आज आप सब के साथ मुझे हिन्दी साहित्य में प्रसिद्धि प्राप्त बीकानेर ( राजस्थान) के श्री अशोक रंगा जी की लघुकथा को share करते हुए अपार प्रसन्नता हो रही है।
उनकी इन्सानियत को आइना दिखाती लघुकथा का आनन्द लीजिए।
🌝 इंसानियत 🌝
गर्मी के दिन थे. भरी दोपहर में तापमान लगभग 49-50 डिग्री सेल्सियस के आसपास था. धूप में पड़ी हर वस्तु जल सी रहीं थी.
एक चालीस -पच्चास मीटर लम्बी व अति संकड़ी गली के बीचोबीच लोहे की अलमारियों से लदा हुवा एक ऊंट गाड़ा चला आ रहा था.
उसी दौरान सामने से दो कारे अचानक हॉर्न बजाते हुऐ आ टपकी.
बेचारा ऊंट गर्मी के कारण थका हुवा, बेचैन सा था व उसके मालिक ने ख़ुद को गर्मी से बचाने के लिए अपने सिर पर एक तौलिया सा बांध रखा था.
दूसरी तरफ कार वाले AC में थे. गाड़ी में बैक गियर था फिर भी दोनों हॉर्न पर हॉर्न दिये जा रहें थे.
आख़िर ऊंट गाड़े वाले ने ऊंट गाड़े से नीचे उतर कर अपने ऊंट को पीछे धकेलने लगा.
चूंकि ऊंट गाड़े में काफ़ी वजन था इस कारण ऊंट भे-भे की आवाज़ निकालते हुवे बड़ी कठिनाई से पीछे हटने लगा.
संकड़ी गली से ऊंट गाड़े के पूर्णतया पीछे हटने के बाद दोनों कार मालिक अपना सीना फुलाए विजय भाव के साथ वहाँ से निकल पड़े.
ऊंट भी इन जाती हुई कारों को पीछे से देखते हुऐ गुस्से में जमीन पर अपने पाँव को पटकने लगा.
मालिक ने ऊंट की पीठ पर हाथ फेरते हुवे उसे समझाया कि "अरे बुरा नहीं मानते ऐसे पढ़े लिखें बड़े इंसानों का"
Disclaimer:
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Really grt work..
ReplyDeleteThank you very much for your appreciation 🙏
DeleteNice short story
ReplyDeleteThank you very much for your appreciation 🙏
DeleteVery remarkable...👍
ReplyDeleteOutstanding piece of work...
ReplyDeleteThank you very much for your appreciation 🙏
DeleteReally very nice sir ji
ReplyDeleteसभी का आभार ��
ReplyDeleteThank you Sir Ji 🙏🏻
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