Saturday, 6 September 2025

Article : गणपति विसर्जन

आज अनंत चतुर्दशी है। एक विशेष चतुर्दशी...

यूँ तो हर महीने में दो चतुर्दशी आती हैं, फिर भी जो महत्व पूर्णमासी और अमावस्या का होता है, वो चतुर्दशी का नहीं।

लेकिन अनंत चतुर्दशी का अपना विशेष महत्व है, कारण यही दिन गणपति बप्पा जी के विसर्जन का दिन है।

किसी का भी विसर्जन मन को आहत करता है, और शुभ भी नहीं प्रतीत होता है। किन्तु देवी, देवताओं का विसर्जन शुभ ही मानते हैं और पूरे हर्षोल्लास के साथ किया जाता है, इस कामना के साथ कि हे देव और हे देवी, अगले वर्ष भी जल्दी आइएगा और अपने भक्तों पर कृपा बरसाइएगा।

पर आज का यह article एक सोच को और एक परंपरा को बदलने के लिए लिख रहे हैं।

एक सुख के लिए लिख रहे हैं, जो धीरे-धीरे हमारी जिंदगी से विलुप्त होता है।

और हमारे सुख के विलुप्त होने का बहुत बड़ा कारण है हमारा mobile के साथ obsession…

गणपति विसर्जन


जी हाँ, जबसे हमारी जिंदगी में mobile आया है, हम बहुत से सुखों से वंचित होते जा रहे हैं। 

और इसका साक्षात् उदाहरण आज देखने को मिला।

Actually आज hospital गए थे तो वहाँ भी गणेश चतुर्थी में गणेश जी की स्थापना की गई थी और आज अनंत चतुर्दशी है, अतः आज गणेश जी का विसर्जन होना था।

गणेश जी की अति विशाल और बेहद खूबसूरत प्रतिमा को स्थापित किया गया था और आज जब विसर्जन के लिए ले जाया जा रहा था, तो hospital वालों ने तय किया कि hospital के पूरे परिसर में से ले जाते हुए विसर्जन के लिए ले जाया जाए।

जिससे जिस किसी भी भक्त को उनके दर्शन करने हैं या कोई कामना करनी हो, वह कर सके, अतः वो प्रतिमा को हर परिसर में ले कर गए।

पर आपको पता है, हुआ क्या?

वही जो हमेशा होता है...

लोगों ने जैसे ही गणपति बप्पा जी को देखा तो बहुत से लोगों ने दर्शन करने और कामना मांगने के बजाय अपने-अपने mobile उठाए और लगे photo खींचने और video बनाने…

इसका मतलब समझ रहें हैं, जहाँ पहले गणपति बप्पा जी की प्रतिमा को निहार कर मन-मंदिर में बसाकर ईश्वर भक्ति की जाती है, आज वहीं क्षणिक सुख की photo और video बनाना प्रमुख हो गया है।

मत दीजिए, photo और video को इतना महत्व कि जो परम सुख है, उसी से वंचित हो जाएं।

जब भी किसी मंदिर में जाएँ या विशेष स्थान पर हों तो सारा समय photo और video बनाने और उसे social media पर post करने में ही waste मत करें। 

सच्चा सुख उस पल को जीने में है, न कि उन पलों को बस camera में कैद करने में।


गणपति बप्पा जी को नमन करते हैं इसी कामना से कि :

गणपति बप्पा मोरया, पुढच्या वर्षी लवकर या (अगले बरस तू जल्दी आ)।


हे गणपति महाराज, हम सब पर अपनी कृपादृष्टि बनाए रखिएगा 🙏🏻

Friday, 5 September 2025

Poem : Teacher - A Gift of God

On this occasion of Teacher's Day, a little girl, Kashika Srivastava has expressed her feelings towards her teachers through this poem. Let's see what are the emotions of the young generation towards its teachers…

Teacher - A Gift of God


This poem is dedicated, to the teacher god gifted.

The Teacher is a creature, who designs our future.


They want us to be focused and disciplined,

So that each topic of life can be explained.


Two people are always happy on our success,

Our parents and the teacher already addressed.


The teachers' efforts are responsible,

To design our future best suitable.


Teachers are constant in pursuit,

For shaping our future best suit.


On this teacher's day I owe,

The way of teaching they do.


Happy Teacher's Day 🎉🎉

Tuesday, 2 September 2025

Article : वाह रे भारत!

आज कल जो news सबसे ज्यादा चल रही है, क्या वो आपको कुछ सोचने को मजबूर नहीं कर रही है?

कौन-सी news?

भारत पर USA द्वारा लगाए गए trade tariffs की news... 

वाह रे भारत!



आप सोचिए, कभी वो दौर था कि भारत पाकिस्तान और आतंकवाद के डर के साए में रहता था।

आए दिन पाकिस्तानी हमलों का डर बना ही रहता था। भारत में blackout कर दिया जाता था।

साथ ही आतंकवादी हमलों के कारण कभी यहां bomb blast, कभी वहां bomb blast...

बुरा मत मानिएगा, पर यही सच्चाई है कि जब से BJP सरकार ने भारत पर अपने सशक्त कदम रखें हैं, तब से भारत के सुर कुछ बदले-बदले से हैं।

मतलब?

अब भारत में न तो आतंकवादी हमले उतने हो रहे हैं, न ही पाकिस्तानी हमले...

क्या कह रहे हैं हम? 

उरी, पुलवामा, पहलगाम... यह सब attacks हम भूल गए हैं क्या?

नहीं जी, बिल्कुल नहीं भूले...

पहले तो आप इस बात पर ध्यान दें कि पिछले ग्यारह सालों में number of attacks कितने कम हो गये हैं, जबकि उससे पहले, हर साल दो से तीन attack हो ही जाते थे।

और साथ ही आप यह भी देखिए, कि किस तरह से पाकिस्तान के सभी नापाक इरादों को हर बार मुंहतोड़ जवाब दिया है।

हर जवाबी कार्रवाई एक से बढ़कर एक...

Operation Sindoor तो आप सबको खूब अच्छे से ही याद होगा।

इस operation के द्वारा आतंकवादी, पाकिस्तान, चीन सहित संपूर्ण विश्व ने भारत का सशक्त सैन्य बल व अचूक attack देख लिया।

जिसके बाद संपूर्ण विश्व यह समझ चुका है कि अब भारत सशक्त है, अखंड है।

इसके साथ ही पहले कभी जो भारत, आतंकवाद, पाकिस्तान और चीन से डर कर रहता है, आज वही भारत पाकिस्तान को धूल चटाकर, आतंकवाद को पछाड़ कर, चीन को झुकाकर, “so called” सबसे शक्तिशाली कहे जाने वाले देश अमेरिका से सीधी टक्कर ले रहा है।

अमेरिका ने अपने कुछ फैसले भारत पर थोपने चाहे, जिन्हें भारत ने एक सिरे से इंकार कर दिया। जवाब में अमेरिका ने भारत पर tariff का दबाव डाला, लेकिन भारत को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा, बल्कि उसने अपने आप को और सशक्त बनाने के लिए अन्य देशों के साथ business deal शुरू कर दी।

और बात यहां पर ही खत्म नहीं हुई, भारत ने हर international deal में USD (United States Dollar - $) का होना compulsory है, इस को भी खत्म करना शुरू कर दिया है।

आपकी जानकारी के लिए यह बता दें कि इस तरह का नियम था, कि दो देश किसी भी तरह की international business deal करेंगे तो उनका सारा लेन-देन USD में होगा, deal कर रहे उन देशों की currency में नहीं। इसके कारण ही USD और अमेरिका का दबदबा पूरे विश्व में छाया हुआ है।

पर मोदी जी ने यह नयी परिपाटी शुरू कर दी है। वो अभी जिस भी देश के साथ international business deal कर रहे हैं, सबसे उनकी और अपनी currency में ही deal final कर रहे हैं।

इससे होगा यह कि अपना देश सशक्त होगा, साथ ही अमेरिका भी बेमतलब की दादागिरी नहीं दिखा पाएगा।

भारत के इस तरह से सभी क्षेत्रों में सुदृढ़ और सशक्त होते हुए देख कर एक ही बात समझ आती है कि वो दिन दूर नहीं, जब भारत सर्वोच्च स्थान पर होगा, एक बार फिर से सोने की चिड़िया कहलाएगा, और हर कोई यह कहेगा, वाह रे भारत, क्या बात है!

