एक श्राद्ध ऐसा भी
मंगलू अपनी ही धुन में साइकिल पर सवार बहुत सारी
कॉपी, पेन्सिल और मिठाई ले कर चला जा रहा था, सामने से
रामदीन पंडित चले आ रहे थे। मंगलू को
देखकर बोले, अरे मंगलू कहाँ चला जा रहा है अपना हवाईजहाज
उड़ाते हुए?
अरे! पगले तुझे नहीं पता, आज कल पितरपक्ष चल रहे हैं। कितने दिन हो गए तेरे बाबू जी को गए हुए, उनके नाम से कब श्राद्ध कराएगा? बेचारे कितना चाहते
थे तुझे, तू भी तो बहुत चाहता था उन्हें। अब जरा भी चिंता
नहीं है, तुझे कि उन्हें स्वर्ग में सुख मिले।
पंडित जी जानते थे, मंगलू
अपने बाबू जी को बहुत चाहता था, तो एक बार भी बातों में फंस
गया, तो जीवन भर श्राद्ध कराएगा, इसलिए
जब से उसके बाबू जी गए थे, पंडित जी को जब भी मंगलू पितरपक्ष
में दिख जाता, वो उसे समझाते जरूर।
दो पितरपक्ष निकल गए थे, कहते-कहते, पर मंगलू एक कान से सुनता और दूसरे से
निकाल देता। पर आज मंगलू का धैर्य जवाब दे गया। वो बोला, आ
जाओ पंडित, आज हिसाब समझ ही लेते हैं।
हाँ तो पंडित, पहले तो ये बताओ, प्रभू श्री राम जी और भगवान श्री कृष्ण जी के श्राद्ध की कौन सी तिथि आई है, इस साल?
राम राम राम! कैसी नीच जैसी बात करते हो, वो तो भगवान हैं, उनका भी कोई श्राद्ध करता है। पंडित
गुस्से में बोला।
काहे, जन्म-मरण तो उनका
भी हुआ था ना?
का भाई, भांग खाकर आए हो? कैसी मूर्खता भरी बात कर रहे हो! पंडित का गुस्सा
बढ़ने लगा।
वही तो पंडित, हम तो भगवान राम, कृष्ण को देखे नहीं हैं, तुम भी नहीं देखे हो, तब
भी भगवान मानते हो। हम तो बाबू जी को देखे हैं, उही हमको जन्म दिये, पाले-पोसे, का-का नहीं किए, तो हमारे तो उही भगवान हैं। जब तक बाबू जी जिंदा थे, हम खूब सेवा किए। तुम भी जानते हो, कि किए हैं। का हम झूठ बोल रहे हैं?
भी भगवान मानते हो। हम तो बाबू जी को देखे हैं, उही हमको जन्म दिये, पाले-पोसे, का-का नहीं किए, तो हमारे तो उही भगवान हैं। जब तक बाबू जी जिंदा थे, हम खूब सेवा किए। तुम भी जानते हो, कि किए हैं। का हम झूठ बोल रहे हैं?
नहीं, बहुत सेवा किए हो, सारा गाँव जानता है, पंडित ने हामी भरी।
तो ये बताओ भगवान का श्राद्ध कहाँ होता है?
पर, पंडितों को इन
दिनों में खिलाना, दान देना बहुत पुण्य होता है, तुम्हारे पिता जी की आत्मा तृप्त हो जाएगी, पंडित
अपनी बात पर अड़ा था।
अच्छा, तुम जे बताओ कि, तुम जानते हो, हमारे बाबू जी को सबसे ज्यादा का
भाता था?
पंडित, चुप रह गया।
अरे भाई, जब तुम्हें पता
ही नहीं है, तो हम तुम्हें काहे भोजन कराएँ, दान दें? बाबू जी टीचर थे, तो
उन्हें कॉपी, पेन्सिल बहुत पसंद थी। इसी कारण हर साल, जे सब, अनाथ बच्चों को देने जाते हैं। साथ ही बाबू जी को हमारे हाथ के बने लड्डू बहुत पसंद थे, इसलिए प्रसाद के लिए वो भी ले जाते हैं।
हमारे बाबू जी, हमारे भगवान हैं।
जब थे, तब तक उनकी खूब सेवा की, अब
नहीं हैं तो हम उनका श्राद्ध नहीं करते हैं, उन्हें बस तिथि
में याद करते हैं। उन्होंने, हमारे लिए जो किया उसके लिए उन्हें
धन्यवाद देते हैं। दान भी देते हैं, प्रसाद भी देते हैं, पर गरीब और अनाथ बच्चों को।
तो पंडित तुम तो, बहुत तेज़
निकल लो, किसी ने अगर हमारी बात सुन ली, और वो भी मात-पितृ भक्त हुआ, तो तुम्हारी पंडिताई
वहाँ से भी जाएगी।
पंडित तेज़ी से आगे बढ़ गया, उसने फिर कभी मंगलू को नहीं रोका, आज उसे एक नयी
परिभाषा पता चली - एक श्राद्ध ऐसा भी
Beautiful story ..Nicely composed 👌
ReplyDeleteNs
I wish if more and more people could read and understand this beautiful story and its lesson.
ReplyDeleteThank you so much for your appreciation.
DeleteIf that happens, my efforts would become worthwhile 😌