कीमत
अम्मा, के दो लड़के थे, बड़ा रमेश और छोटा दिनेश। अम्मा अपने
लड़कों के साथ रहा करती थी। दोनों ही खेती, व दुकान देखा करते थे।
बेटे जवान हो गए थे, तो अम्मा को दोनों की शादी की चिन्ता सताने लगी थी। बड़े
ही मन से उन्होंने दोनों की शादी करा दी।
कुछ दिन तक तो सब सही चला, पर जल्द ही हर काम में खींचा-तानी होने लगी। सब एक दूसरे के काम को कमतर आँका करते। अम्मा ने सब के बीच सब ठीक करने की बहुत कोशिश की, पर उनकी सभी कोशिशें नाकाम सिद्ध होने लगीं।
एक दिन अम्मा की दूर की सहेली, बसंती आई। अम्मा बोली, "बसंती, अब तो तुम ही बताओ, मैं क्या करूँ? मुझसे तो इन लड़कों के झगड़े ही नहीं संभल रहे हैं।"
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बसंती बहुत ही समझदार औरत थी। उसने कहा, "जब इन लोगों को साथ रहने की कीमत नहीं पता है, तो इन दोनों को अलग अलग कर दो।" "बंटवारा!..... क्या कह रही हो, तुम से मैंने बेकार ही पूछ लिया, इससे तो ये लड़ते हुए ही भले थे। कम से कम साथ तो थे।"
"तुम क्या सोचती हो जीजी, ऐसे रहते हुए भले हैं; तो तुम्हारा मन। पर अगर मेरी मानो तो, अलग कर दो। पर हाँ, तुम्हारा जो बेटा जिसमे होशियार है उसे वही मत देना, बल्कि दोनों को वही देना जिसमे वो कमजोर हों; फिर देखना, साल खत्म होते-होते दोनों एक ना हो जाएँ, तो मेरा नाम भी बसंती नहीं। और हाँ, अबकी जो पास आएंगे, तो फिर कभी दूर नहीं जाएंगे। इतना तो लिख कर रख लो।
बसंती की विश्वास भरी बातें सुन कर अम्मा ने वैसा ही किया, दोनों को अलग अलग कर दिया। साथ ही दोनों को वही काम दिये, जिसमें दोनों निपुण नहीं थे। बड़े को दुकान व छोटे को खेती का काम दे दिया। बहुओं को भी उनकी क्षमता के विरूद्ध काम दे दिये। रमेश को खेती की तो बहुत समझ थी। पर दुकान में सामान कहाँ से लाना है, कैसे दुकान में रखना है, किस तरह से सामान बेच कर मुनाफा कमाना है, इसकी उसे कोई समझ नहीं थी।
जब से दुकान रमेश के हिस्से आई थी, दुकान में सामान अस्त-व्यस्त फैला रहने लगा था। चूहों की फौज बढ़ गयी थी। कोई भी ग्राहक आता, तो सामान जल्दी नहीं मिला करता था। जिससे ग्राहक गुस्सा हो कर बिना सामान के जाने लगे, साथ ही ज़्यादातर तो ये भी बोल के जाया करते थे, कि रमेश भैया, धंधे कि समझ नहीं थी, तो पहले दिनेश से काम सीख तो लेते, फिर बैठते दुकान पर। और जो चतुर होते, वो रमेश को बेवकूफ़ बना कर सस्ते में सामान ले जाते, कुल मिला कर रमेश की आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपया होने लगा।
दिनेश के भी बड़े बुरे हाल थे, जो खेत रमेश एक दिन में जोत लेता था, उसी को दिनेश चार दिन में जोत पाया। हाथ में छाले पड़ गए सो अलग। जब पौधे निकले, उसमें खरपतवार(weeds)भी उग आये। दिनेश को इस बात की बिलकुल भी समझ नहीं थी, कब खरपतवार हटाते हैं, कब खाद डालते हैं। नतीजा ये हुआ कि दिनेश की सारी मेहनत पर पानी फिर गया, खड़ी फसल बर्बाद हो गयी।
दिनेश नए बीज खरीदने अपने दोस्त के पास आया, तो उसने दिनेश को समझते हुए बोला, आज तक रमेश भैया की फसल, कभी खराब नहीं हुई। अगर तुम ऐसे ही फसल खराब करते रहे तो ज़मीन बंजर भी हो सकती है। ऐसा करो, फालतू का झगड़ा बंद करो। और अपनी दुकान ले लो अम्मा से, ज्यादा सुखी रहोगे।
यही हाल बहुओं का भी था। छोटी से गाय की सानी, दूध दुहना आदि काम नहीं हो रहे थे। रोज़ जल्दी उठ उठ के उसे चक्कर आने लगे थे, और आए दिन गाय उसे मार दिया करती थी। वहीं बड़ी से सबके हिसाब से खाना बनाना, अम्मा की दवा देने के काम ठीक से नहीं हो रहे थे। कभी वो कुछ रोटी कम बनाती, तो कभी ज्यादा हो जाती। सब्जी-दाल भी कभी सबको बहुत कम पड़ती, कभी ढेर बन जाती तो फेंकनी पड़ती। अम्मा को कब कौन सी दवा देनी है, ये तो वो हमेशा ही भूल जाती थी।
छह महीने में ही बहू-बेटे अम्मा के पास चले आए। अम्मा हमें माफ कर दो, हमें हमारे काम ही वापस दे दो। अम्मा बोली, फिर चार दिन बाद लड़ने लगे तब? तब क्या होगा?
नहीं
नहीं अम्मा, अब हम कभी नहीं लड़ेंगे, हमनें एक दूसरे की कीमत
बहुत अच्छे से जान ली है। काम सबका बड़ा है, और एक दूसरे के बिना
हमारा कुछ नहीं हो सकता है।
अब सब एक साथ खुशी खुशी रहने लगे। अम्मा ने बसंती को फोन लगाया, अरे बसंती यहाँ तो 1 साल भी नहीं आया, और मेरे बच्चे तो ऐसे मिले हैं, कि एक दूसरे पर जान छिड़कने लगे हैं। बेटों से ज्यादा तो बहुओं में प्यार हो गया है। बहन सरीखी रहने लगीं हैं। गाँव वाले प्यार से रहने के लिए मेरे घर की मिसाल देने लगे हैं।
बसंती बोली, अब खुश तो हो ना जीजी?
अम्मा खुश होते हुए बोलीं, अरे खुश नहीं, बहुत खुश हूँ। तुम्हारे कारण ही मेरे घर में सब ने एक दूजे के काम की और एक दूजे के साथ की कीमत जान ली है।
Entertaining nice story
ReplyDeleteThank you so much Ma'am for your admiration
DeleteYour words encourage me to write more
Story with good morale👌
ReplyDeleteThank you much for your words
DeleteYour words boost me up