नहीं, वो तुम नहीं हो
कल मिला रास्ते में कोई
नैन नक्श तुमसे ही थे
रंग रूप भी तुम सा ही था
वो जब सामने से निकली
तो मैं कुछ क्षण ठिठका भी था
पर तभी दिल ने कहा
नहीं, वो तुम नहीं हो
होतीे गर तुम, तो ठहर जाती
पास मेरे चली आती
वही हंसी, वही खनक
आंखों में थी वैसी चमक
जुल्फों को वैसे ही लहराना
अदाओं से दीवाना बनाना
पर तभी दिल ने कहा
नहीं, वो तुम नहीं हो
होतीे गर तुम, तो ठहर जाती
पास मेरे चली आती
चली गयी हो तुम दूर
पर दिल में मेरे
अब भी यहीं हो
इस कदर ज़हन
में समायी हो
गर झलक मिलती
है, किसी से
लगता है सामने
तुम आयी हो
पर तभी दिल ने कहा
नहीं, वो तुम नहीं हो
होती गर तुम, तो ठहर जाती
पास मेरे चली आती
Nice composition👌👌
ReplyDeleteThank you Ma'am for your appreciation
DeleteGood one.....
ReplyDeleteThank you Sir for your appreciation
DeleteVery beautiful & touching composition 👌🏻💫
ReplyDeleteKeep penning your beautiful thoughts 👍🏻💐
Thank you Ma'am for your admiration
DeleteKeep visiting and commenting🙏
बहुत जीवंत कविता है पढ़कर सुनीता का मुस्कुराता चेहरा सामने अा जाता है।और उसके आस पास ही होने का आभास होता है।
ReplyDeleteरूबी वर्मा
आपके सराहनीय शब्दों ने मेरा लिखना सार्थक कर दिया
Deleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद
Very nice Anu
ReplyDeleteThank you for your appreciation
Deleteसुन्दर अभिव्यक्ति है
ReplyDelete।
आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Deleteआपके सराहनीय शब्दों ने मेरा लिखना सार्थक कर दिया