Tuesday, 18 August 2020

अनहद नाद (भाग -2)

अब तक आप ने पढ़ा,

अनहद नाद (भाग-1)......

अब आगे........

अनहद नाद (भाग-2)



उनकी आवाज़  में कम्पन थाI इतना बोल कर वे फिर शांत हो गएI ऐसा लग रहा था जैसे हम दोनों वहाँ होकर भी वहाँ नहीं हैंI  कुछ देर बाद मैंने पूछा-

“आप कहना क्या चाहते हैं? आपके पास तो अपने इस सवाल का जवाब हमेशा रहता हैI


आप ही तो कहते हैं कि अगर दुनिया मे रिश्ते ही न हों तो अपनेपन का वजूद ही नहीं रहेगाI”

उन्होंने अपने माथे पर हाथ फेरते हुए कहा- “आज मुझे अपनी कही बात ही सही नहीं लग रही या ये बात  मेरे ऊपर लागू ही नहीं होती I”

उनकी आँखों के आंसू बंद ही नहीं हो रहे थेI बार-बार उनके मुँह से बस यही शब्द निकल रहे थे कि

“तुम हमेशा अपने लिए ही जीना, पर कभी अपनों के लिए मत जीना I”

उनकी इस बात से यह तो साफ़ ज़ाहिर हो रहा था कि इन्हें किसी अपने ने अंदर तक तोड़  दिया है I उन्होंने लम्बी साँस लेते हुए अपनी पलकों को बंद किया और कमर को पीछे ले जाकर शांतचित्त बैठ गएI

मैं उनकी तरफ़ टकटकी लगाकर लगातार देखे जा रही थीI शायद मुझे आगे जानने की जिज्ञासा थी इसलिए उनके बोलने का इंतज़ार कर रही थीI

चारों तरफ़ कोई आवाज़ नहीं थी I अंकल ने गहरी साँस लेते हुए अपनी बात कहनी शुरू की – “तुम वीरेंद्र को को तो जानती  हो न?”

“जी जानती हूँ I वो तो आपके छोटे भाई हैंI” मैंने उनके सवाल का जवाब दिया I

अपनी बात पर ज़ोर देते हुए उन्होंने कहा- “ठीक कहा, वो मेरा छोटा भाई ही है पर आज लग रहा है कि मैं उसे जानता ही नहींI”

“पर आप ऐसा क्यों कह रहें हैं? आख़िर बात क्या है?” मैंने पूछा…

उन्होंने कहना शुरू किया- “वीरेंद्र, मैं और मुन्नी हम दो भाई एक बहन हैं I हम अपनी माँ को चाची कहते हैं और पिताजी को पिताजीI हमारा बचपन कुछ अच्छा नहीं थाI

पिताजी के पास छोटा सा ही खेत थाI  वो ज़्यादा पढ़े लिखे नहीं थे I चाची बिलकुल अनपढ़ थी और घर के नाम पर बस एक छप्पर डाली हुई थी......

मैं घर में सबसे बढ़ा हूँI  मैंने अपने माता पिता के कष्टदायक दिन देखे हैंI  इसलिए कभी नहीं चाहा कि उन कष्टों की छाया भी वीरेंद्र और मुन्नी पर पड़ेI”

वो कहते जा रहे थे और मैं एकाग्र होकर सुनती जा रही थीI 

आगे पढ़े, अनहद नाद (भाग - 3) में....


Disclaimer:

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2 comments:

  1. वाह भावना जी बहुत सुंदर ।भाग तीन का इंतजार है।

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    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद

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