संकष्टी चतुर्थी का मतलब होता है संकटों का नाश करने वाली चतुर्थी। महिलाएं आज अपने बच्चों की सलामती की कामना करते हुए पूरे दिन निर्जला उपवास करती हैं। शाम को चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद इस व्रत का पारण किया जाता है।
संकष्टी चतुर्थी पर बचपन से एक कहानी सुनते आ रहे हैं, जिससे हमें पता चलता है कि गणपति महाराज, भक्तों की किस बात को सबसे अधिक महत्व देते हैं।
आज उसी कहानी को share कर रहे हैं, शायद आप में से बहुत लोगों के घर में यही कहानी कही जाती हो... गर नहीं सुनी है आपने, तो आप भी यह कहानी सुनें, और साथ ही यह भी कि यह कहानी क्यों कही जाती है...
संकष्टी गणेश चतुर्थी
एक जेठानी और देवरानी थीं। जेठानी माला धनाढ्य, लालची और दुष्ट प्रवृत्ति की स्त्री थी, जबकि देवरानी सुधा गरीब, सरल ह्रदय की, भक्त प्रवृत्ति की स्त्री थी।
क्योंकि देवरानी गरीब थी, तो वो जेठानी के घर पर बर्तन, झाड़ू-पोंछा आदि का काम करती थी।
एक दिन वो काम करके लौट रही थी, तो उसकी नयी पड़ोसन रेखा, तिल धोकर साफ कर रही थी।
सुधा ने पूजा से पूछा कि तिल क्यों धो रही है?
तो रेखा बोली, संकष्टी चतुर्थी व्रत आ रहा है, इसमें गणेश जी के चंद्रभाल रूप की पूजा, व्रत आदि किया जाता है। यह पूजा संतान की लंबी आयु और उनके उज्जवल भविष्य के लिए की जाती है।
उसके लिए ही तिल धोकर साफ कर रही हूँ, जब यह सूख जाएंगे, तब गुड़ के साथ कूट कर इनका प्रसाद बनाऊंगी।
पूजा विधि, और प्रसाद के विषय में जानकारी लेकर सुधा भी तिल, गुड़ ले आई।
संकष्टी चतुर्थी के दिन सुधा माला को बोल आई कि “दीदी, आज शाम मैं काम पर नहीं आऊंगी।”
दिन भर व्रत रखकर रात को सुधा ने पूजा की तैयारी की व तिल-गुड़ कूटकर उसने प्रसाद तैयार कर लिया। और बहुत ही श्रद्धाभाव से गणेश जी पूजा आरंभ कर दी।
अभी उसे पूजा आरंभ किए हुए आधे घंटे ही हुए थे कि दरवाजे पर दस्तक हुई।
उसने दरवाजा खोला तो सामने एक छोटा-सा बालक खड़ा था।
सुधा को देखते ही वह बालक बोल उठा, माँ बहुत भूख लगी है, कुछ खाने को दे दो...
सुधा ने उसे अंदर आने को कहा, और बोला मेरे पास इस तिलकुट प्रसाद के आलावा, तुम्हें देने को और कुछ नहीं है।
पूजा आरंभ कर दी है, थोड़ी देर में पूर्ण हो जाएगी, तब तुम खा लेना।
वो बालक पूजा समाप्त होने की प्रतीक्षा करने लगा।
पूजा समाप्त होने के बाद सुधा ने उस बालक को प्रसाद दे दिया।
बालक ने धीरे-धीरे कर के बना हुआ पूरा प्रसाद लें लिया।
सुधा के बच्चे उसका मुंह देखते रहे, पर उसने उनकी परवाह किए बिना उस छोटे से बालक को सारा प्रसाद दे दिया...
उस बालक ने पूरा प्रसाद ख़त्म करने के बाद कहा कि अब मुझे पोटी आई है, कहां करूं?
सुधा को कुछ न सूझा, क्योंकि वो तो घर के बाहर बहुत दूर खेतों पर जाते थे, पर इस नन्हे बालक को रात में कहां ले जाएं...
