आजकल सनातन संस्कृति का पुरजोर समर्थन चल रहा है, जिसके तहत बहुत से मंदिर का पुनरोत्थान या नवीनीकरण किया जा है। अगर इसे देश के नजरिए से देखा जाए तो यह बहुत हद तक सही भी है, क्योंकि भारत की भारतीय संस्कृति सनातन धर्म ही है।
कुछ लोग होंगे जो यह कहेंगे कि पहले भी क्या बुरा था, जब सर्व धर्म समभाव था।
हमारे देश की संस्कृति, वैसे भी अनेकता में एकता है।
पर कभी आपने सोचा, कैसे भारत की सनातन संस्कृति, अनेकता में एकता के रूप में बदल गई?
अगर आप पूरा article पढ़ेंगे तो आप को इसमें षड्यंत्र की राजनीति दिखेगी।
सांता नहीं, संतों की भूमि
कभी आपने सोचा, कैसे भारत के मूल नागरिक हिन्दूओं को गौण, और मुसलमानों और ईसाईयों को अल्पसंख्यक का नाम देकर प्रमुख बनाकर, सभी सुविधाएं प्रदान कर दी गई।
क्यों हज के लिए सब्सिडी और हिन्दू तीर्थ यात्राओं के लिए Tax लगता है।
क्यों मंदिर से हर साल लाखों-करोड़ों रुपए सरकारी खजाने में जमा होता है, जबकि मस्जिदों और मजारों के लिए लाखों-करोड़ों की सहायता मिलती है...
क्यों मदरसों में क़ुरान पढ़ाया जाना, एक शिक्षा नीति के अंतर्गत आता है... पर गीता, रामायण, उपनिषद, ग्रन्थ आदि शिक्षा नीति में शामिल होना ban है?
ऐसा नहीं है कि सिर्फ मुस्लिम धर्म को ही flourish किया जाता है, बस उनको highlight ज्यादा किया जाता है।
पर आपको पता है, ईसाई धर्म का प्रचार और प्रसार तो ऐसे किया जाता है, जो सबकी नस-नस में घोल दिया जाता है, पर उसका किसी को एहसास भी नहीं होता है।
हम यह क्यों कह रहे हैं, वो ही लिख रहे हैं, आप भी गौर कीजिएगा और बताइएगा कि किस हद तक सही है?
December का महीना चल रहा है, और यूरोपीय देशों में festivity का माहौल चल रहा है। चलना भी चाहिए, उनका सबसे बड़ा festival Christmas है।
पर हमारे देश में क्या festival का माहौल नहीं है? क्या हमारे बच्चे Santa Claus का इंतजार नहीं कर रहे हैं?
कर रहे हैं? उतनी ज्यादा बेसब्री से जितना कि उन्हें दीपावली का इंतजार भी नहीं रहता है...
पता है क्यों?
क्योंकि schools में बच्चों को हर साल समझाया जाता है कि होली, दीपावली में किस-किस तरह से problem होती है, मानो वो festival न हो, बस problems से भरे दिन हों और उन्हें छोड़ देना ही हितकर है।
और वहीं Christmas का celebration, उसके आने के, one week पहले से ही शुरू कर दिया जाता है।
Schools में ऐसा माहौल create कर दिया जाता है कि मानो वो school, यूरोपीय देशों में पहुंच गया हो।
Schools में class में christmas tree, Santa Claus बनवाएं जाएंगे। White gift service के नाम पर donation लिए जाएंगे।
किसी-किसी schools में jesus christ का जन्म भी ऐसे किया जाएगा, जैसे बस वही एक ईश्वर हैं।
बच्चों के मन-मस्तिष्क में Jesus Christ की ईश्वरीय छवि बसा दी जाती है और उनको Christmas और अधिक tempting लगे, इसके लिए Santa Claus का बच्चों को gift देना भी शामिल होता है।
वरना जन्म तो भगवान श्री कृष्ण और प्रभू श्री राम जी का भी किया जा सकता है, पर किसी school में नहीं celebrate किया जाता है।
होली में रंग और पिचकारी और दीपावली पर पटाखे बच्चों के लिए gift ही तो होते हैं, जो Santa Claus के नाम पर secretly नहीं दिए जाते हैं। माता-पिता बच्चों की पसंद से दिलाते हैं। फिर उस gift को हिकारत भरी हुई नजरों से देखना, कहां तक उचित है?..
European countries में शायद आते होंगे कोई Santa Claus, पर India में तो Santa बच्चों के मां-बाप ही बनते हैं।
पर क्यों? आवश्यकता क्या है? अगर secretly gift देना ही है तो, जन्माष्टमी, रामनवमी, आदि में भी दिया जा सकता है ना?...
एक सच्चाई और है, India में Santa Claus gift देने के लिए नहीं, बल्कि धर्म परिवर्तन कराने के लिए आते हैं। और एक बात जो बहुत लोगों को नहीं पता होगी।
Christian religion में चर्च में रहने वाले Father and Nun, tax-free life lead करते हैं।
तो अगर आप ध्यान दें, तो आप को भी समझ आ जाएगा कि क्यों सनातन संस्कृति को अनेकता में एकता के रूप में बदला गया...
सनातन संस्कृति का महत्व तो विदेशियों को भी समझ आ गया, हम कब समझेंगे?
यह देश संतों का है, सांता का नहीं, अपने बच्चों को सही दिशा निर्देश पर चलाएं और सनातन संस्कृति को बढ़ावा दें। क्योकि सनातन ही सत्य है, चिर है, निरंतर है, मोक्ष है, मुक्ति है।
जय सनातन, जय भारत!
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