House wife के लिए, quarantine के 14 दिन
लोगों के careless approach के कारण आज कल फिर से corona अपना ज़ोर पकड़ रहा है। ऐसे में quarantine होना पड़े, यह कोई बड़ी बात नहीं है। पर हमारी रचना रानी के लिए बड़ी बात ही हो गई।
कैसे?
चलिए उनकी आपबीती उनसे ही जानते हैं...
हाँ तो रचना जी बताइए, कैसा रहा आपका अनुभव?
रचना जी नहीं, हमार नाम रचना रानी है।
हाँ हाँ, बताइए रचना रानी क्या कहना चाहेंगी आप?
हमारे यहाँ बच्चा लोग सकूल, पति और देवर-देवरानी सब ही दफतर जाते हैं। बस हम ही घर चौका-बर्तन, खाना- कपड़ा के लाने घर पर इक्कली रह जाती थीं।
पर जब से मुआ कोरोना चला है ना, तब ही से सब घर से ही काम-काज करें हैं। इन लोगन का तो काम आधा और हमार दुगना भै गओ है।
का बताएं जिज्जी, जई काम को भार लाने कोरोना, हम से ही चपेट गयो।
फिर...
बस फिर का... वही का कहत हैं, जिस में इक्कले कमरे में रहन होता है।
Quarantine...
हओ जिज्जी, एकदम ही ठीक समझी।
हम कहे, हम ना रहेंगे, ऐसे इक्कले में, हमार तो प्राण सूख जावेंगें बहाँ इक्कले में..
फिर...?
फिर का? कोई ने हमार ना सुनी, ससुरा भेज दओ, मुआ मोबाइल के साथ।
अरे तब तो तुम बहुत परेशान हो गयी होगी, अकेले 14 दिन कैसे काटे? कितना कठिन होता है ना ऐसे रहना?
अरे जिज्जी, जई तो बात है, हम मेहरारू लोग की, दिन भर काम के साथ इक्कले ही तो रहत हैं, कौनों नहीं होता, साथ देने लाने, सारे काम इक्कले ही करन पड़त है, फिर भी कोई इज़्ज़त नही, कोई नाम नहीं।
सब बस छोटिहे की तारीफें करत हैं, देखो कितना काम करे रही, रुपया-पैसा हाथ में रहे, सो अलग...
तो जिज्जी, का भओ, हम जब कमरा में थीं, तो ई ससुरा मोबाइलवा भी साथ था। तो बस कहे बात के अकेले?
बिटिया अपना फ़ेसबुकआ समझा दीहिं, वटसअप में दोई तीन गूरप बना दीन।
बस दिन भर उसमें ही निकल गई, उसमें करना ही का है,
बस टिपर- टिपर उंगलियन चलत रहो बस।
और कुछ मन करे तो ऊटूब, इंटरनेट भी चला लें।
काय जिज्जी, ऐसे ही आज कल के लोग, बिज़ी रहत हैं ना, सोई हम हो गए।
का?
नहीं समझी?
अरे, बिज़ी...
किसी से बात नहीं करती थीं?
काहे नहीं करते थे, बहुते ही बात करते थे। दिन भर फ़ोन पर बतियावत थे। सारे रिश्तेदार, बिरादरी वाले, एकदम बीआईपी बनाएं हुए थे।
सुबह शाम फोन आते थे, ऐसे लग रहो था कि हिरोइन बन गए हों।
दिन भर आराम, खूब सारे फोन, फिर मोबाइल में सारे दिन मज़े, उस पर घर वालों का बहुत ज्यादा ध्यान रखना, मजा ही आ गओ।
सच्ची, ऐसो लग रहा था जिज्जी, मायके पहुंच गए हों
क्यों?
काहे कि जब से ब्याह के आए ना, बिल्कुले आराम नहीं मिला, ना ही कोई ध्यान रखता था, इही बात के लाने और का?...
और बताएं जिज्जी, देवरानी की तो बात ही ना पूछो, बिचारी काम करत करत...
आज बाको और बाकियन को भी समझ आए रहा था कि, सबसे ज्यादा काम हमहीं करते थे।
सो कठिन दिन, हमारे लाने ना थे, उनके लाने थे, जो बाहर कामकाज कर रहे थे...
आज 14 दिन बाद, जब कमरा से बाहर आए ना तो, सबहिं के तेवर बदल गये हैं, सब बहुत मान देने लगे, सबहिं अच्छे से जान जो गये हैं कि हम बहुत काम करत हैं।
तो हम से पूछोगी जिज्जी कि कैसे रहे बे दिन, तो हम तो जेई बोलेंगे कि बहुते ही अच्छे...
तो रचना रानी की बातें तो यही बताती हैं कि गृहणियों के लिए, जो दिन भर अकेले काम करती रहतीं हैं, फिर भी ना ध्यान मिलता है, ना मान मिलता है, ना नाम...
तो गृहणी के लिए, quarantine के 14 दिन...
दाग अच्छे हैं....
अनामिका बिन्नो तुमने तो रचना रानी की रचना भोतहि अच्छी लिखी है। सच्ची में मोय तो मजो आ गओ।रचना रानी को इकल्ले में आराम मिल गओ और काम काज से छुट्टी बी मिल गई।रचना रानी को मायको में रहने को आनंद आ गओ वाहsss
ReplyDeleteआप जैसे मंझे हुए कलाकार द्वारा, मिले सराहनीय शब्दों के लिए बहुत बहुत धन्यवाद 🙏🏻💞
Deleteआप के यह शब्द, हमारे सिर-माथे 😊
आप का आशीर्वाद सदैव बना रहे।🙏🏻