उसने घर के एक कोने में उसे पोटी करने को कहा, थोड़ी ही देर में बच्चे ने घर के चारों कोनों में पोटी कर दी।
जब पोटी पोंछने की बात आई तो उसने अपने साड़ी के एक कोने से उसकी पोटी पोंछ दी।
उस बालक के जाने के बाद सब भूखे पेट सो गए।
सुबह उठे तो उन्होंने देखा कि उनका घर का वो हर कोना जहां उस छोटे से बालक ने पोटी की थी और साड़ी का वो हिस्सा, सोने, चांदी हीरे-जवाहरात की तरह चमक रहे थे।
यह सब देखकर, सभी हर्षित हुए कि कल जो बालक आया था, वो कोई और नहीं, स्वयं गणेश जी थे और वो अपने भक्तों की परीक्षा लेने और अपनी कृपा बरसाने आए थे।
अब सुधा को घर-घर जाकर काम करने की आवश्यकता नहीं थी। जब माला को यह पता चला तो वह सुधा के घर दौड़ी चली आई और सम्पूर्ण जानकारी ली।
उसने अगले वर्ष, अपने घर में संकष्टी चतुर्थी व्रत की बहुत बड़ी व्यवस्था की, तिलकुट प्रसाद के आलावा, बहुत सारी मिठाई पकवान बनवाए। घर का बड़ा हिस्सा खाली कर दिया।
सुबह व्रत रखकर, रात में पूजा अर्चना आरंभ कर दी। पर उसका ध्यान पूजा में ना लगकर पूर्ण रूप से दरवाज़े पर लगा हुआ था।
पूजा आरंभ कर के एक घंटा बीत चुका था, पर दरवाजे पर दस्तक ही नहीं हो रही थी। माला के सब्र का बांध टूट रहा था कि तभी दरवाजे पर दस्तक हुई।
देखा, सामने एक छोटा सा बालक खड़ा था।
आह! आ गये गणेश जी... वो ख़ुशी से झूम उठी
उसने तुरंत उसे अंदर खींच लिया और इसके पहले कि वो कुछ बोलता, ढेरों पकवान उस बालक के मुंह में डालना शुरू कर दिया।
थोड़ी देर में बालक ने कहा कि मेरा पेट भर गया...
पर माला को इतने कम में संतोष नहीं था, उसने सोचा कि ज्यादा खाएगा तो सोना, चांदी , हीरे-जवाहरात सब भी बहुत अधिक बनेंगे।
उसने अब ज़ोर जबरदस्ती के साथ बालक को खिलाना शुरू कर दिया, जब तक बालक ने यह नहीं कह दिया कि उसे पोटी आई है।
माला ने उस बालक से पूरे घर भर में पोटी करवा दी और पोंछने की बात पर अपने माथे और हाथ में पोंछ ली।
जब वो बालक चला गया तो सब सो गए।
सुबह उठकर माला ने देखा, उसका पूरा घर पोटी की बदबू से भर गया था, सब ओर मक्खियां भिनभिना रही थीं। उसके पास से भी बदबू आ रही थी।
उसने पूरे दिन परिवार के साथ घर साफ़ किया, घर तो साफ़ हो गया, पर बदबू थी कि जाने का नाम ही नहीं ले रही थी।
वो उस बदबू से इतनी परेशान हो गयी कि दिनभर पागलों की तरह सफाई करती रहती, पर निजात नहीं मिलती।
इस पूजा को बच्चों के लिए रखा जाता है और इस पूजा के दौरान इस कहानी को सुनाने के पीछे का आशय यह है कि सरलता से बच्चों के मन-मस्तिष्क में यह बात पहुंचाई जाए कि ईश्वर की प्राप्ति उन्हें होती है, जो सरल ह्रदय वाले होते हैं, सच्चे भक्त होते हैं, जिनका ध्यान ईश्वर आराधना में होता है, न कि मोह-माया में, जो ईमानदार और निष्पक्ष होते हैं, जो लालची नहीं होते हैं, जो दूसरे के दुःख, भूख और परेशानी को अपने से पहले हल करते हैं।
सुधा में वो सारे सद्गुण थे, जिससे गणेश जी प्रसन्न हो गए थे, अतः उन्होंने उसे सब तरह के सुख दे दिए थे। जबकि माला के गुण उसके विपरीत थे, अतः उसके पास सब होते हुए भी छिन गया।
हे श्री गणेश जी महाराज, हम सब से प्रसन्न रहें। हम सब पर अपनी कृपा दृष्टि सदैव बना कर रखें🙏🏻
जय संकष्टी गणेश चतुर्थी 🙏🏻