Wednesday, 19 February 2025

Short Story : मेहनत की कीमत

आज एक सच्ची कहानी साझा कर रहे हैं, इसे पूरी पढ़िएगा, इसमें parenting की tip भी छुपी है। कोई ज़रूरी नहीं है कि बहुत पढ़े-लिखे लोग ही parenting को सही से समझ पाएं...

बच्चों को सही दिशा निर्देश, कैसे देना है... कैसे उनके भविष्य को निखारना है, यही प्रदर्शित करती है आज की short story..

मेहनत की कीमत


नितिन और दमयंती एक छोटे से गांव में रहते थे, पर उनकी आकांक्षाएं बहुत बड़ी-बड़ी थीं।

वो औरों की तरह, गांव में रहकर कम में जीना नहीं चाहते थे, बल्कि वो चाहते थे कि जिस तरह से उन्होंने अपना बचपन बीता दिया, वैसा उनके बच्चों का न हो।

बस यही सोच, उन्हें दिल्ली जैसे बड़े शहर में ले आई। पर यहां आकर उन्हें एहसास हुआ कि सब कुछ उतना आसान नहीं था, जैसा उन्होंने सोचा था। 

ज़िंदगी जितनी आसान गांव में थी अपनों के बीच, शहर में उतना ही अधिक संघर्ष करना पड़ रहा था। 

पढ़े-लिखे वो ज्यादा थे नहीं, अतः नितिन ने मेहनत मजदूरी शुरू कर दी, साथ ही कुछ हुनर भी सीखना शुरू किया, जैसे मिस्त्री का काम, रंग-रोगन, आदि... 

नितिन और दमयंती ने जब उनकी बेटी हुई, तो यह निर्णय लिया,  कि बच्चे दो ही करेंगे, चाहे दूसरा बच्चा भी बेटी ही क्यों न हो। गांव में जैसे बहुत बच्चे होते हैं, हम वैसा नहीं करेंगे।

पर भगवान ने उनकी अधिक परीक्षा नहीं ली और दूसरा बच्चा बेटा हुआ। लेकिन परिवार बढ़ने से अब अकेले नितिन की कमाई से घर नहीं चल रहा था। खाने-पीने का इंतजाम तो फ़िर भी हो जाता था, पर उनका सोचना था कि हम नहीं पढ़ें हैं, पर बच्चों को जरूर पढ़ाएंगे। उतनी कमाई तो कैसे भी नहीं हो रही थी।

तो परिवार की जरूरत पूरी करने के लिए, दमयंती भी नितिन के साथ चल दी, मेहनत-मजदूरी करने के लिए... 

दोनों की कमाई से घर ठीक-ठाक चलने लगा था, लेकिन इसमें बच्चों का ध्यान रखना मुश्किल हो रहा था। पर सब तो नहीं मिल सकता था।

बिटिया नलिनी तो पढ़ने में अच्छी थी, पर बेटा शिखर, खेल तमाशे में ज्यादा रहता था और पढ़ता कम था।

मां-बाप कहते, पढ़-लिख लो, तो कुछ अच्छा कर लोगे, तुम्हारे कारण ही गांव छोड़ा और मेहनत-मजदूरी कर रहे हैं। पर शिखर मस्ती में ही रहता। 

जब शिखर छोटा था, तब तो दिन गुज़र गए पर जब वो बड़ा होकर भी न सुधरा तो, नितिन और दमयंती बहुत चिंतित रहने लगे। 

आखिर बहुत सोच-विचार कर नितिन ने शिखर से कहा कि मैंने तुम्हारे लिए अपने मालिक से बात कर ली, तुम भी हमारे साथ काम करना।

शिखर सहर्ष तैयार हो गया। उसे अपने माता-पिता की मेहनत कभी बड़ी लगी ही नहीं थी। वो सोचता था, सारे दिन बालू-cement में हाथ डालना कौन बड़ी मेहनत का काम है। 

पर यह सुनकर दमयंती बहुत चिंतित हो उठी, मेरा नाजुक, छोटा सा बेटा इतनी मेहनत का काम कैसे कर पाएगा?

उसने हौले से नितिन से पूछा, तब नितिन ने दृढ़ता से कहा कि कुछ समझ, सिर पर पड़े, तभी आती है... तो वो चिंता न करे, फिर अपनी आंखों के सामने ही तो होगा।

दमयंती फिर कुछ न बोली, कहीं न कहीं वो जानती थी कि नितिन से बेहतर शिखर के लिए कोई नहीं सोच सकता...

जब शिखर वहां पहुंचा तो मालिक ने drill mechine पकड़ा दी और tiles तोड़ने को कहा।

शिखर, drill mechine लेकर खड़ा हो गया। पर थोड़ी ही देर में आह! कितना कठिन है यह... हर पल टूट कर उछलती हुई tiles का आंख पर जाने का खतरा था। साथ ही इतने force के साथ machine चल रही थी तो उसको संभालना भी चंद‌ घंटों में भारी लग रहा था और धूल तो इतनी की सांस लेना दूभर हो चला था।

5-6 घंटे काम करने के बाद खाना खाने का समय हो गया था। पर हाथ में रोटी तोड़ने लायक भी जान‌ नहीं लग रही थी।

थोड़ी देर में ही वापस काम करने के लिए सब चल पड़े... इतनी जल्दी.. अरे थोड़ा तो आराम कर लेने दो...

पर जाना पड़ा, अब drill mechine नहीं दी गई थी और बालू-cement का मसाला तैयार करना था। पर उसे तैयार करने में उंगलियां कटने लगी।

जब शाम हुई तो सबको पैसे दिए गए, दिनभर की अथक परिश्रम के 700 रुपए मिले। इतनी मेहनत के बस इतने?...

शाम को घर पहुंचने के पश्चात् शिखर बिस्तर पर गिरा, तो बड़ी मुश्किल से खाना खाने के लिए उठा।

ऐसे ही एक हफ्ते तक वो नितिन और दमयंती के साथ काम पर जाता रहा। और रोज़ थककर चूर हो जाता।

एक हफ्ते बाद उसने नितिन और दमयंती के पांव पकड़ लिए और रोने लगा। मैं समझ गया कि आप लोग कितनी अधिक मेहनत करते हो। 

अब मैं बहुत मेहनत से पढ़ाई करूंगा और आपका सपना पूरा करुंगा।

शिखर अब जी जान से पढ़ाई करने लगा। उसने लक्ष्य साधा कि वो इतनी मेहनत करेगा कि आने वाले railway clerical exam में वो जरूर से select होगा।

अब उसे कभी पढ़ने के लिए नहीं टोकना पड़ता था, क्योंकि वो मेहनत की कीमत समझ चुका था और यह भी जान चुका था कि उसके बेहतर भविष्य के लिए उसके माता-पिता कमर-तोड़ मेहनत कर रहे हैं। 

और अब उसकी बारी है, अथक परिश्रम कर एक अच्छा मुकाम हासिल कर उन्हें जीवन पर्यन्त, आराम कराए और सुख दे।

Thursday, 13 February 2025

Article : World Radio Day

आज का यह article आधारित है, एक ऐसी वस्तु पर, जिसकी परिकल्पना के बिना 70s की दुनिया अधूरी है।

हम बात कर रहे हैं radio की... 

उस दौर में शोर नहीं था और न ही लोग दिखावे के लिए busy हुआ करते थे।

उस ज़माने का संगीत सबसे ज्यादा कर्णप्रिय था और उससे सुनने के लिए लोगों के पास वक्त भी था।

और संगीत को सुनने का साधन था, radio, transistor, recorder, tape recorder etc.

इसमें radio and transistor सबसे अधिक लोकप्रिय थे, क्योंकि यह न केवल मनोरंजन के साधन थे, बल्कि उसके साथ ही news, information etc. भी इसी से मिलती थी।

आज radio के आगे television और उससे आगे computer, internet and mobile आ चुका है।

हम लोग जब बच्चे थे, वो दौर था, जब, radio को पीछे छोड़ते हुए television बड़ी तेज़ी से हम लोगों के जीवन का हिस्सा बनता जा रहा था। और उसके बाद जवानी के साथ computer, mobile and internet भी जुड़ते चले गए।

पर हमारे मां-पापा और उनके माता-पिता के समय radio ही जीवन का अभिन्न हिस्सा थे।

उस समय, शायद ही कोई ऐसा होगा, जो विविध भारती और बिनाका संगीत माला का दीवाना न हो, उस पर अमीन सयानी जी की आवाज तो भुलाए न भूली जाती थी। 

आजादी की लड़ाई से जुड़ी बातें और देश की आजादी, सबका साक्षी है radio..  

आकाशवाणी से FM तक जुड़ना, prestigious बात होती है...

आज radio पर लिखने का ख्याल कहां से आया, यही सोच रहे हैं न आप.. अरे भाई, आज world radio day है, तो उस पर लिखना तो बनता है ना...  

World Radio Day 


Radio कई लोगों के लिए एक शाश्वत जीवनरेखा रहा है - लोगों को सूचना देने, प्रेरित करने और जोड़ने का काम करता है। समाचार और संस्कृति से लेकर संगीत और कहानी कहने तक, यह एक शक्तिशाली माध्यम है जो रचनात्मकता का जश्न मनाता है।

World radio day, हर साल 13 फरवरी को समाज और संस्कृति को वैश्विक स्तर पर आकार देने में radio के महत्व को स्वीकार करने और उसका जश्न मनाने के लिए मनाया जाता है।

यह विभिन्न समुदायों में information, education and entertainment को बढ़ावा देने में radio के महत्व को पहचानने का दिन है। आइए, आज, खासकर digital era में, radio के इतिहास, महत्व और भूमिका के बारे में गहराई से जानें।

UNESCO (United Nations Educational, Scientific and Cultural Organization) ने 2011 में world radio day की घोषणा की।

जिसमें आधिकारिक तौर पर सूचना के प्रसार में radio के प्रभाव को मान्यता दी गई। 13 फरवरी की तारीख इसलिए चुनी गई क्योंकि यह 1946 में united nations radio के foundation की anniversary है। UNESCO द्वारा world radio day घोषित करने का उद्देश्य रेडियो के सभी रूपों, विशेष रूप से ग्रामीण और वंचित क्षेत्रों में इसके महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाना था। 

Radio के उसी सुरीले, प्यार भरे दिन को समर्पित आज का article... Happy World Radio Day 📻 

Wednesday, 12 February 2025

India's Heritage : रविदास जयंती

आज बच्चों के school में छुट्टी है, वजह - रविदास जयंती।

पर यह रविदास जी थे कौन? और ऐसा क्या विशेष था कि उनकी जयंती पर छुट्टी कर दी गई? 

