Friday, 4 May 2018

poem : हम भी कैसे होते हैं

हम भी कैसे होते हैं


हम भी कैसे होते हैं
परेशानी तो परेशानी होती है, 
कम या ज्यादा कहाँ होती है
परेशानी दूसरों को हो, 
तो समझाते हैं
खुद पे आए तो, घबराते हैं
हम भी कैसे होते हैं

दर्द तो दर्द होता है, 
कम या ज्यादा कहाँ होता है
दर्द दूसरों को हो तो, 
सहनशीलता दर्शाते हैं
खुद को हो तो, 
सह हीं पाते हैं
हम भी कैसे होते हैं

कमी तो कमी होती है, 
कम या ज्यादा कहाँ होती है
कमी दूसरों की हो तो, 
झट बताते हैं
खुद की हो तो, तुरंत छिपाते हैं
हम भी कैसे होते हैं

सफलता तो सफलता होती है, 
कम या ज्यादा कहाँ होती है
अपनी होती है तो, 
बढ़ा-चढ़ा के बताते हैं
दूसरों की हो तो, 
बेवजह घटाते हैं
हम भी कैसे होते हैं

सुख तो सुख होता है, 
कम या ज्यादा कहाँ होता है
अपने को मिले, 
इसके लिए मचलते हैं
दूसरों को मिले तो, जलते हैं
हम भी कैसे होते हैं

हर बात का मापदंड
अपने और दूसरों के लिए बदलते हैं
एक ही बात पे कभी दिल बड़ा, 
कभी छोटा कर लेते हैं  
हम भी कैसे होते हैं

    

14 comments:

  1. अच्छी कविता है ,और सत्य सही आकलन है ,सच में अधिकतर लोग ऐसै ही होते हैं । 👆

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  2. धन्यवाद,आपने अपना अमूल्य समय प्रदान किया
    आपके विचारों के लिए सादर धन्यवाद

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  3. Commendable👏👏👏👏

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  4. Thank you for your valuable comment

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  5. Replies
    1. धन्यवाद संवेदना जी, आपके शब्दों ने कविता की शोभा बढ़ा दी

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  6. “हम भी कैसे होते हैं”....बिलकुल सही व्याख्या 👌

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    1. धन्यवाद, आपके शब्दों ने, मुझमें नयी ऊर्जा का संचार कर दिया है

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  7. आज कल के संदर्भ में एक उचित कविता है👌👌👍👍

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    1. धन्यवाद अलका जी
      आपके सराहनीय शब्द मुझे लिखने के लिए प्रेरित करते हैं

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  8. सच में हम ऐसे ही होते हैं। सही आकलन ।

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    1. धन्यवाद ऋतु,
      आपके शब्दों ने मुझमें नयी ऊर्जा का संचार किया है

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