Wednesday, 19 February 2025

Short Story : मेहनत की कीमत

आज एक सच्ची कहानी साझा कर रहे हैं, इसे पूरी पढ़िएगा, इसमें parenting की tip भी छुपी है। कोई ज़रूरी नहीं है कि बहुत पढ़े-लिखे लोग ही parenting को सही से समझ पाएं...

बच्चों को सही दिशा निर्देश, कैसे देना है... कैसे उनके भविष्य को निखारना है, यही प्रदर्शित करती है आज की short story..

मेहनत की कीमत


नितिन और दमयंती एक छोटे से गांव में रहते थे, पर उनकी आकांक्षाएं बहुत बड़ी-बड़ी थीं।

वो औरों की तरह, गांव में रहकर कम में जीना नहीं चाहते थे, बल्कि वो चाहते थे कि जिस तरह से उन्होंने अपना बचपन बीता दिया, वैसा उनके बच्चों का न हो।

बस यही सोच, उन्हें दिल्ली जैसे बड़े शहर में ले आई। पर यहां आकर उन्हें एहसास हुआ कि सब कुछ उतना आसान नहीं था, जैसा उन्होंने सोचा था। 

ज़िंदगी जितनी आसान गांव में थी अपनों के बीच, शहर में उतना ही अधिक संघर्ष करना पड़ रहा था। 

पढ़े-लिखे वो ज्यादा थे नहीं, अतः नितिन ने मेहनत मजदूरी शुरू कर दी, साथ ही कुछ हुनर भी सीखना शुरू किया, जैसे मिस्त्री का काम, रंग-रोगन, आदि... 

नितिन और दमयंती ने जब उनकी बेटी हुई, तो यह निर्णय लिया,  कि बच्चे दो ही करेंगे, चाहे दूसरा बच्चा भी बेटी ही क्यों न हो। गांव में जैसे बहुत बच्चे होते हैं, हम वैसा नहीं करेंगे।

पर भगवान ने उनकी अधिक परीक्षा नहीं ली और दूसरा बच्चा बेटा हुआ। लेकिन परिवार बढ़ने से अब अकेले नितिन की कमाई से घर नहीं चल रहा था। खाने-पीने का इंतजाम तो फ़िर भी हो जाता था, पर उनका सोचना था कि हम नहीं पढ़ें हैं, पर बच्चों को जरूर पढ़ाएंगे। उतनी कमाई तो कैसे भी नहीं हो रही थी।

तो परिवार की जरूरत पूरी करने के लिए, दमयंती भी नितिन के साथ चल दी, मेहनत-मजदूरी करने के लिए... 

दोनों की कमाई से घर ठीक-ठाक चलने लगा था, लेकिन इसमें बच्चों का ध्यान रखना मुश्किल हो रहा था। पर सब तो नहीं मिल सकता था।

बिटिया नलिनी तो पढ़ने में अच्छी थी, पर बेटा शिखर, खेल तमाशे में ज्यादा रहता था और पढ़ता कम था।

मां-बाप कहते, पढ़-लिख लो, तो कुछ अच्छा कर लोगे, तुम्हारे कारण ही गांव छोड़ा और मेहनत-मजदूरी कर रहे हैं। पर शिखर मस्ती में ही रहता। 

जब शिखर छोटा था, तब तो दिन गुज़र गए पर जब वो बड़ा होकर भी न सुधरा तो, नितिन और दमयंती बहुत चिंतित रहने लगे। 

आखिर बहुत सोच-विचार कर नितिन ने शिखर से कहा कि मैंने तुम्हारे लिए अपने मालिक से बात कर ली, तुम भी हमारे साथ काम करना।

शिखर सहर्ष तैयार हो गया। उसे अपने माता-पिता की मेहनत कभी बड़ी लगी ही नहीं थी। वो सोचता था, सारे दिन बालू-cement में हाथ डालना कौन बड़ी मेहनत का काम है। 

पर यह सुनकर दमयंती बहुत चिंतित हो उठी, मेरा नाजुक, छोटा सा बेटा इतनी मेहनत का काम कैसे कर पाएगा?

