आज हिन्दी दिवस है और पूरे सप्ताह हिन्दी भाषा पर बहुत से कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।
पर सिर्फ एक हफ्ते तक, उसके बाद, फिर वही, सब जगह English का बोलबाला और हिंदी का तिरस्कार।
क्या त्रासदी है हिन्दी भाषा की, न कोई पढ़ना चाहता है, न कोई पढ़ाना चाहता है। और अब तो आलम यह है कि कोई पढ़ना चाहे भी तो सटीक और सार्थक हिंदी पढ़ाने वाले कोई दो-चार बड़ी मुश्किल से मिलेंगे।
पर इसका कारण क्या है?
अंग्रेजों का आधिपत्य, और उनके द्वारा शिक्षा पद्धति को बदल देना...
उन्होंने बहुत चालाकी से पाठ्यक्रम में हिंदी भाषा से अधिक महत्व अंग्रेजी भाषा को दे दिया। किसी को भी अपनी योग्यता सिद्ध करनी होती, तो उसके लिए अंग्रेजी भाषा का ज्ञान होना अनिवार्य कर दिया।
देश को आजादी तो बहुत पहले मिल गई थी, पर हम गुलाम अभी तक हैं, पहले अंग्रेजों के, अब अंग्रेजी भाषा के।
यह कैसे हुआ, कभी सोचा है आपने?
त्रासदी हिन्दी भाषा की
उसकी वजह है, अंग्रेजों से आजादी मिलने के बाद सत्ता कांग्रेस के हाथों में रही।
और उन्होंने कभी चाहा ही नहीं कि हिंदी भाषा को पाठ्यक्रम में मुख्य भाषा के रूप में पुनः स्थापित किया जाए।
नतीजन आज भी अंग्रेजी भाषा को मुख्य और हिंदी भाषा को गौण भाषा का स्थान प्राप्त है।
अंग्रेजी भाषा के ज्ञान की अनिवार्यता इतनी अधिक कर दी है कि कोई चाहकर भी उससे अछूता नहीं रह सकता है।
आजकल और एक त्रासदी देखी जा रही है हिंदी भाषा में, कि हिंदी भाषा को पढ़ाने और समझाने के लिए अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग किया जाने लगा है। ऐसा इसलिए क्योंकि पूर्ण हिंदी, अब शिक्षकों को ही नहीं आती है, तो वह बच्चों को क्या ही बताएंगे।
जैसे हिंदी भाषा की पुस्तिका में संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया, आदि noun, pronoun और verb के माध्यम से पढ़ाएंगे।
जबकि अंग्रेजी भाषा की पुस्तिका में समझाने के लिए दिए गए शब्दार्थ भी अंग्रेजी भाषा में ही सरल करके समझाएंगे।
आखिर क्यों हिंदी भाषा को अपना वास्तविक स्थान नहीं मिल रहा है? आखिर कब तक हिंदी भाषा राष्ट्रभाषा या मुख्य भाषा के स्तर को प्राप्त करेगी?
हम नहीं कहते हैं कि अंग्रेजी भाषा न पढ़ाएं, बल्कि अन्य विदेशी भाषाएं भी पढ़ाएं, पर सभी केवल पाठ्यक्रम का हिस्सा हों, न कि कोई मुख्य भाषा।
बच्चों को अन्य विदेशी भाषाएं भी पढ़ाएं पर उनके दिल में उसे उतारने या अपनी भाषा को परिवर्तित करने पर जोर न दें।
दिल की भाषा हिन्दी भाषा को ही रहने दें। बहुत मीठी, बहुत सरल, बहुत अपनत्व को लिए, बहुत-सी उपभाषा को अपने में समाहित की हुई दिलों को छू लेने वाली, सबको अपना-अपना स्थान देने वाली भाषा है। एक बार पूरे दिल से अपनाएं, जीवन का सुकून निहित है इसमें।
साथ ही हिंदी भाषा को मान केवल इस एक हफ्ते या दस दिन के लिए न दें, अपितु सम्पूर्ण जिंदगी में दें।
चलिए, हिन्दी की त्रासदी का अंत करें और उसे उस स्तर तक ऊपर उठाएं, जब तक 1 दबाने पर हिन्दी विकल्प देना प्रारंभ न हो जाए।
हिन्दी है दिलों की भाषा,
हिन्दी प्रेम की है आशा,
हिन्दी की विशेषता को,
हृदय में बसाइये…
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आप सभी को हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ 🙏🏻 💐
जय हिन्द, जय हिन्दी 🇮🇳
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