आज आप सब के साथ मुझे इंदौर से श्रीमती उर्मिला मेहता जी की हास्य-व्यंग्य रचना को share करते हुए अपार प्रसन्नता हो रही है।
एक वार्तालाप यमराज जी से
दुनियादारी के झमेले और देश विदेश में फैली विभिन्न बीमारियों , प्राकृतिक आपदाओं, आतंकवाद, दुर्घटनाओं ,भ्रष्टाचार, अनाचार ,दुराचार आदि के चलते मेरा मन आक्रोशित होते होते अंत में त्रस्त हो गया यह दुनिया यह महफिल मेरे काम की नहीं..... की तर्ज पर हमें भी दुनिया से वैराग्य हो गया। हमारी इच्छा होने लगी कि हम भी गौतम बुद्ध और अन्य ऋषि मुनियों की तरह इस असार संसार को त्याग कर किसी वृक्ष के नीचे अथवा गुफा कंदरा
या हिमालय पर जाकर धूनी रमा लें। और दुनिया को अलविदा कह दें ,कि खुश रहो हर खुशी है तुम्हारे लिए ।अब हम किसी पचड़े में नहीं पड़ना चाहते वैसे भी हमारी उम्र अब वानप्रस्थ आश्रम की हो चली है पर जब हमने अपने इस फैसले पर गौर किया तो समझ में आया कि यह सब करना व्यवहारिक रूप से संभव नहीं है क्योंकि यदि पेड़ के नीचे आसन जमाते हैं तो महिला होने के नाते सर्वप्रथम सुरक्षा का प्रश्न खड़ा होता है दूसरा मच्छरों के प्रकोप से मलेरिया फ्लू आदि का भय मुँह बाए खड़ा हो जाता है ।गुफा कंदरा आदि में भी वही स्थिति है अकेली महिला को सौ डर !सोचा अपनी उन सखियों को साथ ले लूँ जो जो बात बात में जीवन को कोसती थीं तो उनका जवाब भी इस संसार रूपी रणभूमि में में डटे रहने का मिला ।अब एक ही तरीका बचा था कि हिमालय पर्वत पर जाकर साधना करके परमात्मा में लीन हो जाएँ तो उसमें भी समस्या दिखाई दी हिमालय की ठंडक की कल्पना मात्र से हम सिहर उठे पिछले साल ही बड़ी मुश्किल से खाँसी सर्दी ठीक हुई थी इसके अलावा एक विचार और आया के हमारे इस प्रकार घर से कूच करने के बाद परिवारजनों के चिंता युक्त, रुआँसे ,भयभीत और गमगीन चेहरे क्या हम सहन कर पाएँगे? सच में माया महा ठगिनी हौं जानी ।हमें प्रत्यक्ष रूप से अनुभव हो रहा था कि यदि हम झाँसी की रानी ,ऋतंभरा या उमा भारती होते तो अपने बलबूते सब सेट कर लेते पर अब क्या करें अभिमन्यु की तरह इस मायाजाल के चक्रव्यूह में हम फँस चुके हैं जिससे सुरक्षित बाहर आना असंभव है ,फिर करें तो क्या करें मैंने सोचा हाँ यह ठीक रहेगा यह सोच कर मैंने ईश्वर को करुण स्वर में पुकारा हे ईश्वर !इस संसार रूपी मृग मरीचिका से मुझे मुक्ति दिलाओ ,कहने भर की देर थी कि एक अलग ही प्रकार के व्यक्ति (दूसरे ग्रह के होने के नाते )मेरे सामने उपस्थित हो गए और बोले बालिके !तुम्हारी प्रार्थना मैंने सुन ली है और मैं तुम्हें लेने आया हूँ।मैं अचकचा गई आप कौन हैं? और मुझे कहाँ ले जाना चाहते हैं? उपस्थित महाशय ने कहा कि मैं यमराज हूँ और तुम्हारी प्रार्थना सुनकर तुम्हें लेने आया हूँ चलो जल्दी करो मैं भयभीत हो गई कि हाय यह कैसे और किस रूप में गाना सार्थक हुआ कि तुमने पुकारा और हम चले आए, जान तुम्हारी लेने आए रे...