जय हिन्द, जय भारत 🇮🇳 

Thursday, 28 August 2025

Poem : तुम प्रीत, तुम मीत

तुम प्रीत, तुम मीत 


तुम प्रीत, तुम मीत,

तुम जीवन के संगीत।

हर स्वर की तुम आवाज, 

हर झंकृत तार के साज।।


हर ओर तुम, हर छोर तुम, 

तुम हर पल दिल के साथ।

एहसास तुम, हर श्वास तुम, 

थामे हर पल मेरा हाथ।। 


तुम्हारे जन्म का अर्थ,

मेरा जीवन सार्थक।

अस्तित्व हों अलग-अलग, 

पर मन से नहीं पृथक्।।


जन्मदिवस पर अनेकानेक बधाइयाँ 💐🎉

Wednesday, 27 August 2025

India's Heritage : महाराष्ट्र में गणेशोत्सव की प्रधानता क्यों?

गणपति महाराज जी की कृपा हम सब पर सदैव बनी रहे, उनकी अनुकंपा से सम्पूर्ण जगत में शुभ हो।

प्रथम-पूज्य देव गणपति बप्पा जी के शुभागमन से सम्पूर्ण भारत में आज से गणेशोत्सव का शुभारंभ हो रहा है।

हालांकि उत्साह, भक्ति और उमंग की लहर सम्पूर्ण भारत में छाई हुई है, पर महाराष्ट्र में गणेशोत्सव की उमंग चरम सीमा पर विद्यमान रहती है।

पर ऐसा क्या कारण है कि महाराष्ट्र में सर्वोपरि उत्सव गणेशोत्सव है?

आज अपने India's Heritage में इसी विषय में विचार करेंगे।

महाराष्ट्र में गणेशोत्सव की प्रधानता क्यों?


छत्रपति शिवाजी महाराज और मराठा पेशवाओं के समय से गणेश पूजा का सांस्कृतिक महत्व रहा है।

पर महाराष्ट्र में गणेशोत्सव को सार्वजनिक रूप से प्रसिद्धि दिलाने का सारा श्रेय बाल गंगाधर तिलक को जाता है।

विस्तृत रूप से भी देख लेते हैं।


ऐतिहासिक कारण :

• छत्रपति शिवाजी महाराज -

भारत में समय-समय पर विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न साम्राज्यों की स्थापना हुई थी।

सन् 1674 में छत्रपति शिवाजी महाराज ने मराठा साम्राज्य की स्थापना की थी। 

शिवाजी महाराज अपनी मां जीजाबाई के सशक्त, सक्षम और आज्ञाकारी पुत्र थे। छत्रपति शिवाजी महाराज के समय मुगलों का लगभग पूरे भारत पर आधिपत्य था। पर छत्रपति शिवाजी महाराज की कोशिश रहती थी कि मुगलों को महाराष्ट्र से उखाड़ फेंकें। बस उसी कड़ी में शामिल हैं, महाराष्ट्र में गणेशोत्सव का आरंभ...

मान्यता है कि शिवाजी महाराज ने अपनी मां जीजाबाई के साथ मिलकर गणेश चतुर्थी यानी गणेश महोत्सव की शुरुआत की थी, जो मुगल शासन के दौरान अपनी सनातन संस्कृति को बचाने का एक तरीका था। इसके बाद मराठा पेशवाओं के युग में भी गणेश पूजा का बड़े भव्य रूप से उत्सव मनाया जाने लगा।


• बाल गंगाधर तिलक -

बात भारत की पराधीनता के समय की है। अंग्रेजों ने सार्वजनिक रूप से लोगों के एकजुट होने पर पाबंदी लगा दी थी। पर उत्सव, विवाह और तीज-त्योहार पर एकत्रित होने पर कोई पाबंदी नहीं थी।

बस इसी बात का लाभ बाल गंगाधर तिलक जी ने उठाया और उन्होंने British शासन के खिलाफ राष्ट्रीय एकता और विद्रोह को बढ़ावा देने के लिए 1893 में गणेश उत्सव को पुणे में सार्वजनिक उत्सव के रूप में पुनर्जीवित कर दिया।

यह अंग्रेजों के खिलाफ लोगों को एकजुट करने का एक विशिष्ट तरीका था, क्योंकि तिलक जानते थे कि भारतीय आस्था के नाम पर एक हो सकते हैं। इस उत्सव के माध्यम से उन्होंने हिंदू राष्ट्रवादी एकता को बढ़ावा दिया।


सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व :

• सामाजिक समरसता -

धीरे-धीरे इस उत्सव की प्रसिद्धि बढ़ती गई, जिससे वह धार्मिक होने के साथ-साथ सामाजिक और सांस्कृतिक समरसता का भी प्रतीक बन गया था, जिससे विभिन्न वर्गों के लोग एक साथ आने लगे थे।


• आस्था का केंद्र -

ऐसा क्या था कि गणेशोत्सव की प्रसिद्धि, दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही गई। दरअसल, गणपतिजी को बुद्धि, समृद्धि और भाग्य का देवता माना जाता है, जिसकी कामना हर प्राणी को रहती है। साथ ही नई शुरुआत के लिए भी उनकी पूजा करते हैं। यह आस्था ही महाराष्ट्र में गणेश जी की लोकप्रियता का मुख्य कारण है।


• गणेश मंडल -

महाराष्ट्र में गणेश उत्सव के दौरान बड़े सार्वजनिक मंडल बनाए जाते हैं, जहाँ गणेश जी की मूर्तियों को स्थापित किया जाता है और उत्सव मनाया जाता है। यह उत्सव बहुत ही बड़े scale पर आयोजित किया जाता है। अतः इस उत्सव में दिव्यता और भव्यता दोनों शामिल है। और जहां दोनों शामिल हो, वहां प्रसिद्धि तो अवश्यंभावी है।


गणपति बप्पा मोरया....

गणपति महाराज जी की जय🙏🏻🎉💐

Tuesday, 26 August 2025

Poem: हरतालिका तीज निराली

शिव शम्भू और मां पार्वती की कृपा सदैव बनी रहे 🙏🏻 🙏🏻 

सभी को हरतालिका तीज की हार्दिक शुभकामनाएँ 💐


हरतालिका तीज निराली

 



आई हरतालिका तीज निराली 

सुहागिनों का शुभ करने वाली 

हरा श्रृंगार, हर ओर हरियाली 

मन-मस्तिष्क में सुख भरने वाली 


कठिन तप, अटूट विश्वास 

शिव पार्वती की कृपा अपार 

सभी सुहागन व्रतों में इसको

सबसे अधिक बनाए खास 


प्रेम, भक्ति और तपस्या का

सजनी करती इसमें श्रृंगार 

अलौकिक प्रदीप्ति से 

दमके उसका घर संसार 


काले मेघ, घनघोर घटाएं 

मन में प्रेम प्रीत जगाएं 

साजन के संग मिलकर 

आओ यह शुभ पर्व मनाएं 

Wednesday, 20 August 2025

Short Story : इंसान की कीमत

इंसान की कीमत

एक लड़का था रजत, जो कि रोज एक आश्रम में जाता था, वहां के गुरु जी लोगों को बहुत-सी गूढ़ बातें बताते थे।

एक दिन रजत ने गुरु जी से पूछा, “एक बात बताइए कि कुछ मनुष्य महलों में रहते हैं तो कुछ झोंपड़ी में, कुछ के पास खाने को इतना है कि वो खाकर फेंक देते हैं तो कुछ के पास दोनों समय खाने के लिए भी नहीं है। ऐसा क्यों है? और दुनिया में इंसान की क्या कीमत है? साथ ही ज्यादा कीमती क्या है पैसा या काम?”

गुरु जी ने कहा, “बेटा, पैसा सबके पास होता है, कम या ज्यादा और काम भी सब के पास होता है, छोटा या बड़ा। पर कीमत सबसे ज्यादा होती है, स्थान की…”

“स्थान की? मतलब?”

वो बोले, “एक काम करो कि तुम मेरा यह कड़ा ले जाओ और इसकी कीमत पता करके आओ, पर इसे बेच कर मत आना, सिर्फ कीमत पूछकर आना और हां, कोई जब इसकी कीमत पूछे तो तुम्हें कुछ बोलना नहीं है, केवल दो उंगली दिखा देना।”

“इससे क्या होगा?”

“वो तुम्हें खुद पता चलेगा…”

कड़ा इतना सुन्दर था कि कोई भी उसे आसानी से खरीदने को तैयार हो जाता।
रजत कड़ा लेकर एक bus stand में गया।

उसने कड़ा बेचने के लिए एक आदमी को कड़ा दिया, कड़े की सुंदरता देखकर आदमी कड़ा खरीदने को तैयार हो गया, उसने रजत से कड़े की कीमत पूछी। उसने बिना कुछ कहे, दो उंगलियाँ दिखा दीं।

आदमी बोला, “₹200?”

