आज दशहरा पर्व है। भगवान श्री राम और रावण से जुड़ी कथा, उनसे जुड़े युद्ध का या यूं कहें कि बुराई पर अच्छाई की जीत का...
आज का Heritage segment आधारित है, एक जिज्ञासा पर, रावण को लेकर, शायद आप के मन में भी कभी हुई होगी, या दशहरे वाले दिन होती होगी...
क्या रावण सच में बुरा था?
क्या पुरूषोत्तम भगवान श्री राम को उसका वध करना अनिवार्य था?
क्या रावण की सच में माता सीता पर कुदृष्टि थी?
क्या सीता हरण कुदृष्टि का परिणाम था?
अगर सीता हरण कुदृष्टि का परिणाम था, तो रावण, जो कि इतना बलशाली था, उसने सीता को बलपूर्वक अपना क्यों नहीं बनाया? उसे कभी अपवित्र नियत से छूआ क्यों नहीं?
क्यों सीता को अपने शयनकक्ष में न रखकर, अशोक वाटिका में रखा?
क्यों अशोक वाटिका में सभी राक्षसी स्त्रियों का ही पहरा बिठाया?
क्यों राक्षसियों में सर्वश्रेष्ठ और सौम्य राक्षसी त्रिजटा को ही सीता के समीप रखा था?
ऐसे बहुत सारे सवाल आपके मन में आते होंगे, आज उन्हीं सब जिज्ञासाओं को शांत करने का प्रयास है 🙏🏻
एक सच रावण का
तो चलिए सबसे पहले जानते हैं, रावण के विषय में,
रावण भी उतना ही पुरुषोत्तम था, जितने श्री राम...
रावण बल में, ज्ञान में, बुद्धि में, योग में, शास्त्र में, शस्त्र में और अस्त्र में प्रभु श्रीराम से लाख गुना आगे था। वो एक सफल राजा, सोने की लंका का स्वामी (अर्थात् अत्यधिक संपन्न), त्रिकालदर्शी, शिव जी का अनन्य भक्त, वैज्ञानिक (आयुर्वेद और तंत्र का ज्ञाता), मायावी, मानवीय पुरुषोत्तम था। अर्थात् सम्पूर्णता से युक्त...
सीता का हरण रावण ने अपनी पत्नी बनाने के लिए नहीं किया। यह बाद की जोड़ी हुई कहानियाँ हैं।
पर सत्य क्या था, जब आपको पता चलेगा तो आप भी नतमस्तक हो जाएंगे, उस रावण के समक्ष, जिसका पुतला सदियों से जलाया जा रहा है।
रावण रती विज्ञान, स्त्री रोग विज्ञान, और बाल विज्ञान का महाज्ञाता था। उसकी उन्नत सोच देखिए कि उसने मटके के अग्र दृश्य (front view) को गर्भित स्त्री (pregnant lady) के रूप में देखकर उसमें एक बच्चे को जन्म देने के असंभव कार्य करने की चुनौती को स्वीकार किया।
रावण की सोच को, आज की simple language में बोलें तो सीता जी, रावण की test-tube baby थी। जिसे उसने मटके में scientific experiment करके राजा जनक के खेतों में छोड़ा था।
पर आखिर क्यों? क्या वजह थी, राजा जनक के राज्य में उस मटके को छोड़ देने की?
रावण अपने लिए कुलदीपक चाहता था, जो सर्वगुण संपन्न हो, ऐसा कुलदीपक जो उसके प्रयोग से उत्पन्न हो, जिसके उत्पन्न होने के किसी दूसरे का सहयोग न लेना पड़े, एक ऐसी उत्पत्ति, जो यह सुनिश्चित करें कि, किसी भी संतान की उत्पत्ति के लिए, स्त्री और पुरूष का मिलन आवश्यक नहीं है। उनके बिना शारीरिक संबंध के भी संतान उत्पत्ति संभव है और वो उसमें सफल भी हुआ।
लेकिन नियति ने इस प्रयोग के साथ अपना प्रयोग भी जोड़ दिया। इस कारण रावण का सफल वैज्ञानिक प्रयोग, असफल हो गया।
जब रावण ने देखा कि इससे एक बेटी ने जन्म लिया है, उसने सोचा कि इतनी सुन्दर और सौम्य कृति अगर मांस-मदिरा खाने-पीने वाले राक्षसों के बीच रहेगी तो कोई भी उसे कुदृष्टि से देख सकता है।
इसलिए उसने एक ऐसा इंसान चुना जो उसकी बेटी को सलीके से एक अच्छे वातावरण में बहुत प्यार के साथ पाल सके। और वो इंसान था संतान-विहीन राजा जनक, क्योंकि जिसकी संतान ही नहीं वही किसी बच्चे को असीम प्यार कर सकता है। इसलिए राजा जनक को रावण का ऋणी होना चाहिए।
इस बात से रावण के ज्ञान और उसकी त्रिकालदर्शी ताकत का अंदाजा आपको हो गया होगा।
सीता जब राम के साथ वनवासी हुई तो सूपनखा से रावण को इस बात का पता चला, कि दशरथ नंदन श्री राम के साथ जनकपुत्री सीता जी भी वनवास आई हैं।
वो विचलित हो गया कि उसकी बेटी जंगल में कैसे रहेगी? उसके अलावा कोई नहीं जानता था कि सीता जी, रावण की test-tube baby हैं।
वो बहुत बड़ा कूटनितिज्ञ था, उसने कूटनीति खेली। जिससे बहन का बदला भी पूरा हो सके और सीता सुरक्षित भी रह सके।
उसे एक और भी डर रहा था कि, अगर उसकी बेटी इतने लंबे वनवास के दौरान गर्भवती हो गई तो वह अपने बच्चे को कैसे जन्म देगी और कैसे पालेगी? कैसे दो पुरुष, एक स्त्री का बच्चा, जंगल में पैदा करवाने में सक्षम हो पाएंगे? कैसे उस विषम परिस्थिति में एक दाई कि व्यवस्था करेंगे?
