आज शरद पूर्णिमा है। एक विशेष पूर्णिमा, जिसकी सब पूर्णिमा में मुख्य भूमिका है।
कारण, इस पूर्णिमा में चांद अपनी सोलह कलाओं से युक्त होता है। अर्थात् सबसे खूबसूरत, सबसे अधिक फलदाई होता है, अमृत-वर्षा करने वाला।
इस पूर्णिमा की एक विशेषता और है, कि द्वापरयुग में श्रीकृष्ण भगवान ने गोपियों के साथ इसी पूर्णिमा में रासलीला रचाई थी।
पर जो प्रियसी अपने साजन से दूर हो, उसे तो चांद तभी रास आएगा, जब वो अपने प्रियतम के साथ हो।
एक विरह वेदना में एक प्रियसी की चांद से कामना को काव्य बध किया है।
मिलन चांद चकोरी का
चांद है सुहाना,
देखे है ज़माना,
मिलन चांद चकोरी का।
पर तुम बिन सजना,
मन नहीं लगना,
क्या देखें मिलन चकोरी का।
तुम जो न साथ हो,
हाथ में न हाथ हो,
क्या देखें मिलन चकोरी का।
तुम उस छोर पर,
हम इस छोर पर,
क्या देखें मिलन चकोरी का।
चंदा, कुछ कर दो ऐसा,
फिर से साथ मिले हमेशा।
हाथ में हाथ हो,
एक-दूजे का साथ हो।
फिर हम भी देखेंगे,
मिलन चांद चकोरी का।।
शरद पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएँ 🙏🏻
