Friday 11 September 2020

Poem : श्राद्ध पक्ष में काकः ही क्यों ?

आज आप सब के साथ मुझे इंदौर से श्रीमती उर्मिला मेहता जी की श्राद्ध पक्ष पर विशेष रचना को साझा करते हुए अपार प्रसन्नता हो रही है।  

उर्मिला जी ने श्राद्ध पक्ष पर काक ही क्यों विशेष होते हैं, इसकी विवेचना की है। आईए हम भी उनकी विवेचना का आनन्द लें।

श्राद्ध पक्ष में काकः ही क्यों ?




विद्यालय में हमने पढ़ा था

'कौआ कोयल दोनों काले 

पर दोनों के बोल निराले,

काँव -काँव कौआ करता है

कोयल मीठी तान सुनाती'

'काकः कृष्णः पिकः कृष्णः को भेदो पिक काकयोः

वसंत समय प्राप्ते ,काकः काक:,पिकः पिक: '

पर  मुझको यह नहीं भाया कुछ सोचा और विचार किया

श्राद्ध पक्ष में काकः ही क्यों  ?,

फिर कोयल को न निमंत्रण है !

मैंने समझी काक व्यथा

और साझा सबसे करती हूँ 

कर्कश बय के कृष्णल पाखी

एकाक्षी हे जुगुप्सित  प्राणी

श्राद्ध कर्म  के आयोजन में

प्राप्य तुम्हें क्यों षट् रस व्यंजन  

कोकिल वंशज रक्षक हो तुम

तुम सम जीव न पर उपकारी

कोकिल मात्र गवैया  स्वार्थी

ममत्व भाव से वंचित जननी

तुम महान हो क्षुद्र जीव से

चुप क्यों हो कुछ बोलो तो!


Disclaimer:

इस पोस्ट में व्यक्त की गई राय लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं। जरूरी नहीं कि वे विचार या राय इस blog (Shades of Life) के विचारों को प्रतिबिंबित करते हों। कोई भी चूक या त्रुटियां लेखक की हैं और यह blog उसके लिए कोई दायित्व या जिम्मेदारी नहीं रखता है।

2 comments:

  1. धन्यवाद अनीमिका जी हार्दिक आभार।

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    Replies
    1. आप ने अपनी रचना इस मंच के लिए प्रेषित की, उसके लिए अनेकानेक धन्यवाद 🙏❤️

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