Saturday, 12 April 2025

India's Heritage : एक रामायण हनुमान जी की

आज हनुमान जन्मोत्सव है, इस उपलक्ष्य में India's Heritage segment में भक्त शिरोमणि, प्रभु श्री राम जी के अनन्य भक्त हनुमान जी के विषय में ऐसी कथा का वर्णन करने जा रहे हैं, जिससे न जाने कितने लोग अनभिज्ञ होंगे।

और इस कथा को जानने के बाद, हर व्यक्ति के मन में हनुमानजी के प्रति और अधिक प्रेम, श्रद्धा और भक्ति उमड़ पड़ेगी।

चलिए उस कथा को आरम्भ करने से पहले जोर से हनुमान जी का जय घोष लगाते हैं। 

बजरंग बली की जय, जय हो हनुमान की जय...

सनातन काल से हिन्दू धर्म में हनुमानजी का विशेष स्थान है। हनुमान जी, भगवान शिव के 11वें रुद्रावतार थे।

स्वयं ईश्वरीय रूप होने के बाद भी उन्होंने अपना जीवन प्रभु श्री राम जी की भक्ति में लीन कर दिया।

इतनी अधिक सरलता, सौम्यता और समर्पण का भाव, कि उसकी कभी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता है। आज की कथा, उसी भाव को प्रदर्शित करती है। 

एक रामायण हनुमान जी की


त्रेतायुग को साक्ष्य रूप में प्रस्तुत करने का माध्यम है, वाल्मीकि जी द्वारा रचित रामायण... 

रामायण में लिखा एक-एक‌ श्लोक, एक एक पल एक एक क्षण को जीवंत करता है। इसे 24000 श्लोक में लिखा गया है।

उस समय संस्कृत मुख्य रूप से लिखित लीपि थी, अतः वाल्मीकि जी द्वारा रामायण भी संस्कृत में ही लिखी हुई है।

पर उसके बहुत वर्षों के पश्चात् गोस्वामी तुलसीदास जी ने अवधी भाषा में रामचरित मानस व हनुमान चालीसा की रचना की...

पर आपके मन में सवाल यह नहीं उठते हैं कि... 

क्या वाल्मीकि रामायण ही पहली रामायण थी?

जब रामायण लिखी जा चुकी थी, तो रामचरित मानस क्यों?

हनुमान चालीसा की रचना इतने युग बाद क्यों?

या हनुमान चालीसा, तुलसीदास जी ने क्यों लिखी?... 

तो चलिए इन्हीं सब प्रश्नों के उत्तर जानते, भारत की धरोहर से...

हम सभी यही जानते हैं कि पहली रामायण वाल्मीकि जी ने लिखी थी, लेकिन शास्त्रों के अनुसार सबसे पहली राम कथा, अनंतभक्त हनुमानजी ने लिखी थी और वो भी अपने नाखूनों से एक चट्टान पर, जिसे हनुमद रामायण कहा गया।

बात उस समय की है, जब लंका विजय के बाद प्रभु श्रीराम अयोध्या में लौटकर राजपाट संभालने लगे थे। कुछ दिन अयोध्या में रहकर श्रीराम की सेवा के बाद हनुमानजी हिमालय जाकर वहां शिव तपस्या में लीन हो गए। 

इस दौरान वे रोजाना अपने पास मौजूद, एक शिला पर नाखून से राम कथा लिखते रहे। कई वर्षों के बाद तपस्या और राम कथा दोनों पूरी हो गई, जो कालांतर में हनुमद रामायण कही गई।

इसके बाद महर्षि वाल्मीकि ने वाल्मीकि रामायण लिखी और अतिउत्साह के साथ, उसे मन में लेकर भगवान शिव को समर्पित करने के लिए कैलाश धाम पहुंच गए। वहां हनुमानजी पहले से मौजूद थे। 

कैलाशधाम पहुंच कर, वाल्मीकि जी ने, शिला पर नाखूनों से उकेरी हनुमद रामायण देखी, जिसे देखकर वे निराश हो गए।

वाल्मीकि जी को उदास देखकर, बजरंगबली ने उनसे मायूसी की वजह पूछी, तो महर्षि ने कहा, कि मैंने कठिन परिश्रम से रामायण लिखी, लेकिन आपकी रामायण देखकर लगता है कि अब मेरी लिखी रामायण को महत्व नहीं मिलेगा।

आपने वह सब कुछ लिख दिया है, जिसके आगे मेरी रामायण कहीं नहीं टिक पाएगी।

यह सुनकर हनुमानजी मुस्कुरा दिए, उन्होंने वाल्मीकि जी से कहा, बस इतनी सी व्यथा? 

