण किया जाता है। 

संकष्टी चतुर्थी पर बचपन से एक कहानी सुनते आ रहे हैं, जिससे हमें पता चलता है कि गणपति महाराज, भक्तों की किस बात को सबसे अधिक महत्व देते हैं। 

आज उसी कहानी को share कर रहे हैं, शायद आप में से बहुत लोगों के घर में यही कहानी कही जाती हो... गर नहीं सुनी है आपने, तो आप भी यह कहानी सुनें, और साथ ही यह भी कि यह कहानी क्यों कही जाती है...

संकष्टी गणेश चतुर्थी


एक जेठानी और देवरानी थीं। जेठानी माला धनाढ्य, लालची और दुष्ट प्रवृत्ति की स्त्री थी, जबकि देवरानी सुधा गरीब, सरल ह्रदय की, भक्त प्रवृत्ति की स्त्री थी।

क्योंकि देवरानी गरीब थी, तो वो जेठानी के घर पर बर्तन, झाड़ू-पोंछा आदि का काम करती थी।

एक दिन वो काम करके लौट रही थी, तो उसकी नयी पड़ोसन रेखा, तिल धोकर साफ कर रही थी।

सुधा ने पूजा से पूछा कि तिल क्यों धो रही है?

तो रेखा बोली, संकष्टी चतुर्थी व्रत आ रहा है, इसमें गणेश जी के चंद्रभाल रूप की पूजा, व्रत आदि किया जाता है। यह पूजा संतान की लंबी आयु और उनके उज्जवल भविष्य के लिए की जाती है।

उसके लिए ही तिल धोकर साफ कर रही हूँ, जब यह सूख जाएंगे, तब गुड़ के साथ कूट कर इनका प्रसाद बनाऊंगी।

पूजा विधि, और प्रसाद के विषय में जानकारी लेकर सुधा भी तिल, गुड़ ले आई। 

संकष्टी चतुर्थी के दिन सुधा माला को बोल आई कि “दीदी, आज शाम मैं काम पर नहीं आऊंगी।”

दिन भर व्रत रखकर रात को सुधा ने पूजा की तैयारी की व तिल-गुड़ कूटकर उसने प्रसाद तैयार कर लिया। और बहुत ही श्रद्धाभाव से गणेश जी पूजा आरंभ कर दी।

अभी उसे पूजा आरंभ किए हुए आधे घंटे ही हुए थे कि दरवाजे पर दस्तक हुई।

उसने दरवाजा खोला तो सामने एक छोटा-सा बालक खड़ा था।

सुधा को देखते ही वह बालक बोल उठा, माँ बहुत भूख लगी है, कुछ खाने को दे दो...

सुधा ने उसे अंदर आने को कहा, और बोला मेरे पास इस तिलकुट प्रसाद के आलावा, तुम्हें देने को और कुछ नहीं है।

पूजा आरंभ कर दी है, थोड़ी देर में पूर्ण हो जाएगी, तब तुम खा लेना।

वो बालक पूजा समाप्त होने की प्रतीक्षा करने लगा।

पूजा समाप्त होने के बाद सुधा ने उस बालक को प्रसाद दे दिया।

बालक ने धीरे-धीरे कर के बना हुआ पूरा प्रसाद लें लिया।

सुधा के बच्चे उसका मुंह देखते रहे, पर उसने उनकी परवाह किए बिना उस छोटे से बालक को सारा प्रसाद दे दिया...

उस बालक ने पूरा प्रसाद ख़त्म करने के बाद कहा कि अब मुझे पोटी आई है, कहां करूं? 

सुधा को कुछ न सूझा, क्योंकि वो तो घर के बाहर बहुत दूर खेतों पर जाते थे, पर इस नन्हे बालक को रात में कहां ले जाएं... 

उसने घर के एक कोने में उसे पोटी करने को कहा, थोड़ी ही देर में बच्चे ने घर के चारों कोनों में पोटी कर दी।

जब पोटी पोंछने की बात आई तो उसने अपने साड़ी के एक कोने से उसकी पोटी पोंछ दी। 

उस बालक के जाने के बाद सब भूखे पेट सो गए।

सुबह उठे तो उन्होंने देखा कि उनका घर का वो हर कोना जहां उस छोटे से बालक ने पोटी की थी और साड़ी का वो हिस्सा, सोने, चांदी हीरे-जवाहरात की तरह चमक रहे थे।

यह सब देखकर, सभी हर्षित हुए कि कल जो बालक आया था, वो कोई और नहीं, स्वयं गणेश जी थे और वो अपने भक्तों की परीक्षा लेने और अपनी कृपा बरसाने आए थे।