“हाँ जी, धन्यवाद। माफ़ कीजियेगा, दरअसल मुझे केवल इसकी कीमत पता करनी थी, इसे बेचना नहीं है।” कहकर रजत ने कड़ा लिया और बहुत तेज़ी से आश्रम की ओर बढ़ गया।

“गुरू जी! गुरु जी! मुझे कीमत पता चल गई, इसकी कीमत ₹200 है।”

“अच्छा! बढ़िया, अब तुम एक बार फिर से किसी और जगह जाओ और फिर वही प्रकिया दोहराओ।”

रजत अबकी बार एक बड़े से mall में गया, उसने कड़ा बेचने के लिए एक आदमी को कड़ा दिखाया। वह खरीदने के लिए तैयार होकर उसने रजत से उस की कीमत पूछी। रजत ने बिना कुछ कहे, फिर से दो उंगलियाँ दिखा दीं।

आदमी ने पूछा, “₹2000?”

अपनी स्थिति को समझाकर और उस आदमी को धन्यवाद देकर रजत कड़ा वापस ले लेता है। वह खुशी से भर कर आश्रम की ओर चलने लगा।

“गुरु जी! इसकी कीमत तो बढ़ गई, इसकी कीमत दो हज़ार रुपए है।”

गुरु जी एक बार पुनः उसे किसी दूसरी जगह पर जाने को और वही प्रक्रिया वापस दोहराने को बोलते हैं।

इस बार रजत एक jeweller के showroom में जाता है। जब रजत उसे कड़ा दिखाता है, तो jeweller की आंखें खुली की खुली रह जाती हैं। Jeweller सोचता है, ‘वाह! यह कड़ा तो खरे सोने से बना हुआ है। कितने नग और हीरे भी तो जड़े हुए हैं इसमें। लड़के से कीमत पूछी जाए।’

कीमत पूछी जाने पर रजत एक बार फिर दो उंगलियां दिखा देता है। Jeweller पूछता है, “₹200000?”

2 लाख की कीमत सुनकर तो रजत को भी भरोसा नहीं होता। Jeweller से रजत कहता है कि वो कड़ा उसके गुरु की आखिरी निशानी है और वो उसे बेचना नहीं चाहता। Jeweller और महंगे भाव पर भी उसे खरीदने को तैयार हो जाता है, पर रजत नहीं मानता है।

चमकती आँखों के साथ वह आश्रम में वापस लौटता है। हैरानी और खुशी के मिले हुए भावों के साथ वह गुरु जी से बोलता है, “कितना कीमती है यह कड़ा! जोहरी तो ढाई (2.5) लाख रुपए में भी उसे खरीदने को तैयार हो गया था।”

“महंगा तो होगा ही। शुद्ध सोने से बना और इतने हीरे-जवाहरात से जो जड़ा हुआ है। वैसे तुमने एक बात देखी क्या?”

“कौन-सी बात?”

“Bus stand पर उस कड़े की कीमत दो सौ रुपए थी। लोग वहाँ से अक्सर इसी मूल्य के सामान लेते हैं। आदमी को कड़ा सुन्दर लगा, इसलिए अपने हिसाब से कीमत बता दी।

फिर जब तुम mall में गए, तो उसकी कीमत बढ़ के दो हज़ार रुपए हो गई। वहां से लोग दस-बीस हज़ार के सामान ले लेते हैं, और उस आदमी को नग कीमती लगे होंगे। इससे कड़े की कीमत बढ़ गई।

आखिर में तुम गए जोहरी के पास। वो जानता था कि कड़े की असली कीमत क्या है। इसलिए उसने उसकी कीमत ढाई लाख रुपए बताई, जो वास्तव में इस कड़े की कीमत है।

जिस प्रकार इस कड़े की कीमत बिकने वाली जगह पर आधारित थी, उसी प्रकार से मनुष्य की असली कीमत भी तब ही होती है, जब वह अपने उचित स्थान पर हो। अतः, मनुष्य को सदैव अच्छी संगत में रहना चाहिए और ऐसी जगहों पर ही रहना चाहिए जहाँ उसका आदर हो।”

“समझ गया गुरु जी। आप सच में महान हैं, एक कड़े के माध्यम से आप ने जीवन की अनमोल सीख दे दी मुझे।” रजत मुस्कुराते हुए आश्रम से बाहर निकलता है।

Saturday, 16 August 2025

Poem : The Story of Giridhar

This is the first time Advay has expressed a story in the form of a poem (written a ballad). Please motivate him if you do like it.

Happy Janmashtami 🎉

The Story of Giridhar


After scorching heat, comes pleasant rain,
When nature itself, waters the grain.
This monsoon season, has many folklores,
Full of lessons, worth several crores.


They are one of the earliest creations,
Passed along many several generations.
Let me narrate, one of the folktales,
Where arrogance, fury and anger fails.


The auspicious and holy place of Mathura,
Acted as the residence of Lord Krishna.
The villagers were farmers by occupation,
And revered Lord Indra, for apt irrigation.


One fine day, with a question in his head,
In an innocent voice, Lord Krishna said,
“Why worship Indra? What does he do,”
As if attempting, to get a small clue.


Maa Yashoda replied, “There’s a reason,
He is the god of the monsoon season.”
Krishna understood, but was dissatisfied.
To share his view, he moved a bit aside.


“Why not worship Mount Govardhan?
For our cattle, it is the grass garden.”
Everyone agreed, and did the same.
For Indra, it became a matter of shame.


As a result, he started raining exceedingly.
For seven days, it rained increasingly.
Nothing was harmed, he was surprised,
The savior’s God himself, he had realized.


He came down, in order to apologize,
But he couldn’t simply believe his eyes.
A boy held a mountain on his li’l finger,
None other than Shri Krishna, or Giridhar.

Friday, 15 August 2025

Poem : कहानी स्वतंत्रता की

79वें स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ। स्वतंत्रता दिवस के पावन पर्व पर शहीदों को श्रृद्धा सुमन अर्पित करते हुए आज की यह कविता प्रस्तुत करते हैं…

कहानी स्वतंत्रता की


मंगल पांडे, तात्या टोपे,

या फिर झांसी की रानी। 

स्वतंत्रता दिलाई किस-किस ने,

है यह बड़ी लंबी कहानी।।

 

शहीद यहाँ हुए अनेकों, 

कुछ जाने, कुछ अनजाने भी। 

हंसते-हंसते खून बहा दिए,

आजादी के परवानों ने ही।।

 

वीर सावरकर, और भगत सिंह,

हो या चंद्रशेखर आजाद।

नाम अनेकों जुड़े हुए हैं,

जिन्होंने देश को किया आबाद।।


गांधीजी हो, सरदार पटेल,

या हो सुभाष चन्द्र बोस। 

अंग्रेजों की कुटिल चाल को,

सदा के लिए किया ख़ामोश।।


हर भारतीय ने किया विरोध,

 गूंज उठा हर एक इलाका।

पराजित फिरंगी देख हैरान थे,

लहराता हुआ विजय पताका।।


सन् सत्तावन से भड़की चिंगारी,

सन् सैंतालीस में शांत हुई।

फिरंगियों की सेना हारी, 

बेचैन और क्लान्त हुई।।


शत्-शत् नमन उन सभी को,

जो थे अमर‌ वीर बलिदानी।

सदियों तक याद की जाएगी,

स्वतंत्रता की अमिट कहानी।।



🇮🇳🙏🏻 भारत माता की जय 🙏🏻🇮🇳

Thursday, 14 August 2025

Poem : बारिश की नन्हीं बूंदें

रिमझिम बारिश को देख मन स्वतः ही काव्य-रस में भीगकर नन्हीं बूंदों संग अठखेलियां करता हुआ यह कविता गढ़ता चला गया। आइए इसका आनन्द लें और बारिश के मनभावन मौसम का लुत्फ उठाएं…

बारिश की नन्हीं बूंदें


बारिश की नन्हीं बूंदें, 

इठलाती-बलखाती सी।

नभ से उतरकर जो,

धरा की अंक में समाती हैं।

सौंधी खुशबू से हर एक के

तन-मन को महकाती हैं।।

तरुणी को आया नवयौवन, 

भाता उनका चंचल चितवन।

क्षणिक मनोहर-सी वो आभा,

 नैनों को तृप्ति दिलाती है।

विटप नहाए, पपीहा गाए,

प्रकृति में हरियाली छाए।।

देखकर ऐसी छवि निराली, 

जन-जन को हर्षाती है। 

बारिश की नन्हीं बूंदें, 

इठलाती-बलखाती सी।

नभ से उतरकर जो,

धरा की अंक में समाती हैं।।

Tuesday, 12 August 2025

Article : गर्व राखी पर

दो दिन से medical related problems के लिए hospital जाना हो रहा था।

तो आने-जाने और hospital में एक बात notice की, उसे बताने से पहले हिन्दू त्यौहार के विषय में जान लेते हैं।

गर्व राखी पर 


हिन्दू धर्म, एक ऐसा धर्म है, जहां हर धर्म से अधिक देवी-देवता हैं और हर धर्म से अधिक इसमें तीज-त्योहार मनाए जाते हैं।

पर सर्वाधिक देवी-देवता, हिन्दू धर्म में ही क्यों हैं? ऐसा कभी आपने सोचा?

