House number 1303 (भाग-1) के आगे...
House number 1303 (भाग-2)
बस फिर क्या था, रतन पहुंच गया दिल्ली और फिर नीरज के घर की ओर चल दिया...
पूछते पूछते जब रतन, नीरज के सामने पहुंचा तो, दोनों एक-दूसरे को देखकर चौंक गए।
नीरज को तो पता नहीं था कि, रतन गांव से आ रहा है, तो वो वैसे ही था, जैसे रोज़ रहता था।
फटेसटे कपड़ों में एक आदमी से डांट खाते हुए, एक हाथ में पाॅलिश व दूसरे हाथ में ब्रश पकड़े हुए। वो रतन को सामने देखकर सकपका गया।
नीरज तुम यहां, जूते पॉलिश का काम करते हो? फिर गांव में अपनी झूठी शान बघारने का काम क्यों करते हो?
अरे, मुझे क्या पता था कि एक दिन तुम यहां आ जाओगे, वो भी मुझे बिना बताए, नीरज भुनभुनाते हुए बोला ...
तुम्हारी झूठी बातों के कारण, हम सब शहर को महान, और अपने गांव को निम्न समझकर, गांव छोड़ने को आतुर हो गए हैं।
नीरज ने अपनी आंखें नीचे कर ली।
रतन, नीरज को वहां छोड़कर, अपने लिए, विद्यालय, नौकरी और घर की तलाश में आगे बढ़ गया।
शहर की दर बदर ठोकर खाने के बाद उसे एक दुकान में काम मिल गया।
काम तो मिल गया, पर पढ़ाई-लिखाई सब छूट गई, क्योंकि उसके पास पढ़ने-लिखने के लिए, ना तो पैसा था और ना ही समय।
काम तो उसे मिल गया था, पर एक अच्छे घर की तलाश उसकी अभी भी जारी थी।
कुछ दिनों में उसकी दोस्ती महेश से हो गई। महेश दिल्ली में पुराना रहने वाला था और बहुत से लोगों को जानता था।
उसने एक दिन, रतन से कहा, मैं तुझे एक घर दे सकता हूं। यहीं पास के, apartment में है। एक कमरा, रसोईघर और बाथरूम है उसमें...
Apartment में! अरे, तब तो बहुत मंहगा होगा, क्यों मज़ाक कर रहे हो? मुझ गरीब के पास इतना पैसा कहाँ है?
अरे, मेरे दोस्त मैं तुमसे पैसा नहीं लूंगा उसका, एक साहब, बहुत दिनों पहले यह घर छोड़ गए हैं और मुझे उसकी रखवाली के लिए छोड़ दिया है।
घर थोड़ा पुराना है, अगर तुम्हें पसंद आए तो? देख लो...
सुनकर रतन खुश हो गया।दोनों apartment की ओर चल दिए। वो lift से 13 floor पर पहुंचे।
पुराना सा घर था, उस पर टूटी-फूटी नम्बर प्लेट लटक रही थी, घर का नंबर 1303 था। बहुत सारी धूल और जाले थे, उस घर में। बहुत सालों से बंद था तो उससे बदबू भी आ रही थी। खिड़की, दरवाजे के खुलने में बहुत आवाज़ आ रही थी।
सब देखकर घर अजीब सा ही लग रहा था। रतन उसे देखकर सहम गया, वैसे भी वो थोड़ा डरपोक सा लड़का था।
महेश समझ गया कि रतन को घर समझ नहीं आ रहा है, वो डर रहा है। पर वो चाहता था कि रतन घर में रहने को तैयार हो जाए।
उसने रतन को ढांढस बंधाया और कहा कि, मैं यहीं पास की बस्ती में ही रहता हूं, तुम किसी बात की चिंता मत करो। बस्ती में मेरा अपना घर है, बूढ़े मां-बाप है, वो अपना घर छोड़ना नहीं चाहते हैं, और मैं उन्हें, इसलिए मैं यहां नहीं रहता हूं। अगर वैसा ना होता तो मैं खुद यहीं रहता।
यह बहुत भले इंसान का घर था, तुम मुझे भले लगे, इसलिए तुम्हें रहने को दे रहा हूं। तुम्हें रहने की जगह मिल जाएगी और उस भले इंसान के घर की रखवाली हो जाएगी।
रतन मन कड़ा कर के रुकने को तैयार हो गया। महेश उसे घर की चाबी सौंपकर चला गया, साथ ही हिदायत दे गया कि यहां रखें कोई भी सामान से छेड़छाड़ ना करे व संभल कर रहे। और किसी चीज़ की ज़रूरत लगे तो बोल दे...
आगे पढ़ें House number 1303 (भाग-3) में...
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