अब सुधा को घर-घर जाकर काम करने की आवश्यकता नहीं थी। जब माला को यह पता चला तो वह सुधा के घर दौड़ी चली आई और सम्पूर्ण जानकारी ली।

उसने अगले वर्ष, अपने घर में संकष्टी चतुर्थी व्रत की बहुत बड़ी व्यवस्था की, तिलकुट प्रसाद के आलावा, बहुत सारी मिठाई पकवान बनवाए। घर का बड़ा हिस्सा खाली कर दिया।

सुबह व्रत रखकर, रात में पूजा अर्चना आरंभ कर दी। पर उसका ध्यान पूजा में ना लगकर पूर्ण रूप से दरवाज़े पर लगा हुआ था।

पूजा आरंभ कर के एक घंटा बीत चुका था, पर दरवाजे पर दस्तक ही नहीं हो रही थी। माला के सब्र का बांध टूट रहा था कि तभी दरवाजे पर दस्तक हुई।

देखा, सामने एक छोटा सा बालक खड़ा था।

आह! आ गये गणेश जी... वो ख़ुशी से झूम उठी

उसने तुरंत उसे अंदर खींच लिया और इसके पहले कि वो कुछ बोलता, ढेरों पकवान उस बालक के मुंह में डालना शुरू कर दिया।

थोड़ी देर में बालक ने कहा कि मेरा पेट भर गया...

पर माला को इतने कम में संतोष नहीं था, उसने सोचा कि ज्यादा खाएगा तो सोना, चांदी , हीरे-जवाहरात सब भी बहुत अधिक बनेंगे।

उसने अब ज़ोर‌ जबरदस्ती के साथ बालक को खिलाना शुरू कर दिया, जब तक बालक ने यह नहीं कह दिया कि उसे पोटी आई है।

माला ने उस बालक से पूरे घर भर में पोटी करवा दी और पोंछने की बात पर अपने माथे और हाथ में पोंछ ली।

जब वो बालक चला गया तो सब सो गए।

सुबह उठकर माला ने देखा, उसका पूरा घर पोटी की बदबू से भर गया था, सब ओर मक्खियां भिनभिना रही थीं। उसके पास से भी बदबू आ रही थी।

उसने पूरे दिन परिवार के साथ घर साफ़ किया, घर तो साफ़ हो गया, पर बदबू थी कि जाने का नाम ही नहीं ले रही थी।

वो उस बदबू से इतनी परेशान हो गयी कि दिनभर पागलों की तरह सफाई करती रहती, पर निजात नहीं मिलती।


इस पूजा को बच्चों के लिए रखा जाता है और इस पूजा के दौरान इस कहानी को सुनाने के पीछे का आशय यह है कि सरलता से बच्चों के मन-मस्तिष्क में यह बात पहुंचाई जाए कि ईश्वर की प्राप्ति उन्हें होती है, जो सरल ह्रदय वाले होते हैं, सच्चे भक्त होते हैं, जिनका ध्यान ईश्वर आराधना में होता है, न कि मोह-माया में, जो ईमानदार और निष्पक्ष होते हैं, जो लालची नहीं होते हैं, जो दूसरे के दुःख, भूख और परेशानी को अपने से पहले हल करते हैं। 

सुधा में वो सारे सद्गुण थे, जिससे गणेश जी प्रसन्न हो गए थे, अतः उन्होंने उसे सब तरह के सुख दे दिए थे। जबकि माला के गुण उसके विपरीत थे, अतः उसके पास सब होते हुए भी छिन गया।

हे श्री गणेश जी महाराज, हम सब से प्रसन्न रहें। हम सब पर अपनी कृपा दृष्टि सदैव बना कर रखें🙏🏻 

जय संकष्टी गणेश चतुर्थी 🙏🏻

Thursday, 16 January 2025

Article : महाकुंभ से अर्थव्यवस्था

लोग कहते हैं कि क्या लाभ है, मंदिर बनाने और महोत्सव कराने से? इतने ही रुपए खर्च करने के लिए उपलब्ध हैं, तो hospitals, schools and colleges खुलवा देने चाहिए।

बस व्यर्थ का धन व्यय करना आता है सरकार को...

