अब तक आपने पढ़ा, रितेश और अलिया ने
अपने प्यार के लिए क्या-2 सहा, पर क्या उन्हें
परिवार वालों की
स्वीकृति मिली,
जानते हैं, part 3 में
प्यार तो प्यार है - Part 3
रितेश को पता चला, तो उसने अब्बू को बिना बताए, stockist का सारा काम संभाल लिया, अब दवाइयाँ समय पर आने लगी।
अलिया की बहन की शादी की सारी ज़िम्मेदारी भी रितेश ने ही संभाल ली, वहीं अब्बू की
stockist, से बात हुई, अब्बू उसकी सबके
सामने प्रसंशा करने लगे, तब उसने बताया, नहीं जनाब, घोड़ा घाँस से
यारी करेगा, तो
खाएगा क्या? आपके medicine
के सारे cheques रहमान मियां पहले ही दे जाते हैं।
आज अब्बू को अपने दामाद में अपना बेटा दिख रहा था, कोई हिन्दू लड़का नहीं दिख रहा था।
एक दिन रितेश के पापा की तबीयत काफी खराब हो गयी, उन्हें hospital में admit कर
दिया गया, रितेश और अलिया ने पैसा पानी की तरह बहाया। बहुत प्रयासों के बावजूद भी वो उन्हें बचा नहीं सके।
कुछ दिनों बाद रितेश को एक अच्छी company का
offer आया। Bombay जाना था। रितेश और
अलिया आपस में कमरे में बात कर रहे थे, रितेश बोल रहा था, मुझे एक हफ्ते में
join करना है, one
BHK flat ही मिलेगा, उसने अपने एक दोस्त से अलिया की job के लिए भी बात कर ली है।
अलिया: आप कल ही flight
से निकाल जाइए, बड़ा घर ढूंढ
लीजिये, तब मैं माँ के साथ आ जाऊँगी, वरना माँ को
ऐसे कहाँ छोड़ जाएंगे?
रितेश: माँ कौन से,
नए शहर में हैं? फिर
मिनी भी तो यहीं है ।
अलिया: मिनी दी, अपना ससुराल देखेंगीं या माँ को देखेंगीं?
रितेश: तुम्हें फिर पता नहीं, इतनी अच्छी job मिलेगी कि नहीं?
अलिया: ना मिले, जो
मिलेगी, वही
कर लूँगी।
रितेश: तुम भी ना, बहुत जिद्दी हो। माँ को तुमने
इतने मंदिर घूमवा दिये, तीर्थ करा दिये, पर
माँ के मन में तो, तुम्हारे लिए कभी
प्यार जागा नहीं, तुम बैठी रहो यहीं।
अलिया: चाहे जो भी हो, मैं अभी नहीं जा रही हूँ ।
माँ,
बाहर बहू-बेटे की बात सुन
रही थीं, और सोचने लगीं, कि वो हमेशा
यही सोचती रहीं,
बेटा मंदिर- तीरथ करवा रहा
है, कभी सोचा ही नहीं, कि
कोई मुस्लिम लड़की भी
ऐसा सोच सकती है। मैंने कभी इसे प्यार से नहीं देखा, और एक ये
है, जो
अपने पति का साथ, अच्छी
नौकरी किसी की परवाह नहीं कर रही है ।
आज उन्हें बहू में, अपनी बेटी नज़र आ रही
थी, कोई मुस्लिम लड़की नहीं।
रितेश ने Bombay
पहुँच कर बड़ा घर ढूंढ लिया।
15 दिन
बाद, आज वो माँ और अलिया दोनों को ले जा रहा था, अलिया के अम्मी-अब्बू भी आए थे, दोनों ही परिवार को रितेश और अलिया पर
बहुत नाज़ था।
अब दोनों ही परिवार बड़े गर्व से कहते थे, प्यार
तो प्यार होता है, उसमें कोई धर्म-समाज
नहीं होता है, इंसान
देखना चाहिए, जाति धर्म
नहीं।
Kudos!
ReplyDeleteThat was an interesting read with a beautiful message.
Keep it up dear.
Thank you for your inspiring words,it energized me
DeleteBeautiful story with a beautiful morale...
ReplyDeleteThank you,
DeleteYou motivated me
Nice and inquisitive story....I couldn't stop myself to read all parts in one breath.well written
ReplyDeleteThank you
DeleteYour words are such inspiring that,they boost me up to write such episodic stories further