आज एक सच्ची कहानी साझा कर रहे हैं, इसे पूरी पढ़िएगा, इसमें parenting की tip भी छुपी है। कोई ज़रूरी नहीं है कि बहुत पढ़े-लिखे लोग ही parenting को सही से समझ पाएं...
बच्चों को सही दिशा निर्देश, कैसे देना है... कैसे उनके भविष्य को निखारना है, यही प्रदर्शित करती है आज की short story..
मेहनत की कीमत
नितिन और दमयंती एक छोटे से गांव में रहते थे, पर उनकी आकांक्षाएं बहुत बड़ी-बड़ी थीं।
वो औरों की तरह, गांव में रहकर कम में जीना नहीं चाहते थे, बल्कि वो चाहते थे कि जिस तरह से उन्होंने अपना बचपन बीता दिया, वैसा उनके बच्चों का न हो।
बस यही सोच, उन्हें दिल्ली जैसे बड़े शहर में ले आई। पर यहां आकर उन्हें एहसास हुआ कि सब कुछ उतना आसान नहीं था, जैसा उन्होंने सोचा था।
ज़िंदगी जितनी आसान गांव में थी अपनों के बीच, शहर में उतना ही अधिक संघर्ष करना पड़ रहा था।
पढ़े-लिखे वो ज्यादा थे नहीं, अतः नितिन ने मेहनत मजदूरी शुरू कर दी, साथ ही कुछ हुनर भी सीखना शुरू किया, जैसे मिस्त्री का काम, रंग-रोगन, आदि...
नितिन और दमयंती ने जब उनकी बेटी हुई, तो यह निर्णय लिया, कि बच्चे दो ही करेंगे, चाहे दूसरा बच्चा भी बेटी ही क्यों न हो। गांव में जैसे बहुत बच्चे होते हैं, हम वैसा नहीं करेंगे।
पर भगवान ने उनकी अधिक परीक्षा नहीं ली और दूसरा बच्चा बेटा हुआ। लेकिन परिवार बढ़ने से अब अकेले नितिन की कमाई से घर नहीं चल रहा था। खाने-पीने का इंतजाम तो फ़िर भी हो जाता था, पर उनका सोचना था कि हम नहीं पढ़ें हैं, पर बच्चों को जरूर पढ़ाएंगे। उतनी कमाई तो कैसे भी नहीं हो रही थी।
तो परिवार की जरूरत पूरी करने के लिए, दमयंती भी नितिन के साथ चल दी, मेहनत-मजदूरी करने के लिए...
दोनों की कमाई से घर ठीक-ठाक चलने लगा था, लेकिन इसमें बच्चों का ध्यान रखना मुश्किल हो रहा था। पर सब तो नहीं मिल सकता था।
बिटिया नलिनी तो पढ़ने में अच्छी थी, पर बेटा शिखर, खेल तमाशे में ज्यादा रहता था और पढ़ता कम था।
मां-बाप कहते, पढ़-लिख लो, तो कुछ अच्छा कर लोगे, तुम्हारे कारण ही गांव छोड़ा और मेहनत-मजदूरी कर रहे हैं। पर शिखर मस्ती में ही रहता।
जब शिखर छोटा था, तब तो दिन गुज़र गए पर जब वो बड़ा होकर भी न सुधरा तो, नितिन और दमयंती बहुत चिंतित रहने लगे।
आखिर बहुत सोच-विचार कर नितिन ने शिखर से कहा कि मैंने तुम्हारे लिए अपने मालिक से बात कर ली, तुम भी हमारे साथ काम करना।
शिखर सहर्ष तैयार हो गया। उसे अपने माता-पिता की मेहनत कभी बड़ी लगी ही नहीं थी। वो सोचता था, सारे दिन बालू-cement में हाथ डालना कौन बड़ी मेहनत का काम है।
पर यह सुनकर दमयंती बहुत चिंतित हो उठी, मेरा नाजुक, छोटा सा बेटा इतनी मेहनत का काम कैसे कर पाएगा?
उसने हौले से नितिन से पूछा, तब नितिन ने दृढ़ता से कहा कि कुछ समझ, सिर पर पड़े, तभी आती है... तो वो चिंता न करे, फिर अपनी आंखों के सामने ही तो होगा।
दमयंती फिर कुछ न बोली, कहीं न कहीं वो जानती थी कि नितिन से बेहतर शिखर के लिए कोई नहीं सोच सकता...
जब शिखर वहां पहुंचा तो मालिक ने drill mechine पकड़ा दी और tiles तोड़ने को कहा।
शिखर, drill mechine लेकर खड़ा हो गया। पर थोड़ी ही देर में आह! कितना कठिन है यह... हर पल टूट कर उछलती हुई tiles का आंख पर जाने का खतरा था। साथ ही इतने force के साथ machine चल रही थी तो उसको संभालना भी चंद घंटों में भारी लग रहा था और धूल तो इतनी की सांस लेना दूभर हो चला था।
5-6 घंटे काम करने के बाद खाना खाने का समय हो गया था। पर हाथ में रोटी तोड़ने लायक भी जान नहीं लग रही थी।
थोड़ी देर में ही वापस काम करने के लिए सब चल पड़े... इतनी जल्दी.. अरे थोड़ा तो आराम कर लेने दो...
पर जाना पड़ा, अब drill mechine नहीं दी गई थी और बालू-cement का मसाला तैयार करना था। पर उसे तैयार करने में उंगलियां कटने लगी।
जब शाम हुई तो सबको पैसे दिए गए, दिनभर की अथक परिश्रम के 700 रुपए मिले। इतनी मेहनत के बस इतने?...
शाम को घर पहुंचने के पश्चात् शिखर बिस्तर पर गिरा, तो बड़ी मुश्किल से खाना खाने के लिए उठा।
ऐसे ही एक हफ्ते तक वो नितिन और दमयंती के साथ काम पर जाता रहा। और रोज़ थककर चूर हो जाता।
एक हफ्ते बाद उसने नितिन और दमयंती के पांव पकड़ लिए और रोने लगा। मैं समझ गया कि आप लोग कितनी अधिक मेहनत करते हो।
अब मैं बहुत मेहनत से पढ़ाई करूंगा और आपका सपना पूरा करुंगा।
शिखर अब जी जान से पढ़ाई करने लगा। उसने लक्ष्य साधा कि वो इतनी मेहनत करेगा कि आने वाले railway clerical exam में वो जरूर से select होगा।
अब उसे कभी पढ़ने के लिए नहीं टोकना पड़ता था, क्योंकि वो मेहनत की कीमत समझ चुका था और यह भी जान चुका था कि उसके बेहतर भविष्य के लिए उसके माता-पिता कमर-तोड़ मेहनत कर रहे हैं।
और अब उसकी बारी है, अथक परिश्रम कर एक अच्छा मुकाम हासिल कर उन्हें जीवन पर्यन्त, आराम कराए और सुख दे।