चलिए, जो लोग यह मानते हैं, उनके साथ हिसाब-किताब लगा लेते हैं कि क्यों hospitals, schools and colleges के साथ ही मंदिर निर्माण और महोत्सव भी किए जाने चाहिए।

Article शुरू करने से पहले, आप को बता दें कि, इस सरकार के आने से न केवल मंदिर निर्माण और महोत्सव को प्रोत्साहन मिला है, अपितु educational institute and medical field में भी बढ़ोतरी हुई है।

लेकिन अभी, जब हमारे भारत देश में इतना बड़ा महोत्सव प्रयागराज में चल रहा है तो, उसका ही उदाहरण लेते हैं और देखते हैं कि महाकुंभ महोत्सव से अर्थव्यवस्था में सुधार होगा कि नहीं, उसकी गणना कर लेते हैं।

महाकुंभ से अर्थव्यवस्था


महाकुंभ महोत्सव में लगने वाली धन राशि है, 12 हजार करोड़ रुपए या 120 billion रुपए (₹1,20,00,00,00,000)...

हे भगवान! इतना अधिक... 

वही तो, इतने में तो न जाने कितने hospitals, school college खुल जाते, सड़कों का निर्माण हो जाता, बेरोजगारों को रोजगार मिल जाता आदि...

बिल्कुल सही सोच रहे हैं आप।

अब ज़रा यह भी सुन लीजिए कि इससे मिलना वाला profit है, 20 लाख करोड़ रुपए...

सुना आपने, 20 लाख करोड़ रुपए या 20 trillion रुपए (₹2,00,00,00,00,00,000)...

अब सोचिएगा, इससे क्या-क्या होगा?

अब आगे चलते हैं।

12 हजार करोड़ रुपए, पूरी तरह से केवल महाकुंभ महोत्सव में ही नहीं लग गये हैं, बल्कि इसमें से बहुत सारा व्यय, प्रयागराज के कायाकल्प में भी ख़र्च किया गया है।

फिर महाकुंभ महोत्सव तो केवल 45 दिनों के लिए है, 13 January से आरंभ हुआ था और 26 February के बाद समाप्त हो जाएगा, लेकिन उससे प्रयागराज में जो कायाकल्प हुआ है, वो कितने सालों के लिए सुव्यवस्थित हो गया है, यह वहां पर रहने वाले नागरिकों पर निर्भर करता है। 

यह expenditure and profit तो वो हुआ, जो सरकार ने खर्च किया है और जो उन्हें लाभ मिलेगा...

अब और सुनिए।

महाकुंभ महोत्सव की ख्याति, केवल भारत तक सीमित नहीं है अपितु देश-विदेश तक पहुंच गई है, जिसके फलस्वरूप देश-विदेश के लाखों-करोड़ों लोग प्रभावित हुए हैं और महाकुंभ में आने की‌ तैयारी कर रहे हैं।

इससे दो लाभ हैं, पहला विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ेगा और दूसरा भारत देश की सनातन संस्कृति का प्रचार-प्रसार... 

चलिए, अब ज़रा, इस ओर भी सोच लेते हैं कि, केवल व्यय हो रहा है या लोगों के लिए रोज़गार के सुनहरे अवसर भी मिले हैं...

आपको लगता है कि यह बताने की जरूरत है?

चलिए, फिर भी बता देते हैं...

महोत्सव की तैयारियों के साथ ही शुरू हो गये थे, रोजगार के अवसर मिलने..

न जाने कितने ही मजदूरों ने रोजगार पाया, कितने ही चित्रकारों की तूलिकाएं रोजगार पा गयी, न जाने कितने architect को यह proof करने का मौका मिला, कि उनकी प्रतिभा न केवल उन्हें धन-धान्य दे सकती है, अपितु गर्व करने का अवसर भी दे सकती है, कितने ही पुजारियों को संगम का अत्यधिक आशीर्वाद प्राप्त हुआ, आध्यात्मिक और धन-धान्य दोनों रूपों में, सफाई कर्मचारी, सुरक्षा कर्मी, जिनके food business है, ऐसे ही न जाने कितने लोगों के सपने पूरे कर दिए महाकुंभ ने...

और जब से महाकुंभ महोत्सव आरंभ हुआ है, जिनमें भी धनार्जन करने की चाह है, वो मालामाल हुआ जा रहा है...

आप सुनकर हैरान हो जाएंगे, जब आपको पता चलेगा कि वहां अपनी stalls लगाने के लिए लोग, 45 दिन के लिए 48 लाख रुपए दे रहे हैं, अर्थात् एक दिन का एक लाख रुपए तक दे रहे हैं।

चाय जैसी छोटी 10/10 की stall के लिए भी 45 दिन के 12 लाख की demand है और लोग दे भी रहे हैं। 

वो Businessman कोई बेवकूफ तो हैं नहीं, क्योंकि वो जानते हैं 10 लगाएंगे तो सौ मिलेंगे, और मिल भी रहा है...