रविदास जी संत शिरोमणि और भक्ति रस के कवि और समाज के पथ प्रदर्शक थे।

संत शिरोमणि तो कबीरदास, तुलसीदास, मीराबाई आदि बहुत लोग थे, फिर बाकी जयंती पर तो छुट्टी नहीं होती है।

आइए, आज India's Heritage segment में उनके विषय में जानते हैं।

रविदास जयंती


रविदास जी का जन्म वाराणसी में माघी पूर्णिमा के दिन हुआ था। कहा जाता है कि उस दिन रविवार था, तो बस रविवार के कारण ही उनका नाम रविदास रख दिया गया।

कई पुरानी पांडुलिपियों में उन्हें रायादास, रेदास, रेमदास और रौदास के नाम से भी जाना गया है।

उनका जन्म एक चर्मकार के घर पर हुआ था, अतः रविदास जी भी चमड़े से सामान, जूते आदि बनाने का ही कार्य करते थे। 

वह जात से चमार थे और उस समय जात-पात को लेकर विभिन्न कट्टर नियम थे। पर उन्होंने कभी उन पर ध्यान नहीं दिया और ईश्वर भक्ति और अपने कर्म को प्रधानता दी।

उन्होंने जात-पात से जुड़ी कुरीतियों का पुरजोर विरोध किया और समानता का समर्थन किया।

उनका मानना था, कोई भी व्यक्ति जन्म से नीच नहीं होता है, बल्कि अपने दुष्कर्मों से नीच होता है। और यह बात उन्होंने अपने जीवन में चरितार्थ भी किया, और संत शिरोमणि और समाज सुधारक कहलाए।

उनसे जुड़ी हुई कुछ घटनाएं साझा कर रहे हैं, जिनसे आप खुद कहेंगे कि कर्म ही सर्वोच्च है।


एक बार की बात है, एक राजा ने रविदास जी को अपने जूते बनाने का आदेश दिया। संत रविदास जी ने आदेश सहर्ष स्वीकार किया, क्योंकि वो तो उनका काम ही था।

रविदास जी जूता बनाने का कार्य भी ऐसे कर रहे थे, जैसे ईश्वरीय आराधना में लीन हों।

जूता लेकर वो राजदरबार में पहुंचे। जैसे ही राजा ने जूता पहनने के लिए पैर आगे बढ़ाया, एक चमत्कार हुआ और जूता सोने में बदल गया।

सब देखकर हैरान हो गए, राजा ने चमत्कार के पीछे का कारण पूछा, तो रविदास जी बोले, मैंने अपना काम पूर्ण निष्ठा और ईश्वरीय भक्ति में किया था। जो चमत्कार हुआ, वो तो ईश्वर की कृपा है।

ईश्वर की भक्ति काम करते हुए मतलब? लोगों के मन में शंका हुई, यह कैसी भक्ति?

तब रविदास जी बोले, ईश्वर की भक्ति केवल पूजा-पाठ द्वारा ही नहीं की जाती है, बल्कि निष्काम और निष्ठा से किया गया कार्य भी ईश्वर भक्ति है।

सब उनकी इस बात को सुनकर उनके भक्त हो गये।


एक और बार की बात है, संत रविदास जी अपनी झोपड़ी में जूते बनाने का काम कर रहे थे। एक दिन उनके यहां एक सिद्ध साधु पहुंचे। रविदास जी ने उस संत की बहुत सेवा की। सेवा से प्रसन्न होकर सिद्ध संत ने रविदास को एक पत्थर दिया और कहा कि ये पारस पत्थर है। लोहे की जो चीज इस पत्थर पर स्पर्श होती है, वह सोने की बन जाती है। इस पत्थर की मदद से तुम धनवान बन सकते हो।

रविदास जी ने पारस पत्थर लेने से मना कर दिया। उन्होंने कहा कि मुझे इसकी जरूरत नहीं है, मैं अपनी मेहनत से जो कमाता हूं, उससे मेरा काम हो जाता है।

रविदास जी के मना करने के बाद भी साधु ने उनकी बात नहीं मानी और उस पत्थर को झोपड़ी में ही एक जगह रख दिया और कहा कि तुम जब चाहो, इसका इस्तेमाल कर लेना। ऐसा कहकर वह संत वहां से चले गए।

काफी समय बाद वह संत फिर से रविदास जी के पास पहुंचे। उन्होंने देखा कि रविदास की स्थिति में कोई बदलाव नहीं हुआ है, वे आज भी उसी झोपड़ी में रह रहे हैं।

रविदास जी की हालत देखकर साधु ने पूछा कि मैंने आपको पारस पत्थर दिया था, क्या आपने उसका इस्तेमाल नहीं किया?

रविदास जी ने कहा कि वह पत्थर तो वहीं रखा, जहां आप रख गए थे।

साधु ने देखा तो पारस पत्थर वहीं रखा था। साधु ने रविदास जी से पूछा कि आप इसके इस्तेमाल से धनवान बन सकते थे, लेकिन आपने ऐसा क्यों नहीं किया?

संत रविदास ने कहा कि अगर मैं धनवान हो जाता तो मुझे धन की रखवाली करने की चिंता होती। मैं दान करता तो मेरे यहां लोगों की भीड़ लगी रहती और मेरे पास भगवान का ध्यान करने का समय ही नहीं बचता। मैं जो कमाता हूं, मेरे लिए काफी है। मैं मेरे काम के साथ भगवान की भक्ति भी कर पाता हूं। मेरे लिए यही सबसे जरूरी है।

वह साधु रविदास जी की बात सुनकर प्रसन्न हो गए, उन्हें आशीर्वाद दिया और अपना पारस पत्थर लेकर लौट गए।


ऐसी और भी घटनाएं हैं, जो रविदास जी सबसे विशेष बनाते हैं, वह अगले वर्ष बताते हैं। 

अभी विराम देते हुए, संत शिरोमणि रविदास जी को उनकी जयंती पर शत-शत नमन...

Tuesday, 11 February 2025

Article : India - The Future AI Leader

आजकल पूरी दुनिया में जो technology सबसे आगे चल रही है, वो technology है AI... जिस तरह से, इससे हर field में advancements आ रहे हैं, उसको देखकर लगता है कि AI के बिना भविष्य की कल्पना करना नामुमकिन है।

आज france में दो दिवसीय AI action summit 2025 हो रहा है, जिसमें france host है और भारत सह-अध्यक्षता कर रहा है।

Technology की दुन‍िया में AI ने बड़ी क्रांति ला दी है और इसलिए दुनियाभर के देशों के बीच AI king बनने की होड़ लगी हुई।

चीन और अमेरिका तो इस होड़ में एक दूसरे को पीछे छोड़ने के लिए, साम-दाम-दंड-भेद, सब करने को तैयार हैं।

ऐसे में भारत भी AI field में बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा है। 

आपको जानकर खुशी होगी कि artificial intelligence में भारत चौथे नंबर पर है। जिसमें सबसे ऊपर अमेरिका है, फिर चीन, ब्रिटेन, और उसके बाद भारत।

India - The Future AI Leader


भारतीय companies में AI की पैठ इतनी बढ़ चुकी है कि 70% companies में hybrid IT वाले AI का वातावरण है।

AI पर भारत अगले दो सालों में यानी 2027 तक 5.1 billion dollars यानी 44 हजार करोड़ रुपये खर्च करने वाला है। 

भारत में technology sector में अगले दो साल में artificial intelligence, generative AI and analytics में नौकरियों के, लगभग 1.2 लाख मौके बनेंगे। 

OpenAI के CEO और ChatGPT creator, Sam Altman, अपने भारत के दौरे पर आए और उन्होंने बताया कि भारत AI and OpenAI के लिए महत्वपूर्ण बाजार है और भारत AI sector में एक leader के तौर पर सामने आ सकता है। 

यह सब देखकर, जानकर, यही समझ आता है कि भारत बहुत तेजी से विकासशील देश से विकसित देश में बदलता जा रहा है।

फिर field चाहे, space हो या AI, defence हो या finance, sports हो या अध्यात्म... हर ओर गूंजता, बस एक ही नाम, भारत, भारत, भारत...

बदलती दुनिया, बदलता विज्ञान और आगे ही आगे बढ़ता हिन्दुस्तान...

ऐसे में यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि, बहुत जल्द, India will become the AI leader. 

जय हिन्द, जय भारत 🇮🇳 

Monday, 10 February 2025

Recipe : Instant Rava Appe

आज एक ऐसी recipe share कर रहे हैं, जो बहुत लोगों को बनानी आती है, पर हमारी एक viewer को हमारे बनाए हुए अप्पे बहुत ही पसंद आते हैं और उनकी demand थी, कि हम इसकी recipe ज़रूर से share करें..

तो आप भी देख लीजिए और एक बार इस तरह से भी बना कर देखिएगा, हो सकता है आपकी भी सोच हमारे viewer से मिल जाए, means कि आप को भी लगे, इस तरह से बनाए तो सभी से बहुत वाहवाही मिली...

पर अगर आपको अप्पे बनाने नहीं आते हैं, तब तो जरूर से इसे try कीजिएगा, यह instantly prepare होने वाली बहुत ही healthy dish है। 

इसमें बहुत सारी veggies डाली जाती हैं, इसलिए इसको बनाकर आप बच्चों को बहुत-सी veggies, tasty form में खिला सकते हैं।

Instant Rava Appe


A) Ingredients :

  • Semolina - 250 gm.
  • Malai - 1 cup 
  • Curd - 1 tbsp. 
  • Milk - 1 cup 
  • Salt - as per taste 
  • Onion -  1 tbsp. (finely chopped)
  • Tomato - 1 tbsp. (finely chopped)
  • Capsicum - 1 tbsp. (finely chopped)
  • Carrot - 1 tbsp. (finely chopped)
  • French beans - 1 tbsp. (finely chopped)
  • Clarified butter (ghee) - as per taste
  • Baking powder - 1 tsp.


B) Method :

  1. सूजी में मलाई, दही, नमक डालकर अच्छे से mix कर लें और ½ hour के लिए रख दीजिए।
  2. सारी veggies सूजी में डालकर अच्छे से mix कर दें। 
  3. अब इसमें धीमे-धीमे दूध मिलाकर,  pouring consistency का घोल तैयार कर लीजिए।
  4. अब इसमें baking powder डालकर mix कर लीजिए।
  5. अप्पे बनाने वाले pan में घी लगाकर गर्म कर लीजिए।  
  6. गर्म pan में सूजी के mix को डालकर, lid को ढक दीजिए और flame slow कर दीजिए।
  7. 5 to 7 minutes बाद lid हटाकर, अप्पे पर घी लगा दीजिए।
  8. अब सारे अप्पे पलट दीजिए।
  9. दोनों तरफ से हल्का सुनहरा होने तक उलट-पलट कर सेंक लीजिए।

Your Instant Rava Appe are ready to serve. You can serve it with sauces, chutney or dips etc.


