Wednesday, 30 July 2025

Article: शतरंज - दबदबा भारत का

आप सबके साथ साझा करते हुए बहुत हर्ष हो रहा है कि भारतीय खिलाड़ी दिव्या देशमुख ने FIDE women's chess world cup जीतकर भारत को गौरवान्वित कर दिया है। 

शतरंज - दबदबा भारत का 




भारत के गर्व की पराकाष्ठा तो यह है कि final में दोनों players भारतीय थे। मतलब final के result आने से पहले ही यह तय था कि gold and silver दोनों ही medals भारत को ही मिलने थे। 

बस जीत यह निर्धारित कर रही थी कि कौन सा player कौन सी position लेगा।

और इस के लिए हम सब भारतवासियों को दिव्या देशमुख और कुनेरु हम्पी दोनों पर गर्व है।

जहां 38 वर्षीय हम्पी पिछले दो साल से लगातार  विश्व रैपिड शतरंज का खिताब जीत चुकी हैं, और इस बार भी women's chess world cup tournament के final round तक पहुंची, वहीं दूसरी ओर मात्र 19 वर्ष की दिव्या ने इस साल विश्व विजेता बनकर पूरे देश को गौरवान्वित किया है। इसके साथ ही दिव्या, women's chess world cup जीतने वाली पहली महिला बनीं।

FIDE women's chess world cup 2025 में 107 खिलाड़ियों का single-elimination chess tournament था जो 5 जुलाई से 29 जुलाई 2025 तक जॉर्जिया के बटुमी में आयोजित किया गया था। यह FIDE women's chess world cup का third edition था।

इस जीत के साथ ही दिव्या भारत की चौथी woman grand master और total 88th grand master बन गई है।

भारत के पहले शतरंज grand master विश्वनाथन आनंद  हैं। उन्होंने 1988 में यह खिताब हासिल किया था। तब से अब तक भारत में 88 grand masters हो चुके हैं।

दिव्या देशमुख के अलावा अन्य तीन  women's grand masters हैं: कोनेरू हम्पी, हरिका द्रोणावल्ली, और वैशाली रमेशबाबू।

इस जीत के साथ एक और बात उभर कर सामने आ रही है कि भारत शतरंज पर अपनी बहुत मज़बूत पकड़ बनाता जा रहा है। फिर बात चाहे डी गुकेश, प्रगननंधा, अर्जुन, विदित की हो या, दिव्या, हम्पी, हरिका, वैशाली की हो। बल्कि हमारे देश की लड़कियों ने तो सिद्ध कर दिया है कि अगर वो मैदान में हैं तो पहले, दूसरे, तीसरे सब स्थान पर भारत ही रहेगा, उसकी बराबरी कोई देश नहीं कर सकता है। 

हमें गर्व है अपने भारतीय खिलाड़ियों पर, उनकी जीत पर, उनका ह्रदय से आभार कि उन्होंने देश का मान बढ़ाया, देश के तिरंगे को सर्वोपरि लहराया।

दिव्या देशमुख को उसकी जीत पर अनेकानेक बधाईयां 

जय हिन्द जय भारत 🇮🇳 

Monday, 28 July 2025

Article : रुद्राक्ष की शुद्धता

सावन के तीसरे सोमवार में आपके लिए रुद्राक्ष से जुड़ी हुई जानकारी लेकर आएं हैं।

आज कल पुनः लोगों में ईश्वरीय आस्था और भक्ति का संचार बहुत तेजी से बढ़ रहा है।

और इसी कड़ी में आता है, रुद्राक्ष धारण करना...

वैसे भी कहा जाता है कि जो रुद्राक्ष को धारण करता है, उसको रोग व्याधियों से छुटकारा मिल जाता है और जीवन सुख व चैन से व्यतीत होता है।

और सुखी व स्वस्थ जीवन की कामना तो सभी को होती है।

पर समस्या यह आती है कि रुद्राक्ष की सटीकता और शुद्धता को कैसे समझें?

रुद्राक्ष की सटीकता, उसकी शुद्धता का होना कितना ज़रूरी है और कैसे पहचानें कि रुद्राक्ष शुद्ध है कि नहीं?

चलिए इस विषय में जानते हैं उत्तराखंड के भुवन चंद्र अवस्थी जी से, उन्होंने देश की सेवा की और 21 साल पहले DSP की post से retire हुए।

वो बहुत ही ज्ञानी, जीवन्त, प्रेरणादायक और आध्यात्मिक भाव के प्राणी है।

वो उत्तराखंड से हैं, जहां बहुतायत से रुद्राक्ष मिलता है तो उनका इस विषय में विशेष ज्ञान है।

वो कहते हैं कि रुद्राक्ष सदैव 5 मुखी धारण करें।

रुद्राक्ष की शुद्धता


अब पांच मुखी रुद्राक्ष क्यों?

क्योंकि उसके शुद्ध और सटीक होने की संभावना अधिक है।

अधिक क्यों? बाकियों की क्यों नहीं?

इस का कारण यह है कि पंच मुखी रुद्राक्ष बहुतायत में पाए जाते हैं, अतः इसके शुद्ध और सटीक होने की संभावना ज्यादा होती है।

जबकि एक मुखी, दो मुखी... इत्यादि प्राप्त करना दुर्लभ होता है, अतः उनका शुद्ध और सटीक होना मुश्किल होता है, साथ की उनकी पहचान करना भी लगभग असम्भव...

तो अगर एक मुखी या दो मुखी इत्यादि रुद्राक्ष धारण करना हो तो क्या करें?

मात्र एक ही उपाय है, देने वाले पर विश्वास करना और यह भाव सुदृढ़ रखना कि आपने जो रुद्राक्ष धारण किया हुआ है वह शुद्ध और सटीक है।

क्योंकि इस संपूर्ण संसार में जो सर्वशक्तिशाली है, वो है भाव, आस्था, विश्वास और इच्छा...

जिसने भी शुद्ध भाव से, पूर्ण आस्था और विश्वास से, शुभ की इच्छा की है, उस बात को, उस चीज को शुद्ध और सटीक स्वयं ईश्वर बना देते हैं।

इसका साक्ष्य और सटीक उदाहरण है चोर और डाकू वाल्मीकि का महर्षि वाल्मीकि बनना। 

उनका मरा-मरा कहा, राम-राम में बदलना।

उनका चोरी इत्यादि करने से रामायण का लिखा जाना...