ना जाने कितने विचारों से मुकदमा लड़ते हुए उसे सीता की हर सुरक्षा के खातिर "सीता हरण" का प्रपंच रचना पड़ा।
वो चाहता तो किसी और बलशाली राक्षस को भी भेज देता? पर उसने ऐसा नहीं किया। आखिर क्यों वह खुद ही गया? क्योंकि एक बाप अपनी बेटी को पराए हाथों में नहीं देख सकता। जिस डर के कारण उसने अपनी बेटी राजा जनक के खेतों में छोड़ी आज वही डर एक विकराल रूप लेकर उसके सामने खड़ा था।
उसने खुद जाना स्वीकारा, कलंक को माथे पे लगाकर।
वह अपने बेटे को भी भेज सकता था, वो तो आखिर सीता का भाई था? लेकिन फिर डर का विकराल रूप उसके सामने था। जिस कुलदीपक के लिए उसने कुलज्योती छोड़ दी उस कुलदीपक का माथा एक पिता होने के नाते रावण कैसे कलंकित कर सकता था? इसलिए हर पहलू सोचकर उसने खुद सीता को लाना चुना।
रावण ने कभी नहीं कहा कि सीता मुझसे विवाह कर लो, उसकी कभी यह इच्छा ही नहीं थी, वरना जो रावण काल को अपने पलंग की पाटी से बांध सकता है और जो सीता को उठा के ला सकता है, वो सीधे सीता को अपने शयनकक्ष में भी रख सकता था।
अरे! वो कारागार में भी डाल सकता था? लेकिन उसने सीता को अशोक वाटिका में रखा। आखिर क्यों?
क्योंकि सीता अच्छे परिवेश में पली शाकाहारी थीं। उसने सीता की सुरक्षा में सिर्फ औरतें रखीं, यह भी रावण का उत्तम गुण था, वो जानता था कि श्री राम परम पराक्रमी योद्धा हैं और उनके आगे यह राक्षसियां नहीं टिक सकेंगी, पर वो नहीं चाहता था कि सीता जी पर पुरुष की छाया तक पड़े।
उसने त्रिजटा राक्षसी को सीता के समीप रखा, क्योंकि वो जानता था कि अशोक वाटिका में सीता जी का ख्याल सबसे अच्छे से वही रख सकती थी।
वो बस लोगों के सवालों का जवाब नहीं दे रहा था, क्योंकि वो जानता था कि जज्बाती चोट जिस्मानी घाव से ज्यादा घातक होती है।
इसलिए वो खुद कलंक को लेकर जज्बाती चोट से तड़पता रहा लेकिन अपने किसी बच्चे और पत्नी को उसने सच बता कर जज्बाती घाव नहीं दिया। यहां तक कि उसने अपनी बेटी सीता को भी इस सच से अवगत नहीं कराया क्योंकि उसे पता था कि पति वियोग की पीड़ा से वह त्रस्त है और अब पिता वियोग की पीड़ा भी उसे दी तो उसपर वज्रपात हो जाएगा।
रावण जानता था कि अंत तो सबका एक दिन होना ही है। जीवनपर्यंत राक्षसी प्रवृत्ति में व्यतीत कर दिया, तो कुछ ऐसा कार्य भी कर दूं, कि मुझे सद्गति प्रदान हो। एक guilt, अपनी पुत्री को त्यागने का भी था।
वो यह भी जानता था कि भगवान विष्णुजी के अवतार, प्रभू श्री राम, पुरुषोत्तम हैं, वो बिना किसी ठोस कारण के रावण का वध नहीं करेंगे और उनसे अधिक सुयोग्य कोई नहीं है, जो उसको, उसके अनुरूप मृत्यु प्रदान कर सके।
उसे सीता हरण में एक साथ कई प्रयोजन सिद्ध होते दिखे, अपनी पुत्री सीता की वनवास के दौरान पूर्णरूपेण सुरक्षा, भगवान श्री राम द्वारा वध, जिससे सद्गति प्राप्त हो।
वो यह भी जानता था कि ऐसा करने के पश्चात्, सदियों तक उसके मस्तिष्क पर कलंक अंकित रहेगा, पर एक पिता अपने बच्चों के लिए कुछ भी स्वीकार कर सकता है।
सीता हरण, एक पिता का अपनी पुत्री की सुरक्षा का प्रयोजन था, एक सच रावण का यह भी था, जो रावण तक ही सीमित रह गया और उसका पुतला, सदियों से जलता चला आ है और सदियों तक जलता रहेगा।
पर कभी इस सोच में भी सोचिएगा, एक बार रावण का पुतला दहन करते या देखते समय, क्या रावण सच में गलत था?
रावण पूरे त्रेता युग में कहीं गलत नहीं था। सीता हरण से जुड़ी, बहुत सी जिज्ञासाओं को सुलझाने का प्रयास है, शायद आपको भी न्याय संगत लगे...
शुभ दशहरा 🚩