C) Tips and Tricks :

  • हमने जो change किया है, वो है curd की जगह मलाई। मलाई होने के कारण ही अप्पे का taste next level पर पहुंच जाता है, उसके कारण taste में बहुत से enhancement होते हैं, जैसे; अप्पे खट्टे नहीं लगते हैं, अप्पे soft ज्यादा बनते हैं।मलाई डालने से घी भी कम लगाना पड़ता है, क्योंकि मलाई गर्म होने से itself घी छोड़ती है।
  • Curd का थोड़ा amount डालने से वो baking powder को अच्छा kick देता है। इसलिए थोड़ा सा दही डालना जरूरी है। 
  • दूध add करने से सूजी बहुत अच्छा flavour देती है और appe बहुत ही अच्छे बनते हैं।
  • आप baking powder की जगह eno भी use कर सकते हैं। 
  • ध्यान रखिएगा कि दूध धीमे-धीमे डालना है, means जितने दूध को डालने से pouring consistency आ जाए, बस उतना ही दूध डालना है। वो ½ cup से 1½ या 2 cup तक हो सकता है। 
तो बना रहे हैं ना, एक बार ऐसे भी?

Saturday, 8 February 2025

Article : Double engine in Delhi

Double engine in Delhi


26 साल बाद BJP की दिल्ली में जीत के साथ ही दिल्ली में भी double engine की सरकार आ गयी है।

इससे पहले 1993 से 1998 तक BJP का शासन था।

पर उसके बाद लगातार 6 बार हार का सामना करना पड़ा था।

BJP बहुत से राज्यों में जीतती जा रही थी, पर उसका विजयी रथ, दिल्ली पर जाकर रुक जाता था।

पर इस बार BJP ने 48 votes के साथ दिल्ली में जीत कर अपनी विजय सिद्ध की।

इसके साथ ही BJP ने भारत के 21 राज्यों पर विजय हासिल कर ली है।

2014 के बाद नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में BJP ने एक के एक जीत हासिल की है। 

यही कारण है कि BJP का एक नारा, यह भी रहता है कि मोदी है तो मुमकिन है... 

अन्ना हजारे भी BJP की जीत से प्रसन्न हैं, यह बात भी BJP के लिए एक सकारात्मक शुरुआत है।

पर यह जीत, एक अच्छी खबर है, भारत के लिए या नहीं...

यह तो समय बताएगा...

किन्तु एक बात पूरी तरह से clear हो रही है कि Free की राजनीति, केवल गर्त की ओर ले जाती है।

और इसका उदाहरण है, AAP की हार... 

हर एक को उम्मीद है कि BJP सरकार, जैसे गुजरात, उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों को निखार रही है, दिल्ली को भी निखारेगी।

और दिल्ली को निखारना भी चाहिए क्योंकि दिल्ली दिल है भारत का, राजधानी है भारत की...

दिल्ली का सर्वांगीण विकास ही वास्तव में भारत को विश्व विजयी बनाएगा।

BJP, आपको जीत की बधाइयां, इस उम्मीद के साथ की अब भारत आगे ही आगे बढ़ेगा...

Friday, 7 February 2025

Short Story : सपनों की उड़ान

सपनों की उड़ान


स्नेहा बहुत ही मासूम, चंचल, और कुशाग्र बुद्धि की लड़की थी। वो  पढ़ाई में इतनी होशियार थी कि पूरा गांव कहता था कि यह एक दिन हमारे गांव का नाम जरूर रोशन करेगी, बस थोड़ा फुदकना छोड़ दें। 

पर स्नेहा तो कापी-किताब के साथ भी पेड़ों पर ही मिलती थी।

उसके दिनभर इधर-उधर फुदकने के कारण, वो स्नेहा के नाम से कम और गिलहरी के नाम से ज़्यादा मशहूर थी।

दिन, साल, महीने गुजरते गए। स्नेहा बड़ी हो चुकी थी, उसका सपना IPS officer बनने का था, तो वो बहुत मन लगा कर पढ़ती थी, पर जब वो पढ़ते-पढ़ते थक जाती, तो बस पहुंच जाती पेड़ पर लटकने, इधर-उधर फुदकने...

उसने UPSC का Prelims, mains and interview exam qualify कर लिया। अब उसे कुछ ही महीनों में physical training के लिए जाना था। 

और एक दिन वो पेड़ पर से कूदते हुए गिर पड़ी और उसके पैरों में इतनी तेज चोट लग गई कि उसे bed rest के लिए बोल दिया गया।

सारे गांव भर से लोग उसे देखने आ रहे थे और वो सबसे यही कहती, आपकी गिलहरी ने फुदकना छोड़ दिया है।

उसकी इस बात से सबकी आंखों से अविरल धारा बह निकलती और सब उससे यही कहते, हमने ऐसे नहीं सोचा था। तुझे ही तो गांव का नाम रोशन करना था, अब तुम नहीं तो, कौन करेगा ऐसा...

एक दिन गांव के सरपंच आए, अपनी गिलहरी से मिलने, और आते से ही बोले, कैसी है मेरी गिलहरी? 

आपकी गिलहरी ने फुदकना छोड़ दिया...

कोई नहीं, सपनों की उड़ान तो नहीं छोड़ी न?

पर काका, कैसे उड़ूं? मेरे तो पंख ही टूट गये....

वो खूब ज़ोर से हंसे, फिर बोले, पंख कब टूटे? 

स्नेहा ने अपने पैर की ओर इशारा कर दिया...

अरे बिटिया यह तो पैर हैं।

सपनों के पंख नहीं...

सपनों के पंख.... वो क्या होते हैं? सोचती हुई स्नेहा, सरपंच जी को एकटक देखने लगी...

अरे गिलहरी इतना भी नहीं पता...

सपनों के पंख, कुछ कर दिखाने का जज्बा और जुनून देते हैं और जिनमें यह रहता है, उन्हें अपने सपनों की उड़ान भरने से कोई नहीं रोक सकता है।

न कोई इंसान और न कोई हालात... पर शायद तुम्हारे अंदर वो जज्बा और जुनून नहीं रहा..

वो मुझमें कम नहीं हुआ है काका...

तो बैठकर अफ़सोस किस बात का कर रही हो? उठो और उठाओ, पूरे जोश से अपने कदम अपनी मंजिल की ओर...

यह कहकर सरपंच जी, स्नेहा की wheelchair मैदान में ले आए।

स्नेहा ने अपने अंदर के आत्मविश्वास को झकझोरा और अपने घायल पैर पर खड़े होने की कोशिश की...

इस कोशिश में उसे बहुत दर्द हुआ, शायद चोट लगने से भी ज्यादा...

पर वो सरपंच जी को दिखाना चाह रही थी कि आज भी उसमें उतना ही जज्बा और जुनून है, अपने गांव को सर्वोच्च सिद्ध करने का...

अब से हर रोज़ सरपंच जी, कुछ देर के लिए उसके पास ज़रूर जाते।

उनका आना, स्नेहा को अपने को सिद्ध करने का सबब होता है।

हर रोज़ का प्रयास, स्नेहा को पूर्ण रूप से सक्षम बना गया और आखिर वो दिन भी आ ही गया, जब उसे physical training के लिए जाना था।

स्नेहा ने अपनी physical training complete की और वो सहायक पुलिस अधीक्षक (प्रशिक्षु) यानी ASP (trainee) के पद पर तैनात हो गई। 

और जब उसकी posting, अपने गांव पर थानाध्यक्ष के रूप में हुई, तो वो सबसे पहले अपने सरपंच जी के पास गयी और बोली, आपने मेरे सपनों को उड़ान भरने में जो सहयोग दिया था, आज उसके कारण ही मैं अपने और गांव वालों का सपना पूरा कर सकी।

आप सच कहते हैं, सपनों की उड़ान, जज्बे और जुनून से भरी जाती है और जिसमें यह क़ायम है, उसे अपनी मंजिल को पाने से कोई नहीं रोक सकता है, न कोई इंसान न कोई हालात... 

इतना कहने के साथ ही उसने सरपंच जी के पैर छू लिए और उनसे ढेरों आशीर्वाद अपनी झोली में समेट लिए...

Wednesday, 5 February 2025

Recipe : Muradabadi Dal Papdi Chaat

आज कल की parties पहले जैसी नहीं होती है, मतलब आज कल parties में main course से ज्यादा ध्यान different stalls or starter में दिया जाता है।

इसका एक बहुत बड़ा कारण यह है कि, इसके कारण parties में variety and freshness आ जाती है, साथ ही different states की cuisine एक ही जगह खाने में मिल जाती है।

तो चलिए, हम भी आपको एक ऐसी ही dish की recipe share कर देते हैं, जो कि winter parties की शान बनी हुई है, फिर चाहे चढ़ती ठंड हो, उतरती या हो अपने परचम पर, यह अपना दीवाना सब को बनाए हुए है।

इसका कारण यह है, कि यह बहुत healthy होने के साथ-साथ tasty भी गज़ब की है।

हमारा इसको share करने का एक और कारण भी है, जिसे सुनकर आप खुश हो जाएंगे, कि यह बहुत easily prepare भी हो जाती है।  

मुरादाबादी दाल पापड़ी चाट।

नाम सुनकर लगता है कि दाल के साथ तो रोटी या चावल खाया जाता है, तो दाल के साथ यह पापड़ी चाट क्या जुड़ गया है।

तो सच मानिए, यह बहुत ही unique flavour है, healthy and tasty combination का... 

दाल का दाल और चाट की चाट...

Muradabadi Dal Papdi Chaat


A) Ingredients :

I. Main recipe -

  • Moong dal - 250 grams
  • Turmeric powder - a pinch 
  • Papdi - 100 grams
  • Amul butter - 200 grams
  • Asafoetida - ½ tsp 
  • Salt - as per taste 
  • Lime juice - as per taste 
  • Coriander leaves - for garnishing 
  • Green chilli - as per taste 
  • Green chutney - as per taste 
  • Ginger juliens - for garnishing 


II. Special masala -

  • Salt - ½ tsp.
  • Black pepper - ½ tsp.
  • Black salt - ½ tsp.
  • Roasted cumin powder - ½ tsp.
  • Amchur powder - ½ tsp.
  • Dry coriander powder ½ tsp. (coarse)
  • Chilli flakes - for garnishing 


B) Method :

  1. धुली मूंग दाल को 2 घंटे के लिए soak करने रख दीजिए।
  2. Special masala के सारे ingredients मिला कर ready कर लीजिए। 
  3. Onion, green chilli, and coriander leaves को finely chop कर लीजिए। 
  4. धनिया की चटनी पीस लीजिए।
  5. मूंग दाल को pressure cooker में डालकर soaked दाल से two times ज्यादा पानी, नमक, हल्दी डालकर 2 whistle high flame पर, और 1 whistle slow flame पर आने तक पका लें।  
  6. Pressure down होने के बाद दाल को अच्छे से whisk कर लीजिए। 
  7. अब pressure cooker को slow flame पर रख दीजिए।
  8. फिर दाल में थोड़ा-थोड़ा मक्खन डालकर बराबर चलाते रहें, जब तक इसमें दूध के जैसी मलाई न पड़ जाए।
  9. Buttery, thick and smooth texture ही पहचान है, proper दाल के बनने की...
  10. अब इस दाल में तैयार special masala, चटनी, हरी, मिर्च, हरा धनिया, ginger julien और पापड़ी से garnish कर लीजिए।

The healthy and tasty Muradabadi Dal Papdi Chaat is ready to serve...