इससे अधिक सटीक उदाहरण आपको भाव की महत्ता का कोई और नहीं मिल सकता है।

इसलिए आप जो भी रुद्राक्ष धारण करें, उसे शुद्ध और सटीक होने के भाव से पहनें, और शिव भक्ति में लीन हो जाएं, बाकी सब महादेव देख लेंगे।

और यदि आप यह भाव अपने अंदर जाग्रत नहीं कर सकते हैं तो पांच मुखी रुद्राक्ष धारण करें, वो शुद्ध और सटीक होगा, इसकी संभावना सर्वाधिक है। 

भुवन जी को विशेष धन्यवाद देते हुए आप सभी को सावन के तीसरे सोमवार पर हार्दिक शुभकामनाएँ...

हर हर महादेव 🚩 🔱 🙏🏻 

Friday, 25 July 2025

Poem: विरह की अग्नि

विरह की अग्नि 



थमी थमी सी 

रूकी रूकी सी 

जिंदगी चलती रही 

विरह की अग्नि में जल 

वो शमा सी पिघलती रही 

न उमंग, न तरंग  

जैसी कोई कटी पतंग 

पल पल की घड़ी 

मन में अब चलती रही 

हर पल, उस पल का

इंतज़ार करती हुई 

जिंदगी, है जो अपनी,

मगर, अब हर ही पल वो 

अजनबी सी लगती रही 

हर श्वास, इस विश्वास से 

आती और जाती रही 

शीध्र होगा मिलन 

जिसकी, हूक सी उठती रही 

Wednesday, 23 July 2025

India’s Heritage : श्रावण शिवरात्रि

आज श्रावण शिवरात्रि का पावन पर्व है, देवों के देव महादेव शिव शम्भू और उनकी शक्ति माँ पार्वती की अर्चना और उपासना का दिन…

भगवान शिव जी और माता पार्वती जी का आशीर्वाद सदैव बना रहे, आप सभी को श्रावण शिवरात्रि पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएँ।

बहुत से लोगों के मन में यह शंका उत्पन्न हो रही होगी कि महाशिवरात्रि पर्व तो बचपन से सुनते आ रहे हैं, जो फाल्गुन मास में होती है, जिसे महादेव और माता पार्वती के शुभ विवाह के उपलक्ष्य में आयोजित किया जाता है, फिर यह श्रावण शिवरात्रि पर्व क्या है और इसे क्यों मनाते हैं।

आज भारत के विरासत अंक में उसे ही साझा कर रहे हैं, साथ ही यह भी बताएंगे कि क्यों है सावन का महत्व? और क्यों होती है इसमें भगवान शिव की आराधना? क्यों भगवान शिव को श्रावण मास प्रिय है? और क्यों शिव भक्त सावन के महीने में मीलों दूर तक पैदल चलकर कांवड़ यात्रा निकालते हैं और अपने आराध्य देव महादेव को प्रसन्न करते हैं?..

श्रावण शिवरात्रि


महाशिवरात्रि और श्रावण शिवरात्रि में अंतर :

महाशिवरात्रि जहाँ ब्रह्मांडीय परिवर्तन और शिव-पार्वती के मिलन का प्रतीक है, वहीं सावन शिवरात्रि श्रावण की आध्यात्मिक ऊर्जा से गहराई से जुड़ी है। दोनों ही त्यौहार भक्ति, आंतरिक शांति और शिव के आशीर्वाद की प्रेरणा देते हैं, और भक्तों को आत्मज्ञान और उत्कर्ष की ओर ले जाते हैं।


श्रावण शिवरात्रि :

सावन की शिवरात्रि, जिसे श्रावण शिवरात्रि भी कहा जाता है, भगवान शिव को समर्पित एक महत्वपूर्ण त्योहार है। इस दिनभक्त भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा करते हैं, व्रत रखते हैं, और शिवलिंग का जलाभिषेक करते हैं। सावन का महीना भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है, इसलिए इस महीने में पड़ने वाली शिवरात्रि का विशेष महत्व है।


पौराणिक कथा :

पौराणिक कथाओं के अनुसार, देव और दानवों में अमृत कलश की प्राप्ति के लिए समुद्र मंथन हुआ था, जो कि लगभग सावन के समय शुरू हुआ था और श्रावण की शिवरात्रि के दिन विष निकला था।

विष के निकलते ही हड़कंप मच गया। क्योंकि समुद्र मंथन से निकली हुई चीजें देव और दानव बारी-बारी से बांट रहे थे।

पर विष (ज़हर) के निकलने पर कोई उसे ग्रहण करने को तैयार नहीं था। विष भी कोई साधारण विष नहीं था, हलाहल विष था, जिसका पान करते ही अर्थात् जिसे पीते ही मृत्यु अवश्यसंभावी थी। पर यह निश्चित था कि जब निकला हुआ रत्न (वस्तु) कोई ग्रहण कर लेगा, आगे का समुद्र मंथन तभी होगा।

सब बेहद दुविधा में पड़ गए कि विष कोई लेगा नहीं, और कोई लेगा नहीं तो आगे मंथन होगा नहीं, और अगर मंथन आगे होगा नहीं तो अमृत कलश निकलेगा नहीं...

ऐसे में देवों के देव महादेव, जो कि अति भोले हैं, सरल हैं,  इसलिए उन्हें भोलेनाथ, भोले भंडारी भी कहा जाता है, जो कि बेहद सुहृदय वाले हैं, अपनी चिंता से परे, परहित के लिए सदैव तत्पर रहते हैं, उन्होंने विषपान करना स्वीकार कर लिया।

हलाहल विष का पान करते ही भगवान शिव नीले पड़ने लगे, पर वो तो महायोगी ठहरे तो उन्होंने विष को अपने कंठ में रोक लिया। और किसी में इतना सामर्थ्य नहीं था कि वह विष को कंठ तक ही रोक सके। विष हरने के कारण भगवान शिव जी का कंठ नीला हो गया, और इसी कारण उनका नाम नीलकंठ पड़ा।

विष कंठ में तो रोक लिया, पर उस विष का ताप बहुत अधिक था।

इस विष के प्रभाव को कम करने के लिए सभी देवताओं ने भगवान शिव का जल से अभिषेक किया था और बहुत अधिक वर्षा की।

इसी कारण से इस महीने में वर्षा होती है और सावन शिवरात्रि पर भगवान शिव को जल चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई।


श्रावण मास में भगवान शिव की आराधना :

यही कारण है सावन का महत्व का, इसमें भगवान शिव की आराधना का, भगवान शिव को श्रावण मास प्रिय होने का, और यही कारण है शिव भक्त सावन के महिने में मीलों दूर तक पैदल चलकर कांवड़ यात्रा निकालने का और अपने आराध्य देव महादेव को प्रसन्न करने का... 