अब मैंने हिम्मत से काम लिया ओखली में सिर दिया तो मूसले से डरना क्या! मैंने वार्तालाप जारी रखते हुए पूछा कि यदि आप यमराज जी हैं तो आपका भैंसा कहाँ है? और आपके वे दो सींग कहाँ हैं ?मैं कैसे विश्वास करूँ! मेरी इस बात पर उन्होंने जोर का अट्टहास किया और बोले नादान बालिके किस जमाने की बात कर रही हो जब तुम्हारी दुनिया में जेट कंप्यूटर सैटेलाइट सब हैं तो हमारे पास तो इनसे भी ज्यादा आधुनिक तकनीकी वस्तुएँ हैं, वह देखो मेरा वाहन जिसे समझने के लिए तुम इसे हेलीकॉप्टर कह सकती हो। यह वाहन -अर्थ व्हाया स्वर्ग या नरक चलता है। इसको यात्रियों के अर्थात् आत्माओं के अनुसार बड़ा या छोटा भी किया जा सकता है। वैसे भी आत्मा अति सूक्ष्म होती है अतः बहुत कम जगह घेरती है इसके अलावा उसके साथ कोई लगेज भी नहीं होता ।अरे मैं भी कहाँ तुम से बहस करने लगा सीधे तरीके से मेरे साथ चलो ,मेरा टाइम वेस्ट मत करो ।मैंने सोचा अब तो मामला गंभीर हो चला है जल्दी से जल्दी से कोई जुगत भिड़ानी होगी। मैंने कहा वाह महाराज आपने मेरी इस प्रार्थना को इतनी तत्परता से सुन लिया जबकि करोड़पति होने ,महादेवी वर्मा जैसी लेखिका होने और ऐश्वर्या राय जैसी सुंदरता प्राप्ति के लिए भी कई प्रार्थनाएँ की थी तब तो उन पर कोई कार्यवाही नहीं हुई? यमराज बोले वह सब अलग अलग डिपार्टमेंट से संबंधित हैं जहाँ पर असंख्य अर्जियाँ लगी हुई हैं ।मुझे बहुत कम प्रार्थना पत्र मिलते हैं इसलिए मेरे विभाग में सुनवाई जल्दी होती है ,अच्छा तो यह बात है मैंने कहा तो अब यह बताइए कि मुझे कहाँ जाना होगा स्वर्ग में या नर्क में ?यमराज हँसे और बोले तुम ही बताओ कि तुम किस योग्य हो ?मैंने कहा कि मैंने तो अपने तईं सारे अच्छे कर्म किए हैं ।श्रीमद्भागवत गीता एवं महाकवि वर्ड्सवर्थ के अनुसार कर्म को ही पूजा माना है -वर्क इस वर्शिप।शेक्सपियर के अनुसार संसार को स्टेज और अपने आप को एक कलाकार की भाँति समझ कर सदा अपना कर्तव्य ही निभाया है ।ऐसा क्या! तो ठीक है ,असलियत तो ऊपर जाने पर चित्रगुप्त के रजिस्टर को देख कर ही पता लगेगी यमराज जी बोले।मैं कुछ नहीं बोली चुप हो गई असहाय सी ,फिर हिम्मत बटोरकर बोली महाराज अभी तो मैंने कुछ खास सुख उठाये ही नहीं हैं ,मेरे छोटे-छोटे पोते-पोती हैं और तो और मेरा एक बेटा भी कुँवारा है उसकी शादी भी करना है, पोते-पोती को भी खिलाना है वे सब परदेस में रहते हैं इसलिए यहां तो बहुत सारा काम बाकी है, मेरे लिए ।एक बार मैं अपना घर व्यवस्थित कर लूँ बैंक आदि के कागजात घर वालों को सौंप दूँ, आखरी बार सबको इकट्ठा कर उनके साथ रह लूँ और उनको समझा दूँ कि मुझे खुशी खुशी विदा करें फिर मैं स्वयं समाधि में बैठ जाऊँगी और श्री कृष्णम् शरणम् मम बोलूँगी तो स्वयं श्री कृष्ण भगवान मुझे लेने आ जाएँगे और आपको आने का कष्ट भी नहीं करना पड़ेगा यमराज फिर हँसे बोले यह तो वही बात हो गई की कद्दू में बैठी नानी ने शेर से कहा कि बेटी घर जाने दे ताजी मोटी होने दे फिर मुझे खाना और शेर ने विश्वास करके नानी को उसकी बेटी के घर जाने दिया और एक बार जो बुढ़िया अपनी बेटी के घर गई तो फिर उस रास्ते से लौटकर नहीं आई शेर बेचारा उसका रास्ता ही देखता रह गया। इतना ही नहीं हमारे कामकाज में डॉक्टर लोग भी अड़ंगा लगाते हैं किडनी ,लीवर ,हार्ट ,कैंसर जैसी बीमारियों को तो वे यूं दूर कर देते हैं कि हमारे धन्वंतरि भी दांतो तले अँगुली दबाते हैं ।ना बाबा ना तुम कलयुगी मनुष्य अब विश्वास के लायक नहीं हो तुम वाक्चातुर्य में प्रवीण हो तो यह बताओ कि जब मरना ही है तो इतना सोच विचार किस लिए ?