Friday 6 March 2020

Story of life: स्नेह भवन (भाग -5)


स्नेह भवन (भाग -5)

स्नेहा जी उनके साथ रहने आ गईं और आते ही उनके सधे हुए अनुभवी हाथों ने घर की ज़िम्मेदारी बख़ूबी संभाल ली।

सभी उन्हें  अम्मा कहकर ही बुलाते। हर काम उनकी निगरानी में सुचारु रूप से चलने लगा।

घर की ज़िम्मेदारी से बेफ़िक्र होकर नीरजा ने भी job join कर ली।

सालभर कैसे बीत गया, पता ही नहीं चला।
अम्मा सुबह दोनों बच्चों को उठातीं, तैयार करतीं, मान-मनुहार कर खिलातीं और स्कूल बस तक छोड़तीं। 

फिर किसी कुशल प्रबंधक की तरह अपनी देखरेख में बाई से सारा काम करातीं। रसोई का वो स्वयं ख़ास ध्यान रखने लगीं, ख़ासकर बच्चों के स्कूल से आने के व़क़्त वो नित नए स्वादिष्ट और पौष्टिक व्यंजन तैयार कर देतीं।

नीरजा भी हैरान थी कि जो बच्चे चिप्स और पिज़्ज़ा के अलावा कुछ भी मन से न खाते थे, वे उनके बनाए व्यंजन ख़ुशी-ख़ुशी खाने लगे थे।

बच्चे अम्मा से बेहद घुल-मिल गए थे।उनकी कहानियों के लालच में कभी देर तक टीवी से चिपके रहनेवाले बच्चे उनकी हर बात मानने लगे। समय से खाना-पीना और homework निपटाकर बिस्तर में पहुंच जाते।

अम्मा अपनी कहानियों से बच्चों में एक ओर जहाँ अच्छे संस्कार डाल रही थीं, वहीं हर व़क़्त टीवी देखने की बुरी आदत से भी दूर ले जा रही थीं।

नीरजा  और ऋषि बच्चों में आए सुखद परिवर्तन को देखकर अभिभूत थे, क्योंकि उन दोनों के पास तो कभी बच्चों के पास बैठ बातें करने का भी समय नहीं होता था। 

पहली बार नीरजा ने महसूस किया कि घर में किसी बड़े-बुज़ुर्ग की उपस्थिति, नानी-दादी का प्यार, बच्चों पर कितना सकारात्मक प्रभाव डालता है। 

 उसके बच्चे को कुछ दिन केवल दादी का ही सुख मिला था, पर अब तो उससे भी  वंचित हो गये थे, क्योंकि  उनके जन्म से पहले ही उनकी नानी और चार सालगुज़र पहले दादी भी चुकी थीं। 

आज नीरजा की  Birthday थी.....

आगे पढें अंतिम भाग, स्नेह भवन (भाग-6) में.......

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