अगर नहीं, तो चलिए साथ में विचार करते हैं...

एकमात्र हिन्दू धर्म में ही हर एक को ईश्वरीय स्थान प्राप्त है, फिर वो पेड़-पौधे हों, पशु-पक्षी हों, चाहे प्रकृति हो, या रिश्ते हों, जैसे पूर्वज, पति, भाई, संतान इत्यादि...

जब हर कुछ पूजनीय है तो देवी-देवता भी बहुत सारे होंगे और तीज-त्योहार भी...

और जितने अधिक देवी-देवता और तीज-त्योहार होंगे, उतना ही अधिक उत्साह, उमंग, प्रेम, अपनत्व, सुख और आनंद...

और जीवन में जिसे यह सब प्राप्त हो, वो ही मोक्ष प्राप्ति कर ईश्वर में समा पाएगा।

दीपावली, होली, रामनवमी, दशहरा, जन्माष्टमी, शिवरात्रि, नवरात्रि, राखी, करवाचौथ, तीज, छठ, सकट, गणेशोत्सव, रथयात्रा, नागपंचमी इत्यादि... इतने अधिक तीज-त्योहार हैं कि बस लिखते ही जाएं...

इन्हीं त्योहारों में से एक त्योहार है राखी...

भाई-बहन के प्यार को प्रेम के मजबूत बंधन में बांधती रेशम की डोर... 

जितना यह अनोखा बंधन है उतना ही गर्व से भरा हुआ...

हमने देखा कि जिन कलाइयों में राखी बंधी हुई थी, उन लोगों के चेहरे पर एक अलग ही सुख और गर्व की आभा थी।

और यह आभा, उतनी अधिक थी, जितनी ज्यादा राखी बंधी हुई थी कलाई पर...

उम्र, फिर चाहे कुछ भी हो, बच्चा, जवान या वृद्ध, सभी अपने हाथों में बंधी राखी से प्रसन्न होकर उसे बार-बार उसे ठीक करते रह रहे थे।

कौन कहता है कि केवल पुत्र प्राप्ति की कामना है, पूछिए भाइयों से कि उन्हें कितना इंतजार रहता है अपनी कलाइयों को सजवाने का, या जानिए, उन भाइयों से कि वो कितने दुखी रहते हैं, जिनकी कलाई सूनी रहती है...

कितने ही लोग तो ऐसे होते हैं, जो अपने हाथों में राखी एक-दो दिन नहीं बल्कि महीनों तक या अगली राखी तक बांधे रहते हैं।

इन गर्वित चेहरों को देख कर यह ही प्रतीत हुआ कि लोगों को लगता होगा होली, दीपावाली बड़ा त्योहार होगा, पर राखी से सजी हुई कलाइयां और गर्व से भरे हुए चेहरे, कुछ अलग ही कहानी बयां कर रहे थे।

इससे यह एहसास होता है कि भारत देवी-देवताओं और तीज-त्योहारों का देश है, जहां प्रेम, सुख, आनंद, श्रद्धा और विश्वास है। जहां यह सब है, वहीं ईश्वरीय वास है और जहां ईश्वर है, वहीं जीवन भी है और मोक्ष भी...

इसलिए अगर आप भारतीय है और भारत में ही रह रहे हैं तो अपने आप को सम्मानित महसूस कीजिए और गर्व से कहें,

जय हिन्द, जय भारत 🇮🇳  

Saturday, 9 August 2025

Poem : राखी बंधन है प्यार का

राखी के पवित्र पावन पर्व पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ, सभी भाई-बहन एक-दूसरे के साथ प्यार के बंधन में बंधे हुए एक-दूसरे का साथ निभाएं और जीवन में सभी सुख पाएं...

राखी बंधन है प्यार का


भाई बहन का रिश्ता,

होता अजब निराला है।

जीवन से मरण तक

चलने वाला है।।

माता पिता का साथ,

हम अपने बुढ़ापे तक

नहीं पाते हैं।

और जीवन साथी से, 

बचपन से ही नहीं

जुड़ जाते हैं।।

एक भाई-बहन

का ही रिश्ता है,

जो बचपन से जुड़ता है,

और बुढ़ापे तक जाता है। 

इसलिए राखी का त्योहार, 

हम सब की जिंदगी में

एक अलग ही स्थान पाता है।।

राखी बंधन है प्यार का,

अपनत्व और विश्वास का।

बचपन के सौहार्द का,

कहे-अनकहे जज़्बात का।। 

यह एक अलग ही एहसास है,

जो बनाता त्यौहार को खास है।


राखी की अनेकानेक बधाइयाँ…

Monday, 4 August 2025

Article : Life in Metros 1 (Delhi vs Mumbai)

आज कल एक प्रश्न हमारे ईर्द-गिर्द चल रहा है कि दिल्ली, मुंबई कौन है बेहतर?

इस बात को शुरू करने से पहले तो यह कहना चाहेंगे कि जिस व्यक्ति का जन्म जहां हुआ होता है या जिस शहर के आसपास हुआ होता है, या उसके सपने क्या पाने के हैं, उस पर निर्भर करता है, कि उसे कौन सा शहर ज्यादा बेहतर लगेगा।

वैसे भारत का हर शहर बेहतर है, कमी और अच्छाई सबमें है। 

अब बात उसकी करते हैं, जिसकी चर्चा कर रहे हैं। दोनों ही metro cities है, हर बात में बाकी शहरों से बेहतर हैं।

तो हर मुद्दे को मद्देनजर रखते हुए बात आगे बढ़ाते हैं।

Life in Metros 1 (Delhi vs Mumbai)


हम एक आम इंसान की जरूरत को लेते हुए बात करेंगे।

तो किसी की भी मूलभूत आवश्यकता होती है रोटी-कपड़ा, मकान, शिक्षा और स्वास्थ्य...

दूसरे शब्दों में महंगाई कहां कितनी है?


1) Clothes :

इसमें से कपड़ा तो लगभग हर दूसरे शहर में एक-दूसरी जगह से export-import होता रहता है तो यह तो आपकी choice पर depend करता है कि आप कितने branded और कितने local कपड़े पहनते हैं, more or less बराबर ही दाम के कपड़े मिल जाते हैं दोनों शहरों में।


2) Food :

अगर आप vegetarian है तो बता दे कि सब्जियां मुंबई में ज्यादा महंगी हैं, साथ ही अगर U.P., M.P., Delhi वाले हैं तो यहां पर मिलने वाली बहुत-सी सब्जियां ऐसी होंगी जो शायद वहाँ नहीं भी मिलेगी। पर जो सब्जियां मुंबई या अन्य प्रांतों की है, वो आपको दिल्ली की बड़ी मंडी में देखने को मिल सकती हैं, हां एकदम local शायद थोड़ी न भी मिले।

अब अगर आप non vegetarian हैं तो depends की आप को क्या ज्यादा पसंद है, fish or meat... Fish undoubtedly मुंबई में ज्यादा varities की और सस्ती मिलेगी।

बाकी राशन more or less same है, जिसका एक कारण online shopping का चलन भी है।


3) Residence :

मकान आपको किराए पर लेना हो या खरीदना हो, दोनों ही सूरत में घर मुंबई में महंगे हैं। और एक बात है कि दिल्ली plain area में है और मुंबई पहाड़ों को काटकर और समुद्र को पाट कर बनाया गया है। तो मुंबई के पास ज़मीनी जगह कम है। 

दिल्ली का कुल क्षेत्रफल 1484 km² है, जबकि मुंबई का केवल 550 km² है।

इस ही कारण से वहाँ घर महंगे भी हैं और उन्हें timely redevelopment की जरूरत भी होती है।

अतः मुंबई में घर, office, hotel, हर एक का size comparatively छोटा है, means size ½ और price 1½ गुना...