सावन शिवरात्रि का व्रत रखने और भगवान शिव की पूजा करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं, ऐसा माना जाता है। 

सावन शिवरात्रि के दिन, भक्त उपवास रखते हैं, शिवलिंग पर जल, दूध, बेलपत्र, भांग, धतूरा आदि चढ़ाते हैं। रात्रि में जागरण करके भगवान शिव की पूजा-अर्चना करते हैं। कुछ भक्त कांवड़ यात्रा भी करते हैं, जिसमें वे हरिद्वार से गंगाजल लेकर आते हैं और शिवलिंग का अभिषेक करते हैं। 

सावन शिवरात्रि का त्योहार उत्तर भारत में विशेष रूप से लोकप्रिय है, जहां पूर्णिमा कैलेंडर का पालन किया जाता है। इस दिन, शिव मंदिरों में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। 

श्रावण मास का पावन पर्व ऐसा पर्व है, जहां भक्त अपने लिए नहीं बल्कि अपने आराध्य के कष्ट को हरने के लिए मीलों दूर तक पैदल चलकर कांवड़ यात्रा निकलता है, जल से भरे हुए कलश को हरिद्वार से लाकर अपने आराध्य का जलाभिषेक करता है।

इसलिए इस समय कांवड़ यात्रियों को बहुत शुभ माना जाता है और उनकी सेवा के लिए किए गए कार्य सर्वोच्च पुन्य माना जाता है।


हर-हर महादेव 🚩 🙏🏻

Monday, 21 July 2025

Article : बुलावा महाकालेश्वर जी का (भाग-2)

सावन के पहले सोमवार पर ‘बुलावा महाकालेश्वर जी का’ के अंतर्गत महाकालेश्वर मंदिर उज्जैन के विषय में अपने अनुभव साझा किए थे।

चलिए, सावन के दूसरे सोमवार में आपको ले चलते हैं अपने साथ, महाकालेश्वर जी की नगरी, उज्जैन, जिसे मंदिरों की नगरी भी कहते हैं। आइए चलते हैं उसके अन्य दर्शनीय स्थल पर...

बुलावा महाकालेश्वर जी का (भाग-2)


महाराजा विक्रमादित्य की राजधानी उज्जैन रही है। महाराजा विक्रमादित्य, सभी राजाओं में सर्वश्रेष्ठ समझे जाते हैं। महाकाल के बाद इनका उज्जैन में विशेष स्थान है, अतः यहां महाराजा विक्रमादित्य से जुड़े बहुत से स्थान हैं। 

उज्जैन, मध्य प्रदेश में कई दर्शनीय स्थल हैं, जिनमें श्री महाकालेश्वर मंदिर, काल भैरव मंदिर, हरसिद्धि मंदिर, राम घाट, भर्तृहरि गुफाएं, जंतर मंतर, सिंहासन बत्तीसी और सांदीपनि आश्रम प्रमुख हैं। 


मुख्य दर्शनीय स्थल :-


1. श्री महाकालेश्वर मंदिर :


सर्वप्रथम तो महाकालेश्वर मंदिर ही है, यह 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है और उज्जैन का सबसे प्रसिद्ध मंदिर है, जिसके विषय में आपको पहले ही बता दिया है।


2. काल भैरव मंदिर :


उज्जैन के काल भैरव मंदिर में लोगों की बहुत आस्था है, अपनी मनोकामना सिद्धि के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं। यहां मदिरा को प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है। भगवान काल भैरव को समर्पित यह मंदिर तांत्रिक प्रथाओं से जुड़ा हुआ है।



3. हरसिद्धि मंदिर :


राजा विक्रमादित्य की आराध्य देवी, देवी हरसिद्धि को समर्पित यह मंदिर है।
मान्यता यह भी है कि यहां देवी सती की कोहनी गिरी थी।
हरसिद्धि माता मंदिर, उज्जैन में दो विशाल दीप स्तंभ हैं, जिनमें कुल मिलाकर 1011 दीपक जलाए जाते हैं। ये दीप स्तंभ, विशेष रूप से नवरात्रि के दौरान, एक अद्भुत दृश्य प्रस्तुत करते हैं।

दीपों की संख्या -
एक दीप स्तंभ में 501 दीपक होते हैं, जिसे 'शिव' माना जाता है।
दूसरे दीप स्तंभ में 510 दीपक होते हैं, जिसे 'पार्वती' माना जाता है।
दोनों दीप स्तंभों को मिलाकर कुल 1011 दीपक होते हैं।

दीप जलाने का कारण -
यह मंदिर राजा विक्रमादित्य की आराध्य देवी हरसिद्धि माता को समर्पित है।
मान्यता है कि राजा विक्रमादित्य ने इन दीप स्तंभों की स्थापना की थी।
दीप स्तंभों पर दीपक जलाना, देवी को प्रसन्न करने और आशीर्वाद प्राप्त करने का एक तरीका माना जाता है।
विशेष रूप से नवरात्रि के दौरान, दीपक जलाने का महत्व और भी बढ़ जाता है।

यह मंदिर महाकालेश्वर मंदिर के पास स्थित है।


4. राम घाट :


क्षिप्रा नदी के किनारे स्थित यह घाट, पवित्र स्नान और धार्मिक अनुष्ठानों के लिए प्रसिद्ध है। 



5. भर्तृहरि गुफाएं :


माना जाता है कि ऋषि भर्तृहरि ने यहां तपस्या की थी, यह गुफाएं धार्मिक महत्व रखती हैं। कहा जाता है कि यहां उपस्थित गुफा से चारों धाम जाने का रास्ता है। पूरी गुफ़ा की इमारत पत्थर की बनी हुई है, पत्थरों पर नक्काशी की गई है। इस गुफा के अंदर शिव जी व काल भैरव के मंदिर भी है।
गुफा भीतर से बहुत बड़ी है, लेकिन इसमें हवा के आने-जाने के लिए कोई खिड़की या दरवाजा नहीं है, अतः वहां एक प्रकार की महक भी रहती है और घुटन भी महसूस होती है। इसलिए गुफा के भीतर बहुत देर तक नहीं रहा जा सकता है।