3) Tips and tricks :

  • दाल में पानी का ratio एकदम सही रहना चाहिए। न तो अधिक, वरना दाल का सूप बन जाएगा, न ही बहुत कम की दाल में गुठलियां पड़ जाए। 
  • दाल को लगातार चलाते हुए उसका creamy texture लाना है। अगर लगातार नहीं चलाएंगे, तो दाल नीचे से लग जाएगी। 
  • दाल atleast 2 hours के लिए soak करने ज़रूर से रखें। इससे ही दाल का दाना अंदर तक फूल जाएगा।क्योंकि दाल मूंग की लें रहे हैं, इसलिए over-night soak करने की जरूरत नहीं है।
  • धुली मूंग दाल ही लेनी है, छिलका मूंगदाल या साबुत मूंग दाल लेने से smooth texture नहीं आएगा और न ही देखने में tempting लगेगी।
  • इस में धुली मूंगदाल, butter and creamy texture, perfect दाल बनने के बस यही key ingredients है।
  • दाल में बहुत अधिक butter पड़ता है, जो कि salty होता है, और garnishing में भी special masala, chutney, पापड़ी आदि डालना है, साथ ही दाल के thick होने से भी salty taste बढ़ जाएगा। तो दाल boil करते समय नमक की quantity का ध्यान रखिएगा।
  • अगर आप को इसे और अधिक healthy बनाना है तो मैदे की पापड़ी की जगह, चावल की पापड़ी भी use कर सकते हैं।
  • अगर आप को onion के बिना पसंद न आए तो आप प्याज़ भी डाल सकते हैं। वैसे authentically onion नहीं पड़ता है।
  • टमाटर और मीठी चटनी भी डाल सकते हैं, पर उनका combination बहुत अच्छा नहीं जाएगा। पर अगर आपको खट्टा-मीठा flavour ही पसंद हो तो आप फिर इसमें, खट्टी-मीठी चटनी, दही और पापड़ी को डालकर चाट बनाइएगा। लेकिन फिर वो मटर पापड़ी चाट का flavour देगी, जो मुरादाबादी दाल पापड़ी चाट से entirely different होगा।

तो सोच क्या रहे हैं, बसंत की गुलाबी ठंड की महफ़िल जमाइए, सबके साथ मुरादाबादी दाल पापड़ी चाट का लुत्फ उठाइए...

Tuesday, 4 February 2025

Article : महाकुंभ महोत्सव - सोच का फ़र्क

महाकुंभ महोत्सव, जिसकी पूरे विश्व भर में चर्चा हो रही है, आपने सोचा, कभी पहले इतनी चर्चा क्यों नहीं होती थी?

आखिर इस साल ऐसा क्या हो गया है कि देश-विदेश में बच्चा-बच्चा जानता है कि महाकुंभ हर 12 वर्ष में आयोजित किया जाता है।

आखिर कैसे हर कोई जान रहा है कि महाकुंभ का आयोजन प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में होता है।

आखिर क्यों इन्हीं शहरों में आयोजित होता है।

हां, अगर आप को अभी भी नहीं पता है, तो महाकुंभ महोत्सव का article पढ़ सकते हैं।

पर इतनी अधिक चर्चा के पीछे की वजह क्या है?

महाकुंभ का आयोजन तो कांग्रेस और सपा के कार्यकाल में भी होता था...

पर इतना विशाल और भव्य नहीं। क्यों? आखिर क्यों? 

तो उसकी सिर्फ़ और सिर्फ़ एक ही वजह है, और वो है, सोच के फ़र्क की...

महाकुंभ महोत्सव - सोच का फ़र्क




कांग्रेस के काल में, महाकुंभ महोत्सव पर पहुंचने पर tax लगता था। आयोजन की सुव्यवस्था और सुरक्षा से उनका कोई लेना-देना ही नहीं होता था। 

उनके सोच में न तो, सनातन संस्कृति का महत्व था और न ही साधु-संत लोगों की कोई कद्र... 

नतीजा, महाकुंभ के विषय में विदेश तो क्या, देश में भी लोग बहुत अधिक नहीं जानते थे...

फिर आया, सपा का काल...

जिन्होंने राम मंदिर निर्माण न होने देने के लिए कार सेवकों को जेल भेज दिया और उस धार्मिक कार्य में, न जाने कितने लोगों की मृत्यु हो गई...

आपको लगता है कि वो समझते थे, महाकुंभ की महत्ता को?....

चलिए जब बात आई है, तो बताते हैं आपको...

महाकुंभ महोत्सव, सनातन संस्कृति का बहुत बड़ा महोत्सव होता है। अतः उसके आयोजन की सुरक्षा और व्यवस्था सुचारू रूप से हो, इसके लिए लगभग एक वर्ष का अथक प्रयास और परिश्रम चाहिए होता है।

पर सपा के काल में देखा जाए तो, उनका प्रयास कांग्रेस से तो काफ़ी हद तक ठीक था, पर पूर्णतः उचित कहना न्याय संगत नहीं होगा ।

उन्होंने जनवरी में होने वाले, इतने बड़े आयोजन की सुव्यवस्था का प्रारंभ करने के लिए नवम्बर में अनुमति दी और उससे भी बड़ी बात कि इस आयोजन का प्रमुख बनाया आज़म खां को...

यह कोई सामान्य आयोजन नहीं था कि उसका संचालन किसी ऐसे हाथों में सौंप दिया जाए, जिसको सनातन का स तक न पता हो।

जिसे न तो यह पता हो कि महाकुंभ क्यों कराया जाता है, न ही पता हो, मकरसंक्रांति, मौनी अमावस्या और बसंत पंचमी की विशेषता का...

उसे क्या मतलब, साधु-संत लोग से? और उनके क्रिया कलापों से...

पूरी सुरक्षा व्यवस्था के लिए चंद गोताखोर ही रखे गये थे, और क्या-क्या हुआ, वो तो क्या ही कहें। 

हां, क्या नहीं हुआ, वो जरूर से बता देते हैं। एक तो अखिलेश यादव, एक दिन भी नहीं गये अपने कार्यालय के महाकुंभ महोत्सव में और दूसरा है महाकुंभ महोत्सव के सुयश की देश-विदेश में चर्चा नहीं हुई....

इस बार की सुव्यवस्था की चर्चा तो संपूर्ण विश्व में ही हो रही है, फिर चाहे बात हो रही हो, देश-विदेश से आने वाले लोगों की, या महाकुंभ महोत्सव की भव्यता और दिव्यता की...

वहां की सुरक्षा व्यवस्था की, या वहां उपस्थित साधु-संत लोगों की अखंडता की...

वहां मिल रहे पुन्य की या वहां पर व्यापार या सेवा देने वाले लोगों के लाभ की...

और यह सब संभव हो रहा है, केवल सोच के कारण...

सनातन संस्कृति के महत्व को समझने के कारण...

साधु-संत लोगों को मान देने के कारण।

अपने देश को समृद्धशाली और विख्यात बनाने की इच्छा रखने के कारण...

जब सोच सही दिशा में होगी तो कार्य भी सही दिशा में ही होगा... सफल होगा, सुव्यवस्थित होगा और संपन्नता, दिव्यता, भव्यता और प्रसिद्धि लाने वाला होगा। 

फिर प्रत्यक्ष को प्रमाण क्या?

जो है सबके सामने है।

बहुत ही विशाल प्रांगण में आयोजन, मुफ़्त से लेकर बहुत महंगी व्यवस्था अर्थात् छोटे स्तर से लेकर बड़े स्तर के लोगों के रहने की, खाने-पीने की व्यवस्था, हर एक की सुचारू सुरक्षा के लिए 300 trained गोताखोर, श्रद्धालुओं को आने-जाने के लिए 50 हज़ार QR code लगाए गए हैं।

इस मेले में 75 हज़ार से ज्यादा पुलिसकर्मी तैनात किए गए हैं, जिसमें जिलाधिकारी (DM) और पुलिस अधीक्षक (SP) भी शामिल हैं।

इन पुलिसकर्मियों के अलावा, कई central agencies और paramilitary forces को भी शामिल किया गया है। साथ ही NSG के commando, special task force, anti-terror squad, NDRF, NCC के commando भी तैनात किए गए हैं।

सदियों से चले आ रहे शाही स्नान और पेशवाई का नाम बदलकर, उसे अमृत स्नान और कुंभ मेला छावनी प्रवेश रखकर उसे और अधिक सनातन संस्कृति से जोड़ दिया।

ऐसा नहीं कि प्रयागराज में बिल्कुल भी परेशानियां नहीं हो रही है, सड़कों में जाम लगना, लोगों से अनाप-शनाप मूल्य की मांग इत्यादि सब चल रहा है वहां...

पर क्या इसमें पूरी तरह सरकार को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है?

इतनी अधिक भीड़ की व्यवस्था, मेला प्रांगण में तो है, पर किसी शहर का क्षेत्रफल तो रातोंरात बड़ा नहीं किया जा सकता है। तो उस असुविधा को समझते हुए ही महाकुंभ के लिए प्रस्थान करना होगा।

जहां तक रही, मनमाने दाम की मांग, तो वो सरासर ग़लत है, क्योंकि यह तो उस शहर के मांग रखने वाले लोगों को सोचना चाहिए, कि उनकी चंद दिनों की कमाई, उनके अपने शहर का किस तरह अपयश कर रही है। 

उनके शहर में इतना बड़ा धार्मिक आयोजन हो रहा है तो कुछ धार्मिक सोच वो भी रख लें, लोगों से उचित दाम की मांग करें, वहां आने वाले लोगों की हर संभव मदद करें, वो भी उचित मापदंडों के साथ...

क्योंकि सरकार ने तो, मेला प्रांगण तक पहुंचने के लिए मुफ्त बस सेवा दी हुई है। पर सब तो उससे नहीं पहुंच सकते हैं।

जब सोच बड़ा करने की है, तो सोचना सही दिशा में हर एक को होगा।

हर एक को सनातन संस्कृति और देश की ख्याति को सर्वप्रथम रखकर एक साथ आगे बढ़ना होगा, तभी हमारा देश सर्वश्रेष्ठ बनेगा।

जय भारत, जय सनातन 🚩

Sunday, 2 February 2025

India's Heritage : बसंत पंचमी पर्व

आज बसंत पंचमी पर्व है। इस शुभ पर्व पर आप सभी को विशेष शुभकामनाएं 💐 

कभी आपके मन में आता होगा कि बसंत की पंचमी तिथि इतनी विशेष क्यों है, कि इस दिन को विशेष पर्व का स्थान दिया गया है?

चलिए, मां सरस्वती के आशीर्वाद के साथ ही आज का article शुरू करते हैं। मां सरस्वती का आशीर्वाद ही क्यों? वो भी बताते हैं आपको... 

