सरला
अपने पति रामू के साथ सरला गांव से आई थी, पहले पहल तो जीवन काटना कठिन था, दिन रात गांव की याद तड़पाती, और शहर की महंगाई सताती।
पर कुछ ही दिनों में दोनों की मेहनत रंग लाई, और घर में मुन्ना भी आ गया, तो उनके बड़े अच्छे दिन शुरू हो गए।
पर हाय! रे किस्मत
उसी समय यह कोरोना महामारी आ गई।
दोनों के काम छूट गए, जो थोड़ी बहुत राशि थी, वो भी चंद दिनों में खत्म हो गई।
इससे रामू बिल्कुल टूट गया, और एक दिन, पत्नी बच्चे को सोता छोड़कर वो घर से चला गया।
चंद दिन सरला ने उसका इंतज़ार किया, पर वो ना लौटा।
सरला, बड़ी हठी थी, कोई परिस्थितियां उसको डिगा नहीं सकती थी।
उसने अपनी बोरिया बिस्तर सिर पर और मुन्ने को गोद में उठाया, और निकल आई सड़क पर।
पुलिस वालों ने देखा तो बोला, कहाँ चल दी? तुझे पता नहीं, lockdown चल रहा है?
मालूम है साहब, पर यह मासूम नहीं जानता, भूख से परेशान हो रहा है।
तो क्या चाहती है, गांव भाग जाना?
नहीं साहब, मैं भगौड़ी नहीं हूँ, वैसे भी गांव में क्या रखा है, अब मेरा? फिर वहां तक जाऊंगी, तो मुन्ने को, खुद को और ना जाने कितने लोगों को बीमार कर दूंगी।
बड़ी समझदार है रे तू। फिर क्या चाहिए?
साहब, आप लोग हर रोज़ कितनों को खाना खिला रहे हो।
ओह, तो तुझे रोज खाना चाहिए?
नहीं साहब, मुझे भी खाना बनाना है।
तो तू क्या यहां खाना बनाने का काम मांगने आई है? अभी हम खाना बनाने के पैसे नहीं दे रहें हैं, कोई कामगार नहीं रखा है, हम खुद बना रहे हैं।
नहीं साहब मुझे पैसे नहीं चाहिए, जी तोड़ मेहनत करुंगी, किसी काम में उफ्फ नहीं करुंगी, आप बस दो टाइम की रोटी दे देना, मेरा मुन्ना जी जाएगा, और मैं अपने देश के काम भी आ जाउंगी।
पुलिस वाले उसके स्वाभिमान और समझदारी से खुश हो गए।
अब जहाँ भी समाज सेवा के लिए खाना बनता उसे भेज देते, क्योंकि वो साफ़ सफाई से बड़ा स्वादिष्ट खाना बनाती।
सब उसका बहुत सम्मान करते, और उसका मुन्ना हाथों हाथ पलने लगा।
आज सरला सबके लिए प्रेरणा बन गई है, कि कठिन समय भी सरलता से कट सकता है, बस सब्र और समझदारी होनी चाहिए।
Beautiful story
ReplyDeleteThank you very much for your valuable words
DeleteYour words boost me up