पोहेला बोइशाख
आज का article, हमारी एक मीठी सी याद है और उस याद को हमारा कोटि-कोटि नमन भी....
बात उन दिनों की है, जब हम शादी कर के अपने जीवन साथी के साथ उस जगह पहुंचे थे, जो हमारे दाम्पत्य जीवन का प्रथम साक्षी था। जो साक्षी था, एक परिवार के हिस्सा होने से एक परिवार के बनाने की शुरुआत का...
एक शहर छोड़कर आए थे, एक township में... पश्चिम बंगाल का एक शहर दुर्गापुर...
जो पूरी तरह से अलग था। ना केवल facilities wise बल्कि वहां की संस्कृति, वहां के लोग, उनका खान-पान, आबोहवा और बोली, सब ही कुछ तो अलग था...
आज जब दिल्ली, अपनों के बीच, अपनी सी संस्कृति, बोली और आबोहवा में लौट आए हैं तो ईश्वर से प्रार्थना है कि वो सदैव अपनी कृपा दृष्टि बनाए रखें।
पर क्योंकि वहां जीवन के नये पड़ाव की शुरुआत में रहे थे, तो वो जीवन की मीठी यादों में शामिल है।
और आज पोहेला बोइशाख है तो सोचा, आपको ले चलें, वहां की खूबसूरत संस्कृति में, पोहेला बोइशाख (बांग्ला: পহেলা বৈশাখ) यानी, बंगाली पंचांग का प्रथम दिन, जो बांग्लादेश का आधिकारिक पंचांग भी है। यह उत्सव 14 अप्रैल को बांग्लादेश में और 15 अप्रैल को भारतीय राज्यों पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, झारखण्ड और असम (बराक घाटी) में बंगालियों द्वारा धार्मिक आस्था के निरपेक्ष मनाया जाता है।
पोहेला बोइशाख के उत्सव की जड़ें मुगल शासन के दौरान पुराने ढाका के मुस्लिम समुदाय की परंपराओं से जुड़ी हैं, साथ ही अकबर के कर संग्रह सुधारों की घोषणा से भी जुड़ी है।
यह त्यौहार जुलूसों, मेलों और पारिवारिक समय के साथ मनाया जाता है। नए साल में बंगालियों के लिए पारंपरिक अभिवादन শুভ নববর্ষ (बंगाली) "शुभो नोबोबोरशो" है जिसका शाब्दिक अर्थ है "नया साल मुबारक"।
बांग्लादेश में उत्सव मंगल शोभा यात्रा का आयोजन किया जाता है। 2016 में, UNESCO ने ढाका विश्वविद्यालय के ललित कला संकाय द्वारा आयोजित इस उत्सव को मानवता की सांस्कृतिक विरासत घोषित किया।
बाकी states में जहां जिंदगी भाग रही है, किसी को किसी से कोई मतलब नहीं है, सब अपने-अपने स्वार्थ के निहित हैं, वहां पश्चिम बंगाल में आज भी जिंदगी जीवन्त है।
वहां अन्य प्रदेशों की तरह कोई भी त्यौहार आने का मतलब यह नहीं है कि दुनिया भर के नियम-कानून और घर में बहुत सारा काम और दुनिया भर के पकवान...
वहां त्यौहार का मतलब है उत्साह, उमंग और साथ... वहां कोई भी त्यौहार लोग घरों में रहकर सिर्फ अपने तक सीमित नहीं रखते हैं, बल्कि वहां पूरा परिवार, पूरा मोहल्ला, पूरी community, पूरा शहर शामिल होता है।
किसी एक परिवार में नहीं, बल्कि पंडाल में पूजा-पाठ, उत्सव, खाने-पीने और मस्ती-मज़ा का प्रबंध किया जाता है।
आज भी यहां त्यौहार में रौनक है, फिर चाहे शारदीय नवरात्र हो, रथ पूजा या पोहेला बैशाख ...
क्योंकि आज पोहेला बैशाख है, तो क्या बताएं उस दिन के लिए, लोगों में उत्साह देखते ही बनता है।
जगह-जगह मेला होता है, बड़े-बड़े sound boxes लगे होते हैं। उस दिन लोग, अपने कामकाज में व्यस्त नहीं होते हैं। बल्कि अपने पूरे परिवार के साथ, quality time spend करते हैं।
नया वर्ष आने के 15 दिन पहले से market में festival की चहल-पहल और रौनक दिखाई देने लगती है।
बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक सभी नव वर्ष का स्वागत, नये वस्त्र, नयी उमंग और उत्साह से करते हैं।
वहां ऐसा लगता था कि आज भी जिंदगी, जिंदगी है। लोगों को इंतज़ार रहता है, त्यौहार के आने का, वहां कोई कठिन नियम नहीं है, बहुत अधिक मेहनत नहीं करनी है। बस नियम है तो यह, कि festival वाले दिन festival celebration करना है, काम कहकर व्यर्थ की व्यस्तता नहीं दिखानी है, सब कुछ मिलकर करना है, जिससे festivity भी बढ़े और आपसी प्यार और एकता भी...
और वहां पहुंच कर पंडित जी जो भी नियम कानून बताएं, उसका पूरी आस्था और विश्वास के साथ पालन करना है।
हम सबको सीखना चाहिए उन से, कि कैसे अपनी संस्कृति, अपने त्यौहार को महत्व देना चाहिए और कैसे उसको पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाना चाहिए...
शुभ नववर्ष 💐
No comments:
Post a Comment
Thanks for reading!
Take a minute to share your point of view.
Your reflections and opinions matter. I would love to hear about your outlook :)
Be sure to check back again, as I make every possible effort to try and reply to your comments here.