डाॅक्टर साहब
चन्दन, अपने बाबू जी "दीनानाथ" का अकेला बेटा था। जब वो छह साल का था, माँ तब ही इस दुनिया से विदा हो चुकी थीं।
दीनानाथ जी साधारण सी नौकरी करते थे। जिसमें जीवन यापन हो पाना ही संभव था। ऐसे में पढ़ना-लिखना तो सोचना भी कठिन था।
पर वो अपने लिए कुछ नहीं खरीदते थे, आधा पेट भोजन व पुराना कपड़ा वषों चला कर भी चन्दन को पढ़ा-लिखा रहे थे।
उनकी केवल एक ही इच्छा थी कि चन्दन, एक बड़ा डाॅक्टर साहब बने।
चंदन भी पढ़ने में बहुत होशियार था। वो भी अपने बाबू जी की इच्छा पूरी करने के लिए दिन-रात मेहनत कर रहा था।
उसकी मेहनत और लगन से उसका medical में selection हो गया।
चंद सालों में उसकी पढ़ाई पूरी हो गई और वो डाॅक्टर भी बन गया।
जल्द ही उसकी अच्छी practice चलने लगी। तो उसने घर में ही clinic खोल ली।
लोगों की दिनभर भीड़ लगी रहती।
चंदन जब तक patient देखता, बाबू जी छत पर टहलते रहते।
एक दिन एक गरीब किसान, चन्दन की clinic पर आया। बोला डॉक्टर साहब, मेरी बीवी बहुत बीमार है, कृपया घर चलकर उसे देख लीजिए।
चंदन बोला, मैं घर नहीं जाता हूँ, यहीं लाओ।
वो बोला, यहाँ कैसे लाऊं, मेरे पास रिक्शा भाड़ा का पैसा नहीं है। आप नहीं चले तो वह मर जाएगी।
आपकी फीस का पैसा भी, मैं फसल कटने पर दूंगा।
अब तो चन्दन कसकर भड़क गया, फीस के पैसे हैं नहीं, जान बचानी है। चल भाग यहाँ से, ना जाने कहाँ से आ जाते हैं भूखे नंगे।
अभी वो चिल्ला ही रहा था कि बाबूजी, नीचे आ गये और किसान से बोले, तुम अपना पता मुझे लिखवाओ और घर जाओ। डाॅक्टर साहब अभी पहुंचते हैं।
किसान के जाते ही बाबू जी ने रौद्र रूप धारण कर लिया और अपनी चप्पल हाथों में उठा ली।
चंदन तू अभी जा रहा है या बताऊं?
बाबूजी का रौद्र रूप देखकर चंदन डर गया, उसने उनका ऐसा रुप कभी नहीं देखा था।
जी, चला जाऊंगा पर फीस?
चुप रह.....
मैंने तुझे रक्षक बनाने के लिए डाॅक्टर बनाया था, फीस के लिए नहीं।
डाॅक्टर रुपए कमाकर डाॅक्टर साहब नहीं बनते हैं, बल्कि रक्षक बनकर डाॅक्टर साहब बनते है।
तेरे जैसी सोच वाले डॉक्टर, रक्षक नहीं भक्षक होते हैं। तुझे पैसे चाहिए? तो मुझसे लेकर जा। पर उसे ठीक कर के आ।
आज उसकी बीवी मर गई तो मुझे लगेगा कि तेरी माँ, एक बार फिर मर गई है। यह कहकर वो फफक-फफक कर रो पड़े।
काश मेरे पास पैसे होते, तो तेरी माँ भी बच जाती या वो डाॅक्टर भक्षक ना होता, रक्षक होता, तो आज तेरी माँ, हमारे साथ होती।
आज चंदन ने पहली बार बाबू जी को रोते हुए देखा था।
अपने पिता के दुःख से वो द्रवित हो गया, साथ ही उसे समझ आया था कि उसके पिता उसे क्यों डाॅक्टर बनाना चाहते थे।
वो तुरंत ही किसान के घर चला गया, उसके प्रयासों से उसकी पत्नी बच गयी। किसान को वह कुछ पैसे भी दे आया। जिससे वह खाने-पीने का सामान और दवा खरीद सके।
उसके बाद चंदन ने कभी फीस की परवाह नहीं की। जो सामर्थ्यवान थे उनसे पैसा लेता था और जिनके पास पैसों का अभाव था, उन्हें free में देखता था।
जब वो रक्षक बन गया था, तब से सही मायने में वो डाॅक्टर से डाॅक्टर साहब बन गया था।
Happy Doctor's Day 🏥👨⚕️👩⚕️
Very nice story... A person should be a good human being before starting any profession.
ReplyDeleteYa, it should be...
DeleteThank you so much for your appreciation