भाईदूज (तिथि और शुभ मुहूर्त)
दीपावली, पांच दिवसीय त्यौहार है जो कि धनतेरस से प्रारंभ होकर भाई-दूज के दिन जाकर पूर्ण होता है।
पर इस बार दीपावली के अगले दिन सूर्य ग्रहण पड़ने के कारण, गोवर्धन पूजा व भाई दूज और चित्रगुप्त पूजा किस दिन की जाए?
इसको लेकर सबके मन में बहुत दुविधा है।
तो चलिए आप को भाई-दूज से जुड़ी बहुत सारी बातें और पूजा मुहूर्त को साझा कर देते हैं, जिससे आप के सारे संशय दूर हो जाएं...
माना जाता है कि जो भाई इस दिन बहन के घर जाकर भोजन ग्रहण करता है और तिलक करवाता है उसको अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। हर साल भाई दूज कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को मनाया जाता है। इस बार भाई दूज 26 अक्टूबर यानी आज और 27 अक्टूबर यानी कल भी मनाया जाएगा।
भाई दूज का त्योहार भाई-बहन के पवित्र रिश्ते का प्रतीक माना जाता है।
भाई दूज को भाई टीका, यम द्वितीया, भ्रातृ द्वितीया आदि नामों से भी जाना जाता है।
इस मौके पर बहनें अपने भाइयों को तिलक लगाकर उनकी लंबी उम्र और सुख समृद्धि की कामना करती हैं। वहीं भाई शगुन के रूप में बहन को उपहार भेंट देते हैं।
भाई दूज के शुभ मुहूर्त
भाई दूज 26 अक्टूबर और 27 अक्टूबर दोनों दिन मनाई जाएगी।
26 अक्टूबर यानी आज 02 बजकर 43 मिनट से भाई दूज की शुरुआत होगी। 27 अक्टूबर को इसका समापन दोपहर 12 बजकर 45 मिनट पर होगा।
26 अक्टूबर तिलक और पूजा शुभ मुहूर्त- दोपहर 03 बजकर 33 मिनट तक
विजय मुहूर्त- दोपहर 01 बजकर 57 मिनट से लेकर दोपहर 02 बजकर 42 मिनट तक
गोधूलि मुहूर्त- शाम 05 बजकर 41 मिनट से लेकर शाम 06 बजकर 07 मिनट तक
27 अक्टूबर तिलक शुभ मुहूर्त - सुबह 11 बजकर 07 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 45 मिनट तक
अभिजीत मुहूर्त- सुबह 11 बजकर 42 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 27 मिनट तक
जो चित्रगुप्त महाराज जी की पूजा करते हैं, उस पूजा के मुहूर्त निम्न प्रकार से हैं-
चित्रगुप्त या कलम दवात पूजा का शुभ मुहूर्त
26 अक्टूबर - दोपहर 2:42 बजे से शुरू हो रही है।
मुहूर्त - दोपहर 1:18 से 3:33 तक हैं।
27 अक्टूबर - दोपहर 12:45 को खत्म होगी।
पूजा सामग्री
भाई दूज पर भाई की आरती उतारते वक्त बहन की थाली में सिंदूर, फूल, चावल के दाने, सुपारी, पान का पत्ता, चांदी का सिक्का, नारियल, फूल माला, मिठाई, कलावा, दूब घास और केला जरूर होना चाहिए। इन सभी चीजों के बिना भाई दूज का त्योहार अधूरा माना जाता है।
पूजन विधि
भाई दूज के मौके पर बहनें, भाई के तिलक और आरती के लिए थाल सजाती हैं। इसमें कुमकुम, सिंदूर, चंदन, फल, फूल, मिठाई और सुपारी आदि सामग्री होनी चाहिए। तिलक करने से पहले चावल के मिश्रण से एक चौक बनाएं। चावल के इस चौक पर भाई को बिठाया जाए और शुभ मुहूर्त में बहनें उनका तिलक करें। तिलक करने के बाद फूल, पान, सुपारी, बताशे और काले चने भाई को दें और उनकी आरती उतारें। तिलक और आरती के बाद भाई अपनी बहनों को उपहार भेंट करें और सदैव उनकी रक्षा का वचन दें।
भाई दूज के दिन कुछ बातें हैं जो अवश्य करनी चाहिए। उन्हें भी करें, इससे भाई बहन में प्रेम बढ़ता है...