आरंभ उससे करते हैं, जिस का अनुभव प्रत्येक इंसान ने किया है, जिसे सबने देखा है, जो प्रत्यक्ष है...

बसंत पंचमी पर्व


1) प्राकृतिक सौंदर्य :

भारत में पूरे साल को जिन छह ऋतुओं में बाँटा जाता था, उनमें वसंत लोगों का सबसे प्रिय मौसम होता है। और प्रिय मौसम होने के विभिन्न कारण हैं।

तब फूलों पर बहार आ जाती है, खेतों में सरसों का फूल, ऐसा प्रतीत होता है मानो सम्पूर्ण धरती पर सोना चमक रहा हो, जौ और गेहूँ की बालियाँ खिलने लगती है, आम के पेड़ों पर बौर आ जाती है और हर तरफ रंग-बिरंगी तितलियाँ मँडराने लगती हैं। फूल-फूल भंवरे भंवराने लगते हैं। 

ऐसा प्रतीत होता है मानो प्रकृति अपना सोलह श्रृंगार कर नवयौवना सी इठला रही हो। हर ओर सौन्दर्य ही सौन्दर्य दृष्टिगोचर होता है।

अतः वसंत ऋतु का स्वागत करने के लिए माघ महीने के पाँचवे दिन पर एक बड़ा उत्सव मनाया जाता था, जिसमें सरस्वती माता, भगवान विष्णु और कामदेव जी की पूजा होती है, और यह वसंत पंचमी का त्यौहार कहलाता था।


2) माँ सरस्वती की पूजा :

मां सरस्वती विद्या, बुद्धि, ज्ञान और विवेक की देवी हैं। दूसरे शब्दों में मनुष्यों को अज्ञानता रूपी अंधकार से निकाल कर ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर ले जाने वाली देवी... जो अंधकार से प्रकाश में ले जाएं, वो ही सर्वश्रेष्ठ है। 

धार्मिक मान्यतानुसार बसंत पंचमी के दिन ही मां सरस्वती का प्राकट्य हुआ था। 

यही कारण है कि बसंत ऋतु की पंचमी तिथि इतनी विशेष है और माता सरस्वती की पूजा इस दिन की जाती है। भारत में कुछ स्थानों में मां सरस्वती के सम्मान में इसे सरस्वती पूजा भी कहा जाता है।

क्योंकि मां सरस्वती का दिन है, तो ज्ञान, विद्या, बुद्धि, और विवेक का भी दिन है, अर्थात् गुरु पूजन का भी दिन है। इसलिए जिस जगह भी गुरु की महत्ता ही सर्वोच्च है, उन सब जगह पर बसंत पंचमी पर्व, सबसे विशेष पर्व के रूप में पूजा जाता है।


3) बसंत पंचमी का दिन :

बसंत पंचमी को बसंत ऋतु के आगमन के रूप में भी देखा जाता है। इस वर्ष पंचांग के अनुसार, माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि की शुरुआत 2 फरवरी की सुबह 9 बजकर 14 मिनट पर हो रही है और इस तिथि का समापन अगले दिन 3 फरवरी सुबह 6 बजकर 52 मिनट पर हो जाएगी।


4) बसंत पंचमी पर्व :

बसंत पंचमी को श्री पंचमी या सरस्वती पूजा के नाम से भी जाना जाता है। यह हिन्दूओं का विशेष पर्व है। 

इस दिन विद्या की देवी सरस्वती, कामदेव और विष्णु की पूजा की जाती है। यह पूजा विशेष रूप से भारत, बांग्लादेश, नेपाल और कई राष्ट्रों में बड़े उल्लास से मनायी जाती है। इस दिन पीले रंग का विशेष महत्व होता है।

अतः माँ का श्रृंगार पीला, जो पुष्प अर्पित किए जाते हैं वो पीले, भक्तगणों के वस्त्र पीले और चढ़ने वाला प्रसाद भी पीला, जैसे मीठे चावल, बूंदी, मोतीचूर के लड्डू, इत्यादि और भोजन में भी पीला खाना बनाया जाता है, जैसे तहरी, मसाला भात, कढ़ी चावल इत्यादि....

शास्त्रों में बसंत पंचमी को ऋषि पंचमी से उल्लेखित किया गया है, तो पुराणों-शास्त्रों तथा अनेक काव्यग्रंथों में भी अलग-अलग ढंग से इसका चित्रण मिलता है। 

बसंत पंचमी होलिका और होली की तैयारी की शुरुआत का भी प्रतीक है, जो चालीस दिन बाद होती है। पंचमी पर वसंत उत्सव (त्योहार) वसंत से चालीस दिन पहले मनाया जाता है, क्योंकि किसी भी मौसम का संक्रमण काल ​​40 दिनों का होता है और उसके बाद, मौसम पूरी तरह खिल जाता है। 


5) बसंत पंचमी पूजन मंत्र :

बसंत पंचमी पर्व में सभी बच्चों को माता सरस्वती का आशीर्वाद प्राप्त हो, अतः उनके साथ आप, मां सरस्वती का पूजन इन मंत्रों के साथ अवश्य कराएं :

या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।


अगर बच्चे कर सकें, तो इस स्तुति से भी मां सरस्वती का पूजन कर सकते है: 

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता

या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।

या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता

सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥ 1॥ 

शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं

वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्‌।

हस्ते स्फाटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्‌

वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्‌॥2॥

जिसका हिन्दी में अनुवाद कुछ इस प्रकार से है : 

जो विद्या की देवी भगवती सरस्वती कुन्द के फूल, चंद्रमा, हिमराशि और मोती के हार की तरह धवल वर्ण की है और जो श्वेत वस्त्र धारण करती है, जिनके हाथ में वीणा-दण्ड शोभायमान है, जिन्होंने श्वेत कमलों पर आसन ग्रहण किया है तथा ब्रह्मा विष्णु एवं शंकर आदि देवताओं द्वारा जो सदा पूजित हैं, वही संपूर्ण जड़ता और अज्ञान को दूर कर देने वाली सरस्वती हमारी रक्षा करें...

जिनके शरीर की कांति समस्त दिशाओं में बिखरती है, अपनी छवि से जिसने शिव सागर को भी अपना दास बना लिया है. मंद मुस्कान से जिसने शरद ऋतु के चंद्रमा को भी फीका कर दिया है. ऐसी श्वेत कमल के आसन पर विराजमान हे सुंदरी सरस्वती मैं आप की वंदना करता हूं।


इसी के साथ ही अपनी कलम को विराम देते हैं। मां सरस्वती के आशीर्वाद से आप सभी का जीवन सुखद और उज्जवल रहे 🙏🏻 

Saturday, 1 February 2025

India's Heritage : प्राकट्य, माँ सरस्वती का

प्राकट्य, माँ सरस्वती का


बात उस समय की है जब ब्रह्मा जी ने सृष्टि का निर्माण किया।

पेड़-पौधे, पशु-पक्षी आदि बनाने के पश्चात् उन्होंने मनुष्य की रचना की...

जब सम्पूर्ण सृष्टि का निर्माण हो गया, तो वह धरती पर भ्रमण करने के लिए आए।

उन्हें अपनी हर कृति पर बहुत नाज़ हो रहा था। लहलहाती हुई प्रकृति, झूमते हुए पशु-पक्षी, सब वैसे ही थे, जैसी उन्होंने कल्पना की थी।

अंत में वो वहां गए, जहां मनुष्य थे। पर मनुष्यों को देख कर उन्हें बहुत ही ग्लानि हुई। 

क्योंकि मनुष्य को बनाकर उन्हें लगा था कि उन्होंने बहुत ही सर्वश्रेष्ठ कृति की रचना की है, पर ऐसा कुछ नहीं था। क्योंकि मनुष्यों और पशुओं में कोई विशेष अंतर नहीं था।

मनुष्य भी पशुओं के समान ही बुद्धिहीन और मूकबधिर सा प्रतीत हुआ...

क्षुब्ध होकर ब्रह्म देव, वापस ब्रह्मलोक में लौट आए।

उन्हें व्यथित देखकर भगवान श्री हरि बोले, “हे ब्रह्म देव! आप के दुःख का निवारण आपके अंदर ही निहित है।”

श्री हरि के इतना कहते ही ब्रह्म देव ने आह्वान किया तो एक अत्यन्त तेज़ और ओज से परिपूर्ण श्र्वेत वस्त्र को धारण किए हुए हंस पर विराजमान देवी प्रकट हुई। उनके हाथों में वीणा और अक्ष माला थी।

ब्रह्म देव, उन्हें देख कर बहुत प्रसन्न हुए।‌ देवी का रूप और गुण देखकर उनका नाम माता सरस्वती रखा गया।

भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु की आज्ञा का पालन करते हुए, सरस्वती माता ने धरती पर विचरण किया, और सभी मनुष्यों को वो प्रदान किया जो उन्हें पशु प्रवृत्ति से भिन्न करती थी। अर्थात् उनके भीतर ज्ञान और विवेक का संचार किया।

मनुष्य के अंदर का ज्ञान और विवेक ही है, जो मनुष्य को मनुष्य बनाता है। अर्थात् देवी सरस्वती के प्राकट्य के पश्चात् ही मनुष्य को अपना अस्तित्व मिला।

मां सरस्वती को अपने अस्तित्व को प्रदान करने के लिए, उनका पूजन, ध्यान करना। पीला प्रसाद तैयार करना, पीले पुष्प अर्पित करना पीले वस्त्र धारण करना... बस यही है, बसंत पंचमी पर्व का त्यौहार... और यही है कारण है कि बसंत पंचमी पर्व को सनातन धर्म में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।

Wednesday, 29 January 2025

India's Heritage : अमृत स्नान - मौनी अमावस्या

महाकुंभ महोत्सव अपने चरम पर है। फिर चाहे वहां हो रहे विभिन्न क्रियाकलापों की बात हो, वहां इकट्ठा भीड़ की बात हो, वहां हो रहे लोगों के लाभ की बात हो या आने वाले अमृत स्नान की बात हो... 

प्रयागराज अपने अलग ही स्वरूप में नजर आ रहा है। 

चलिए, जब बात चल ही रही है, तो आपको आज के दूसरे स्नान के विषय में सम्पूर्ण जानकारी दे देते हैं। 

अमृत स्नान - मौनी अमावस्या 


कब होगा दूसरा स्नान? क्या है स्नान के शुभ मुहूर्त? मौनी अमावस्या में मौन रहने का कारण? क्या खासियत है इस दिन डुबकी लगाने में? क्या हैं मौनी अमावस्या व्रत के नियम?


