आज नवरात्र के अवसर पर एक short Story and poem के माध्यम से एक devotional story आप सब के समक्ष रखने की कोशिश कर रहे हैं।
आप से अनुरोध है, इसे दिल से पढ़िएगा, और उसे करने का प्रयास कीजिएगा, तो आप का जीवन सुखमय हो जाएगा।
पढ़कर, यह भी बताएं कि आप को यह कहानी कैसी लगी?
क्या करूँ अर्पण
अजय बहुत दिनों बाद अपने दोस्त रचित के घर गया था। उसकी बेटी ने दरवाजा खोला। अजय ने कहा, पापा को बोलो, उनके बचपन का दोस्त आया है। अजय को बैठा कर वो अंदर चली गयी। वो अपने पापा को जो भी बोल रही थी। वो सब बाहर भी सुनाई दे रहा था। पापा आपके बचपन के दोस्त आए हैं। पर वो तो खाली हाथ आए हैं। कुछ भी ले कर नहीं आए हैं।
ये सुन कर अजय को
एहसास हुआ,
वो तो दोस्त से मिलने की खुशी में खाली हाथ ही आ गया था। उसने कमरे में इधर-उधर
देखना शुरू कर दिया। तभी उसे एक पेंटिंग बड़ी पसंद आई। उसने वही उतार ली। और जब
रचित आया,
तो उसे वही दे दी। अपना ही समान पाकर रचित अकबका गया।
क्या रचित को खुश होना चाहिए था?
नहीं ना ?
जी हाँ अपना समान ही
दूसरे द्वारा पा कर कोई खुश नहीं होता है।
तो हम भगवान को
रुपये-पैसा,
हीरे-जवाहरात,
फल फूल चढ़ा कर ये क्यों मान लेते हैं, कि भगवान हम से खुश हो जाएंगे।
जबकि ये सब तो उनका ही दिया हुआ है।
अगर प्रभु को खुश
करना ही है तो,
हम कुछ ऐसा अर्पण करें जिसे हमने बनाया
है।
मैं बैठा सोच
रहा,
प्रभु को क्या चढ़ाऊँ
क्या मैं
उन्हें अर्पण करूँ
किस तरह उन्हें
रिझाऊँ
स्वयं प्रभु प्रकट हो, बोले
अहंकार को छोड़
के
दुनिया में सब है
मेरा
उसको जो तू
अर्पण करे
कल्याण हो जाए
तेरा
हम अपना अहंकार, घमंड जिस पल भी छोड़ देंगे। उसी क्षण हम ईश्वर के इतने करीब हो जाएंगे कि ईश्वर में ही समाहित हो जाएंगे। तब हमारा सिर्फ और सिर्फ कल्याण ही होगा।
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