अब तक आपने पढ़ा, कैसे सबका तिरस्कार झेलती
राधिका अपनी ज़िंदगी गुज़ार रही थी।
अचानक उसकी मुलाकात अपनी घनिष्ठ सहेली प्रेरणा से हुई
....... अब आगे
तिरस्कार(भाग-2)
उसकी सास
तो प्रेरणा की तारीफ करते नहीं थक रहीं थीं, बोलीं
कि हमारी कमाऊ बहू ने
तो हमारे घर का नक्शा ही बदल दिया। बेचारी दिन भर ऑफिस से थक कर आती है, पर हमारे आराम और खान पान का उसे बहुत
ध्यान रहता है, दो नौकर लगा रखे हैं सारा काम काज करने के
लिए, खाने पीने की चीजों से घर भर के रखती है, बहुत सुख से
जीवन कट रहा है।
तभी
प्रेरणा के आने पर सासु माँ अपने कमरे में चली जातीं हैं। राधिका ने प्रेरणा से
दिनचर्या पूछी,
तो उसने कहा “सुबह
7:30 पर उठती हूँ, maid आ
कर नाश्ता-खाना बनाने में लग जाती है और एक maid रिया को स्कूल के
लिए तैयार करती है।
9
बजे तक मैं,
मेरे husband और रिया तीनों निकल
जाते हैं। दिन भर ऑफिस कर के शाम को 6 बजे तक वापस आती हूँ, शाम को चाय-नाश्ता
करके थोड़ा T.V. देखना, फिर खाना खा कर सो जाना, बस
और क्या।”
तो
घर के सारे काम, रिया
को पढ़ाना, सुलाना, खिलाना, वो सब कैसे manage होता है?
रिया
को पढ़ाने के लिए tutor आते हैं और बाकी सब के लिए maid हैं। मुझसे तो ये सब
होता नहीं। छुट्टी के दिन क्लब या shopping के लिए निकल जाती
हूँ।
तभी
उसके पति का फोन आता है,
बातों में बड़े ही प्यार से उसने बताया कि electricity का बिल और bank
का काम हो
गया है। उनका वार्तालाप सुन कर राधिका को समझ आ गया प्रेरणा के यहाँ उसका पति ही
बाहर के कामकाज संभालते हैं, और साथ ही प्रेरणा को मान-सम्मान और प्यार भी
खूब देतें हैं। तभी दो-तीन फोन और बजे तो
प्रेरणा ने बड़े
रूखेपन से बोल दिया “busy हूँ, I will call you later ”. पूछने पर पता चला
कि वो फोन उसके रिश्तेदारों और मित्रों के थे।
चाय-नाश्ता
करके राधिका अपने घर को रवाना हो गई। प्रेरणा से इस मुलाक़ात ने उसे अंदर तक झकझोर
दिया था। कदम तो घर कि ओर पर मन उसे कहीं और ले जा रहा था। वो सोचती हुई चली जा
रही थी कि क्या उसके घर को समय समर्पित करने कि सोच सही थी? वो प्रेरणा से अधिक
सक्षम थी,
पर फिर भी उसे सिवाय तिरस्कार के कुछ नहीं मिल रहा था। कितनी सोच बदल गई है लोगों
की,
कि जहां पहले घर में रहने वाली और घर का
काम खुद संभालने वाली स्त्रियों को सम्मान मिलता था
और नौकरों से काम कराने वालियों
को तिरस्कार,
वहीं आज तो धारणा ही बदल गई है। आज के इस उथल-पुथल ने उसे यह सोचने को मजबूर कर
दिया कि वो पुनः job join करेगी। थोड़े से प्रयास से ही उसे प्रेरणा से
अच्छी job मिल गयी।
आज
उसके घर का माहौल बदल गया है। उसने भी दो नौकर रख लिए हैं।
रोहन को अब tutor पढ़ाने
आते हैं। पर नौकर तो नौकर होते हैं, राधिका जितना सबका ध्यान नहीं रखते, पर अब सबका सारा
गुस्सा नौकरों पर निकालता। आए दिन नौकर बदले जाते। पर राधिका को अब बहुत प्यार और
सम्मान मिलने लगा है। सभी उसकी प्रशंसा करते नहीं थकते। और तो और जब किसी रिश्तेदार या दोस्त का फोन आता तो बात कि शुरुआत ऐसी होती “busy तो नहीं
हो, बात
कर सकते हैं?”
आज
राधिका फिर सोच रही थी कि क्या ज़माना है, आज जब मेरे पास time है तो मैं लोगों को
busy दिखती हूँ।
क्या house wife
होना इतने तिरस्कार की
बात है?
क्या हमारी माँओं का
अपने जीवन का हर क्षण परिवार को समर्पित करना इतना तुच्छ था? जो माँ घर में रहकर
प्यार बिखेरतीं,
बड़ों को सेवा और छोटों को संस्कार
देतीं हैं,
क्या उसका कोई मोल नहीं है? हाय रे! दुनिया कि इस ‘working women’ की छाप ने हमसे
बहुत कुछ छीन लिया है,
जो आगे आने वाला समय बताएगा; और हमारा भारत भी आगे बढ़ने की होड़ में इतना
दूर चला जाएगा कि सेवा,
संस्कार,
रिश्तो में प्यार और समर्पण, इन सब के मायने सब पीछे छूट जाएंगे।
आज जीवन के मूल्य एवं धारणाऐँ बदल चुकी हैं,पैसा ही सब कुछ है । प्रेम और सेवा की कोई कद्र नही रह है इसी धारणा को उजागर करती हुई कहानी बहुत अच्छी बन पड़ी है ,लेखिका बधाई की पात्र है ।
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteआप मेरी लिखी हुई कृतियों का एकदम सटीक मूल्यांकन करती हैं 🙏
Sahi baat hai...gharwali ab gharwali nahi ...bahar wali ho gayi hai..
ReplyDeleteAb ghar ko sambhale kaun??
धन्यवाद
Deleteयह प्रश्न हमारे समाने ज्वलंत विषय बन गया है
Bilkul sahi lekha hai anamika ji aapne aaj ka jamane mai house wife ke koi value he nhi raha gaye hai depression mai chale jati hain housewife
ReplyDeleteधन्यवाद,
ReplyDeleteमेरी इस कहानी को लिखने का मूल उद्देश्य यही है,कि house wife,वो इसलिए नहीं है कि वो किसी से कम है,
House wife होना,उसका समर्पण है,त्याग है
उसका सम्मान करें,तिरस्कार नहीं