वो वक्त कुछ और था
आज सुबह News देखने के लिए TV on किया तो सीधे news channel ना लगाकर channels बदल-बदल कर news channel तक जा रहे थे।
Channel बदलते-बदलते DD National channel आ गया। हम उसे भी बदलते उससे पहले ही उसमें आया कि आज दूरदर्शन स्थापना दिवस है।
यह देख कर मन उन दिनों में पहुंच गया, जब सबके घरों में सिर्फ और सिर्फ एक ही channel आता था। DD National.
दूरदर्शन की स्थापना आज के ही दिन (15 September) सन् 1959 में दिल्ली में हुई थी। और 25 April 1982 में coloured TV channel आया था, जिसकी स्थापना मद्रास में की गई थी। आज दूरदर्शन को स्थापित हुए 64 साल पूरे हो गए हैं।
दूरदर्शन एक अकेला ऐसा channel है जो government द्वारा संचालित किया जाता है।
यही वो सबसे पहला channel है, जिसने black and white से coloured होने तक का सफर तय किया है।
उस समय हर घर में धीरे-धीरे रेडियो से टेलीविजन आने का दौर था। या कहिए audio के साथ video भी देखे जाने का दौर.. हम लोगों को, घर में रहकर मनोरंजन का मजा कैसे लिया जाए, उसको सिखाने का सारा श्रेय, दूरदर्शन का ही है।
पर फिर भी सबके घरों में TV नहीं था, इसलिए TV देखने जाना भी अलग ही खुशी देता था। और जिस दिन TV अपने घर आया था, उस दिन की खुशी तो पूछिए ही मत, वैसी खुशी तो आजकल का LED TV आने पर भी नहीं देता है।
दूरदर्शन एक अकेला channel था, जिसका उस समय एक छत्र राज था। पर क्या नहीं था, जो उसमें ना आता हो, news, हिन्दी व English दोनों भाषाओं में, मूक-बधिर लोगों के लिए भी, कृषि दर्शन, संस्कृतिक कार्यक्रम स्वास्थ्य से जुड़े कार्यक्रम, फिल्म, हिन्दी, English, प्रादेशिक भाषाओं में, फिल्मी गाने, बहुत सारे zoner के serials, बच्चों से बुजुर्ग तक, पुरुषों से महिलाओं तक सबके लिए ही, वो भी एक से एक बेहतरीन, TV पर आने वाले सभी कार्यक्रम ऐसे होते थे, जिन्हें पूरा परिवार तो क्या पूरा मौहल्ला एक साथ देखता था।
एक TV, एक channel और remote... Remote तो था ही नहीं, TV का remote तो हम में से ही कोई एक हो जाता था, जिसे TV बंद करना और खोलना होता था, क्योंकि channel बदलने का तो कोई स्यापा ही नहीं था ना...
उस समय के सभी कार्यक्रमों की दो विशेषता थी, एक तो fix time और दूसरा बहुत ही सुकून के साथ बनाए जाते थे तो उन्हें देखने के लिए time की punctuality and discipline रहना जरूरी होता था, क्योंकि जो program छूट जाता था तो वो फिर एक हफ्ते बाद ही देखने को मिलता था। सुकून से बना था तो उन्हें देखकर सुकून भी मिलता था।
उस समय TV देखना मात्र, entertainment or time pass नहीं था, बल्कि pleasure time or family time होता था।
उस समय के एक-एक program classic थे, फिर वो चाहे news हो या serials, रंगोली, चित्रहार, फूल खिले हैं गुलशन गुलशन, show theme, star trek, कच्ची धूप, रामायण, महाभारत, शक्तिमान, हम लोग, बुनियाद, विक्रम-बेताल, सिंहासन बत्तीसी, नुक्कड़, सुरभि, पोटली बाबा की, ब्योमकेश बख्शी, करमचंद, मालगुडी डेज, चंद्रकांता, सर्कस, फौजी, दादा-दादी की कहानियां, इन जैसे और भी बहुत सारे अच्छे-अच्छे programs.... जिन्हें देखकर हमारा स्वर्णिम बचपन बीता, वो वक्त कुछ और था...
पर जब हम लोग छोटे ही थे, तभी बहुत से private channels जैसे Zee TV, Star Plus, Sony, etc... भी आने शुरू हो गये थे। अब हम किसी भी दिन और किसी भी समय कोई सा भी program देख सकते थे।
पर इतनी variety और no time boundation के कारण धीरे-धीरे entertainment का वो charm कहीं धूमिल हो गया।
अब घरों में number of Televisions , number of TV channels थे। सब remote पर अपना control चाहते हैं। नतीजा मोहल्ला तो छोड़ दीजिए, अब परिवार के सभी सदस्य भी एक साथ TV नहीं देखते हैं।
एक पते की बात बताएं, सच्चा सुख साधनों की कमी में ही ज़्यादा होता है क्योंकि कुछ थोड़ी सी कमी, आपसी रिश्तों में नजदीकी ला देती है। क्योंकि जब कम होता है तो सबका ध्यान रखना ज़्यादा होता है कि कहीं कोई वंचित ना रह जाए।
In short साधन कम था, channel एक ही था, पर उसमें सबको सबकी पसंद का और बहुत अच्छा content कैसे दे दिया जाए, रिश्तों को कैसे आपस में समेट लिया जाए, जिसे आता था बस वही था दूरदर्शन... हमारा खूबसूरत बचपन...
दूरदर्शन दिवस पर उसके 64th birthday की हार्दिक शुभकामनाएं 💐
आज भी आता है दूरदर्शन, पर अब हम सिर्फ 15 August, 26 January और किसी राष्ट्रीय उपलब्धि में ही उसे देखते हैं, यह जानते हुए भी कि आज भी कहीं-ना-कहीं दूरदर्शन ही है जो संस्कार और संस्कृति देने में सक्षम है, सर्वश्रेष्ठ है..
पर क्या कभी हम लौट चलेंगे, अपने देश के पहले channel की तरफ, अपने बचपन की तरफ़... उस वक्त की तरफ जो कुछ और ही था... सुकून, प्रेम और अनुशासन से भरा, साधनों को पाने की अंधी दौड़ में जो शामिल नहीं था..😊
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