6. सांदीपनि आश्रम :


भगवान कृष्ण और बलराम ने यहां शिक्षा प्राप्त की थी, यह आश्रम धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व रखता है। 
यहां जगह-जगह पर दीवारों पर भगवान श्रीकृष्ण जी की बाल लीलाओं, महाभारत, गीता के उपदेश, द्वारिका के विभिन्न दृश्यों को चित्रित किया गया है, साथ ही उन घटनाओं का वर्णन भी है।

पूरे आश्रम में घूमने के दौरान ऐसा प्रतीत होता है मानो द्वापरयुग में पहुंच गए हैं।

आश्रम में बहुत साफ़ सफ़ाई थी और एक आंतरिक शांति थी, जो हमें स्वतः ही भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन कर दे रही थी। 
महाकाल के दर्शन के पश्चात् यहां आकर एक बार फिर भक्ति में लीन हो गए थे।


7. गढ़कालिका मंदिर :


देवी कालिका को समर्पित यह मंदिर, उज्जैन के प्राचीन मंदिरों में से एक है।


8. मंगलनाथ मंदिर :


क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित यह मंदिर, मंगल ग्रह को समर्पित है।


9. चिंतामन गणेश मंदिर :


भगवान गणेश की एक विशाल मूर्ति के लिए प्रसिद्ध है। मान्यता है कि ब्रह्मा जी, जब सृष्टि का निर्माण कर रहे थे तो उनके मन में बहुत अधिक चिंता विद्यमान थी, अतः उन्होंने यहीं पर योग साधना की थी, जहां पर गणेश जी उनकी सभी चिंताओं को हर लिया था। तब से यह मंदिर चिंतामन गणेश मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हो गया।

यह मंदिर, शहर से 7 किलोमीटर दूर है, और महाकालेश्वर मन्दिर के निकट है।
अतः हमने इस मंदिर के दर्शन पहले दिन ही किए। 

उस दिन कृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव था। अतः वहां कृष्ण जी के बाल रूप को एक बड़े से पालने में बैठाया हुआ था, और सभी भक्तों को उस पालने को झुलाने का अवसर दिया जा रहा था।

हम लोग दर्शन तो भगवान गणेश जी के ही करने गए थे, पर जब पालना झूलाने का अवसर मिला तो, मन भक्ति रस से सराबोर हो गया। एक ही जगह भगवान गणेश जी और भगवान श्रीकृष्ण की एक साथ कृपा, वो भी ऐसे, जिसकी हमने कल्पना भी नहीं की थी।

एक बात और उज्जैन की सराहनीय है कि वहां प्रत्येक दिन आपको व्रत से जुड़े भोज्य पदार्थ, जैसे साबूदाना खिचड़ी, साबूदाना वड़ा, साबूदाना खीर, मेवा खीर‌, मेवे की मिठाई, फल-फूल इत्यादि बहुतायत में मिलते हैं। अतः महाकाल जी की नगरी में पहुंच कर आप प्रत्येक दिन सात्विक भोजन ग्रहण करते हुए व्यतीत कर सकते हैं।
हमारा उस दिन जन्माष्टमी का व्रत था, जो हमारा सुचारू रूप से पूर्ण हुआ।


10. ISKCON मंदिर :


भगवान कृष्ण को समर्पित यह मंदिर, नानाखेड़ा बस stand के पास स्थित है। 
हम यहां जन्माष्टमी महोत्सव के दिन नहीं पहुंच पाए, क्योंकि महाकालेश्वर मंदिर और ISKCON मंदिर, दोनों दूर-दूर हैं।
अतः हम दूसरे दिन ISKCON मंदिर जा पाए।
बहुत सुंदर, स्वच्छ और विशाल मंदिर है।
वहां उपस्थित मूर्तियां मन को मोह लेने वाली हैं।
वहां पहुंच कर हमें पता चला कि वहां कृष्ण जन्मोत्सव एक दिन नहीं बल्कि दो दिन किया जाता है ।
एक और बात की कृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव में भगवान श्रीकृष्ण के बाल रूप की पूजा की जाती है।
और बच्चों की birthday तो बिना cake काटे नहीं मनाई जाती है, अतः दूसरे दिन cake काटा गया था। 
जन्मदिवस के अनुरूप ही प्रसाद में भोजन में पनीर, आलू, छोले, पूरी, चावल के साथ ही cake भी वितरित किया जा रहा था। एक cake खत्म होने पर दूसरा, तीसरा, पर वो प्रसाद का हिस्सा बना रहा।
उस समय वहां बहुत भीड़ थी, सभी लाइन में खड़े अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रहे थे। 
उस लाइन में सब तरह के लोग खड़े थे, जाति-धर्म, ऊंच-नीच, अमीर-गरीब, किसी का कोई भेद नहीं था।
लाइन इतनी लम्बी की ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रही थी। पर फिर भी सभी कुछ बहुत व्यवस्थित और सुचारू रूप से चल रहा था। 
भोग-प्रसाद में भी इतनी बरक्कत थी कि कोई भी बिना प्रसाद लिए रह जाएगा, ऐसा बिल्कुल नहीं था।

हमने उस दिन दाल बाफले खाने का plan किया था। यह उज्जैन का विशेष भोजन है।
पर जब सामने कृष्ण लला के जन्मोत्सव का प्रसाद वितरित हो रहा हो तो उसके आगे कुछ भी विशेष नहीं।
हमने भी प्रसाद ग्रहण करने का सौभाग्य प्राप्त किया।
प्रसाद का स्वाद ऐसा था कि मन-मस्तिष्क में समा गया, और तृप्ति इतनी की लग रहा था मानो भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव में शामिल हैं और कान्हा सब पर अपनी स्नेह वर्षा कर रहे हों।


11. चौबीस खंभा मंदिर :


यह मंदिर महाकाल मंदिर के पास स्थित है और इसमें 24 खंभे हैं।


12. सिंहासन बत्तीसी :