उसने हौले से नितिन से पूछा, तब नितिन ने दृढ़ता से कहा कि कुछ समझ, सिर पर पड़े, तभी आती है... तो वो चिंता न करे, फिर अपनी आंखों के सामने ही तो होगा।

दमयंती फिर कुछ न बोली, कहीं न कहीं वो जानती थी कि नितिन से बेहतर शिखर के लिए कोई नहीं सोच सकता...

जब शिखर वहां पहुंचा तो मालिक ने drill mechine पकड़ा दी और tiles तोड़ने को कहा।

शिखर, drill mechine लेकर खड़ा हो गया। पर थोड़ी ही देर में आह! कितना कठिन है यह... हर पल टूट कर उछलती हुई tiles का आंख पर जाने का खतरा था। साथ ही इतने force के साथ machine चल रही थी तो उसको संभालना भी चंद‌ घंटों में भारी लग रहा था और धूल तो इतनी की सांस लेना दूभर हो चला था।

5-6 घंटे काम करने के बाद खाना खाने का समय हो गया था। पर हाथ में रोटी तोड़ने लायक भी जान‌ नहीं लग रही थी।

थोड़ी देर में ही वापस काम करने के लिए सब चल पड़े... इतनी जल्दी.. अरे थोड़ा तो आराम कर लेने दो...

पर जाना पड़ा, अब drill mechine नहीं दी गई थी और बालू-cement का मसाला तैयार करना था। पर उसे तैयार करने में उंगलियां कटने लगी।

जब शाम हुई तो सबको पैसे दिए गए, दिनभर की अथक परिश्रम के 700 रुपए मिले। इतनी मेहनत के बस इतने?...

शाम को घर पहुंचने के पश्चात् शिखर बिस्तर पर गिरा, तो बड़ी मुश्किल से खाना खाने के लिए उठा।

ऐसे ही एक हफ्ते तक वो नितिन और दमयंती के साथ काम पर जाता रहा। और रोज़ थककर चूर हो जाता।

एक हफ्ते बाद उसने नितिन और दमयंती के पांव पकड़ लिए और रोने लगा। मैं समझ गया कि आप लोग कितनी अधिक मेहनत करते हो। 

अब मैं बहुत मेहनत से पढ़ाई करूंगा और आपका सपना पूरा करुंगा।

शिखर अब जी जान से पढ़ाई करने लगा। उसने लक्ष्य साधा कि वो इतनी मेहनत करेगा कि आने वाले railway clerical exam में वो जरूर से select होगा।

अब उसे कभी पढ़ने के लिए नहीं टोकना पड़ता था, क्योंकि वो मेहनत की कीमत समझ चुका था और यह भी जान चुका था कि उसके बेहतर भविष्य के लिए उसके माता-पिता कमर-तोड़ मेहनत कर रहे हैं। 

और अब उसकी बारी है, अथक परिश्रम कर एक अच्छा मुकाम हासिल कर उन्हें जीवन पर्यन्त, आराम कराए और सुख दे।

Thursday, 13 February 2025

Article : World Radio Day

आज का यह article आधारित है, एक ऐसी वस्तु पर, जिसकी परिकल्पना के बिना 70s की दुनिया अधूरी है।

हम बात कर रहे हैं radio की... 

उस दौर में शोर नहीं था और न ही लोग दिखावे के लिए busy हुआ करते थे।

उस ज़माने का संगीत सबसे ज्यादा कर्णप्रिय था और उससे सुनने के लिए लोगों के पास वक्त भी था।

और संगीत को सुनने का साधन था, radio, transistor, recorder, tape recorder etc.

इसमें radio and transistor सबसे अधिक लोकप्रिय थे, क्योंकि यह न केवल मनोरंजन के साधन थे, बल्कि उसके साथ ही news, information etc. भी इसी से मिलती थी।

आज radio के आगे television और उससे आगे computer, internet and mobile आ चुका है।

हम लोग जब बच्चे थे, वो दौर था, जब, radio को पीछे छोड़ते हुए television बड़ी तेज़ी से हम लोगों के जीवन का हिस्सा बनता जा रहा था। और उसके बाद जवानी के साथ computer, mobile and internet भी जुड़ते चले गए।

पर हमारे मां-पापा और उनके माता-पिता के समय radio ही जीवन का अभिन्न हिस्सा थे।

उस समय, शायद ही कोई ऐसा होगा, जो विविध भारती और बिनाका संगीत माला का दीवाना न हो, उस पर अमीन सयानी जी की आवाज तो भुलाए न भूली जाती थी। 

आजादी की लड़ाई से जुड़ी बातें और देश की आजादी, सबका साक्षी है radio..  