इस कारण से मुंबई में खरीदे हुए घरों की EMI भरते-भरते उम्र निकल जाती है, और किराया चुकाते-चुकते जेबें ढीली हो जाती हैं। ऐसा नहीं है कि दिल्ली में घर बहुत सस्ते हैं, पर मुंबई के comparison में सस्ते हैं।


4) Education :

Education के point of view से देखेंगे तो education and exposure दिल्ली में ज्यादा है। और अगर fees का comparison देखेंगे तो normal schools की fees मुंबई में ज्यादा है। 

हां ज्यादा महंगे school देखने चलेंगे तो आप को दिल्ली में भी एक से एक महंगे school मिल जाएंगे।

अगर आप को medical, engineering, UPSC, management, etc. की education देखनी है तो Delhi is the best, पर अगर आपको कला से जुड़ी education चाहिए, जैसे art, drama, media, etc. तो मुंबई ज्यादा बेहतर है।

ऐसा नहीं है कि मुंबई में medical, engineering, UPSC and mangement की education नहीं है या दिल्ली में art, drama, media etc नहीं है। पर हर शहर कुछ खास field में ज्यादा बेहतर होता है, बस वही कहा है।


5) Medical Facilities :

फिर वही बात कि दोनों metropolitan cities है तो दोनों ही जगह भरपूर medical facilities है।


6) Weather :

Delhi का weather dry है जबकि मुंबई का humid..

इस कारण से दिल्ली में ठंड और गर्मी भयंकर पड़ती है, और बरसात, मुंबई के मुकाबले कम होती है। जबकि मुंबई में आए दिन बरसात होती रहती है, अतः throughout the year temperature काफी कुछ same रहता है।

पर humid weather के कारण चिपचिपाहट बहुत ज्यादा होती है, पसीना सूखना मुश्किल होता है, तो AC की requirement लगभग पूरे साल रहती है। जबकि दिल्ली में ठंड के दिनों में AC बंद हो जाते हैं पर geyser and heater चलना शुरू हो जाते हैं, मतलब बिजली का खर्च लगभग एक जैसा...

मुंबई में आए दिन बरसात और समुद्र के कारण, humid weather रहता है, जिसके कारण सामान का रख-रखाव ज्यादा करना पड़ता है, सामान के खराब होने, फफूंदी लगने, दीमक लगने की संभावना ज्यादा बढ़ जाती है। 

जबकि dry weather के कारण दिल्ली में सामान का रखरखाव कम करना पड़ता है।

बाकी सामान की care तो करनी ही चाहिए। अच्छी care सामान की shelf life बढ़ा देता है।


7) Pollution :

Traffic and population दोनों ही दोनों शहरों में लगभग बराबर ही है।

फिर भी pollution undoubtedly मुंबई में कम है, कारण समुद्र की मौजूदगी... Water body की मौजूदगी pollution को purify करने का काम करती है।

दूसरा दिल्ली में plastic का usage बहुत ज्यादा होता है और treatment कम।नतीजन दिल्ली में ज्यादा pollution होनी की एक बहुत बड़ी वजह कूड़े का पहाड़ और हद से ज्यादा गंदी‌ और संकरी हो चुकी यमुना जी भी हैं।


8) Traffic :

Traffic दोनों ही जगह ज्यादा है, पर traffic jams मुंबई में ज्यादा होता है, कारण दिल्ली की सड़कें चौड़ी ज्यादा है तो jams, comparatively मुंबई से कम देर के लिए लगते हैं। 

चाहे कोई भी शहर हो, water logging होने से jams ज्यादा होता है। फिर चाहे दिल्ली हो या मुंबई...

मुंबई में बारिश और समुद्र की वजह से water logging ज्यादा होती है।


9) Language : 

India में चार metro cities हैं, दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई...

मुंबई में मराठी, कोलकाता में बंगाली, चेन्नई में तामिल भाषा को पाठ्यक्रम में जरूर से शामिल रखा जाता है, चाहे आपका मन हो या न हो आपको पढ़ना ही होगा। साथ ही वहां के locals भी चाहते हैं कि आप उनकी regional language सीखें।

जबकि कम से कम metropolitan cities में ऐसा नहीं होना चाहिए। सभी cities India की हैं और अगर कोई हिन्दी भाषा बोलता है तो उसके साथ पराएपन का व्यवहार बिल्कुल नहीं होना चाहिए।

पर दिल्ली में आपको किसी भी भाषा को सिखाने के लिए बाध्य नहीं किया जाता है। जबकि दिल्ली में भी पंजाबी लोगों की अधिकता है। 

Course में हिंदी और अंग्रेजी भाषा के अलावा संस्कृत, उर्दू, पंजाबी, बांग्ला, तेलुगु, तामिल, गढ़वाली, foreign language आदि है। पर पढ़ने के लिए कोई बाध्यता नहीं है। आप अपनी पसंद के अनुसार कोई भी भाषा पढ़ने के लिए चुन सकते हैं।

भारत का दुर्भाग्य है कि English language को सर्वोपरि माना जाता है, उसके बाद अन्य भाषाएं आती हैं, जबकि सबसे पहला स्थान हिन्दी भाषा को मिलना चाहिए।

हिन्दी उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, दिल्ली आदि की भाषा नहीं है, बल्कि वहां की भी अवधी, ब्रज, भोजपुरी, खड़ी बोली, बुंदेली, बघेली, मालवी, निमाड़ी, पंजाबी आदि भाषाएं हैं। पर हिन्दी को मान केवल उ.प्र., म.प्र. और दिल्ली में ही मिलता है, उतना तो नहीं जितना मिलना चाहिए, दूसरी भाषा के रूप में ही सही, पर बाकी पूरे भारत में हिन्दी भाषा को दूसरी नहीं बल्कि तीसरी भाषा के रूप में या किसी भी तरह का सम्मान नहीं...

आपने दोनों शहरों में अंतर देख लिया, कौन सा बेहतर है, यह सबकी अपनी-अपनी सोच है, लेकिन कुछ बात तो है, जो दिल्ली भारत का दिल है और हमारा भी...

Love you Delhi 💞

Sunday, 3 August 2025

Poem : हमारा सच्चा यार

आप सभी को मित्रता दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएँ 💞💐

आज की यह कविता अद्वय के मन के उद्गार हैं, आइए देखते हैं कि आज कल के बच्चे क्या सोचते हैं, दोस्त के लिए...

इसका आनन्द लीजिए और अगर आप को पसंद आए तो कृपया उसे प्रोत्साहित अवश्य कीजियेगा 🙏🏻

हमारा सच्चा यार



जिसके लिए मायने नहीं रखता,

क्या सोचता है संसार।

वही व्यक्ति तो है,

हमारा सच्चा यार।।


जो बन जाता है हमारे,

जीवन जीने का आधार।

वही मनुष्य तो है,

हमारा सच्चा यार।।


जिसकी मौजूदगी से आए,

हमारे जीवन में बहार।

वही मानव तो है,

हमारा सच्चा यार।।


जिससे साझा कर सकें,

हम अपने सभी विचार।

वही इंसान तो है,

हमारा सच्चा यार।। 

Wednesday, 30 July 2025

Article: शतरंज - दबदबा भारत का

आप सबके साथ साझा करते हुए बहुत हर्ष हो रहा है कि भारतीय खिलाड़ी दिव्या देशमुख ने FIDE women's chess world cup जीतकर भारत को गौरवान्वित कर दिया है। 

शतरंज - दबदबा भारत का 




भारत के गर्व की पराकाष्ठा तो यह है कि final में दोनों players भारतीय थे। मतलब final के result आने से पहले ही यह तय था कि gold and silver दोनों ही medals भारत को ही मिलने थे। 

बस जीत यह निर्धारित कर रही थी कि कौन सा player कौन सी position लेगा।

और इस के लिए हम सब भारतवासियों को दिव्या देशमुख और कुनेरु हम्पी दोनों पर गर्व है।

जहां 38 वर्षीय हम्पी पिछले दो साल से लगातार  विश्व रैपिड शतरंज का खिताब जीत चुकी हैं, और इस बार भी women's chess world cup tournament के final round तक पहुंची, वहीं दूसरी ओर मात्र 19 वर्ष की दिव्या ने इस साल विश्व विजेता बनकर पूरे देश को गौरवान्वित किया है। इसके साथ ही दिव्या, women's chess world cup जीतने वाली पहली महिला बनीं।

FIDE women's chess world cup 2025 में 107 खिलाड़ियों का single-elimination chess tournament था जो 5 जुलाई से 29 जुलाई 2025 तक जॉर्जिया के बटुमी में आयोजित किया गया था। यह FIDE women's chess world cup का third edition था।

इस जीत के साथ ही दिव्या भारत की चौथी woman grand master और total 88th grand master बन गई है।

भारत के पहले शतरंज grand master विश्वनाथन आनंद  हैं। उन्होंने 1988 में यह खिताब हासिल किया था। तब से अब तक भारत में 88 grand masters हो चुके हैं।

दिव्या देशमुख के अलावा अन्य तीन  women's grand masters हैं: कोनेरू हम्पी, हरिका द्रोणावल्ली, और वैशाली रमेशबाबू।

इस जीत के साथ एक और बात उभर कर सामने आ रही है कि भारत शतरंज पर अपनी बहुत मज़बूत पकड़ बनाता जा रहा है। फिर बात चाहे डी गुकेश, प्रगननंधा, अर्जुन, विदित की हो या, दिव्या, हम्पी, हरिका, वैशाली की हो। बल्कि हमारे देश की लड़कियों ने तो सिद्ध कर दिया है कि अगर वो मैदान में हैं तो पहले, दूसरे, तीसरे सब स्थान पर भारत ही रहेगा, उसकी बराबरी कोई देश नहीं कर सकता है। 

हमें गर्व है अपने भारतीय खिलाड़ियों पर, उनकी जीत पर, उनका ह्रदय से आभार कि उन्होंने देश का मान बढ़ाया, देश के तिरंगे को सर्वोपरि लहराया।

दिव्या देशमुख को उसकी जीत पर अनेकानेक बधाईयां 

जय हिन्द जय भारत 🇮🇳 

Monday, 28 July 2025

Article : रुद्राक्ष की शुद्धता

सावन के तीसरे सोमवार में आपके लिए रुद्राक्ष से जुड़ी हुई जानकारी लेकर आएं हैं।

आज कल पुनः लोगों में ईश्वरीय आस्था और भक्ति का संचार बहुत तेजी से बढ़ रहा है।

और इसी कड़ी में आता है, रुद्राक्ष धारण करना...

