अब तक आप ने पढ़ा, अनहद नाद (भाग-1) और अनहद नाद (भाग -2)......
अब आगे........
अनहद नाद- भाग 3
उनकी बातों और तनाव की गहराइयों को अंदर तक महसूस कर पा रही थीI वे आगे बोले- “जब मैं ग्यारह वर्ष का था तभी से मैंने अपने घर को सम्भाल लिया था I”
अंकल के चेहरे पर एक संतुष्टि झलक रही थीI पता चल रहा था कि उन्होंने अपने कर्त्तव्य को पूरी निष्ठा और ईमानदारी से निभाया हैI अंकल का बोलना जारी था –
“गाँव मे मैं पहला लड़का था जिसकी नौकरी दिल्ली में लगी थीI नौकरी की बात सुनते ही वीरेंद्र ख़ुशी से बोला- ‘अरे वाह भैया अब तो आप दिल्ली में रहोगेI
मैं भी आपके साथ चलूँगाI आप जानते हो न मैं आपके बिना नहीं रह सकताI’
मैंने हामी भर दीI मेरे हामी भरते ही उसने पूरे गाँव में शोर मचा दियाI
‘हु हु हु रे रे रे हुर्र….. मैं भी भैया के साथ शहर जा रहा हूँI’ तब से लेकर आज तक वीरेंद्र मेरे साथ ही हैI
मैंने हमेशा उसका साथ दियाI हर चीज़ में हमेशा पहले उसको रखाI उसकी हर इच्छा का सम्मान किया। उसकी शादी भी मैंने अपने हाथों से ही कीI
धीरे-धीरे उसके रवैये में बदलाव तो आ रहा था पर मैंने सोचा कि शायद समय की यही माँग हैI वक़्त के हिसाब से हमें भी बदलना चाहिएI”
मैंने उनको बीच में ही रोकते हुए कहा- “पर अंकल वीरेंद्र अंकल ने आज ऐसा क्या किया जो आपको इतनी निराशा हो रही हैI”
अंकल ने हँसते हुए कहा- “आज उसने मुझे अपने आप से आज़ाद कर दिया I”
“क्या?” मैं भौचक्की सी रह गई I
“आज़ाद कर दिया इसका क्या अर्थ है?” मैंने तपाक से पूछा......
आगे पढ़े, अनहद नाद (भाग - 4)....
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