आकाशवाणी से FM तक जुड़ना, prestigious बात होती है...

आज radio पर लिखने का ख्याल कहां से आया, यही सोच रहे हैं न आप.. अरे भाई, आज world radio day है, तो उस पर लिखना तो बनता है ना...  

World Radio Day 


Radio कई लोगों के लिए एक शाश्वत जीवनरेखा रहा है - लोगों को सूचना देने, प्रेरित करने और जोड़ने का काम करता है। समाचार और संस्कृति से लेकर संगीत और कहानी कहने तक, यह एक शक्तिशाली माध्यम है जो रचनात्मकता का जश्न मनाता है।

World radio day, हर साल 13 फरवरी को समाज और संस्कृति को वैश्विक स्तर पर आकार देने में radio के महत्व को स्वीकार करने और उसका जश्न मनाने के लिए मनाया जाता है।

यह विभिन्न समुदायों में information, education and entertainment को बढ़ावा देने में radio के महत्व को पहचानने का दिन है। आइए, आज, खासकर digital era में, radio के इतिहास, महत्व और भूमिका के बारे में गहराई से जानें।

UNESCO (United Nations Educational, Scientific and Cultural Organization) ने 2011 में world radio day की घोषणा की।

जिसमें आधिकारिक तौर पर सूचना के प्रसार में radio के प्रभाव को मान्यता दी गई। 13 फरवरी की तारीख इसलिए चुनी गई क्योंकि यह 1946 में united nations radio के foundation की anniversary है। UNESCO द्वारा world radio day घोषित करने का उद्देश्य रेडियो के सभी रूपों, विशेष रूप से ग्रामीण और वंचित क्षेत्रों में इसके महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाना था। 

Radio के उसी सुरीले, प्यार भरे दिन को समर्पित आज का article... Happy World Radio Day 📻 

Wednesday, 12 February 2025

India's Heritage : रविदास जयंती

आज बच्चों के school में छुट्टी है, वजह - रविदास जयंती।

पर यह रविदास जी थे कौन? और ऐसा क्या विशेष था कि उनकी जयंती पर छुट्टी कर दी गई? 

रविदास जी संत शिरोमणि और भक्ति रस के कवि और समाज के पथ प्रदर्शक थे।

संत शिरोमणि तो कबीरदास, तुलसीदास, मीराबाई आदि बहुत लोग थे, फिर बाकी जयंती पर तो छुट्टी नहीं होती है।

आइए, आज India's Heritage segment में उनके विषय में जानते हैं।

रविदास जयंती


रविदास जी का जन्म वाराणसी में माघी पूर्णिमा के दिन हुआ था। कहा जाता है कि उस दिन रविवार था, तो बस रविवार के कारण ही उनका नाम रविदास रख दिया गया।

कई पुरानी पांडुलिपियों में उन्हें रायादास, रेदास, रेमदास और रौदास के नाम से भी जाना गया है।

उनका जन्म एक चर्मकार के घर पर हुआ था, अतः रविदास जी भी चमड़े से सामान, जूते आदि बनाने का ही कार्य करते थे। 

वह जात से चमार थे और उस समय जात-पात को लेकर विभिन्न कट्टर नियम थे। पर उन्होंने कभी उन पर ध्यान नहीं दिया और ईश्वर भक्ति और अपने कर्म को प्रधानता दी।

उन्होंने जात-पात से जुड़ी कुरीतियों का पुरजोर विरोध किया और समानता का समर्थन किया।

उनका मानना था, कोई भी व्यक्ति जन्म से नीच नहीं होता है, बल्कि अपने दुष्कर्मों से नीच होता है। और यह बात उन्होंने अपने जीवन में चरितार्थ भी किया, और संत शिरोमणि और समाज सुधारक कहलाए।

उनसे जुड़ी हुई कुछ घटनाएं साझा कर रहे हैं, जिनसे आप खुद कहेंगे कि कर्म ही सर्वोच्च है।


