Sunday 29 July 2018

Article : अब ना वैसी बरखा

अब ना वैसी बरखा

आज जब सो के उठी, तो रोज़ की तरह कमरे का A.C.बंद कर के खिड़की खोल दी, अभी खिड़की खोली ही थीकि पानी की बौछार ने गालों को सहला दिया। तपती गर्मी में वो ऐसी लगी मानो, रेगिस्तान में झरना फूट आया हो। उन बूंदों के स्पर्श से मन बचपन में लौट गया। जब बारिश का इंतज़ार किया करते थे,मेघों के घिरने से वर्षा भी आ जाए, हम लोग इसके लिए सुरीले 
गीत भी गाया करते थे। और बारिश शुरू हुई नहीं कि बारिश के होने से मिट्टी से उठने वाली सौंधी-2 खुशबू बरबस ही हमें बाहर खींच लेती और बस फिर क्या हम सब बच्चे घरों से बाहर छम छम नाचा करते, और कितने ही खेल शुरू हो जाते थे

 पैरों से पानी उछालना, पानी पर कंकड़ चलाना और हाँ हम बड़े अमीर भी हुआ करते थे, क्योंकि पानी में हमारे जहाज़ जो चला करते थे, वो कागज़ की कश्ती जिनका हमारी नज़रें दूर तक पीछा किया करती थीं

बारिश हुई, तो पापा को पकौड़ियाँ बहुत भाती थीं। तो बस इधर बारिश हुई, और उधर माँ की कढ़ाई चढ़ जाती। पकौड़े-भजिए की सुगंध ही हमें वापस घर को खींच लाती थी। सच गरम गरम पकौड़े-भजिए खा के तो आत्मा ही तृप्त हो जाती थी।

कभी जब पापा बाहर होते, तो वो लौटते time  नाथू हलवाई के समोसे लाना नहीं भूलते। उन समोसों में जो स्वाद था, वो आज भी याद है। कोई भी दो-चार से कम तो खाता ही नहीं था।
तभी छुटकू बोला, माँ क्या कर रही हैं? उसकी आवाज़ ने बचपन के स्वर्णिम दिनों से वापस वर्तमान में ला दिया। उसको देख के लगा चलो, फिर से बचपन में जिया जाए। पर इन apartment  में कहाँ वो आँगन, कहाँ वो बगीचा!
सोचा, चलो नीचे parking area पर ही चलें। उसको बोला तो, वो बोला कपड़े गीले हो जाएंगे। मन में आया- क्या बच्चा है! भीगने का सुख नहीं ले रहा है, क्योंकि कपड़े भीग जाएंगे। अभी water park चलने की बात बोली होती, तो खुशी से झूमने लगता, तब कपड़े भीगने की परवाह नहीं होती।
मैं खुद ही नीचे भीगने चल दी, अभी parking area  के करीब भी नहीं पहुंची थी कि गंदी बदबू का भभका आया। guard से पूछा, तो बोला madam आप नई आयीं हैं ना, यहाँ हर बारिश में यही आलम रहता है। ऐसा क्यूँ? अरे madam दुनिया की polyethene  यहाँ इकठ्ठा रहती है। वो ही सारी गंदगी रोक देती है, और बारिश में सब मिलके बदबू फैलाते हैं। भीगना तो छोड़िए, वहाँ रुक के बारिश देखने का मज़ा भी नहीं ले पायी।
लगा, कोई नहीं, पकौड़े- भजिया  बना के ही बारिश का मज़ा लिया जाए। अभी कढ़ाई चढ़ाई ही थी, कि पतिदेव की आवाज़ आ गयी, सुबह सुबह क्या तला बनाने लगीं? कुछ हल्का बना लाओ।
लो जी हो गयी बारिश, और हो गए उसके मज़े।
क्या जानेगी ये generation , हमारे समय की बारिश और उसके मज़े।

Polyethene का इस्तेमाल करना, हम बंद करेंगे नहीं। दुनिया के junk food खिला देंगे बच्चों को, पर Indian snacks  नहीं देंगे, क्योंकि वो बहुत oily हैं, health  के लिए ठीक नहीं होंगे। अब ना वैसी बरखा है ना वैसे लोग।           

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