उज्जैन नगरी महाकाल जी की नगरी है, अतः प्रथम दर्शन उन्हीं के करें। पर साथ ही यह महाराजा विक्रमादित्य की भी राजधानी रही है। अतः सिंहासन बत्तीसी व कालिदास जी की academy भी ज़रूर देखें।
यहां महाराजा विक्रमादित्य, उनका सिंहासन बत्तीसी, उनके नौ रत्नों और महान कवि कालिदास की स्मृति में स्थापित, यह अकादमी संस्कृत और कला के अध्ययन का केंद्र है।
सिंहासन बत्तीसी के सभी प्रश्न, उनके उत्तर, महाराजा विक्रमादित्य व उनके सभी नौ रत्नों की विशाल मूर्ति व उनके विषय में विस्तार से वर्णन किया गया है।
इस जगह आकर महान महाराजा विक्रमादित्य, उनके नौ रत्नों, विशेष रूप से कालिदास जी से रुबरु होने का, अपने महान इतिहास से जुड़ने का अवसर मिला, जो कि अद्भुत था।

13. नवग्रह मंदिर (त्रिवेणी) :


शिप्रा नदी के त्रिवेणी घाट पर स्थित यह मंदिर, नौ ग्रहों को समर्पित है। यहां लोग दूर-दूर से आकर नवग्रह शांति की पूजा करवाते हैं और अपने जीवन में सुख शांति की कामना करते हैं।

आखिर दिन उज्जैन से निकलते हुए हमने एक restaurant में दाल बाफले का आनन्द लिया। सचमुच बहुत स्वादिष्ट भोजन है और उससे अधिक आनन्द इसमें आया कि वहां भोजन परोसने वाले बड़े प्रेम और आत्मीयता से भोजन परोस रहे थे। जिससे सभी को भोजन ग्रहण करके तृप्ति का अनुभव हो रहा था। 

वैसे हमने भी दाल बाफले की recipe डाली हुई है, आप चाहें तो link पर click करके उसे बनाना सीख सकते हैं।

पूरा विवरण खत्म करने से पहले आपको बता दें कि चाहे हम खंडवा से ओंकारेश्वर गये या वहां से उज्जैन... 

हरियाली बहुत ज़्यादा थी, pollution न के बराबर, लोग बहुत अच्छे, बहुत सीधे-सादे, सच्चे और सरल, tourist की help करने वाले, उनको support करने वाले, कहीं कोई ठगी, कोई बेइमानी नहीं। फिर चाहे वो आश्रम हो, resort हो, cab वाले हों, e-rickshaws वाले हों, shopkeepers हों, सब में यही देखने को मिला… और न‌ के बराबर कीड़े-मकौड़े मच्छर आदि, चाहे वो कमरे हों, नदी का तट या swimming pool...

जैसा कि होना चाहिए, MP वैसा ही लगा, बाकी states को भी यह सीखना चाहिए, जिससे पूरा भारत बहुत अच्छा हो जाए।

इसी के साथ हमारा महाकाल की नगरी उज्जैन का सफ़र सुखपूर्वक पूर्ण हुआ। वहां कुछ और स्थान भी थे, पर समय के अभाव के कारण हम वहां नहीं जा सके, अतः हमने वहां का वर्णन नहीं किया है।

आप सभी को सावन के दूसरे सोमवार पर विशेष शुभकामनाएं 

हर हर महादेव, जय शिव शंभू 🙏🏻🚩

Monday, 14 July 2025

Article : बुलावा महाकालेश्वर जी का

सावन का पावन महीना चल रहा है। भोलेनाथ की कृपा पाने का माह, उनकी आराधना, अर्चना, उपासना का समय...

आज सावन के पहले सोमवार पर महाकालेश्वर जी की आराधना और उज्जैन की परिकल्पना शिवभक्ति को पूर्ण करती है।

इसलिए महादेव की आराधना करते हुए, आज शब्दों के माध्यम से उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में भ्रमण करते हैं। 

लोग कहते हैं कि मैं महाकाल के दरबार में जाना तो चाहता हूं, पर क्या करें कभी पैसे का अभाव हो जाता है, तो कभी छुट्टी का, तो कभी मौसम खराब हो जाता है। पर जिसको पहुंचना होता है, उसके पास कुछ भी नहीं हो, वो फिर भी पहुंच ही जाता है।

बुलावा महाकालेश्वर जी का


जानते हैं कैसे?

क्योंकि महाकालेश्वर मन्दिर में पहुंचने का बुलावा आता है, इसलिए जिनको महादेव बुलाते हैं, सिर्फ वो ही उनके दरबार में हाजिरी लगा पाता है।

अतः जिस पर भोलेनाथ की कृपा होती है, वो उज्जैन में महाकाल के दर्शन करने अवश्य पहुंचता है।

भोले भंडारी ने हम पर अपनी असीम कृपा बनाई और हम लोगों को पिछली जन्माष्टमी महोत्सव पर महाकाल की नगरी उज्जैन जाने का सुअवसर प्राप्त हुआ। हम लोग बहुत ही प्रसन्नता के साथ पहुंच गए, उज्जैन...

हमने विशेष रूप से पिछली जन्माष्टमी पर उज्जैन जाने का विचार बनाया था, जिससे कम भीड़ मिले।

उज्जैन की पावन धरती को छूने मात्र से मन में एक विशेष अनुभव की अनुभूति हुई।

और जब हम लोग महाकाल जी के मंदिर के corridor में पहुंचे तो ज्ञात हुआ, कि वो बेहद विशाल और बेइंतहां खूबसूरत था।

जब यहां आएं तो एक शाम corridor के लिए भी लेकर आएं, क्योंकि पूरे कोरिडोर की अनुपम छटा का आनन्द लेने के लिए कम से कम 4 से 6 घंटे होने चाहिए।

एक अलग ही दुनिया थी, उज्जैन से इतर, वो कोरिडोर, शिव नगरी सा प्रतीत हो रहा था। महामृत्युंजय मंत्र की आलोकिक ध्वनि हर क्षण निरंतर सुनाई दे रही थी, जो मन के भक्ति पटल को आह्लादित कर रही थी।

स्वच्छ और बहुत चौड़ा path था, स्वच्छ पानी की भरपूर व्यवस्था थी, वहां बहुत बड़ा RO plant लगा था।

दीवारों पर बहुत सुन्दर carving थी। जगह-जगह विशाल मूर्ति और उसी corridor में भारत माता का विशाल मंदिर भी था।