वैसे भी कहा जाता है कि जो रुद्राक्ष को धारण करता है, उसको रोग व्याधियों से छुटकारा मिल जाता है और जीवन सुख व चैन से व्यतीत होता है।

और सुखी व स्वस्थ जीवन की कामना तो सभी को होती है।

पर समस्या यह आती है कि रुद्राक्ष की सटीकता और शुद्धता को कैसे समझें?

रुद्राक्ष की सटीकता, उसकी शुद्धता का होना कितना ज़रूरी है और कैसे पहचानें कि रुद्राक्ष शुद्ध है कि नहीं?

चलिए इस विषय में जानते हैं उत्तराखंड के भुवन चंद्र अवस्थी जी से, उन्होंने देश की सेवा की और 21 साल पहले DSP की post से retire हुए।

वो बहुत ही ज्ञानी, जीवन्त, प्रेरणादायक और आध्यात्मिक भाव के प्राणी है।

वो उत्तराखंड से हैं, जहां बहुतायत से रुद्राक्ष मिलता है तो उनका इस विषय में विशेष ज्ञान है।

वो कहते हैं कि रुद्राक्ष सदैव 5 मुखी धारण करें।

रुद्राक्ष की शुद्धता


अब पांच मुखी रुद्राक्ष क्यों?

क्योंकि उसके शुद्ध और सटीक होने की संभावना अधिक है।

अधिक क्यों? बाकियों की क्यों नहीं?

इस का कारण यह है कि पंच मुखी रुद्राक्ष बहुतायत में पाए जाते हैं, अतः इसके शुद्ध और सटीक होने की संभावना ज्यादा होती है।

जबकि एक मुखी, दो मुखी... इत्यादि प्राप्त करना दुर्लभ होता है, अतः उनका शुद्ध और सटीक होना मुश्किल होता है, साथ की उनकी पहचान करना भी लगभग असम्भव...

तो अगर एक मुखी या दो मुखी इत्यादि रुद्राक्ष धारण करना हो तो क्या करें?

मात्र एक ही उपाय है, देने वाले पर विश्वास करना और यह भाव सुदृढ़ रखना कि आपने जो रुद्राक्ष धारण किया हुआ है वह शुद्ध और सटीक है।

क्योंकि इस संपूर्ण संसार में जो सर्वशक्तिशाली है, वो है भाव, आस्था, विश्वास और इच्छा...

जिसने भी शुद्ध भाव से, पूर्ण आस्था और विश्वास से, शुभ की इच्छा की है, उस बात को, उस चीज को शुद्ध और सटीक स्वयं ईश्वर बना देते हैं।

इसका साक्ष्य और सटीक उदाहरण है चोर और डाकू वाल्मीकि का महर्षि वाल्मीकि बनना। 

उनका मरा-मरा कहा, राम-राम में बदलना।

उनका चोरी इत्यादि करने से रामायण का लिखा जाना...

इससे अधिक सटीक उदाहरण आपको भाव की महत्ता का कोई और नहीं मिल सकता है।

इसलिए आप जो भी रुद्राक्ष धारण करें, उसे शुद्ध और सटीक होने के भाव से पहनें, और शिव भक्ति में लीन हो जाएं, बाकी सब महादेव देख लेंगे।

और यदि आप यह भाव अपने अंदर जाग्रत नहीं कर सकते हैं तो पांच मुखी रुद्राक्ष धारण करें, वो शुद्ध और सटीक होगा, इसकी संभावना सर्वाधिक है। 

भुवन जी को विशेष धन्यवाद देते हुए आप सभी को सावन के तीसरे सोमवार पर हार्दिक शुभकामनाएँ...

हर हर महादेव 🚩 🔱 🙏🏻 

Friday, 25 July 2025

Poem: विरह की अग्नि

विरह की अग्नि 



थमी थमी सी 

रूकी रूकी सी 

जिंदगी चलती रही 

विरह की अग्नि में जल 

वो शमा सी पिघलती रही 

न उमंग, न तरंग  

जैसी कोई कटी पतंग 

पल पल की घड़ी 

मन में अब चलती रही 

हर पल, उस पल का

इंतज़ार करती हुई 

जिंदगी, है जो अपनी,

मगर, अब हर ही पल वो 

अजनबी सी लगती रही 

हर श्वास, इस विश्वास से 

आती और जाती रही 

शीध्र होगा मिलन 

जिसकी, हूक सी उठती रही 

Wednesday, 23 July 2025

India’s Heritage : श्रावण शिवरात्रि

आज श्रावण शिवरात्रि का पावन पर्व है, देवों के देव महादेव शिव शम्भू और उनकी शक्ति माँ पार्वती की अर्चना और उपासना का दिन…

भगवान शिव जी और माता पार्वती जी का आशीर्वाद सदैव बना रहे, आप सभी को श्रावण शिवरात्रि पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएँ।

बहुत से लोगों के मन में यह शंका उत्पन्न हो रही होगी कि महाशिवरात्रि पर्व तो बचपन से सुनते आ रहे हैं, जो फाल्गुन मास में होती है, जिसे महादेव और माता पार्वती के शुभ विवाह के उपलक्ष्य में आयोजित किया जाता है, फिर यह श्रावण शिवरात्रि पर्व क्या है और इसे क्यों मनाते हैं।

आज भारत के विरासत अंक में उसे ही साझा कर रहे हैं, साथ ही यह भी बताएंगे कि क्यों है सावन का महत्व? और क्यों होती है इसमें भगवान शिव की आराधना? क्यों भगवान शिव को श्रावण मास प्रिय है? और क्यों शिव भक्त सावन के महीने में मीलों दूर तक पैदल चलकर कांवड़ यात्रा निकालते हैं और अपने आराध्य देव महादेव को प्रसन्न करते हैं?..

श्रावण शिवरात्रि


महाशिवरात्रि और श्रावण शिवरात्रि में अंतर :

महाशिवरात्रि जहाँ ब्रह्मांडीय परिवर्तन और शिव-पार्वती के मिलन का प्रतीक है, वहीं सावन शिवरात्रि श्रावण की आध्यात्मिक ऊर्जा से गहराई से जुड़ी है। दोनों ही त्यौहार भक्ति, आंतरिक शांति और शिव के आशीर्वाद की प्रेरणा देते हैं, और भक्तों को आत्मज्ञान और उत्कर्ष की ओर ले जाते हैं।


श्रावण शिवरात्रि :

सावन की शिवरात्रि, जिसे श्रावण शिवरात्रि भी कहा जाता है, भगवान शिव को समर्पित एक महत्वपूर्ण त्योहार है। इस दिनभक्त भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा करते हैं, व्रत रखते हैं, और शिवलिंग का जलाभिषेक करते हैं। सावन का महीना भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है, इसलिए इस महीने में पड़ने वाली शिवरात्रि का विशेष महत्व है।


पौराणिक कथा :

पौराणिक कथाओं के अनुसार, देव और दानवों में अमृत कलश की प्राप्ति के लिए समुद्र मंथन हुआ था, जो कि लगभग सावन के समय शुरू हुआ था और श्रावण की शिवरात्रि के दिन विष निकला था।

विष के निकलते ही हड़कंप मच गया। क्योंकि समुद्र मंथन से निकली हुई चीजें देव और दानव बारी-बारी से बांट रहे थे।

पर विष (ज़हर) के निकलने पर कोई उसे ग्रहण करने को तैयार नहीं था। विष भी कोई साधारण विष नहीं था, हलाहल विष था, जिसका पान करते ही अर्थात् जिसे पीते ही मृत्यु अवश्यसंभावी थी। पर यह निश्चित था कि जब निकला हुआ रत्न (वस्तु) कोई ग्रहण कर लेगा, आगे का समुद्र मंथन तभी होगा।

सब बेहद दुविधा में पड़ गए कि विष कोई लेगा नहीं, और कोई लेगा नहीं तो आगे मंथन होगा नहीं, और अगर मंथन आगे होगा नहीं तो अमृत कलश निकलेगा नहीं...

