हम भी कैसे होते हैं
हम भी कैसे होते हैं
परेशानी तो परेशानी होती है,
कम या ज्यादा कहाँ होती है
परेशानी दूसरों को हो,
तो समझाते हैं
खुद पे आए तो, घबराते हैं
हम भी कैसे होते हैं
दर्द तो दर्द होता है,
कम या ज्यादा कहाँ होता है
दर्द दूसरों को हो तो,
सहनशीलता दर्शाते हैं
खुद को हो तो,
सह नहीं पाते हैं
हम भी कैसे होते हैं
कमी तो कमी होती है,
कम या ज्यादा कहाँ होती है
कमी दूसरों की हो तो,
झट बताते हैं
खुद की हो तो, तुरंत छिपाते हैं
हम भी कैसे होते हैं
सफलता तो सफलता होती है,
कम या ज्यादा कहाँ होती है
अपनी होती है तो,
बढ़ा-चढ़ा के बताते हैं
दूसरों की हो तो,
बेवजह घटाते हैं
हम भी कैसे होते हैं
सुख तो सुख होता है,
कम या ज्यादा कहाँ होता है
अपने को मिले,
इसके लिए मचलते हैं
दूसरों को मिले तो, जलते हैं
हम भी कैसे होते हैं
हर बात का मापदंड
अपने और दूसरों के लिए
बदलते हैं
एक ही बात पे कभी दिल बड़ा,
कभी छोटा कर लेते हैं
हम भी कैसे होते हैं
अच्छी कविता है ,और सत्य सही आकलन है ,सच में अधिकतर लोग ऐसै ही होते हैं । 👆
ReplyDeleteधन्यवाद,आपने अपना अमूल्य समय प्रदान किया
ReplyDeleteआपके विचारों के लिए सादर धन्यवाद
Commendable👏👏👏👏
ReplyDeleteThank you for your valuable comment
ReplyDeleteEkdum dil ko chu gayi poem
ReplyDeleteधन्यवाद संवेदना जी, आपके शब्दों ने कविता की शोभा बढ़ा दी
DeleteNic poem
ReplyDeleteThank you
DeleteKeep visiting
“हम भी कैसे होते हैं”....बिलकुल सही व्याख्या 👌
ReplyDeleteधन्यवाद, आपके शब्दों ने, मुझमें नयी ऊर्जा का संचार कर दिया है
Deleteआज कल के संदर्भ में एक उचित कविता है👌👌👍👍
ReplyDeleteधन्यवाद अलका जी
Deleteआपके सराहनीय शब्द मुझे लिखने के लिए प्रेरित करते हैं
सच में हम ऐसे ही होते हैं। सही आकलन ।
ReplyDeleteधन्यवाद ऋतु,
Deleteआपके शब्दों ने मुझमें नयी ऊर्जा का संचार किया है