वो दिन
कल गाज़ियाबाद में निकाय का election होना है, इसलिए अलग अलग पार्टी के नेता अपने चुनाव का प्रचार प्रसार कर रहे हैं।
सभी नेताओं के आदमी, लाउडस्पीकर ले, जीप में बैठ कर उनके नाम व उनके चुनाव चिह्न के विषय में सबको बताते हुए जा रहे थे।
उनके प्रचार प्रसार को देखकर, हम पहुंच गए अपने बचपन में...
तो इस बात का किस्सा कुछ यूं है कि..
हमारे पापा जी, Allahabad (Prayagraj) University से PhD करने आए थे।
इलाहाबाद में ही हमारा ननिहाल है, तो हम लोग वहीं रह रहे थे।
नाना जी का घर, allahabad university के science department के एकदम पास है।
और जैसा कि आप सब जानते हैं कि Allahabad University, नेताओं की जन्मस्थली या गण है। दूसरे शब्दों में कहें तो allahabad university की सरजमीं से बहुत से नेताओं का उद्भव हुआ है।
तो बस आए दिन चुनाव के प्रचार प्रसार होते ही रहते थे। पर उन दिनों के प्रचार-प्रसार ही अलग थे।
निकलते तो वो लोग भी जीप में या ट्रक में होते थे, पर उनमें एक खासियत थी।
वो लोग जब सड़क से गुजरते थे तो वो 5 or 10 रुपए के नोट के जैसे बहुत सारे रंगीन कागज़ उड़ाया करते थे।
वो कागज़, पीले, गुलाबी, हरे, नीले बहुत से रंगों के light shade के होते थे।
जिसमें बहुत भीनी-भीनी, और तेज खुशबू होती थी। यह खुशबू, हर कागज़ में अलग तरह की होती थी।
उस कागज़ में नेता का नाम और उसका चिन्ह अंकित रहता था, फिर भी कागज़ के रंग और खुशबू से भी यह निर्धारित रहता था कि फलां कागज़, फलां नेता का है।
पर हम बच्चे, हमें क्या कि कौन से नेता का कौन सा कागज़ है।
अब आप कहेंगे कि, तो इस याद का जिक्र क्यों?
क्योंकि हमें इससे बात से तो कोई मतलब नहीं रहता था, कि किस नेता का कौन से रंग का कागज़ का टुकड़ा है। पर कागज़ के टुकड़े!..
उन कागज़ के टुकड़ों के तो हम सब दीवाने थे। जैसे ही प्रचार प्रसार की आवाज़ आती, हम सब बच्चे दौड़कर घर से बाहर होते थे।
क्योंकि हमें वो कागज़ के टुकड़े चाहिए होते थे, वो भी ज़मीन में गिरने से पहले...
तो बस, वो लोग उड़ाते थे और हम लोग लपकते थे। वो एक बार में ही 50-60 के करीब कागज़ के टुकड़े उड़ा दिया करते थे और उनमें से 5- 10 हमारे हाथ लग जाया करते थे। बाकी जमीन पर गिर जाया करते थे, जिन्हें कुछ और लोग उठा लिया करते थे।
पुष्पा में तो यह dailog बहुत बाद में आया, पर हमारा तो बचपन से ही यही उसूल था " झुकेगा नहीं...
अब आप को बताते हैं कि आखिर क्यों था, इतना craze, उन रंगीन कागज़ के टुकड़ों का?
जब हम छोटे थे तब, हम सभी बच्चों को अपनी कापियों में बहुत कुछ रखने का बड़ा शौक हुआ करता था। शायद आप को भी याद होगा, अपने बचपन का वो शौक...
उन दिनों चिड़ियों के रंगीन पंख अगर मिल जाते थे, तो उनका तो कहना ही क्या... उनको हम विद्या कहते थे और बहुत जतन से रखते थे, याद आया?..
हाँ तो, उन रंगीन कागज़ के खुशबूदार टुकड़े, हम लोग अपनी कापियों में ही रखते थे। इस बात का विशेष ध्यान रखकर कि, एक काॅपी में, एक ही तरह के खुशबू के कागज़ रखें।
उससे होता यह था कि हमारी सारी कापियां अलग-अलग खुशबू से महकती थीं।
जब हम स्कूल जाते थे तो जिन बच्चों के घर की तरफ यह कागज़ नहीं उड़ाए जाते थे, वो हमारी खुशबूदार कापियों की बहुत तारीफ करते, तो हमें उससे बहुत गर्वानुभूति होती थी।
आज भी बहुत याद आते हैं, वो दिन... रंगीन और खुशबूदार, खुबसूरत बचपन के वो दिन...
आपको भी याद आ गए होंगे, अपने बचपन के रंगीन और खुबसूरत वो दिन...
याद आ गये ना?
वो चंद दिनों में उड़ जाते हैं, कितना ही बुला लो बचपन को, वो दिन लौट के नहीं आते हैं
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