साल 2023 भी जा रहा है और आ रहा है नया साल 2024...
2023 ने हमें बहुत कुछ दिया, कुछ नया और कुछ पुराना...
जी हां, एक ऐसा पुराना, जिस में हम अटक कर रह गए हैं, या यूं कहें कि भटक कर रह गए हैं।
Online की दुनिया
जी बिल्कुल, सही समझे। आप online के जंजाल में अटक गए हैं या कहें कि हमारी दुनिया ही online हो गई है।
2019 जाते-जाते online की नई दुनिया से अवगत करा गया था, कोरोनावायरस की चपेट के कारण...
तब उसकी आवश्यकताएं भी थीं, पर अब तक भी इतना ज़्यादा क्यों online?
कोरोना वायरस तो चला गया, पर हम online के गुलाम बन गए, वैसे ही जैसे अंग्रेज तो चले गए, पर अंग्रेजी को पकड़ कर हम आज भी उनके गुलाम ही बने हुए हैं।
आज तो सब्जी चाहिए, online मंगा लो, वो छांटना, मोलभाव करना सब खत्म। सब्जी लेने जाने से सिर्फ सब्जी ही घर नहीं आती है, बल्कि उसके संग एक ताजगी भी आती है ज़िन्दगी में, और सुकून भी कि हम अपनी मनपसंद की सब्जियां लेकर आए।
कपड़े चाहिए, online है ना varieties के कपड़े लेने के लिए, फिर दुकान-दुकान घूम कर, हाथों से छूकर, निगाहों से टटोल कर, थककर अपनी पसंद के कपड़े पाने की खुशी कोसों दूर हो गई। आप कितना ही online से कपड़े खरीद लें, पर वो बात नहीं आती है जो दुकान पर जाकर लेने से आती है।
कुछ भी खाने के लिए मन को टटोलने की कवायद ख़त्म, लाइन लगी है, online में खाने-पीने की चीजों की। हर प्रांत के हर देश के...घर बैठे, सब सामान हाजिर... पर गोलगप्पे के ठेले पर खड़े होकर खाना, ना जाने कब unhygienic हो गया...खाने की गर्माहट ही उसका स्वाद है, उसकी खासियत है, वो कहीं गुम हो गई।
Dry items मंगाना और बात है, लेकिन prepared food, उसमें मंगाने से कभी वो बात नहीं आती है।
Railway की टिकट के लिए, लगने वाली line तो बहुत तेजी से कब online में तब्दील हो गई, पता ही नहीं चला। हाँ पहले सा bookings window पर खड़े होकर घंटों के इंतजार में आस-पास के लोगों से पहचान हो जाने की बात ना जाने कहां लुप्त हो गई। पहले कितने लोग यहां आते थे और ऐसे ही कुछ रिश्ते बन जाते थे।
कुछ भी books-copy चाहिए, दुकानदार से निकलवाने के लिए लम्बी लाइन की ज़रूरत नहीं है, बस एक online purchase और books and copies का ढेर, आपके घर की table पर। लेकिन ऐसे आप सिर्फ उन्हीं books से जुड़ते हैं, जो आप मंगाते हैं, जबकि दुकान पर आकर चार books देखकर सही चुनाव करते हैं।
शादी, ब्याह के लिए भी कुछ घूमना भटकना नहीं है, बस online marriage app पर जाएं, खूब लम्बी लाइन मिल जाएगी, लड़के-लड़कियों... साथ ही wedding planner की भी। पर ऐसी शादियों में जोश, उत्साह, उमंग कहीं पीछे छूट जाता है।
ना जाने कितने ही office अब online चल रहे हैं, और कितनी सारी meeting and VC, सबके लिए वही online...
छोटे-छोटे बच्चों से लेकर बड़े बच्चों तक सब की online classes मतलब अब ज्ञानार्जन के लिए घर से बाहर निकलने की ज़रूरत ही नहीं, सब online है ना। जब बाहर ही नहीं निकलेंगे तो सर्वांगीण विकास कैसे संभव होगा, कभी सोचा है आपने?
खेल भी सारे online चल रहे हैं, नतीजन आंखें खराब, चिड़चिड़ापन, depression, साथ ही physical health एकदम zero। सोचिए इतना ज़्यादा online करा के हम लोग, बच्चों के भविष्य को कहां ले जा रहे हैं?
Online, online... सब online...
इस online से गांव-शहर, देश-विदेश सबकी दूरियां घट गई है पर इंसानों की आपस की दूरी बहुत बढ़ गई।
पूरी दुनिया कंक्रीट और online हो गई, जिससे रिश्तों में मिठास ना जाने कहां लुप्त हो गई है? पर आखिर यह कब तक चलेगा?
क्या हम लोग, फिर से offline होना नहीं बढ़ाएंगे। क्या इस नए साल में फिर से पहले सा, सब से जुड़ जाएंगे? क्या रिश्ता और प्यार का सुखद नववर्ष मनाएंगे?
सोचिएगा ज़रूर...
नववर्ष सबके लिए मंगलमय हो, शुभ हो, सुखद हो।
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