1) महाकुंभ 2025 - दूसरा शाही स्नान :

महाकुंभ 2025 का दूसरा शाही स्नान 29 जनवरी 2025 मौनी अमावस्या के दिन होगा। हिंदू पंचांग के अनुसार, अमावस्या तिथि 28 जनवरी की शाम 7:35 बजे शुरू होकर 29 जनवरी की शाम 6:05 बजे खत्म होगी। ऐसे में उदया तिथि के हिसाब से स्नान 29 जनवरी को किया जाएगा। इस दिन संगम पर भारी भीड़ उमड़ने की उम्मीद है। आपको बता दें कि इसके बाद तीसरा शाही स्नान 3 फरवरी 2025 को बसंत पंचमी के दिन किया जाएगा।


2) स्नान-दान का शुभ मुहूर्त :

हिंदू धर्म में मौनी अमावस्या के दिन स्नान-दान का बेहद महत्व है। हिंदू पंचांग के अनुसार, 29 जनवरी को ब्रह्म मुहूर्त सुबह 5:25 बजे से 6:19 बजे तक रहेगा। ऐसे में इस दौरान स्नान और दान को बेहद शुभ माना गया है। अगर इस समय में स्नान नहीं कर पाएं, तो सूर्योदय से सूर्यास्त तक कभी भी स्नान और दान कर सकते हैं।


3) मौन रखने का कारण :

मौनी अमावस्या के दिन मौन व्रत रखने का विधान है। साधक इस दिन मौन रहकर व्रत करते हैं, जो मुख्यतः आत्मसंयम और मानसिक शांति के लिए किया जाता है। यह व्रत साधु-संतों के द्वारा भी किया जाता है, क्योंकि मौन रहकर मन को नियंत्रित करना और ध्यान में एकाग्रता लाना सरल हो जाता है। शास्त्रों के अनुसार, मौन व्रत से व्यक्ति के भीतर आध्यात्मिक उन्नति होती है। इसके माध्यम से वाणी की शुद्धता और मोक्ष की प्राप्ति संभव है। यह व्रत आत्मिक शांति और साधना में गहराई लाने का एक सशक्त माध्यम है। 

और साधु-संत लोग की महान उपलब्धि होती है, वाणी की शुद्धता, आत्मिक शांति और साधना में गहराई लाने, तथा उनकी साधना तब पूर्ण समझी जाती है, जब मोक्ष की प्राप्ति संभव हो। तो बस यह व्रत एक सशक्त माध्यम है, उसी महान उपलब्धि का...


4) डुबकी लगाना क्यों खास :

मौनी अमावस्या का दिन खास इसलिए है, क्योंकि ऐसा कहा जाता है कि इस दिन पितृ धरती पर आते हैं। अगर इस दिन संगम में स्नान के साथ पितरों का तर्पण और दान किया जाए, तो उनकी आत्मा तृप्त होती है और उन्हें मोक्ष मिलता है। इससे पितृ दोष से मुक्ति मिलती है और परिवार पर पितरों का आशीर्वाद बना रहता है। सिर्फ पितरों के लिए ही नहीं, मौनी अमावस्या का स्नान हर व्यक्ति के लिए खास माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन गंगा में डुबकी लगाने से सारे पाप धुल जाते हैं। यह दिन आत्मिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। 


मौनी अमावस्या का व्रत हर वर्ष माघ मास की अमावस्या तिथि पर रखा जाता है। इसे माघी अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है। वर्ष 2025 में यह व्रत 29 जनवरी को रखा जाएगा, और इसी दिन महाकुंभ मेले में दूसरा अमृत स्नान भी होगा। धार्मिक ग्रंथों में अमावस्या तिथि को अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। यह दिन गंगा स्नान, दान और पितरों की पूजा के लिए समर्पित होता है। प्रत्येक अमावस्या का अपना विशेष महत्व होता है, लेकिन मौनी अमावस्या को इनमें सबसे खास माना गया है। इस दिन मौन रहकर व्रत करने की परंपरा है। इसे जप, तप और साधना के लिए सबसे उपयुक्त समय माना गया है।


5) मौनी अमावस्या व्रत के नियम :

  • इस दिन प्रातःकाल गंगा स्नान करना आवश्यक है। यदि गंगा स्नान संभव न हो, तो पवित्र नदी के जल से स्नान करने का प्रयास करें।
  • पूरे दिन मौन रहकर ध्यान और जप करें।
  • व्रत के दौरान किसी प्रकार का बोलना वर्जित है। तिथि समाप्त होने के बाद व्रत पूर्ण करें।
  • व्रत खोलने से पहले भगवान राम या अन्य इष्ट देव का नाम अवश्य लें।

तो अब आपको पता चल गया होगा कि मौनी अमावस्या क्यों इतनी विशेष होती है और क्यों मौनी अमावस्या पर किए जाने वाला अमृत स्नान सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है।

Tuesday, 28 January 2025

Recipe : Maharashtrian Palak Dal Bhaji

शरद ऋतु चल रही है, और इस ऋतु में सब्जियों की बहार होती है।

उनसे बनने वाली dishes जितनी tasty होती हैं, उतनी ही healthy भी...

तो आज एक ऐसी ही मराठी recipe share कर रहे हैं, जो healthy होने के साथ ही tasty भी होती है।

और for a change, एक अच्छा option भी है... इसका मराठी नाम, 'पालकाची पातळ भाजी' है, means पालक की दाल भाजी...

महाराष्ट्रीयन पालक दाल भाजी




I. Ingredients :

  • Spinach leaves - 250 grams
  • Gram pulses - handful
  • Ground nut - handful 
  • Jaggery -  1" (cubic)
  • Buttermilk - 1 cup
  • Gram flour - 1 tbsp.
  • Clarified butter (ghee) - 2 tbsp.
  • Green chilli - 2 or as per taste 
  • Garlic cloves - 4 to 6
  • Ginger - 1"
  • Cumin seeds - 1 tsp.
  • Asafoetida - ½ tsp.
  • Turmeric powder - ½ tsp.
  • Salt - as per taste 


II. Method :

  1. चना दाल और मूंगफली को 3 to 4 hours के लिए भिगो दें।
  2. पालक को लम्बा-लम्बा महीन काट लें। 
  3. छाछ में बेसन मिलाकर अच्छे से mix कर लीजिए।
  4. Pressure cooker में पालक, चना दाल, मूंगफली, नमक, हल्दी, 1 cup पानी डालकर 2 high flame पर, और 1 slow flame पर whistle लगा लीजिए।
  5. जब cooker का pressure down हो जाए, तो उसमें छाछ-बेसन का घोल डालकर अच्छे से mix करके 2 boil आने तक पका लीजिए। 
  6. अब इसमें गुड़ का ढेला डालकर गलने तक मिला दीजिए।
  7. अदरक-लहसुन और हरी मिर्च को कूट लें। 
  8. एक wok में घी डालकर गर्म कीजिए।
  9. अब इसमें हींग और जीरा डालकर चटकाएं।
  10. फिर इसमें अदरक-लहसुन, हरी मिर्च का paste डालकर भून लें। 
  11. तैयार छौंक को पालक दाल भाजी में डाल दीजिए।

गर्मागर्म पालक दाल भाजी को चावल के साथ enjoy कीजिए।


III. Tips and tricks :

  • चने की दाल और मूंगफली को भिगोकर रखें, इससे यह जल्दी गल जाते हैं।
  • इस recipe में चने की दाल थोड़ी खड़ी रखी जाती है, पर अगर आप को चने की ठीक से गली हुई दाल पसंद है तो slow flame पर 2 to 3 whistle लगा लीजिएगा।
  • Maharashtrian cuisine की recipe है, इसलिए इसमें मूंगफली, छाछ और गुड़ डाला जाता है, अगर आप को कोई खास ingredients न पसंद हो तो discard कर सकते हैं। वैसे authentic flavour, यह सब डालकर ही आएगा।
  • अगर आप लहसुन नहीं खाते हैं तो उसे avoid कर सकते हैं।
  • आप अपने taste के according मिर्च घटा-बढ़ा सकते हैं, चाहे तो हटा भी सकते हैं। 
  • हमारे यहां कुछ लोग तीखा नहीं खाते हैं, इसलिए हमने हरी मिर्च‌ नहीं कूटी थी, बल्कि boil करते समय डाली थी।
  • Boiled हरी मिर्च को serve करते समय केवल उन servings में mash करके डाल दें, जिन्हें तीखा पसंद है।
  • इसमें किसी भी तरह के dry मसाले नहीं पड़ते हैं, सारा flavour fresh ingredients से आता है, जो इसको बहुत ही unique taste देता है। एक बार जरूर से बना कर खाएं...

Sunday, 26 January 2025

Poem : ऐ देश, तेरे सम्मान में हम

ऐ देश, तेरे सम्मान में हम


ऐ देश, तेरे सम्मान में हम,

नित-नित शीश झुकाते हैं।


है गंगा, जमुना, सरस्वती यहाँ,

गोदावरी, नर्मदा, कावेरी यहाँ।

इन नदियों के पावन जल का,

सानिध्य हमेशा पाते हैं।।


ऐ देश, तेरे सम्मान में हम,  

नित-नित शीश झुकाते हैं।


हिमराज हिमालय का साया,

रोके रिपु की काली छाया।

कल-कल बहता सागर का जल,

सुख-संपदा हमें दिलाते हैं।।


ऐ देश, तेरे सम्मान में हम,

 नित-नित शीश झुकाते हैं।


राम और कृष्ण की जन्मस्थली,

संस्कारों से अभिसिंचित है।

इसलिए ही हम भारतवासी, 

स्वतः संस्कारी हो जाते हैं।।


ऐ देश, तेरे सम्मान में हम,

 नित-नित शीश झुकाते हैं।


वीर शिवाजी, झांसी की रानी, 

अमर स्वतंत्रता के सेनानी। 

इनके शौर्य की कथा सुनकर,

ओज से हम भर जाते हैं।। 


ऐ देश, तेरे सम्मान में हम, 

नित-नित शीश झुकाते हैं।


अध्यात्म, ज्ञान और विज्ञान, 

भारत का सबमें सर्वोच्च स्थान। 

यह सोच-सोच, हम भारतवासी,

गौरवान्वित हो जाते हैं।।


ऐ देश, तेरे सम्मान में हम,

 नित-नित शीश झुकाते हैं।


हर क्षण प्रयत्न हमारा यही रहे,

विश्व विजयी भारत बने।

गणतंत्र दिवस के पावन पर्व पर,

हम प्रण यही उठाते हैं। 


ऐ देश, तेरे सम्मान में हम,

 नित-नित शीश झुकाते हैं।।


🇮🇳 आप सभी को 76वें गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ 🇮🇳

Friday, 24 January 2025

Poem: सेल - एक राष्ट्र निर्माता

सेल - एक राष्ट्र निर्माता 



सेल सबकी जिंदगी से जुड़ा 

हमारी तो जिंदगी है सेल 

देता है यह दृढ़ता भारत को

हमारी तो बंदगी है सेल 


देश की आन है सेल

देश की शान है सेल 

 हम हैं सेल से

हमारी पहचान है सेल


केवल इस्पात नहीं 

ज़िन्दगी भी सजाती है सेल 

हर कमजोर को सुदृढ़

बनाती है सेल


यह एक कम्पनी नहीं

है एक राष्ट्र निर्माता सेल

गौरवान्वित हो जाता है वो 

जिससे जुड़ जाता है सेल 


सभी को सेल के निर्माण दिवस पर विशेष शुभकामनाएं 🎉 💐


Thursday, 23 January 2025

Article : नेताजी का भारत

आज नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की 128वीं जयंती है। तो आज इसी उपलक्ष्य में जानते हैं कि कौन थे नेताजी, और आखिर ऐसी क्या विशेषता थी उनमें, जो उन्हें सबसे पृथक करती है।

'नेताजी सुभाष चन्द्र बोस', यह वो अमर नाम है, जिसने भारत को एक बार पुनः भारत बनने का सम्मान दिया था।

आप जानना चाहते हैं कि हमारे यह कहने का क्या आशय है?