एक बार की बात है, एक राजा ने रविदास जी को अपने जूते बनाने का आदेश दिया। संत रविदास जी ने आदेश सहर्ष स्वीकार किया, क्योंकि वो तो उनका काम ही था।

रविदास जी जूता बनाने का कार्य भी ऐसे कर रहे थे, जैसे ईश्वरीय आराधना में लीन हों।

जूता लेकर वो राजदरबार में पहुंचे। जैसे ही राजा ने जूता पहनने के लिए पैर आगे बढ़ाया, एक चमत्कार हुआ और जूता सोने में बदल गया।

सब देखकर हैरान हो गए, राजा ने चमत्कार के पीछे का कारण पूछा, तो रविदास जी बोले, मैंने अपना काम पूर्ण निष्ठा और ईश्वरीय भक्ति में किया था। जो चमत्कार हुआ, वो तो ईश्वर की कृपा है।

ईश्वर की भक्ति काम करते हुए मतलब? लोगों के मन में शंका हुई, यह कैसी भक्ति?

तब रविदास जी बोले, ईश्वर की भक्ति केवल पूजा-पाठ द्वारा ही नहीं की जाती है, बल्कि निष्काम और निष्ठा से किया गया कार्य भी ईश्वर भक्ति है।

सब उनकी इस बात को सुनकर उनके भक्त हो गये।


एक और बार की बात है, संत रविदास जी अपनी झोपड़ी में जूते बनाने का काम कर रहे थे। एक दिन उनके यहां एक सिद्ध साधु पहुंचे। रविदास जी ने उस संत की बहुत सेवा की। सेवा से प्रसन्न होकर सिद्ध संत ने रविदास को एक पत्थर दिया और कहा कि ये पारस पत्थर है। लोहे की जो चीज इस पत्थर पर स्पर्श होती है, वह सोने की बन जाती है। इस पत्थर की मदद से तुम धनवान बन सकते हो।

रविदास जी ने पारस पत्थर लेने से मना कर दिया। उन्होंने कहा कि मुझे इसकी जरूरत नहीं है, मैं अपनी मेहनत से जो कमाता हूं, उससे मेरा काम हो जाता है।

रविदास जी के मना करने के बाद भी साधु ने उनकी बात नहीं मानी और उस पत्थर को झोपड़ी में ही एक जगह रख दिया और कहा कि तुम जब चाहो, इसका इस्तेमाल कर लेना। ऐसा कहकर वह संत वहां से चले गए।

काफी समय बाद वह संत फिर से रविदास जी के पास पहुंचे। उन्होंने देखा कि रविदास की स्थिति में कोई बदलाव नहीं हुआ है, वे आज भी उसी झोपड़ी में रह रहे हैं।

रविदास जी की हालत देखकर साधु ने पूछा कि मैंने आपको पारस पत्थर दिया था, क्या आपने उसका इस्तेमाल नहीं किया?

रविदास जी ने कहा कि वह पत्थर तो वहीं रखा, जहां आप रख गए थे।

साधु ने देखा तो पारस पत्थर वहीं रखा था। साधु ने रविदास जी से पूछा कि आप इसके इस्तेमाल से धनवान बन सकते थे, लेकिन आपने ऐसा क्यों नहीं किया?

संत रविदास ने कहा कि अगर मैं धनवान हो जाता तो मुझे धन की रखवाली करने की चिंता होती। मैं दान करता तो मेरे यहां लोगों की भीड़ लगी रहती और मेरे पास भगवान का ध्यान करने का समय ही नहीं बचता। मैं जो कमाता हूं, मेरे लिए काफी है। मैं मेरे काम के साथ भगवान की भक्ति भी कर पाता हूं। मेरे लिए यही सबसे जरूरी है।

वह साधु रविदास जी की बात सुनकर प्रसन्न हो गए, उन्हें आशीर्वाद दिया और अपना पारस पत्थर लेकर लौट गए।


ऐसी और भी घटनाएं हैं, जो रविदास जी सबसे विशेष बनाते हैं, वह अगले वर्ष बताते हैं। 

अभी विराम देते हुए, संत शिरोमणि रविदास जी को उनकी जयंती पर शत-शत नमन...