40 करोड़ भक्तों (visitors) के आने का अनुमान है, जिसमें देश विदेश के लोग भी शामिल हैं। 

जितनी संख्या में visitors आ रहे हैं, उतनी ही संख्या में वो लोग भी आ रहे हैं, जो महाकुंभ महोत्सव से जुड़कर धनार्जन करना चाहते हैं। 

जो वहां पर आने वाले व्यापारी हैं, चाहे वो किसी भी level के हों, चाय-कॉफी बेचने वाले, खाने-पीने की चीजें बेचने वाले, वस्त्र, मालाएं, पूजा सामग्री, अलग तरह के सामान बेचने वाले, technical support करने वाले, महाकुंभ महोत्सव की व्यवस्था में लगने वाले सामानों की मालिकाना companies, हर एक यही कह रहा है कि economy बढ़ाने का इसे अच्छा सुअवसर नहीं मिल सकता है। 

अब आप खुद सोचिएगा कि क्या मंदिर निर्माण और महोत्सव को प्रोत्साहन मिलना चाहिए? क्योंकि उसके कारण आर्थिक व्यवस्था और रोजगार के अवसर बढ़ रहे हैं, यह निश्चित है...

शायद आपकी सोच बदल गई हो, और आप भी इनके प्रोत्साहन में शामिल हो जाएं।

वैसे अगर आप बिना किसी स्वार्थ और निन्दा के भाव से देखें तो आपको भी यह ज्ञात होगा, कि ये ही वो सुअवसर हैं, जो भारत को एक बार फिर से सोने की चिड़िया बना देंगे।

जहां धन-धान्य, संस्कृति और परंपरा का वास होगा, वही देश सफल बन पाएगा, और यही करने से भारत विश्व विजयी बनेगा।

जय संस्कृति, जय सनातन, जय भारत 🇮🇳 

Wednesday, 15 January 2025

Article : महाकुंभ के अमृत स्नान

आप को महाकुंभ महोत्सव Heritage segment में महाकुंभ से जुड़े तथ्य, आस्था और वैज्ञानिक रूप में share किया था।

अमृत स्नान क्यों किया जाता है, उसका विवरण विस्तार से share करते हैं....

प्रयागराज के त्रिवेणी संगम तट पर महाकुंभ महोत्सव आरंभ हो गया है।

आप ने सुना होगा कि महाकुंभ में शाही स्नान का विशेष महत्व होता है। पर क्या होता है शाही स्नान? कब-कब है शाही स्नान? और क्या महत्व है इसका? 

हालांकि, इस बार से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने शाही स्नान का नाम, अमृत स्नान और पेशवाई का नाम कुंभ मेला छावनी प्रवेश कर दिया है। 

तो जब नाम बदल ही दिया गया ,है तो शाही स्नान को हमने भी आगे अमृत स्नान ही लिखा है...

आइए जानते हैं, सब कुछ विस्तार से...

महाकुंभ के अमृत स्नान


महाकुंभ के दौरान कुल तीन अमृत स्नान होंगे, जिसमें से पहला मकर संक्रांति के दिन, 14 जनवरी को होगा। दूसरा, 29 जनवरी को मौनी अमावस्या पर और तीसरा 3 फरवरी को वसंत पंचमी के दिन किया जाएगा।

इसके अलावा माघी पूर्णिमा, पौष पूर्णिमा और महाशिवरात्रि के दिन भी स्नान किया जाएगा, लेकिन इन्हें अमृत स्नान नहीं माना जाता है।

क्यों कहा जाता था इन्हें शाही स्नान?


1) अमृत स्नान (शाही स्नान) :

महाकुंभ के दौरान कुछ विशेष तिथियों पर होने वाले स्नान को "शाही स्नान" कहा जाता था। इस नाम के पीछे विशेष महत्व और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि है। माना जाता है कि नागा-साधुओं को उनकी धार्मिक निष्ठा के कारण सबसे पहले स्नान करने का अवसर दिया जाता है। वे हाथी, घोड़े और रथ पर सवार होकर राजसी ठाट-बाट के साथ स्नान करने आते हैं। इसी भव्यता के कारण इसे शाही स्नान नाम दिया गया था। 

एक अन्य मान्यता के अनुसार, प्राचीन काल में राजा-महाराज भी साधु-संतों के साथ भव्य जुलूस लेकर स्नान के लिए निकलते थे। इसी परंपरा ने शाही स्नान की शुरुआत की।

इसके अलावा यह भी मान्यता है कि महाकुंभ का आयोजन सूर्य और बृहस्पति जैसे ग्रहों की विशिष्ट स्थिति को ध्यान में रखकर किया जाता है, इसलिए इसे "राजसी स्नान" भी कहा जाता है। यह स्नान आध्यात्मिक शुद्धि और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग है।

