हरतालिका तीज - सर्वश्रेष्ठ व्रत व सर्वोच्च फल प्रदान करने वाला
आज हरितालिका तीज है, महिलाएं यह व्रत अपने पति की लंबी उम्र के लिए, घर में सुख, शांति और समृद्धि के लिए रखती है।
कहा जाता है कि सुहागिनों द्वारा रखे जाने व्रत में यह सबसे कठीन और सर्वोच्च फल प्रदान करने वाला व्रत है। चलिए जानते हैं कि ऐसा क्यों कहा जाता है। और क्यों इस तीज का नाम हरतालिका तीज है।
हरतालिका तीज नाम क्यों
चलिए सबसे पहले यही जानते हैं कि क्यों पड़ा हरितालिका नाम? हरित का अर्थ 'हरण' होता है और तालिका का अर्थ 'सखी'।
माता पार्वती, भगवान शिव को अपने पति के रूप में पाना चाहती थी। यह बात जब पार्वती जी की सखियों को पता चली, तो पार्वती जी का उनकी सखियों ने अपहरण कर लिया था। उन्हें लेकर वो कहीं चली गईं। ऐसे में माता पार्वती ने बालू का शिवलिंग बनाकर भगवान शिव की तपस्या में लीन हो गईं। और बहुत दिनों तक व्रत पूजन इत्यादि किया।
तब से ही इसे सुहागिन महिलाएं मनाती आ रही हैं। दूसरे शब्दों में "हर अर्थात शिव जी" को अपनी सखी पार्वती से अटूट बंधन में बांधने के लिए, पार्वती जी की सखियों द्वारा पार्वती जी का अपहरण होने के कारण इसे हरतालिका कहा जाता है। इसे भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाते हैं। शिव जी को पाने के लिए पार्वती माता ने सालों का कठिन व्रत रखा था। इसलिए व्रत को हरतालिका तीज व्रत के नाम से जाना जाता है।
सर्वोच्च फल प्रदान करने वाला
हिंदू धर्म अनुयायियों के अनुसार, हरतालिका तीज भगवान शिव और देवी पार्वती के प्रेमपूर्ण बंधन को मनाने के लिए मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन देवी पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए विशेष व्रत रखा था।
तो सोचिए, जिस व्रत को स्वयं माता पार्वती जी ने भगवान शिव शंभू, को पति रूप में पाने के लिए किया था और महादेव उन्हें पति रूप में मिल भी गये, उससे सर्वोच्च फल कौन सा मिल सकता है...
इसके बाद किसी को बताने समझाने की जरूरत नहीं है कि क्यों हरतालिका तीज सर्वोच्च फल प्रदान करने वाला सर्वश्रेष्ठ व्रत है।
सबसे कठिन सुहागिनों का व्रत - इस व्रत में 2½ दिन व्रत रखते हैं।
पहले दिन शाम से ही अन्न व नमक को छोड़ दिया जाता है। उस शाम को मीठा या फीका खाया जाता है।
दूसरे दिन सुबह नहा-धोकर माता पार्वती व महादेव की पूजा की जाती है। दूसरे दिन की सुबह से ही निर्जला व्रत आरंभ हो जाता है, जो तीसरे दिन की सुबह तक रहता है।
शाम को अलग अलग लोग, अलग अलग भोग प्रसाद तैयार करते हैं। कोई इसके प्रसाद के लिए, गुझिया व भगवान जी के सारे गहने मैदे से बना कर ( चूड़ी, कंगन, पायल, हार व छत्र बनाते हैं) तल कर उसका प्रसाद तैयार करते हैं। वहीं कुछ लोग, ठेकुआ खजुरिया आदि बनाते हैं। तो कुछ लोग फूल मेवा मिठाई आदि का प्रसाद तैयार करते हैं। शाम को स्त्रियां सोलह श्रृंगार करके, विधि विधान से पूजा करती हैं, कहानी सुनती सुनाती हैं, सुहाग लेती हैं। फिर पूरी रात भजन-पूजन इत्यादि किया जाता है, साथ ही इस बात का ध्यान रखा जाता है कि दीपक पूरी रात प्रज्वलित रहे।
अगले दिन सूर्य उदय से पहले ही स्नान आदि कर के बाद आटे के हलुआ बना लिया जाता है।
सूर्य उदय के साथ ही सूर्य देवता को अर्क देकर, आटे के हलुआ का भोग लगाया जाता है। फिर सुहाग लेकर, हलुआ का प्रसाद व जल ग्रहण कर के व्रत का पारण किया जाता है। फिर गुझिया आदि प्रसाद भी खाते हैं।
इस तरह से यह निर्जला व्रत पूर्ण होता है। इसमें दिन रात की आराधना की जाती है। अतः यह व्रत अन्य सुहागिनों वाले व्रत से ज्यादा कठिन है पर सर्वोच्च फलदाई भी है।
कहते हैं इस व्रत को रखने वाली स्त्री भाग्यवान होती है, उसे अपने पति से बहुत अधिक स्नेह मिलता है, भौतिक व आध्यात्मिक सुख मिलता है।
जिस भी स्त्री ने यह शुभ व्रत रखा है, उन सभी को दंडवत प्रणाम, हम सभी का व्रत फलीभूत हो। महादेव और माता पार्वती से जो भी मांगा है,सबको मिल जाएं, अखंड सौभाग्य मिलें। प्रभू कृपा हम सब पर सदैव रहे।
साथ ही उनके पति से यह अनुरोध है कि वह जरुर से इस बात को समझें कि उनकी पत्नी ने उनके लिए, उनकी लंबी आयु के लिए बहुत कठिन व्रत रखा है, वह अपने पति से बहुत स्नेह करती हैं उनकी फिक्र रहती है। तो आप भी उन्हें बहुत स्नेह दे, ध्यान रखें व उनकी छोटी-बड़ी इच्छाओं को पूर्ण कर दें।
हरतालिका तीज व्रत की हार्दिक शुभकामनाएं 💐 माता पार्वती व महादेव की विशेष कृपा हम सभी व्रत रखने वालों पर, उनके पति पर रहे व उन पर भी रहे जो यह व्रत नहीं रखते हैं 🙏🏻
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