Tuesday 11 September 2018

Story Of Life : जश्न ( भाग- २)

अब तक आपने पढ़ा, कि रजत और नेहा के विवाह के पश्चात रजत ने अपने परिवार से पहले, हमेशा ही नेहा का साथ दिया। पर जब रजत के लिए नेहा  की साथ देने की बारी आई, तो वो चुपचाप खड़ी रही.....
अब आगे..... 


जश्न ( भाग- २) 


जब शाम को वो घर आई, रजत उसको सवाल भरी नजरों से देख रहा था। वो बोली मैं कैसे कुछ बोल सकती थी, पापा का कितना बड़ा नुकसान हो गया था, और फिर मैं भी तुम्हारी तरफ से बोलती। तो पापा को कितना बुरा लगता। अब ये तो तुम बिलकुल भी मत सोचना, कि मैं आज की बात से अपने घर जाना छोड़ दूँगी। मैं सब कुछ छोड़ सकती हूँ, पर ना तो कभी अपने माँ-पापा का दिल तोडूंगी, ना उनका कभी साथ छोड़ूँगी।
रजत ठगा-सा उसे देखता रह गया, आज उसकी गलती नहीं होते हुए भी नेहा के घर में सबने उसे कितना कुछ सुना दिया, पर नेहा ने उसका साथ देना तो छोड़ दो, उसे इस बात का अफसोस तक नहीं था कि उसने रजत का साथ नहीं दिया। बल्कि उसने साफ-साफ कह दिया था, कि अगर किसी बात में उसके मायके का कोई और रजत आमने-सामने होंगे, वो सदा उनका ही साथ देगी।
आज रजत गहन विचार में डूबा हुआ था, उसने नेहा के सही-गलत सब में हमेशा नेहा का ही साथ दिया। कभी ये सोचा ही नहीं कि सही उसके घर वाले भी हो सकते थे। आखिर जो उसकी हर बात का इतना ख़्याल रखते थे, अचानक से सब इतने गलत कैसे हो गए थे। पर सोच तो उसकी बदल चुकी थी। और उसी के कारण उन लोगों के घर का बँटवारा तक हो गया, उसके सब अपने उससे दूर होते गए। नहीं ये कहना ज़्यादा उचित होगा, वो सबसे दूर होता चला गया।
दिन गुजरते गए। उसके एक बेटा हुआ, दोनों तरफ के परिवार में बहुत ही खुशियाँ मनाई गयी, पर रजत बहुत खुश नहीं था। उसने बेटे के होने की कोई खुशी नहीं मनाई।
दो साल बाद रजत सबको खुशी से party का invitation दे रहा था। जब सब party में आए तो सबको पता चला, कि रजत के एक प्यारी सी बेटी हुई थी। नेहा की माँ ने रजत से पूछ ही लिया, क्या बात है रजत, दुनिया बेटे के होने का जश्न मनाती है, तुम पहले हो, जिसे बिटिया के होने का जश्न मनाते हुए देखा है। उसने सबको संबोधित करते हुए बोला, कि बेटियाँ ही हैं, जो कभी नहीं बदलती हैं। वो अपने माँ-पापा और अपनों का किसी भी परिस्थिति में साथ नहीं छोड़ती हैं, दिल नहीं तोड़ती हैं। बेटे तो बदल जाते हैं, वो बहुत जल्दी साथ भी छोड़ देते हैं, अपनों का दिल भी तोड़ देते हैं।
देखा जाए तो लड़कियाँ शादी के बाद अपने घर से तो विदा हो जाती हैं, पर दिल से कभी विदा नहीं होती हैं। जबकि लड़के साथ में तो रहते हैं, पर दिल से तुरंत विदाई ले लेते हैं। तभी तो अब जश्न भी बेटी के होने का ही होना चाहिए, ना कि बेटे के होने का।
मैं किसी और को क्या बोलूँ, मैंने भी ऐसा ही किया था, जिसके लिए मैं बहुत शर्मिंदा हूँ, अपने माँ-पापा और सभी अपनों से माफ़ी भी माँगता हूँ। और फिर से पहले जैसा बन जाना चाहता हूँ। सब अपनों के करीब आना चाहता हूँ, पहले जैसा ही प्यार चाहता हूँ।
अपने तो अपने होते हैं, सबने उसे माफ़ कर दिया। और जश्न का रंग दोगुना हो गया।

10 comments:

  1. Aaj kal aisa hi ho raha h...nice story

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  2. Bilkul sahi. Jinki beti nhi Hoti wo bahut unlucky hote hai.

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    1. Completeness to dono ke hone se aati hai
      Betiyan to hmesha hi bhagy jgati hain

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    2. ऐसा नहीं कि जिसके बेटियाँ नहीं होती वो unlucky होते है।अपने अपने अनुभव की बात है।

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    3. बिल्कुल सही है

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  3. Beta ho ya beti.. unhe sanskaari banane ka prayas karna chahiye.

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