ऐसा माना जाता है कि ये पवित्र स्नान अनुष्ठान, या शाही स्नान, आत्मा को शुद्ध करते हैं और पापों को धो देते हैं, जिससे ये इस आयोजन का आध्यात्मिक आकर्षण बन जाते हैं। 


2) महाकुंभ में स्नान करने के नियम :

स्नान करते समय 5 डुबकी ज़रूर लगाएं, तभी स्नान पूरा माना जाता है। स्नान के समय साबुन या shampoo का इस्तेमाल न करें, क्योंकि इसे पवित्र जल को अशुद्ध करने वाला माना जाता है।


3) यहाँ ज़रूर करें दर्शन :

महाकुंभ में कुंभ अमृत स्नान-दान के बाद बड़े हनुमान और नागवासुकी का दर्शन जरूर करना चाहिए। मान्यता है कि कुंभ अमृत स्नान के बाद इन दोनों में से किसी एक मंदिर के दर्शन न करने से महाकुंभ की धार्मिक यात्रा अधूरी मानी जाती है।


4) महाकुंभ 2025 अमृत स्नान की तिथियां :

I. पौष पूर्णिमा - 13 जनवरी (सोमवार); स्नान

II. मकर सक्रांति - 14 जनवरी (मंगलवार); अमृत स्नान 

III. मौनी अमावस्या - 29 जनवरी (बुधवार); अमृत स्नान

IV. बसंत पंचमी - 3 फरवरी (सोमवार); अमृत स्नान 

V. माघी पूर्णिमा - 12 फरवरी (बुधवार);  स्नान

VI. महाशिवरात्रि - 26 फरवरी (बुधवार);  स्नान 


5) अमृत स्नान का समय :

अमृत स्नान के लिए 13 अखाड़ों के बीच समय आवंटित किया जाता है, जिसमें शिविर छोड़ने, घाट पर अनुष्ठान स्नान करने और वापस लौटने के लिए आवश्यक समय शामिल होता है। महानिर्वाणी और अटल अखाड़ा सबसे पहले अमृत स्नान शुरू करेंगे, जो सुबह 5:15 बजे से सुबह 7:55 बजे तक निर्धारित है, जिसमें अनुष्ठान के लिए 40 मिनट निर्धारित हैं। उनके बाद, निरंजनी और आनंद अखाड़ों को सुबह 6:05 बजे से सुबह 8:45 बजे तक का समय आवंटित किया गया है, जिसमें प्रस्थान, स्नान करने और वापस लौटने की पूरी प्रक्रिया शामिल है।


6) अमृत स्नान के मुख्य आकर्षण : 

कुंभ मेले के दौरान, कई समारोह होते हैं; हाथी, घोड़े और रथों पर अखाड़ों का पारंपरिक जुलूस जिसे 'पेशवाई' कहा जाता था, अब इसका भी नाम बदलकर कुंभ मेला छावनी प्रवेश यात्रा कर दिया गया है। 

'अमृत स्नान' के दौरान नागा-साधुओं की चमचमाती तलवारें और अनुष्ठान, और कई अन्य सांस्कृतिक गतिविधियाँ जो कुंभ मेले में भाग लेने के लिए लाखों तीर्थयात्रियों को आकर्षित करती हैं।


7) अमृत स्नान का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व :

I. धार्मिक महत्व -

इस दिन सबसे पहले नागा साधु संगम में स्नान करते हैं। उनके बाद आम लोग स्नान कर सकते हैं। शाही स्नान को बेहद खास इसलिए माना जाता है क्योंकि इस दिन संगम में डुबकी लगाने से कई गुना ज्यादा पुण्य मिलता है। ऐसा भी कहा जाता है कि इस दिन स्नान करने से न सिर्फ इस जन्म के, बल्कि पिछले जन्म के पाप भी खत्म हो जाते हैं। इसके साथ ही पितरों की आत्मा को भी शांति मिलती है।


II. सांस्कृतिक महत्व -

महाकुंभ भारतीय समाज के लिए न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि भी बेहद महत्वपूर्ण है। इसमें अमृत स्नान के साथ मंदिर दर्शन, दान-पुण्य और अन्य धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं। 


महाकुंभ में भाग लेने वाले नागा साधु, अघोरी और सन्यासी हिंदू धर्म की गहराई और विविधता को दर्शाते हैं। महाकुंभ का यह आयोजन धार्मिक आस्था, सामाजिक एकता और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है।