Thursday, 10 July 2025

Poem : गुरू ही हैं सब-कुछ

गुरू पूर्णिमा के पावन अवसर पर सदगुरु श्री श्री भवानी शंकर जी महाराज को मेरा शत-शत वंदन... 

यह काव्य पंक्तियां आपके श्री चरणों में समर्पित है।

पूज्य गुरुदेव आपकी कृपा हम सब पर सदैव बनी रहे 🙏🏻

गुरू ही हैं सब-कुछ


मेरे तो गुरू ही हैं सब-कुछ,

दूसरा न कोय।

उनकी चौखट है मंदिर,

हर पल दर्श जिसमें होय।।


उनके चरण रज में,

सिमटा सारा संसार। 

ह्रदय में है छवि बसी,

कृपा करें वो बारम्बार।। 


उनका कथन है मेरे,

जीवन का आधार।

उनसे ही मिलता,

मेरे जीवन को आकार।। 


दुनिया में उनकी इच्छा से आए,

उनमें ही मिल जाना है।

जीवन का है लक्ष्य यही,

चरणों में उनके जगह पाना है।।

Monday, 7 July 2025

Poem : अखबारों से बंद दरवाजा

आज आप सब के साथ मुझे दरभंगा, बिहार की शुभ्रा संतोष जी की कविता को साझा करते हुए अपार प्रसन्नता हो रही है।

शुभ्रा जी एक मंझी हुई कवयित्री है, बहुत से मंच में उनकी कविताएं प्रकाशित हो चुकी हैं।

तो आइए, उनकी कविता का आनंद लेते हैं।

अखबारों से बंद दरवाज़ा


एकबार फिर से आओ

कूंजी घुमा के देखें

 बंद दरवाज़े की अनदेखी

परतों को खोलें।


 सदियों से

दुनियां का स्वरूप 

 ख़बरें जो 

गढ़ रहीं

उस सोच की चादर के

सिलवटों को झटकें।

  

स्याह रंग के कहकरे 

दीमको के घर बने

जेहन के दरवाज़े

घिस घिस कर

खोखले हुए।


झटक कर धूल सारी

आहिस्ते आहिस्ते

अंदर के इंसान को 

 एकबारगी टटोलें।


 निकल कर बासी खबरों 

 के दायरों से 

दरवाज़े के सांकल को 

पुरजोर से खोलें।


पढ़ रहे जो या समझ रहें जो 

 दुनिया को आज-कल

दरवाज़े के उस तरफ 

कोई और ही 

दुनिया आपकों दिखें।


क्या पता 

कोई और ही 

हवा चल रही हो वहां।

क्या पता

कोई और ही 

दुनियां पल रही हो वहां। 



Disclaimer :

इस कविता में व्यक्त की गई राय लेखिका के व्यक्तिगत विचार हैं। जरूरी नहीं कि वे विचार या राय Shades of Life के विचारों को प्रतिबिंबित करते हों। कोई भी चूक या त्रुटियां लेखक की हैं और Shades of Life उसके लिए कोई दायित्व या जिम्मेदारी नहीं रखता है।

Saturday, 5 July 2025

Article : सकारात्मक ऊर्जा

अभी कुछ दिन पहले यह एहसास हुआ कि जिंदगी के अनवरत चलते रहने में सब कुछ आपका सोचा हुआ नहीं होता है। 

बहुत कुछ वो भी होता है, जो कोई और सोच रहा होता है। जो उसकी इच्छा होती है। यहां "उसकी" का तात्पर्य ईश्वर से नहीं है, बल्कि उनसे है, जो आप से जुड़े हुए हों या शायद वो जिन्हें आप पहचानते भी नहीं हैं।

पर एक बात समझ नहीं आई कि जब हमें हमारे कर्मों के अनुसार फल मिलना होता है, तो दूसरे की सोची हुई इच्छा का प्रभाव हम पर क्यों पड़ता है?

हम अपने कर्मों, अपनी सोच को तो सकारात्मक रख सकते हैं, पर दूसरों की नहीं…
सकारात्मक ऊर्जा

फिर किस तरह से यह करें कि फल हमें हमारे कर्मों और हमारी सोच का मिले?

या किस प्रकार से अपने सजाए हुए सपनों को बिखरते देखकर दुखी न हों?

आखिर हम कौन से सपने संजोएं और कौन से नहीं...

या सपने संजोना ही छोड़ दें?

पर अगर सपने ही नहीं संजोएंगे, तो आगे बढ़ने की, कठिन परिश्रम करने की इच्छा भी बलवती नहीं होगी।

और न ही जिंदगी में कोई उत्साह और उमंग होगी।

मन नीरसता के गहरे अंधकार में जाता चला जाएगा...

पर क्या यह सही है?

और क्या यह सही है कि कर्म करो, फल की इच्छा न करो... वाली बात, क्योंकि कर्म तो हम कर रहे हैं और फल दूसरों के कर्म और इच्छा से भी मिल रहे हैं...

अब से एक नया अभियान शुरू किया है, सकारात्मक ऊर्जा को प्रज्वलित करने का, स्वयं की भी और अपने आस-पास मौजूद सब लोगों में भी...

एक नया प्रयोग कि क्या, जब सब लोग मिलकर एक ही विषय में सोचें तो क्या असंभव कार्य भी संभव हो सकता है...

क्योंकि जब किसी की आपके प्रति विपरीत सोच काम कर सकती हैं, तो आपके पक्ष वाली सोच भी काम करनी चाहिए…

ईश्वर से करबद्ध प्रार्थना है कि हे ईश्वर, आप मनोकामना सिद्ध करने वाले हैं, इस मनोकामना को भी पूर्ण कीजिए और हमारी भक्ति स्वीकार कीजिये। अपनी कृपादृष्टि सदैव बनाए रखियेगा 🙏🏻