1. आज के दिन भाई बहन आपस में बिल्कुल भी लड़ाई न करें।
2. भाई दूज के दिन झूठ न बोलें। आपस में भी झूठ न बोलें और न कोई गलत काम करें।
3. बहनें अपने भाई के तोहफों का अपमान न करें। ये भी अशुभ माना जाता है।
4. भूलकर भी आज के दिन बहन या भाई काले वस्त्र न पहनें।
5. भाई को तिलक करने से पहले बहनें अन्न ग्रहण न करें। बल्कि तिलक के बाद साथ में बैठकर भोजन करें।
6. तिलक सही दिशा में बैठकर ही करें। बहनें पूर्व की तरफ मुख करके बैठें और भाई उत्तर की तरफ मुख करके बैठें।
भाई दूज का प्रारंभ
हिंदू धर्म में जितने भी पर्व और त्यौहार होते हैं उनसे कहीं ना कहीं पौराणिक मान्यता और कथाएं जुड़ी होती हैं।
ठीक इसी तरह भाई दूज से भी कुछ पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं। ये प्राचीन कथाएं इस पर्व के महत्व को और बढ़ाती है।
यम और यमि की कथा
पुरातन मान्यताओं के अनुसार भाई दूज के दिन ही यमराज अपनी बहन यमुना के घर गए थे।
इसके बाद से ही भाई दूज या यम द्वितीया की परंपरा की शुरुआत हुई। सूर्य पुत्र यम और यमी भाई-बहन थे. यमुना के अनेकों बार बुलाने पर एक दिन यमराज यमुना के घर पहुंचे।
इस मौके पर यमुना ने यमराज को भोजन कराया और तिलक कर उनके खुशहाल जीवन की कामना की।
इसके बाद जब यमराज ने बहन यमुना से वरदान मांगने को कहा, तो यमुना ने कहा कि, आप हर वर्ष इस दिन में मेरे घर आया करो और इस दिन जो भी बहन अपने भाई का तिलक करेगी उसे तुम्हारा भय नहीं होगा।
बहन यमुना के वचन सुनकर यमराज अति प्रसन्न हुए और उन्हें आशीष प्रदान किया। इसी दिन से भाई दूज पर्व की शुरुआत हुई. इस दिन यमुना नदी में स्नान का बड़ा महत्व है क्योंकि कहा जाता है कि भाई दूज के मौके पर जो भाई-बहन यमुना नदी में स्नान करते हैं उन्हें पुण्य की प्राप्ति होती है।
भाई दूज के दिन मृत्यु के देवता यमराज का पूजन भी किया जाता है।
भगवान श्री कृष्ण और सुभद्रा की कथा
एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार भाई दूज के दिन ही भगवान श्री कृष्ण नरकासुर राक्षस का वध कर द्वारिका लौटे थे।
इस दिन भगवान कृष्ण की बहन सुभद्रा ने फल, फूल, मिठाई और अनेकों दीये जलाकर उनका स्वागत किया था। सुभद्रा ने भगवान श्री कृष्ण के मस्तक पर तिलक लगाकर उनकी दीर्घायु की कामना की थी। इस दिन से ही भाई दूज के मौके पर बहनें भाइयों के माथे पर तिलक लगाती हैं और बदले में भाई उन्हें उपहार देते हैं।
सभी लोगों को संशय था, अतः बहुत से विश्वस्त सूत्रों द्वारा ज्ञात कर के यह article डाला है...
आशा है इस article से आपके बहुत से संशय दूर हो गए होंगे।
आप सभी को गोवर्धन पूजा, भाई-दूज वो चित्रगुप्त पूजा की हार्दिक शुभकामनाएँ 💐🎉
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