सुरक्षा की बहुत अच्छी व्यवस्था थी, साथ ही वहां मौजूद guards यह भी देख रहे थे कि वहां सब सुचारू रूप से चले। मतलब हर activity बहुत smooth थी। 

भस्म आरती के virtual दर्शन भी हो रहे थे।

महाकाल के संपूर्ण दर्शन करने हों तो भस्म आरती का दर्शन प्रमुख होता है।

पर भस्म आरती के दर्शन इतने सुलभ नहीं है, उसके लिए online and offline दोनों ही तरह से booking होती है, लेकिन दोनों ही तरह से booking हो पाना, लगभग नामुमकिन-सा ही है।

क्योंकि online booking बहुत जल्दी full हो जाती है, मतलब जब तक आप उसकी site तक पहुंचेंगे, booking full हो चुकी होगी।

और offline booking तो बहुत ही मुश्किल होती है, रात्रि की 3 बजे की आरती के लिए, शाम को 7 बजे से line लग जाती है और शुरू के 60 लोगों को ही booking मिलती है, जिसमें हर group में पांच व्यक्ति ही शामिल हो सकते हैं। मतलब अगर आप का group बड़ा है तो, आप को इस बात का ध्यान रखना होगा कि आप के पूरे group की booking हो जाए। 

भस्म आरती से जुड़ी जानकारी लेने के लिए हम लोग protocol office चले गए थे। क्योंकि भस्म आरती रात्रि 3 बजे से सुबह 5 बजे तक होती है, तो आधी रात में आकर पता करना मुश्किल लग रहा था। 

सारी जानकारी मिलने के पश्चात्, सोचा कि शीघ्र दर्शन कर लीजिए। हमें internet द्वारा प्राप्त जानकारी अनुसार पता चला था कि महाकाल जी के शीध्र दर्शन के लिए टिकट लिया जाता है और अलग से line लगती है।

Protocol office में जानें के कारण हम लोग उस gate से दूर पहुंच गए थे, जिससे सब लोग जा रहे थे।

एक guard से पता किया, कि शीघ्र दर्शन करने के लिए कहां से ticket लें, तो उन्होंने कहा कि आज कृष्ण जन्माष्टमी है, अतः शीध्र दर्शन के लिए कोई line या कोई अलग से ticket नहीं है। 

हम मायूस हो गये कि ना जाने कब दर्शन करने पहुंच पाएंगे, तभी वहां मौजूद guards ने बताया कि आप जिस gate से अंदर जा रहे हैं, वो ही शीघ्र दर्शन के लिए जाने का gate है।

मतलब दर्शन शीघ्र ही होने थे पर बिना किसी ticket के...

भगवान शिव के साथ भगवान कृष्ण भी अपनी विशेष कृपा बना रहे थे। अतः हम बहुत जल्दी महाकाल जी के दर्शन करने पहुंच गए, और हम जहां खड़े थे, वहां से महाकाल जी के इतने अच्छे दर्शन हुए कि हम लोगों ने लगभग 2 मिनट तक महाकाल जी के दर्शन किए।

किसी भी बड़े मंदिर में दर्शन करने के लिए जाएं तो 2 seconds से ज्यादा रुकने का मौका नहीं दिया जाता है, पर हम वहां पूरे दो मिनट तक महाकाल जी के दर्शन कर सके। 

हमने महाकाल जी से ही प्रार्थना की, कि हे महाकाल जी आप अपनी पूर्ण कृपा प्रदान करें और हमें अपनी भस्म आरती में सम्मिलित होने का अवसर प्रदान करें 🙏🏻 

हम उसके बाद वहां से निकल आए, क्योंकि कोरिडोर बहुत बड़ा था और उसको पूरा देखना उस समय संभव नहीं था। अतः हमने उसे अगले दिन में देखने के लिए रख दिया। 

क्योंकि लालच एक यह भी था कि उसी के बहाने एक बार शिव नगरी में फिर आ जायेंगे।

हम रात 9 बजे तक अपने resort में पहुंच गए थे।

रात 1:30 बजे स्नान कर के, हम 2 बजे तक auto से मंदिर की ओर चल दिए, क्योंकि रात में auto के अलावा कुछ भी मिलना मुश्किल था और उस auto वाले का number हम resort में लौटते समय लेते आए थे। 

हमें 9 बजे उसने resort में छोड़ा था और रात 2 बजे पुनः वो हमारे सामने था।

अनजाना शहर, अजनबी ओटो वाला, रात्रि का समय, शांत शहर पर सच बता दें आपको, हम लोगों को बिलकुल भी संशय और भय का अनुभव नहीं हुआ और ना ही ऐसा प्रतीत हो रहा था कि सही जा रहे हैं कि नहीं। 

कहते हैं कि जिसके साथ हों महाकाल, उसका क्या बिगाड़ेगा काल।

यह वहां पूर्णतः चरितार्थ लग रहा था। क्योंकि शहर शांत था पर सुनसान नहीं। 

उस समय ऐसा प्रतीत हो रहा था कि शिव नगरी उज्जैन और शिव भक्ति आठों पहर जाग्रत रहती है।

हम वापस कोरिडोर में पहुंच गए थे, वहां भक्तों की शांत चहल-पहल दिख रही थी। Ticket या pass के साथ ही आधार कार्ड भी ले जाना होता है।

सारी checking के बाद जब हम मंदिर के भीतर के परिसर में पहुंच गए थे तो पुनः हर हर महादेव के स्वर गूंज रहे थे।

भीड़ के साथ हम आगे बढ़ रहे थे। भीड़ को देखकर समझ नहीं आ रहा था कि जब अंदर आना इतना दुश्वार है, तब भी इतनी भीड़...

खैर सब बढ़ते हुए अपने स्थान पर बैठते जा रहे थे, वहां बैठने की बहुत अच्छी व्यवस्था थी। कोई धक्का-मुक्की नहीं, किसी भी तरह का कोई झंझट नहीं, सभी अपने अनुसार जगह देखकर बैठते जा रहे थे।

यहां भी महादेव जी की विशेष कृपा थी, हम लोगों को बहुत ही अच्छी जगह मिल गई, जिससे हमें महाकाल जी के बहुत बढ़िया दर्शन प्राप्त हो रहे थे।

अद्भुत दृश्य था, भस्म आरती का... प्रभू का पंचामृत स्नान, फिर श्रृंगार, फिर भस्म से श्रृंगार, फिर पूजन आरती, और उसके बाद पुनः स्नान आदि...