ऐसे में देवों के देव महादेव, जो कि अति भोले हैं, सरल हैं,  इसलिए उन्हें भोलेनाथ, भोले भंडारी भी कहा जाता है, जो कि बेहद सुहृदय वाले हैं, अपनी चिंता से परे, परहित के लिए सदैव तत्पर रहते हैं, उन्होंने विषपान करना स्वीकार कर लिया।

हलाहल विष का पान करते ही भगवान शिव नीले पड़ने लगे, पर वो तो महायोगी ठहरे तो उन्होंने विष को अपने कंठ में रोक लिया। और किसी में इतना सामर्थ्य नहीं था कि वह विष को कंठ तक ही रोक सके। विष हरने के कारण भगवान शिव जी का कंठ नीला हो गया, और इसी कारण उनका नाम नीलकंठ पड़ा।

विष कंठ में तो रोक लिया, पर उस विष का ताप बहुत अधिक था।

इस विष के प्रभाव को कम करने के लिए सभी देवताओं ने भगवान शिव का जल से अभिषेक किया था और बहुत अधिक वर्षा की।

इसी कारण से इस महीने में वर्षा होती है और सावन शिवरात्रि पर भगवान शिव को जल चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई।


श्रावण मास में भगवान शिव की आराधना :

यही कारण है सावन का महत्व का, इसमें भगवान शिव की आराधना का, भगवान शिव को श्रावण मास प्रिय होने का, और यही कारण है शिव भक्त सावन के महिने में मीलों दूर तक पैदल चलकर कांवड़ यात्रा निकालने का और अपने आराध्य देव महादेव को प्रसन्न करने का... 

सावन शिवरात्रि का व्रत रखने और भगवान शिव की पूजा करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं, ऐसा माना जाता है। 

सावन शिवरात्रि के दिन, भक्त उपवास रखते हैं, शिवलिंग पर जल, दूध, बेलपत्र, भांग, धतूरा आदि चढ़ाते हैं। रात्रि में जागरण करके भगवान शिव की पूजा-अर्चना करते हैं। कुछ भक्त कांवड़ यात्रा भी करते हैं, जिसमें वे हरिद्वार से गंगाजल लेकर आते हैं और शिवलिंग का अभिषेक करते हैं। 

सावन शिवरात्रि का त्योहार उत्तर भारत में विशेष रूप से लोकप्रिय है, जहां पूर्णिमा कैलेंडर का पालन किया जाता है। इस दिन, शिव मंदिरों में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। 

श्रावण मास का पावन पर्व ऐसा पर्व है, जहां भक्त अपने लिए नहीं बल्कि अपने आराध्य के कष्ट को हरने के लिए मीलों दूर तक पैदल चलकर कांवड़ यात्रा निकलता है, जल से भरे हुए कलश को हरिद्वार से लाकर अपने आराध्य का जलाभिषेक करता है।

इसलिए इस समय कांवड़ यात्रियों को बहुत शुभ माना जाता है और उनकी सेवा के लिए किए गए कार्य सर्वोच्च पुन्य माना जाता है।


हर-हर महादेव 🚩 🙏🏻

Monday, 21 July 2025

Article : बुलावा महाकालेश्वर जी का (भाग-2)

सावन के पहले सोमवार पर ‘बुलावा महाकालेश्वर जी का’ के अंतर्गत महाकालेश्वर मंदिर उज्जैन के विषय में अपने अनुभव साझा किए थे।

चलिए, सावन के दूसरे सोमवार में आपको ले चलते हैं अपने साथ, महाकालेश्वर जी की नगरी, उज्जैन, जिसे मंदिरों की नगरी भी कहते हैं। आइए चलते हैं उसके अन्य दर्शनीय स्थल पर...

बुलावा महाकालेश्वर जी का (भाग-2)


महाराजा विक्रमादित्य की राजधानी उज्जैन रही है। महाराजा विक्रमादित्य, सभी राजाओं में सर्वश्रेष्ठ समझे जाते हैं। महाकाल के बाद इनका उज्जैन में विशेष स्थान है, अतः यहां महाराजा विक्रमादित्य से जुड़े बहुत से स्थान हैं। 

उज्जैन, मध्य प्रदेश में कई दर्शनीय स्थल हैं, जिनमें श्री महाकालेश्वर मंदिर, काल भैरव मंदिर, हरसिद्धि मंदिर, राम घाट, भर्तृहरि गुफाएं, जंतर मंतर, सिंहासन बत्तीसी और सांदीपनि आश्रम प्रमुख हैं। 


मुख्य दर्शनीय स्थल :-


1. श्री महाकालेश्वर मंदिर :


सर्वप्रथम तो महाकालेश्वर मंदिर ही है, यह 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है और उज्जैन का सबसे प्रसिद्ध मंदिर है, जिसके विषय में आपको पहले ही बता दिया है।


2. काल भैरव मंदिर :


उज्जैन के काल भैरव मंदिर में लोगों की बहुत आस्था है, अपनी मनोकामना सिद्धि के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं। यहां मदिरा को प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है। भगवान काल भैरव को समर्पित यह मंदिर तांत्रिक प्रथाओं से जुड़ा हुआ है।



3. हरसिद्धि मंदिर :


राजा विक्रमादित्य की आराध्य देवी, देवी हरसिद्धि को समर्पित यह मंदिर है।
मान्यता यह भी है कि यहां देवी सती की कोहनी गिरी थी।
हरसिद्धि माता मंदिर, उज्जैन में दो विशाल दीप स्तंभ हैं, जिनमें कुल मिलाकर 1011 दीपक जलाए जाते हैं। ये दीप स्तंभ, विशेष रूप से नवरात्रि के दौरान, एक अद्भुत दृश्य प्रस्तुत करते हैं।

दीपों की संख्या -
एक दीप स्तंभ में 501 दीपक होते हैं, जिसे 'शिव' माना जाता है।
दूसरे दीप स्तंभ में 510 दीपक होते हैं, जिसे 'पार्वती' माना जाता है।
दोनों दीप स्तंभों को मिलाकर कुल 1011 दीपक होते हैं।

दीप जलाने का कारण -
यह मंदिर राजा विक्रमादित्य की आराध्य देवी हरसिद्धि माता को समर्पित है।
मान्यता है कि राजा विक्रमादित्य ने इन दीप स्तंभों की स्थापना की थी।
दीप स्तंभों पर दीपक जलाना, देवी को प्रसन्न करने और आशीर्वाद प्राप्त करने का एक तरीका माना जाता है।
विशेष रूप से नवरात्रि के दौरान, दीपक जलाने का महत्व और भी बढ़ जाता है।

यह मंदिर महाकालेश्वर मंदिर के पास स्थित है।


4. राम घाट :


क्षिप्रा नदी के किनारे स्थित यह घाट, पवित्र स्नान और धार्मिक अनुष्ठानों के लिए प्रसिद्ध है। 



5. भर्तृहरि गुफाएं :


माना जाता है कि ऋषि भर्तृहरि ने यहां तपस्या की थी, यह गुफाएं धार्मिक महत्व रखती हैं। कहा जाता है कि यहां उपस्थित गुफा से चारों धाम जाने का रास्ता है। पूरी गुफ़ा की इमारत पत्थर की बनी हुई है, पत्थरों पर नक्काशी की गई है। इस गुफा के अंदर शिव जी व काल भैरव के मंदिर भी है।
गुफा भीतर से बहुत बड़ी है, लेकिन इसमें हवा के आने-जाने के लिए कोई खिड़की या दरवाजा नहीं है, अतः वहां एक प्रकार की महक भी रहती है और घुटन भी महसूस होती है। इसलिए गुफा के भीतर बहुत देर तक नहीं रहा जा सकता है।


6. सांदीपनि आश्रम :


भगवान कृष्ण और बलराम ने यहां शिक्षा प्राप्त की थी, यह आश्रम धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व रखता है। 
यहां जगह-जगह पर दीवारों पर भगवान श्रीकृष्ण जी की बाल लीलाओं, महाभारत, गीता के उपदेश, द्वारिका के विभिन्न दृश्यों को चित्रित किया गया है, साथ ही उन घटनाओं का वर्णन भी है।

