आज भाई दूज, यम द्वितीया और चित्रगुप्त पूजन का दिन है।
भाई-बहन के प्यार पर बहुत कुछ लिखा है। पर आज सोचा, उस पर लिखें, जिस प्रसंग के होने के बाद से दीपावली के पंचदिवसीय पर्व में भाई-दूज भी शामिल हो गया।
तो उस प्रसंग को प्रारम्भ करने से पहले आपको बता दें कि भाई-दूज को यम द्वितीया भी कहकर पुकारा जाता है, बल्कि यह कहना ज़्यादा उचित है कि यम द्वितीया को ही कालांतर में भाई-दूज कहा जाने लगा है।
यम द्वितीया - शुरुआत भाई दूज की
यह त्यौहार यमराज जी और उनकी बहन यमुना जी से जुड़ा हुआ है। इस त्यौहार को संपूर्ण भारत वर्ष में मनाया जाता है, जिनके अलग-अलग नाम है।
भाई दूज को संस्कृत में “भगिनी हस्ता भोजना” कहते हैं। कर्नाटक में इसे “सौदरा बिदिगे” के नाम से जानते हैं, तो वहीं बंगाल में भाई दूज को “भाई फोटा” के नाम से जाना जाता है। गुजरात में “भौ” या “भै-बीज”, महाराष्ट्र में “भाऊ बीज” कहते हैं, तो अधिकतर प्रांतों में भाई दूज। भारत के बाहर नेपाल में इसे “भाई टीका” कहते हैं। मिथिला में इसे यम द्वितीया के नाम से ही मनाया जाता है।
यमराज जी और उनकी बहन यमुना जी से जुड़ी एक पौराणिक कथा है, जो यह दर्शाती है कि कैसे यह प्रसंग ही भाई-दूज के पवित्र पर्व में बदल गया।
यम द्वितीया की पौराणिक कथा :
सूर्यदेव की पत्नी छाया के गर्भ से यमराज तथा यमुना का जन्म हुआ। यमुना अपने भाई यमराज से स्नेह वश निवेदन करती थी कि वे उसके घर आकर भोजन करें। लेकिन यमराज व्यस्त रहने के कारण यमुना की बात को टाल जाते थे।
कार्तिक शुक्ल द्वितीया को यमुना अपने द्वार पर अचानक यमराज को खड़ा देखकर हर्ष-विभोर हो गई। प्रसन्नचित्त हो भाई का स्वागत-सत्कार किया तथा भोजन करवाया। इससे प्रसन्न होकर यमराज ने बहन से वर मांगने को कहा।
तब बहन यमुना ने भाई से कहा कि आप प्रतिवर्ष इस दिन मेरे यहाँ भोजन करने आया करेंगे, तथा इस दिन जो बहन अपने भाई को टीका करके भोजन खिलाए उसे आपका भय न रहे। यमराज 'तथास्तु' कहकर यमपुरी चले गए।
इसीलिए ऐसी मान्यता प्रचलित हुई कि जो भाई आज के दिन यमुना में स्नान करके पूरी श्रद्धा से बहनों के आतिथ्य को स्वीकार करते हैं, उन्हें तथा उनकी बहन को यम का भय नहीं रहता।
कहते हैं कि इस दिन जो भाई-बहन इस रस्म को निभाकर यमुनाजी में स्नान करते हैं, उनको यमराजजी यमलोक की यातना नहीं देते हैं।
इस दिन मृत्यु के देवता यमराज और उनकी बहन यमुना का पूजन किया जाता है। भाई दूज पर भाई को भोजन के बाद भाई को पान खिलाने का ज्यादा महत्व माना जाता है। मान्यता है कि पान भेंट करने से बहनों का सौभाग्य अखण्ड रहता है।
भाई-दूज के साथ ही इस दिन चित्रगुप्त पूजन भी होता है, जिसके विषय में अगले चित्रगुप्त पूजन वाले दिन बताएंगे…
एक बार फिर अपने बहुत सुंदर तरीके से दिलों को छूने वाली भारतीय परंपरा को उजागर किया है। बी ए
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