महर्षि वाल्मीकि आप चिंता ना करें, इतना कहकर बजरंगबली ने हनुमद रामायण लिखी शिला एक कंधे पर तो दूसरे पर महर्षि वाल्मीकि को बिठा लिया। 

फिर हजारों मील दूर ले जाकर उन्होंने समुद्र में अपनी लिखी हनुमद रामायण राम को समर्पित करते हुए जल निमग्न कर दिया।

यह देखकर वाल्मीकि भाव-विह्वल हो उठे, इतनी सरलता इतनी सौम्यता, माना कि मैंने अति परिश्रम करके रामायण लिखी थी, पर हनुमानजी ने भी तो अत्यंत समर्पित होकर कठिन परिश्रम के साथ ही हनुमद रामायण लिखी थी।

मुझे यश‌ दिलाने के लिए उन्होंने कितनी सहजता से यह कठिन कार्य, "अपनी कृति को जल निमग्न कर दिया"...

वे बरबस ही बोल उठे, हे रामभक्त आप धन्य हैं...आपकी महिमा के गुणगान के लिए मुझे एक और जन्म लेना होगा।

मैं वचन देता हूं कि कलियुग में मैं एक और रामायण लिखने के लिए जन्म लूंगा, वह रामायण आम लोगों की भाषा में होगी। 

माना जाता है कि कलयुग में 16वीं शताब्दी में रामचरितमानस लिखने वाले गोस्वामी तुलसीदासजी, महर्षि वाल्मीकि का ही दूसरा जन्म थे।

और उन्होंने रामचरितमानस लिखने से पहले  हनुमान चालीसा लिखी, फिर हनुमानजी का गुणगान करते हुए उनकी प्रेरणा से अपनी रामचरितमानस पूरी की..

तो यह है वो कथा, जो बताती है कि पहली रामायण हनुमद रामायण है, जिसे स्वयं हनुमान जी ने अपने नाखूनों से शिला पर उकेरी थी, जिसे बाद में, बहुत ही सहजता और सरलता से समुद्र में जल निमग्न कर दी थी, जिससे हर ओर वाल्मीकि रामायण को यश और कीर्ति मिले। और बाद में हनुमानजी के द्वारा दिए गए अविश्वस्नीय बलिदान को कोटि-कोटि धन्यवाद देने हेतु वाल्मीकि जी ने पुनः जन्म लिया और पहले हनुमान जी की प्रशंसा और स्तुति करते हुए हनुमान चालीसा लिखी, उसके उपरांत अवधी भाषा में रामचरित मानस लिखी। 

हनुमद रामायण लिखी गई थी, इसकी पुष्टि एक घटना के द्वारा सिद्ध होती है।

बात चौथी, पांचवीं शताब्दी की है, वह समय संस्कृत भाषा के प्रकांड विद्वान कालीदास जी का समय था 

उस काल में एक पट्टलिका समुंदर किनारे मिली तो उसे सार्वजनिक जगह रख दिया गया, जहां विद्यार्थी उस पर लिखी लिपि समझ और पढ़ सकें। 

समझा जाता है कि कालीदास ने उसे समझ लिया था, वह जान गए थे कि यह पट्टालिका, हनुमान जी की लिखी हनुमद रामायण का ही अंश है, जो समुद्र के पानी के साथ बहते हुए उन तक पहुंच गई थी।

हनुमानजी को यूं ही भक्तशिरोमणि नहीं कहा गया है, अति सिद्ध, अति सामर्थ्यवान, भगवान शिव के 11वें रुद्रावतार होने के बाद भी इतने सरल, सौम्य, सहज और समर्पित अन्यत्र कहीं कोई और नहीं...

बोलो बजरंगबली की जय, हनुमान की जय...

दुनिया चले न श्री राम के बिना, राम जी चले न हनुमान के बिना...

आपके श्रीचरणों में भक्ति के पुष्प अर्पित करते हुए बस एक ही कामना है 🙏🏻🙏🏻

हे प्रभु, हम सब पर अपनी विशेष कृपा बनाए, सभी जगह सुख और समृद्धि बनी रहे 🙏🏻

Note : जानकारी विश्वस्त सूत्रों द्वारा एकत्रित की गई है ....

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