Thursday 25 October 2018

Poem : नहीं, वो तुम नहीं हो

नहीं, वो तुम नहीं हो




कल मिला रास्ते में कोई
नैन नक्श तुमसे ही थे
रंग रूप भी तुम सा ही था
वो जब सामने से निकली
तो मैं कुछ क्षण ठिठका भी था
पर तभी दिल ने कहा
नहीं, वो तुम नहीं हो
होतीे गर तुम, तो ठहर जाती
पास मेरे चली आती 

वही हंसी, वही खनक
आंखों में थी वैसी चमक
जुल्फों को वैसे ही लहराना
अदाओं से दीवाना बनाना
पर तभी दिल ने कहा
नहीं, वो तुम नहीं हो
होतीे गर तुम, तो ठहर जाती
पास मेरे चली  आती

चली गयी हो तुम दूर
पर दिल में मेरे
अब भी यहीं हो
इस कदर ज़हन
में समायी हो
गर झलक मिलती
है, किसी से
लगता है सामने
तुम आयी हो
पर तभी दिल ने कहा
नहीं, वो तुम नहीं हो
होती गर तुम, तो ठहर जाती
पास मेरे चली आती

12 comments:

  1. Very beautiful & touching composition 👌🏻💫
    Keep penning your beautiful thoughts 👍🏻💐

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    1. Thank you Ma'am for your admiration
      Keep visiting and commenting🙏

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  2. बहुत जीवंत कविता है पढ़कर सुनीता का मुस्कुराता चेहरा सामने अा जाता है।और उसके आस पास ही होने का आभास होता है।
    रूबी वर्मा

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    1. आपके सराहनीय शब्दों ने मेरा लिखना सार्थक कर दिया
      आपका बहुत बहुत धन्यवाद

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  3. सुन्दर अभिव्यक्ति है


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    Replies
    1. आपका बहुत बहुत धन्यवाद
      आपके सराहनीय शब्दों ने मेरा लिखना सार्थक कर दिया

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