मतलब उनका भस्म आरती श्रृंगार इतना अलौकिक, इतना भव्य था, कि जितनी देर वो चला, समय का भान ही नहीं हुआ, सब शिवमय था। इतनी रात होने के बावजूद, किसी की आंखों में नींद न होना, तो छोटी बात थी, कोई पलक भी नहीं झपकाना चाह रहा था, क्योंकि वहां मौजूद सभी शिव भक्त, एक-एक पल अपनी आंखों में समा लेना चाहते थे। क्योंकि ऐसे स्वर्णिम पल, जीवन में बार-बार नहीं मिलते हैं।

भस्म आरती पूर्ण होने के साथ ही, ऐसा प्रतीत हो रहा था, मानो महाकाल की विशेष कृपा प्राप्त हो गई हो। 

इस क्षण, इस पल का आंखों से रसपान, स्वार्गिक सुख से कम न था। ऐसा प्रतीत हो रहा था, जैसे असंभव दिखता हुआ सपना संभव हो चुका था, पूर्ण हो चुका था।

जीवन में जितनी भी बार उज्जैन जाने का अवसर मिले, कम है, पर एक बार महाकाल के दर्शन करने अवश्य जाएं, क्योंकि सारे योग, साधना, तप, पूजा-अर्चना, व्रत एक तरफ और महाकाल के दर्शन दूसरी तरफ। अर्थात् अगर मोक्ष की कामना है तो दर्शन मात्र से मोक्ष प्राप्ति हो जाएगी।

आपको सावन के पहले सोमवार पर हार्दिक शुभकामनाएँ 

हर हर महादेव 🚩

महाकालेश्वर मन्दिर से बढ़कर तो और कुछ नहीं है उज्जैन में, पर वहां उपस्थित अन्य पूजा स्थल के विषय में आपको सावन के अगले सोमवार में बताएंगे।

तो जुड़े रखिएगा, उज्जैन की अन्य विशेषताओं को जानने के लिए...

बुलावा महाकालेश्वर जी का (भाग-2) में आगे पढ़े...

Friday, 11 July 2025

Short Story : चिंताओं से मुक्ति

चिंताओं से मुक्ति


राजन का छोटा सा परिवार था, पत्नी रीना और बेटा अक्षय... हंसी-खुशी सब चल रहा था। 

सब कुछ अच्छा था, सिवाय इस बात के कि राजन हमेशा अपने परिवार की बहुत ज़्यादा चिंता करता था, साथ ही घर के हर काम पर उसकी नज़र रहती थी।

मतलब अक्षय पढ़ेगा किस स्कूल में, उसके बाद tuition कहां जाएगा। सबके कपड़े, राशन, सब्जी, दवाइयां, घर के अन्य सामान कहां से आएंगे। घर पर कौन कहां सोएगा, कितना सोएगा, कितना और क्या खाएगा, maid कितनी और कितने साल तक काम करेंगी, छोटे-बड़े सामान क्या आएंगे और किस दुकान से आएंगे... आदि जैसी छोटी-छोटी बातें वही निर्धारित करता था। 

घर पर सब्जियां लाना, कपड़े धोना, राशन लाना आदि भी वही करता... 

अब इतना कुछ करता था तो पूरा घर उसके अनुसार ही चलता था।

अक्षय जैसे-जैसे बड़ा हो रहा था तो रीना चाहती थी कि अक्षय सब काम अपने कंधों पर लेता जाए, जिससे राजन जिम्मेदारियों और चिंताओं से मुक्त हो जाएं।

अक्षय ऐसा करता भी गया, उसने हर छोटे-बड़े घर और बाहर के सारे काम खुद करने शुरू कर दिए। धीरे-धीरे बहुत सारे काम अक्षय के जिम्मे आने लगे।

राजन के पास अब ज्यादा काम नहीं रहता था, पर चिंताओं से मुक्ति उसे अब भी नहीं थी।

दवाई खाई, दरवाजों पर ताले लगे हैं, कोई राशन का सामान कम तो नहीं पड़ रहा, जैसे छोटे-बड़े हर काम..

रीना ने नाराज़गी जताई और कहा कि अब तो चिंताओं से मुक्ति पा जाओ, हमारा बेटा हर काम बखूबी करता है, अब तो टोका-टोकी छोड़ दो।

राजन को भी एहसास हुआ कि अब उसे हर छोटे-बड़े काम की चिंता नहीं करनी चाहिए और उसने सब छोड़ दिया। 

लेकिन कुछ दिनों बाद से ही राजन का स्वास्थ्य गिरने लगा, वो frustrated रहने लगा और depression में जाने लगा। रीना को समझ नहीं आ रहा था कि जब सब काम अक्षय संभाल रहा है, तो राजन चिंता मुक्त क्यों नहीं हो जाता।

एक दिन अक्षय राजन को लेकर psychologist के पास ले गया। और कहने लगा न जाने क्यों पापा बीमार ही होते जा रहे हैं, जबकि घर की हर जिम्मेदारी मैंने अपने ऊपर ले ली है।

Psychologist ने कहा, इंसान को बहुत अधिक चिंताओं से मुक्त करना, उसे बीमार और लाचार ही बनाते हैं।

तुम अपने ऊपर बहुत अधिक जिम्मेदारी लेकर खुद भी बीमार पड़ोगे और उन्हें भी बीमार बनाओगे।

सब जिम्मेदारियां छोड़ते-छोड़ते अब उनके पास बेइंतहा समय रहने लगा है, साथ ही उनका अपना एक व्यक्तित्व था, जो सब चिंता छोड़ते-छोड़ते कहीं पीछे छूट गया है।

बेइंतहा समय होने के कारण ही इंसान frustration में जाता है। जबकि दुनिया भर की चिंताओं में रहने के बावजूद इंसान सुखी रहता है, क्योंकि यह सब ही उसे जीवन जीने का मकसद प्रदान करते हैं।

उसे यह एहसास कराते हैं कि वो कितना ज्यादा important है, अपने परिवार के लिए...

साथ ही सारे काम छोड़ते-छोड़ते, उसका अपने परिवार के प्रति मोह भी खत्म होता जा रहा था, इस कारण उसमें जीने की वजह भी कम होने लगी थी।

तुम बहुत अच्छे बेटे हो, जो सब जिम्मेदारियां लेते जा रहे हो, पर कुछ जिम्मेदारियां और चिंताएं उनके पास ही रहने दो, चिंता से पूर्णतया मुक्त मत करो। यह चिंताएं ही इन्हें जीने की वजह प्रदान करती हैं, मकसद देती हैं, उनकी परिवार में importance को...