नेताजी का भारत


नेताजी ही वे स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने अंग्रेजों को बाध्य कर दिया था, भारत को स्वतंत्र करने के लिए। उनके साहस, सूझ-बूझ और सशक्त देशों से मैत्री सम्बन्ध ही तो थे, जिन्होंने 190 वर्षों के अंग्रेजी शासन को घुटनों पर ला दिया था।

कुटिल नीति और क्रूरता की प्रतिमा थे अंग्रेज...

उनके पंजों से भारत का निकलना असंभव होता, यदि भारत के वीर स्वतन्त्रता सेनानी, सुभाष चन्द्र बोस न होते।

सुभाष चंद्र बोस, जितने वीर और साहसी थे, उतने ही चतुर और सशक्त भी थे। भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के करिश्माई नेता और प्रेरक व्यक्तित्व के धनी नेताजी सुभाष चंद्र...

क्या आपको लगता है कि अंग्रेज़ सरकार केवल सत्य और अहिंसा के आगे घुटने टेक देती?

नहीं, बिल्कुल भी नहीं...

नेताजी की सशक्त आज़ाद हिन्द फौज, जापान और जर्मनी जैसे सशक्त देशों से मैत्री सम्बन्ध ही थे, जिन्होंने अंग्रेजों को बाध्य कर दिया घुटने टेकने के लिए...

अगर आप ध्यान देंगे, तो आपको समझ आएगा कि भारत को आजादी, द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् मिली है। 

उस समय जर्मनी और जापान जैसे देश सबसे सशक्त देशों में शामिल थे।

ब्रिटिश की हार निश्चित थी, उन्होंने सुभाष चन्द्र बोस से मदद मांगी, कि वो अपनी आजाद हिन्द फौज को सहायता के लिए भेजे और साथ ही जापान और जर्मनी से उन्हें बचाएं।

हमारे देश भक्त नेता जी ने इसके बदले में सिर्फ और सिर्फ एक ही चीज़ मांगी, और वो थी भारत देश की आजादी...

अंग्रेज़ सरकार समझ चुकी थी कि उन्हें अपनी रक्षा के लिए नेता जी की बात अवश्य माननी होगी। और बस वही वो पल था, जब भारत 190 साल से जकड़ी हुई गुलामी की जंजीर को तोड़ सका, एक बार पुनः भारत बनने की ओर अग्रसर हो सका।

उनके उसी अथक प्रयास को यदि हमें सच्ची श्रद्धांजलि देनी है, तो हमें भारत को उनके सपनों का भारत बनना होगा।

नेताजी के सपनों का भारत एक ऐसा राष्ट्र था, जहाँ स्वराज हर हृदय की धड़कन बन जाए और आत्मनिर्भरता हर हाथ की शक्ति...

उनका भारत स्वतंत्रता का एक ऐसा दीप था, जो प्रत्येक नागरिक को स्वाभिमान और आत्मविश्वास से रोशन करे...

वे एक ऐसे देश की कल्पना करते थे, जो अपनी संस्कृति, परंपरा और विज्ञान में अग्रणी हो, जहाँ हर व्यक्ति अपने सामर्थ्य से राष्ट्र निर्माण में योगदान दे, और भारत विश्वगुरु बनकर शांति, प्रगति और न्याय का संदेश फैलाए... 

सरकार द्वारा 2021 में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयन्ती से पहले इस दिवस को पराक्रम दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की गयी थी। 

Wednesday, 22 January 2025

Article : राम मंदिर वर्षगांठ

याद है, आपको 22 January 2024 का वो पावन दिन...

आज ही के दिन, पूरा भारतवर्ष राममय हो गया था...नहीं, नहीं यह कहना पूर्ण संगत नहीं होगा, बल्कि यह कहा जाए, सम्पूर्ण विश्व में जहां-जहां भी रामभक्त हैं, वो कोना-कोना राममय हो गया था। 

अर्थात् 22 जनवरी 2024 में सम्पूर्ण विश्व राममय हो गया था, अगर यह कहा जाए, तो भी अतिशयोक्ति नहीं होगी...

आज राम मंदिर में प्रभु श्री राम की मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा हुए एक वर्ष पूर्ण हो गया है। 

प्रभु श्री राम के श्री चरणों में कोटि-कोटि प्रणाम... 

चलिए देखते हैं कि राम मंदिर निर्माण, जिसमें करोड़ों रुपए खर्च कर दिए गए, उनका लेखा-जोखा क्या है?

किसी भी बड़े निर्माण में करोड़ों रुपए खर्च होते ही हैं, तो क्या सरकार ने जनता के ही करोड़ों रुपए खर्च कर दिए, या खर्च किए गए रुपयों में किसी और की भी भागीदारी रही है? 

और एक बात भी बहुत से लोगों के मन में प्रश्न बनकर उभर रही होगी कि क्या राम मंदिर निर्माण से सिर्फ आस्था ही सिद्ध हो रही होगी या कुछ अन्य लाभ भी हुआ है?

क्योंकि खर्च की गई राशि की बात सुनते ही फिर से school, college and hospital की बात आरंभ कर दी जाएगी।

तो विश्वस्त सूत्रों से जानकारी एकत्र कर के आप के सभी प्रश्नों के उत्तर दे रहे हैं...

राम मंदिर वर्षगांठ


1) राम मंदिर निर्माण पर हुआ व्यय :

रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र trust ने बताया कि भक्तों से रामलला के दरबार में एक साल में 363 करोड़ 34 लाख रुपये प्राप्त हुए।

यह अलग-अलग मदों से भक्तों ने दान के रूप में मंदिर में पेश किए हैं। 

इसके साथ ही एक साल में राम मंदिर और उसके परिसर में 776 करोड़ रुपये निर्माण में खर्च हुए हैं। केवल मंदिर निर्माण की बात करें तो इसमें 540 करोड़ रुपये का खर्चा एक साल में आ चुका है।


2) भक्तों द्वारा दिया गया दान :

राम मंदिर trust के महासचिव चंपत राय ने वित्तीय वर्ष के आयव्यय का लेखाजोखा सार्वजनिक करते हुए बताया कि एक साल में मंदिर को दान के रूप में 363 करोड़ 34 लाख रुपये मिले। इनमें trust के दान पत्र में 53 करोड़ रुपये, रामलला की हुंडी में 24.50 करोड़, रामलला को online 71.51 करोड़ रुपये मिले हैं। इसके अलावा विदेशी राम भक्तों ने रामलला को 10.43 करोड़ रुपये का दान दिया। 

यह तो हुई रुपयों की बात, इसमें आपको अच्छे से पता चला होगा कि केवल सरकार द्वारा ही नहीं बल्कि, देश और विदेश से भी भक्तों ने दिल खोलकर दान दिया है। 

अब प्रश्न एक और उठता है कि, मंदिरों में रूपयों के साथ अथाह मात्रा में सोना-चांदी भी चढ़ावे के रूप में चढ़ती है, फिर क्या राममंदिर में ऐसा कुछ नहीं चढ़ा? 

बिल्कुल चढ़ा है, और कितना वो भी बताते हैं...


3) सोना-चांदी का दान :

Trust ने जानकारी देते हुए बताया कि 4 वर्षों में राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र trust को 1300 kilograms चांदी और 20 kilograms सोना राम भक्तों ने रामलला को समर्पित किया है।

उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री राष्ट्रीय आपदा कोष के नाम से 2100 करोड़ रुपये का cheque प्राप्त हुआ है। 

1 अप्रैल 2024 से 31 मार्च 2025 तक मंदिर के निर्माण में 670 करोड़ रुपए खर्च करने का प्रस्ताव pass किया गया है। 

चलिए, राम मंदिर निर्माण में होने वाले खर्च, और दान के विषय में तो जान लिया। 

अब दूसरी बात भी जान लेते हैं, जो बहुत से लोगों के मन में प्रश्न बनकर उभर रही होगी कि क्या राम मंदिर निर्माण से सिर्फ आस्था ही सिद्ध हो रही है या कुछ अन्य लाभ भी हुआ है? 

अयोध्या को राम मंदिर बनने से क्या लाभ हुआ है?


4) राम मंदिर निर्माण से अयोध्या पर प्रभाव : 

उत्तर प्रदेश के अयोध्या में राम मंदिर बनने के बाद यहाँ के स्थानीय लोगों की प्रति व्यक्ति आय बढ़ी है। प्रदेश की GDP में जिले की हिस्सेदारी तेजी से बढ़ रही है।

श्री राम मंदिर के कारण अयोध्या को वैश्विक पहचान मिली है। इसीलिए अयोध्या के विकास का पूरा ताना-बाना श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के इर्द-गिर्द घूमता है। 

राम मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा के बाद देशभर से रोजाना डेढ़ से दो लाख लोग अयोध्या आ रहे हैं। भक्त एक से दो दिन अयोध्या में बिताते हैं। इससे अयोध्या में रोजगार के अवसर बहुत तेजी से बढ़े हैं।

लोग अयोध्या भ्रमण के दौरान होटलों में रुकते हैं। स्थानीय सामानों की खरीदारी करते हैं। मंदिरों के दर्शन करते हैं और जाते समय अपने साथ कुछ न कुछ ले जाते हैं, चाहे वह राम मंदिर का model हो, प्रसाद के रूप में मिठाई या श्री राम ध्वज...

संक्षेप में समझें तो अयोध्या का कायाकल्प हो गया है।


अब आप के सभी प्रश्नों के उत्तर मिल गये होंगे और शायद यह भावना भी बलवती हो गई होगी कि मंदिर निर्माण, उस शहर, उस प्रदेश और देश के विकास का द्योतक है...

राम मंदिर निर्माण की वर्षगांठ की सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ, प्रभू श्री राम हम सब पर सदैव अपनी कृपा दृष्टि बनाए रखें 🙏🏻

जय श्री राम 🚩

Tuesday, 21 January 2025

Article : Kho-Kho World Cup

भारत में sports field में दिन-प्रतिदिन नए-नए कीर्तिमान स्थापित हो रहे हैं, जो हमारे देश को गौरवान्वित कर रहे हैं।

और बात तब और हर्षित करती है, जब हमारे युवा खिलाड़ी, फिर चाहे men's segment की बात हो, या women's segment की, विश्व विजयी घोषित हो रहे हों।

अभी हाल ही में chess में यह कमाल कर दिखाया था और अब वही कमाल एक बार फिर हमारे खिलाड़ियों ने कर दिया है। 

जी हां, हम बात कर रहे हैं खो-खो प्रतियोगिता की... 