पूरे आश्रम में घूमने के दौरान ऐसा प्रतीत होता है मानो द्वापरयुग में पहुंच गए हैं।

आश्रम में बहुत साफ़ सफ़ाई थी और एक आंतरिक शांति थी, जो हमें स्वतः ही भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन कर दे रही थी। 
महाकाल के दर्शन के पश्चात् यहां आकर एक बार फिर भक्ति में लीन हो गए थे।


7. गढ़कालिका मंदिर :


देवी कालिका को समर्पित यह मंदिर, उज्जैन के प्राचीन मंदिरों में से एक है।


8. मंगलनाथ मंदिर :


क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित यह मंदिर, मंगल ग्रह को समर्पित है।


9. चिंतामन गणेश मंदिर :


भगवान गणेश की एक विशाल मूर्ति के लिए प्रसिद्ध है। मान्यता है कि ब्रह्मा जी, जब सृष्टि का निर्माण कर रहे थे तो उनके मन में बहुत अधिक चिंता विद्यमान थी, अतः उन्होंने यहीं पर योग साधना की थी, जहां पर गणेश जी उनकी सभी चिंताओं को हर लिया था। तब से यह मंदिर चिंतामन गणेश मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हो गया।

यह मंदिर, शहर से 7 किलोमीटर दूर है, और महाकालेश्वर मन्दिर के निकट है।
अतः हमने इस मंदिर के दर्शन पहले दिन ही किए। 

उस दिन कृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव था। अतः वहां कृष्ण जी के बाल रूप को एक बड़े से पालने में बैठाया हुआ था, और सभी भक्तों को उस पालने को झुलाने का अवसर दिया जा रहा था।

हम लोग दर्शन तो भगवान गणेश जी के ही करने गए थे, पर जब पालना झूलाने का अवसर मिला तो, मन भक्ति रस से सराबोर हो गया। एक ही जगह भगवान गणेश जी और भगवान श्रीकृष्ण की एक साथ कृपा, वो भी ऐसे, जिसकी हमने कल्पना भी नहीं की थी।

एक बात और उज्जैन की सराहनीय है कि वहां प्रत्येक दिन आपको व्रत से जुड़े भोज्य पदार्थ, जैसे साबूदाना खिचड़ी, साबूदाना वड़ा, साबूदाना खीर, मेवा खीर‌, मेवे की मिठाई, फल-फूल इत्यादि बहुतायत में मिलते हैं। अतः महाकाल जी की नगरी में पहुंच कर आप प्रत्येक दिन सात्विक भोजन ग्रहण करते हुए व्यतीत कर सकते हैं।
हमारा उस दिन जन्माष्टमी का व्रत था, जो हमारा सुचारू रूप से पूर्ण हुआ।


10. ISKCON मंदिर :


भगवान कृष्ण को समर्पित यह मंदिर, नानाखेड़ा बस stand के पास स्थित है। 
हम यहां जन्माष्टमी महोत्सव के दिन नहीं पहुंच पाए, क्योंकि महाकालेश्वर मंदिर और ISKCON मंदिर, दोनों दूर-दूर हैं।
अतः हम दूसरे दिन ISKCON मंदिर जा पाए।
बहुत सुंदर, स्वच्छ और विशाल मंदिर है।
वहां उपस्थित मूर्तियां मन को मोह लेने वाली हैं।
वहां पहुंच कर हमें पता चला कि वहां कृष्ण जन्मोत्सव एक दिन नहीं बल्कि दो दिन किया जाता है ।
एक और बात की कृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव में भगवान श्रीकृष्ण के बाल रूप की पूजा की जाती है।
और बच्चों की birthday तो बिना cake काटे नहीं मनाई जाती है, अतः दूसरे दिन cake काटा गया था। 
जन्मदिवस के अनुरूप ही प्रसाद में भोजन में पनीर, आलू, छोले, पूरी, चावल के साथ ही cake भी वितरित किया जा रहा था। एक cake खत्म होने पर दूसरा, तीसरा, पर वो प्रसाद का हिस्सा बना रहा।
उस समय वहां बहुत भीड़ थी, सभी लाइन में खड़े अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रहे थे। 
उस लाइन में सब तरह के लोग खड़े थे, जाति-धर्म, ऊंच-नीच, अमीर-गरीब, किसी का कोई भेद नहीं था।
लाइन इतनी लम्बी की ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रही थी। पर फिर भी सभी कुछ बहुत व्यवस्थित और सुचारू रूप से चल रहा था। 
भोग-प्रसाद में भी इतनी बरक्कत थी कि कोई भी बिना प्रसाद लिए रह जाएगा, ऐसा बिल्कुल नहीं था।

हमने उस दिन दाल बाफले खाने का plan किया था। यह उज्जैन का विशेष भोजन है।
पर जब सामने कृष्ण लला के जन्मोत्सव का प्रसाद वितरित हो रहा हो तो उसके आगे कुछ भी विशेष नहीं।
हमने भी प्रसाद ग्रहण करने का सौभाग्य प्राप्त किया।
प्रसाद का स्वाद ऐसा था कि मन-मस्तिष्क में समा गया, और तृप्ति इतनी की लग रहा था मानो भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव में शामिल हैं और कान्हा सब पर अपनी स्नेह वर्षा कर रहे हों।


11. चौबीस खंभा मंदिर :


यह मंदिर महाकाल मंदिर के पास स्थित है और इसमें 24 खंभे हैं।


12. सिंहासन बत्तीसी :


उज्जैन नगरी महाकाल जी की नगरी है, अतः प्रथम दर्शन उन्हीं के करें। पर साथ ही यह महाराजा विक्रमादित्य की भी राजधानी रही है। अतः सिंहासन बत्तीसी व कालिदास जी की academy भी ज़रूर देखें।
यहां महाराजा विक्रमादित्य, उनका सिंहासन बत्तीसी, उनके नौ रत्नों और महान कवि कालिदास की स्मृति में स्थापित, यह अकादमी संस्कृत और कला के अध्ययन का केंद्र है।
सिंहासन बत्तीसी के सभी प्रश्न, उनके उत्तर, महाराजा विक्रमादित्य व उनके सभी नौ रत्नों की विशाल मूर्ति व उनके विषय में विस्तार से वर्णन किया गया है।
इस जगह आकर महान महाराजा विक्रमादित्य, उनके नौ रत्नों, विशेष रूप से कालिदास जी से रुबरु होने का, अपने महान इतिहास से जुड़ने का अवसर मिला, जो कि अद्भुत था।

13. नवग्रह मंदिर (त्रिवेणी) :


शिप्रा नदी के त्रिवेणी घाट पर स्थित यह मंदिर, नौ ग्रहों को समर्पित है। यहां लोग दूर-दूर से आकर नवग्रह शांति की पूजा करवाते हैं और अपने जीवन में सुख शांति की कामना करते हैं।

आखिर दिन उज्जैन से निकलते हुए हमने एक restaurant में दाल बाफले का आनन्द लिया। सचमुच बहुत स्वादिष्ट भोजन है और उससे अधिक आनन्द इसमें आया कि वहां भोजन परोसने वाले बड़े प्रेम और आत्मीयता से भोजन परोस रहे थे। जिससे सभी को भोजन ग्रहण करके तृप्ति का अनुभव हो रहा था। 

वैसे हमने भी दाल बाफले की recipe डाली हुई है, आप चाहें तो link पर click करके उसे बनाना सीख सकते हैं।

पूरा विवरण खत्म करने से पहले आपको बता दें कि चाहे हम खंडवा से ओंकारेश्वर गये या वहां से उज्जैन... 

हरियाली बहुत ज़्यादा थी, pollution न के बराबर, लोग बहुत अच्छे, बहुत सीधे-सादे, सच्चे और सरल, tourist की help करने वाले, उनको support करने वाले, कहीं कोई ठगी, कोई बेइमानी नहीं। फिर चाहे वो आश्रम हो, resort हो, cab वाले हों, e-rickshaws वाले हों, shopkeepers हों, सब में यही देखने को मिला… और न‌ के बराबर कीड़े-मकौड़े मच्छर आदि, चाहे वो कमरे हों, नदी का तट या swimming pool...

जैसा कि होना चाहिए, MP वैसा ही लगा, बाकी states को भी यह सीखना चाहिए, जिससे पूरा भारत बहुत अच्छा हो जाए।

इसी के साथ हमारा महाकाल की नगरी उज्जैन का सफ़र सुखपूर्वक पूर्ण हुआ। वहां कुछ और स्थान भी थे, पर समय के अभाव के कारण हम वहां नहीं जा सके, अतः हमने वहां का वर्णन नहीं किया है।

आप सभी को सावन के दूसरे सोमवार पर विशेष शुभकामनाएं 

हर हर महादेव, जय शिव शंभू 🙏🏻🚩