मत बदलो उन्हें इतना, कि वो निर्विकार हो जाएं...

अक्षय ने पुनः कुछ जिम्मेदारियां और चिंताएं राजन पर छोड़ दी।

राजन ने फिर से रोकना-टोकना शुरू कर दिया और स्वस्थ हो गये। 

Thursday, 10 July 2025

Poem : गुरू ही हैं सब-कुछ

गुरू पूर्णिमा के पावन अवसर पर सदगुरु श्री श्री भवानी शंकर जी महाराज को मेरा शत-शत वंदन... 

यह काव्य पंक्तियां आपके श्री चरणों में समर्पित है।

पूज्य गुरुदेव आपकी कृपा हम सब पर सदैव बनी रहे 🙏🏻

गुरू ही हैं सब-कुछ


मेरे तो गुरू ही हैं सब-कुछ,

दूसरा न कोय।

उनकी चौखट है मंदिर,

हर पल दर्श जिसमें होय।।


उनके चरण रज में,

सिमटा सारा संसार। 

ह्रदय में है छवि बसी,

कृपा करें वो बारम्बार।। 


उनका कथन है मेरे,

जीवन का आधार।

उनसे ही मिलता,

मेरे जीवन को आकार।। 


दुनिया में उनकी इच्छा से आए,

उनमें ही मिल जाना है।

जीवन का है लक्ष्य यही,

चरणों में उनके जगह पाना है।।

Monday, 7 July 2025

Poem : अखबारों से बंद दरवाजा

आज आप सब के साथ मुझे दरभंगा, बिहार की शुभ्रा संतोष जी की कविता को साझा करते हुए अपार प्रसन्नता हो रही है।

शुभ्रा जी एक मंझी हुई कवयित्री है, बहुत से मंच में उनकी कविताएं प्रकाशित हो चुकी हैं।

तो आइए, उनकी कविता का आनंद लेते हैं।

अखबारों से बंद दरवाज़ा


एकबार फिर से आओ

कूंजी घुमा के देखें

 बंद दरवाज़े की अनदेखी

परतों को खोलें।


 सदियों से

दुनियां का स्वरूप 

 ख़बरें जो 

गढ़ रहीं

उस सोच की चादर के

सिलवटों को झटकें।

  

स्याह रंग के कहकरे 

दीमको के घर बने

जेहन के दरवाज़े

घिस घिस कर

खोखले हुए।


झटक कर धूल सारी

आहिस्ते आहिस्ते

अंदर के इंसान को 

 एकबारगी टटोलें।


 निकल कर बासी खबरों 

 के दायरों से 

दरवाज़े के सांकल को 

पुरजोर से खोलें।


पढ़ रहे जो या समझ रहें जो 

 दुनिया को आज-कल

दरवाज़े के उस तरफ 

कोई और ही 

दुनिया आपकों दिखें।


क्या पता 

कोई और ही 

हवा चल रही हो वहां।

क्या पता

कोई और ही 

दुनियां पल रही हो वहां। 



Disclaimer :

इस कविता में व्यक्त की गई राय लेखिका के व्यक्तिगत विचार हैं। जरूरी नहीं कि वे विचार या राय Shades of Life के विचारों को प्रतिबिंबित करते हों। कोई भी चूक या त्रुटियां लेखक की हैं और Shades of Life उसके लिए कोई दायित्व या जिम्मेदारी नहीं रखता है।

Saturday, 5 July 2025

Article : सकारात्मक ऊर्जा

अभी कुछ दिन पहले यह एहसास हुआ कि जिंदगी के अनवरत चलते रहने में सब कुछ आपका सोचा हुआ नहीं होता है। 

बहुत कुछ वो भी होता है, जो कोई और सोच रहा होता है। जो उसकी इच्छा होती है। यहां "उसकी" का तात्पर्य ईश्वर से नहीं है, बल्कि उनसे है, जो आप से जुड़े हुए हों या शायद वो जिन्हें आप पहचानते भी नहीं हैं।

पर एक बात समझ नहीं आई कि जब हमें हमारे कर्मों के अनुसार फल मिलना होता है, तो दूसरे की सोची हुई इच्छा का प्रभाव हम पर क्यों पड़ता है?

हम अपने कर्मों, अपनी सोच को तो सकारात्मक रख सकते हैं, पर दूसरों की नहीं…
सकारात्मक ऊर्जा

फिर किस तरह से यह करें कि फल हमें हमारे कर्मों और हमारी सोच का मिले?

या किस प्रकार से अपने सजाए हुए सपनों को बिखरते देखकर दुखी न हों?

आखिर हम कौन से सपने संजोएं और कौन से नहीं...

या सपने संजोना ही छोड़ दें?

पर अगर सपने ही नहीं संजोएंगे, तो आगे बढ़ने की, कठिन परिश्रम करने की इच्छा भी बलवती नहीं होगी।

और न ही जिंदगी में कोई उत्साह और उमंग होगी।

मन नीरसता के गहरे अंधकार में जाता चला जाएगा...

पर क्या यह सही है?

और क्या यह सही है कि कर्म करो, फल की इच्छा न करो... वाली बात, क्योंकि कर्म तो हम कर रहे हैं और फल दूसरों के कर्म और इच्छा से भी मिल रहे हैं...

अब से एक नया अभियान शुरू किया है, सकारात्मक ऊर्जा को प्रज्वलित करने का, स्वयं की भी और अपने आस-पास मौजूद सब लोगों में भी...

एक नया प्रयोग कि क्या, जब सब लोग मिलकर एक ही विषय में सोचें तो क्या असंभव कार्य भी संभव हो सकता है...

क्योंकि जब किसी की आपके प्रति विपरीत सोच काम कर सकती हैं, तो आपके पक्ष वाली सोच भी काम करनी चाहिए…

ईश्वर से करबद्ध प्रार्थना है कि हे ईश्वर, आप मनोकामना सिद्ध करने वाले हैं, इस मनोकामना को भी पूर्ण कीजिए और हमारी भक्ति स्वीकार कीजिये। अपनी कृपादृष्टि सदैव बनाए रखियेगा 🙏🏻