बदलता समय
मीरा अपने बेटे संजय के साथ लोगों के घरों में बर्तन झाड़ू-पोंछा का काम किया करती थी।
संजय मेहनती था और बड़े मन से अपनी मां के साथ काम करता था।
जब वो बड़ा होने लगा, तो क्योंकि वो लड़का था तो बहुत से लोगों ने उससे घर में काम करवाने से मना कर दिया था। क्योंकि उनके घर की बेटियां बालिग हो रही थीं।
Social society, ऐसी ही है, जहां घर में लड़कियां होती हैं, वहां लोग लड़कों से घर का काम कराने के इच्छुक नहीं रहते हैं।
पर काम की क्या कमी है, जो मेहनती हो उसके लिए..
उसने खाना बनाकर बेचने वाले ठेलों में, छोटे ढाबे इत्यादि में बर्तन धोने का काम करना शुरू कर दिया।
वहां पैसे अच्छे मिल रहे थे, पर मेहनत और डांट भी ज्यादा पड़ रही थी।
उसने सोचा कि किसी ऐसी जगह काम करें, जहां पैसा अच्छा हो और मेहनत कम...
उसने काम के साथ ऐसा कुछ काम ढूंढने शुरू कर दिए, जो उसे करने की इच्छा थी।
और फिर एक दिन उसे ऐसा काम मिल भी गया, उसे बारातघर में काम मिला...
क्योंकि वो घर-घर जाकर अपनी मां के साथ काम कर चुका था और कुछ संभ्रांत लोगों ने उसे बोलने-बैठने की तमीज सिखा दी थी, तो उसे वहां, बर्तन धोने के काम की बजाए, serving का काम मिल गया।
अब उसे डांट नहीं पड़ती थी, साथ ही बर्तन, झाड़ू-पोंछा के काम से भी छूट मिल गई थी, तो उसके भाव बढ़ने लगे।
एक दिन किसी घर में झाड़ू लगा रही थी, उसी समय वो अपनी मां से पैसे मांगने आया। मां बोली, बेटा थोड़े बर्तन तू धो दें तो काम जल्दी खत्म हो जाएगा, फिर दोनों साथ घर चल देंगे।
उसने तुनक कर कहा, मैं झाड़ू-पोछा, बर्तन जैसे छोटे काम नहीं करता, तू ही कर... मुझे तो बस पैसा दे।
मां बोली, क्यों चाहिए?
वो बोला, मुझे कपड़े खरीदने हैं, वैसे उस समय वो अच्छे-खासे कपड़े ही पहने हुआ था।
मां बोली, अभी कुछ दिन पहले ही तो तूने लिए थे, इतनी जल्दी फिर क्यों?
वो फिर ऐंठ कर बोला, अरे मां तुझे कुछ अक्ल तो है नहीं, तू रखना यही छोटे काम करने वालों जैसी छोटी सोच...
मैं अब तेरे जैसे महीना-दो महीना, एक ही कपड़े में नहीं गुजार सकता। मुझे तो अब शर्म आती है, सबको यह बताते हुए कि मेरी मां बर्तन झाड़ू-पोंछा करती है।
चल अब जल्दी से पैसा दे, मेरे पास बहुत समय नहीं है, तेरे साथ माथा फोड़ने का...
मीरा मन मसोस कर रह गई, आखिर जिस बेटे के लिए, उसने घर-घर जाकर बर्तन झाड़ू-पोंछा आदि करने का काम किया, आज उसे ही उसके होने पर शर्म की बात लगने लगी है।
खुद तो कोई बहुत ऊंचे स्तर की नौकरी नहीं कर रहा है, पर घमंडी देखो कितना हो गया है। अगर वाकई कोई अच्छी नौकरी करता होता, तो ना जाने आज कितना घमंड कर रहा होता…
जब लोगों के घर काम करने पर, कोई उसे यह एहसास करता था कि वो छोटे स्तर का काम करती है, तो उसे हमेशा यही लगता था कि यह लोग क्या समझेंगे, बचपन से ही रुपए-पैसों से भरपूर रहे हैं।
कोई हम जैसा काम करके, कुछ बड़ा करें, उसे हमारी कीमत होगी।
लेकिन आज जिस तरह से उसके अपने बेटे ने उसे नीचा दिखाया है, ऐसा तो कभी किसी ने नहीं किया...
सच में बदलता समय, लोगों के व्यवहार बदल देता है। जो व्यक्ति हर मायने में बड़ा होकर भी अपने से छोटे लोगों से शिष्टता से बात करता है, वो सच में महान व्यक्ति है।
जिन ऐसे अच्छे लोगों के घर वो काम करती थी, उनके लिए उसके मन में श्रद्धाभाव बहुत अधिक बढ़ गये।
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