खो-खो वर्ल्ड कप  



भारत ने 13 से 19 जनवरी 2025 तक नई दिल्ली के Indira Gandhi Arena
में आयोजित पहले खो-खो वर्ल्ड कप 2025 में Men's and Women's  दोनों का title  जीतकर इतिहास रच दिया

इस ऐतिहासिक आयोजन में 6 continents के 23 देशों ने भाग लिया था, जिसमें 20 पुरुषों और 19 महिलाओं की teams ने seven-player format का Competition किया... 

इस जीत के साथ ही भारत के एक पुराने पारंपरिक खेल को अंतरराष्ट्रीय खेल का दर्जा मिल गया है...

खो-खो एक Indian field sport है। इस खेल में मैदान के दोनों ओर दो poles के अतिरिक्त किसी अन्य equipment की जरूरत नहीं पड़ती। 

यह एक अनूठा स्वदेशी खेल है, जो युवाओं में vigour और healthy fighting spirit भरने वाला होता है। 

यह खेल chasing करने वाले और self-defenders, दोनों में extreme fitness, skill, speed and energy की demand करता है। खो-खो किसी भी तरह की field पर खेला जा सकता है।

खो-खो ऐसा खेल है, जो हम सब ने ही अपने बचपन में school में जरूर खेला होगा। यह एक ऐसा खेल है जो हमारी मीठी यादों में शामिल है। 

हम लोगों का तो, school days में, 8th class तक कोई दिन ऐसा नहीं जाता था, जब हम लोग खो-खो न खेलें। 

हम सारी सहेलियां इसमें माहिर थीं। सच बहुत अच्छे दिन थे वो...

और यह जानकर बहुत खुशी हुई कि जो खेल हमारे बचपन का अभिन्न अंग है, हमारे खिलाड़ी (men's and women's team) उसमें विश्व विजयी कहलाए। 

भारत का तिरंगा, यूँ ही हर field पर विश्व विजयी बनकर लहराए और हम भारतीय विश्व विजयी कहलाएं...

जय हिन्द, जय भारत 🇮🇳 

Friday, 17 January 2025

India's Heritage : संकष्टी गणेश चतुर्थी

संकष्टी चतुर्थी का मतलब होता है संकटों का नाश करने वाली चतुर्थी। महिलाएं आज अपने बच्चों की सलामती की कामना करते हुए पूरे दिन निर्जला उपवास करती हैं। रात को चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद इस व्रत का पारण किया जाता है। 

संकष्टी चतुर्थी पर बचपन से एक कहानी सुनते आ रहे हैं, जिससे हमें पता चलता है कि प्रभु श्री गणेश जी, भक्तों की किस बात को सबसे अधिक महत्व देते हैं। 

आज उसी कहानी को share कर रहे हैं, शायद आप में से बहुत लोगों के घर में यही कहानी कही जाती हो... गर नहीं सुनी है आपने, तो आप भी यह कहानी सुनें, और साथ ही यह भी कि यह कहानी क्यों कही जाती है...

संकष्टी गणेश चतुर्थी


एक जेठानी और देवरानी थीं। जेठानी माला धनाढ्य, लालची और दुष्ट प्रवृत्ति की स्त्री थी, जबकि देवरानी सुधा गरीब, सरल ह्रदय की, भक्त प्रवृत्ति की स्त्री थी।

क्योंकि देवरानी गरीब थी, तो वो जेठानी के घर पर बर्तन, झाड़ू-पोंछा आदि का काम करती थी।

एक दिन वो काम करके लौट रही थी, तो उसकी नयी पड़ोसन रेखा, तिल धोकर साफ कर रही थी।

सुधा ने रेखा से पूछा कि तिल क्यों धो रही है?

तो रेखा बोली, संकष्टी चतुर्थी व्रत आ रहा है, इसमें गणेश जी के चंद्रभाल रूप की पूजा, व्रत आदि किया जाता है। यह पूजा संतान की लंबी आयु और उनके उज्जवल भविष्य के लिए की जाती है।

उसके लिए ही तिल धोकर साफ कर रही हूँ, जब यह सूख जाएंगे, तब गुड़ के साथ कूट कर इनका प्रसाद बनाऊंगी।

पूजा विधि, और प्रसाद के विषय में जानकारी लेकर सुधा भी तिल, गुड़ ले आई। 

संकष्टी चतुर्थी के दिन सुधा माला को बोल आई कि “दीदी, आज शाम मैं काम पर नहीं आऊंगी।”

दिन भर व्रत रखकर रात को सुधा ने पूजा की तैयारी की व तिल-गुड़ कूटकर उसने प्रसाद तैयार कर लिया। और बहुत ही श्रद्धाभाव से गणेश जी पूजा आरंभ कर दी।

अभी उसे पूजा आरंभ किए हुए आधे घंटे ही हुए थे कि दरवाजे पर दस्तक हुई।

उसने दरवाजा खोला तो सामने एक छोटा-सा बालक खड़ा था।

सुधा को देखते ही वह बालक बोल उठा, माँ बहुत भूख लगी है, कुछ खाने को दे दो...

सुधा ने उसे अंदर आने को कहा, और बोला मेरे पास इस तिलकुट प्रसाद के आलावा, तुम्हें देने को और कुछ नहीं है।

पूजा आरंभ कर दी है, थोड़ी देर में पूर्ण हो जाएगी, तब तुम खा लेना।

वो बालक पूजा समाप्त होने की प्रतीक्षा करने लगा।

पूजा समाप्त होने के बाद सुधा ने उस बालक को प्रसाद दे दिया।

बालक ने धीरे-धीरे कर के बना हुआ पूरा प्रसाद लें लिया।

सुधा के बच्चे उसका मुंह देखते रहे, पर उसने उनकी परवाह किए बिना उस छोटे से बालक को सारा प्रसाद दे दिया...

उस बालक ने पूरा प्रसाद ख़त्म करने के बाद कहा कि अब मुझे पोटी आई है, कहां करूं? 

सुधा को कुछ न सूझा, क्योंकि वो तो घर के बाहर बहुत दूर खेतों पर जाते थे, पर इस नन्हे बालक को रात में कहां ले जाएं... 

उसने घर के एक कोने में उसे पोटी करने को कहा, थोड़ी ही देर में बच्चे ने घर के चारों कोनों में पोटी कर दी।

जब पोटी पोंछने की बात आई तो उसने अपने साड़ी के एक कोने से उसकी पोटी पोंछ दी। 

उस बालक के जाने के बाद सब भूखे पेट सो गए।

सुबह उठे तो उन्होंने देखा कि उनका घर का वो हर कोना जहां उस छोटे से बालक ने पोटी की थी और साड़ी का वो हिस्सा, सोने, चांदी हीरे-जवाहरात की तरह चमक रहे थे।

यह सब देखकर, सभी हर्षित हुए कि कल जो बालक आया था, वो कोई और नहीं, स्वयं गणेश जी थे और वो अपने भक्तों की परीक्षा लेने और अपनी कृपा बरसाने आए थे।

अब सुधा को घर-घर जाकर काम करने की आवश्यकता नहीं थी। जब माला को यह पता चला तो वह सुधा के घर दौड़ी चली आई और सम्पूर्ण जानकारी ली।

उसने अगले वर्ष, अपने घर में संकष्टी चतुर्थी व्रत की बहुत बड़ी व्यवस्था की, तिलकुट प्रसाद के आलावा, बहुत सारी मिठाई पकवान बनवाए। घर का बड़ा हिस्सा खाली कर दिया।

सुबह व्रत रखकर, रात में पूजा अर्चना आरंभ कर दी। पर उसका ध्यान पूजा में ना लगकर पूर्ण रूप से दरवाज़े पर लगा हुआ था।

पूजा आरंभ कर के एक घंटा बीत चुका था, पर दरवाजे पर दस्तक ही नहीं हो रही थी। माला के सब्र का बांध टूट रहा था कि तभी दरवाजे पर दस्तक हुई।

देखा, सामने एक छोटा सा बालक खड़ा था।

आह! आ गये गणेश जी... वो ख़ुशी से झूम उठी

उसने तुरंत उसे अंदर खींच लिया और इसके पहले कि वो कुछ बोलता, ढेरों पकवान उस बालक के मुंह में डालना शुरू कर दिया।

थोड़ी देर में बालक ने कहा कि मेरा पेट भर गया...

पर माला को इतने कम में संतोष नहीं था, उसने सोचा कि ज्यादा खाएगा तो सोना, चांदी , हीरे-जवाहरात सब भी बहुत अधिक बनेंगे।

उसने अब ज़ोर‌ जबरदस्ती के साथ बालक को खिलाना शुरू कर दिया, जब तक बालक ने यह नहीं कह दिया कि उसे पोटी आई है।

माला ने उस बालक से पूरे घर भर में पोटी करवा दी और पोंछने की बात पर अपने माथे और हाथ में पोंछ ली।

जब वो बालक चला गया तो सब सो गए।

सुबह उठकर माला ने देखा, उसका पूरा घर पोटी की बदबू से भर गया था, सब ओर मक्खियां भिनभिना रही थीं। उसके पास से भी बदबू आ रही थी।

उसने पूरे दिन परिवार के साथ घर साफ़ किया, घर तो साफ़ हो गया, पर बदबू थी कि जाने का नाम ही नहीं ले रही थी।

वो उस बदबू से इतनी परेशान हो गयी कि दिनभर पागलों की तरह सफाई करती रहती, पर निजात नहीं मिलती।


इस पूजा को बच्चों के लिए रखा जाता है और इस पूजा के दौरान इस कहानी को सुनाने के पीछे का आशय यह है कि सरलता से बच्चों के मन-मस्तिष्क में यह बात पहुंचाई जाए कि ईश्वर की प्राप्ति उन्हें होती है, जो सरल ह्रदय वाले होते हैं, सच्चे भक्त होते हैं, जिनका ध्यान ईश्वर आराधना में होता है, न कि मोह-माया में, जो ईमानदार और निष्पक्ष होते हैं, जो लालची नहीं होते हैं, जो दूसरे के दुःख, भूख और परेशानी को अपने से पहले हल करते हैं। 

सुधा में वो सारे सद्गुण थे, जिससे गणेश जी प्रसन्न हो गए थे, अतः उन्होंने उसे सब तरह के सुख दे दिए थे। जबकि माला के गुण उसके विपरीत थे, अतः उसके पास सब होते हुए भी छिन गया।

हे श्री गणेश जी महाराज, हम सब से प्रसन्न रहें। हम सब पर अपनी कृपा दृष्टि सदैव बना कर रखें🙏🏻 

जय संकष्टी गणेश चतुर्थी 🙏🏻