Wednesday, 11 January 2023

Story of Life : House number 1303 (भाग-3)

House number 1303 (भाग-1)

House number 1303 (भाग-2) के आगे..

House number 1303 (भाग-3) 

रतन मन कड़ा कर के रुकने को तैयार हो गया। महेश उसे घर की चाबी सौंपकर चला गया, साथ ही हिदायत दे गया कि यहां रखें कोई भी सामान से छेड़छाड़ ना करे व संभल कर रहे। और किसी चीज़ की ज़रूरत लगे तो बोल दे...

रतन ने घर की सिर्फ इतनी सफाई की, जिसमें उसका  बिस्तर बिछ जाए। बाकी सफाई, अगले दिन करेगा, सोचकर वो सो गया।

अगले दिन रतन ने थोड़ी और सफाई कर ली। 

फिर अपने गांव में फोन करके सबको उसने बता दिया कि उसे एक बड़ी सी बिल्डिंग में घर मिल गया है। उसमें एक कमरा, रसोईघर और बाथरूम है।

माँ ने पूछा, बिल्डिंग में क्यों?

माँ, यहां ऐसे ही मिलते हैं। 

उस समय रतन का दोस्त रोहित भी बैठा था। उसने तुरंत पूछा, कौन से floor, और कौन से number पर?

रतन ने कहा 1303...

1303! 

पहले 13 फिर 3..

हाय! रतन तुझे कोई और घर नहीं मिला, जो तूने, महा मनहूस घर ले लिया। 

1303, घर तो कोई भी नहीं लेता है, ना जाने उसमें कौन भूत चुड़ैल रहते हैं। 

तू घर लेने से पहले नहीं बता सकता था कि यह घर लेने वाला है। 

मां मेरी बात तो सुन...

पर 1303 सुनने के बाद मां का गुस्सा सातवें आसमान पर था। वो रतन की कोई बात नहीं सुनना चाह रही थी।

रतन के बाबूजी बोले, सुन भी ले बेटे की, क्या कहना चाह रहा है।

मां, वो घर मेरे एक दोस्त के पास चौकीदारी के लिए था, उसने मुझसे बिना एक पैसा लिए रहने को दिया है। 

हां हां, ऐसे घर को पैसा देकर लेगा भी कौन?

मां, दिल्ली में घर का किराया भाड़ा बहुत है और मेरे पास पैसे कम।

थोड़ा पैसा, पढ़ाई-लिखाई के लिए भी जोड़ना चाह रहा हूं। कुछ दिनों बाद, जब थोड़े पैसे जोड़ लूंगा तो दूसरा घर ले लूंगा।

फिर बाबूजी बोले, बेटा तू मां की छोड़, तुझे जो ठीक लगे वही कर...

बात ख़त्म होने पर, रतन काम पर जाने को तैयार होने लगा, फिर उसने सोचा कि महेश से मिलते हुआ जाएगा।

यही सोच कर वो महेश के घर की ओर चल दिया। वहां पहुंचने पर उसे महेश के घर पर ताला लटका हुआ दिखा।

उसने आस-पड़ोस से पूछा कि महेश कहां गया?

वो लोग पूछने लगे कि तुम कौन हो और कहां से आए हो।

जी मैं रतन, महेश का दोस्त, यहीं पास के apartment में 1303 घर में रह रहा हूं।

1303!

अच्छा तो महेश ने तुम्हें वहां रहने को राज़ी कर लिया?

हाँ..

तभी तो...

क्या तभी तो?

तभी तो वो, सबको लेकर गांव चला गया..

गांव?... पर क्यों? 

उसे चार साल पहले से इस घर की चौकीदारी मिली थी, जिसके कारण वो अपने गांव नहीं जा पा रहा था। उसने बहुत कोशिश की कि कोई इस घर पर रह जाए, पर 1303 नंबर सुनकर कोई भी free में भी इस घर पर रहने को तैयार नहीं होता था। 

क्यों भला, कोई तैयार नहीं होता था?

भैया, 1303 में कौन रुकना चाहता है? महा मनहूस नंबर है यह तो...

पर अब जब तुम मिल गये हो, तो वो अपना बोरिया बिस्तर बांध कर निकल लिया...

अच्छा, कब तक लौटेगा, वो बता दो...

क्या जाने, कितने दिन में आएगा, पूरे चार साल बाद तो गया है।

भैया, उसका फोन नंबर या उसके गांव का फोन नंबर बता दो। मैं आज उसका नंबर लेने आया था।

अरे भैया, उसके गांव में फोन नहीं लगता है और गांव में सिर्फ इसके पास ही फोन है। 

अरे! तो मैं उससे बात कैसे करुंगा? 

अब वो तो भाई, उसके आने पर ही होगी...

रतन अपने काम पर चला गया, जब वो घर लौटा, रात हो चुकी थी। 

आज की रात कुछ ज्यादा ही काली और ठंडी था, सन्नाटा पसरा हुआ था। हाथ को हाथ नहीं सुहा रहा था, पर आवाज़ें हर चीज़ की बहुत तेज सुनाई दे रही थी। 

सुबह से घर को लेकर इतनी बातें सुन सुनकर, उसे भी घर अजीब सा लगने लगा था...

आगे पढ़ें House number 1303 (भाग-4) में...

No comments:

Post a Comment

Thanks for reading!

Take a minute to share your point of view.
Your reflections and opinions matter. I would love to hear about your outlook :)

Be sure to check back again, as I make every possible effort to try and reply to your comments here.