तुमने श्रीमद्भागवत गीता का जिक्र किया है तो तुम्हें मालूम होगाकि जीर्ण वस्त्र की तरह देह को त्यागना ही मृत्यु है उस पर इतना मोह क्यों ?इस पर मैंने कहा कि महाराज अभी मेरा वस्त्र इतना जीर्ण भी तो नहीं हुआ है ।यमराज बोले बेेेेफालतू की बातें मत करो जन्म मरण और परण में मनुष्य का कोई हस्तक्षेप नहीं होता है और पारिवारिक व्यवस्था आदि की दलील में भी कोई दम नहीं है। दूसरों को मरता देखकर भी तुमको समझ नहीं आई। बातें तो तुम बड़ी-बड़ी करती हो खैर तुम्हारी इन्हीं बातों से मैं फ्रेश महसूस कर रहा हूँ वरना जहाँ जाता हूँ वहाँ रोना-धोना कलपना आदि सुनकर मेरा ब्लड प्रेशर हाई हो जाता है ।आज पहली बार तुमसे मिलकर अच्छा लगा इसलिए तुम्हें मैं कुछ समय के लिये मोहलत देता हूँ पर मेरा यहाँ आना अकारथ नहीं जाता है अतः किसी अन्य व्यक्ति का नाम तुम बताओ जिसे मैं ले जा सकूँ। मैंने कहा महाराज मैं ऐसा काम कैसे कर सकती हूँ वैसे ,मैं आपको याद दिला दूँ कि एक बार सावित्री ने सत्यवान के प्राण आपसे वापस लिए थे और उसके बदले में आपने किसी अन्य व्यक्ति को ले जाने की बात भी नहीं कही थी। यमराज बोले वह तो एक अपवाद था पर यहाँ तो ऐसा कोई कारण नहीं है अतः जल्दी से किसी व्यक्ति का नाम बताओ वरना तुम्हीं चलो। मैंने सोचा कि किसी असहाय वृद्ध अत्यंत बीमार अपंग मानसिक रोगी का नाम ले दूँ पर मुझे मेरे ज़मीर ने बोलने नहीं दिया अचानक एक नाम कौंधा आतंकवादी! हाँ महाराज आप किसी आतंकवादी को ले जाइए जिस को सजा देने में कोर्ट को भी काफी समय लगता है और उसकी सुरक्षा में गरीब जनता के करोड़ों रुपए खर्च होते हैं । यमराज को यह सुझाव पसंद आया! उन्होंने कहा ठीक है पर अगली बार कोई बातचीत नहीं होगी सीधे तरीके से मेरे साथ चलना होगा। मैंने चहक कर कहा शत प्रतिशत वचन देती हूँ। संतुष्ट होकर यमराज महोदय अपने अन्य ग्राहक की खोज में रवाना हो गए ।समय की कीमत समझते हुए मैंने शीघ्र ही उत्साह से महाप्रयाण की तैयारियाँ आरंभ कर दी कि जैसे मैं अभी दर्शनीय स्थल स्विट्ज़रलैंड जा रही हूँ। पर शीघ्र ही वास्तविकता का कटु सत्य मेरे सामने आ गया वार्डरोब में सजी अपनी साड़ियाँ ,घर का फर्नीचर डबल बेड एक-एक करके जमा किए बर्तन भाँडे आदि को देख देख कर मेरी आँखों से गंगा जमुना बहने लगी। फिर मेरे निधन के पश्चात् बच्चों पति और रिश्तेदारों आदि के ऑंसू रुलाई और उदासी तथा दुख से भरे चेहरों का विचार कर मैं फफक पड़ी। सच में मनुष्य जन्म को इतना सामान्य समझना और देह को जीर्ण वस्त्र कहना तथा अध्यात्म की बड़ी बड़ी बातें करना और बात है ।और उस पर अमल करना तो बिल्कुल ही अलग ।मैं सिसकियां भरने लगी अचानक दूध वाले की आवाज ने मुझे जगा दिया अब मैं पुनः जागृत अवस्था में थी सपने ने मुझे आगे की राह दिखा दी थी उस दिन से मैंने अंतिम यात्रा की तैयारी आरंभ कर दी है और भरसक पुण्य के कार्य करने लगी हूँ ।गीता जी की यह पंक्ति सुख दुखे समे कृत्वा लाभालाभौ जया जयौ
अब मैं इस दुर्लभ मानव जीवन को वर्तमान में स्थित रह कर अनासक्ति के साथ बिना किसी अपेक्षा और उपेक्षा पर ध्यान दिये भरपूर आनन्द और उल्लास के साथ जी रही हूँ।
'न जाने किस घड़ी में तेरा(यमराज जी से )मेरा सामना होवे ,नज़र पड़ जाए मुझ पर तेरी ,मेरा राम नाम सत्य हो जाए ।
Disclaimer:
इस पोस्ट में व्यक्त की गई राय लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं। जरूरी नहीं कि वे विचार या राय इस blog (Shades of Life) के विचारों को प्रतिबिंबित करते हों। कोई भी चूक या त्रुटियां लेखक की हैं और यह blog उसके लिए कोई दायित्व या जिम्मेदारी नहीं रखता है।
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