प्रसाद
माँ बड़े मन से कृष्ण जन्माष्टमी की तैयारी कर रही थी, बहुत सारे भोग पकवान बना रही थी।
उसकी खुशबू से पूरा घर महक रहा था।
कार्तिक वहीं, बैठा पढ़ रहा था, उससे रहा नहीं जा रहा था, एक सवाल उसके मन में बहुत दिनों से घूम रहा था।
उसने सोचा, आज तो माँ से पूछ कर ही रहूंगा।
वो, माँ के कंधे पर झूल गया, और पूछने लगा - माँ, आप कितना सारा भोग प्रसाद बना रहीं हैं, पर कान्हा जी कुछ खाएंगे क्या?
आप एक बात बताएं, जब भगवान कुछ खाते नहीं है तो हम भोग प्रसाद क्यों बनाते हैं?
और अगर वो खाते हैं तो कुछ कम क्यों नहीं होता है?
माँ बोलीं- कार्तिक तुम्हारी इस बात का जवाब मैं बाद में दूंगी। पहले यह बताओ, आज तुम्हारी टीचर ने, जो कविता तुम्हें याद करने को कहा था, तुमने याद कर ली?
हाँ माँ, बहुत देर पहले ही याद कर ली थी। आप सुनेंगी?
हाँ, तुम वो किताब लेकर मेरे पास आओ।
माँ ने किताब से कविता सुनना शुरू कर दिया, कार्तिक को पूरी कविता बहुत अच्छे से याद थी, उसने एक सांस में पूरी कविता सुना दी।
फिर माँ बोलीं, नहीं तुम्हें कविता ठीक से याद नहीं है।
नहीं माँ, याद है मुझे, आप ठीक से देखिए।
पर अगर तुम्हें पूरी कविता याद है, तो यहाँ से कविता कम क्यों नहीं हुई? पूरी कैसे लिखी हुई है।
जिस तरह से तुम्हारे कविता याद करने के बाद भी पूरी कविता, किताब में अभी भी लिखी हुई है, क्योंकि तुमने उसे सूक्ष्म रूप से धारण किया।
अब वो किताब में भी है और तुम्हारे मन मस्तिष्क में भी।
उसी तरह ईश्वर भी प्रसाद सूक्ष्म रूप से ग्रहण करते हैं, जिससे वो उनके पास भी रहता है और उस पात्र(plate) में भी यथावत ही रहता है।
जब भी किसी चीज़ को सूक्ष्म रूप से ग्रहण किया जाता है तो उसके बाह्य रूप में कोई अंतर नहीं आता है।
हमें पूरे भक्तिभाव से प्रसाद, ईश्वर को अर्पित करना चाहिए और पूर्ण विश्वास से ग्रहण भी करना चाहिए, कि ईश्वर ने हमारे द्वारा चढ़ाएं भोग प्रसाद को स्वीकार कर हमें आशीर्वाद प्रदान किया है।
आज कार्तिक को अपने प्रश्न का उत्तर मिल गया था।
अब कार्तिक माँ के साथ, पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ भोग-प्रसाद बनवाने बैठ गया।
उसने छोटे-छोटे हाथों से टेढ़े-मेढ़े लड्डू बना दिए।
वो शाम का इंतजार कर रहा था, जब उसके कान्हा, उसके बनाए लड्डू का प्रसाद स्वीकार करेंगे
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बहुत सुंदर व्याख्या,यही तो ओम पूर्ण मदः ....है।आनन्द करो बेटा।
ReplyDeleteआप के सराहनीय शब्दों का ह्रदय से अनेकानेक आभार 🙏❤️
Deleteआप के सराहनीय शब्द मुझे लिखते रहने की प्रेरणा प्रदान करते हैं 🙏🏻😊
Wah ..yeh uttar man ko chu gaya.... Kya sundar aur saral bhasha mai itni badi baat keh di aapne iss kahani ke maadhayam se...happy Janmashtami 👏👏👏👏
ReplyDeleteआप के सराहनीय शब्दों का ह्रदय से अनेकानेक धन्यवाद 🙏❤️
Deleteआप के सराहनीय शब्द मुझे लिखते रहने की प्रेरणा प्रदान कर रहे हैं 🙏🏻😊
Nice story in simple words 👌👍
ReplyDeleteThank you very much for your appreciation 🙏
DeleteYour words boost me up 😊
Nice story. आपने तो भगवान श्रीकृष्ण की गीता का सार ही लिख दिया। सरल भाषा में।
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Deleteबहुत बड़ी बात कह दी आप ने, उस योग्य तो नहीं, पर आप के आशीर्वाद की प्रति पल कामना है।
आप सदैव अपने आशीर्वाद और प्रेम की छत्र छाया में रखिएगा।
आप के सराहनीय शब्द मुझे सदैव लिखते रहने को तत्पर रखते हैं 🙏🏻😊
अनीमिका जी बहुत ही गंभीर बात को आपने कितनी सहजता से समझा दिया वाह वाह वाह साथ ही प्रासंगिक भी ।
ReplyDeleteआप के सराहनीय शब्दों का अनेकानेक धन्यवाद 🙏❤️
Deleteआप के सराहनीय शब्द मुझे लिखते रहने की प्रेरणा प्रदान कर रहे हैं 🙏🏻😊
Bahut sundar vivechan👌👌
ReplyDeleteNanhe man ki jigyasa ka bhakti purn tark sangat uttar..Wah...Badhayi💐💐
आप के सराहनीय शब्दों का अनेकानेक धन्यवाद 🙏❤️
Deleteआप के सराहनीय शब्द मुझे लिखते रहने की प्रेरणा प्रदान कर रहे हैं 😊
बहुत ही सुन्दर व्याख्या की उस मां ने ,हर बच्चे को ये बात आसानी से समझ आ जाएगी भगवान तो बस भाव के ही भूखे होते हैं।
ReplyDeleteअनु तुम्हारी हर कहानी की तरह ये भी आती उत्तम, लिखती रहो।
रूबी वर्मा
आप के सराहनीय शब्दों का ह्रदय से अनेकानेक आभार 🙏❤️
Deleteआप के सराहनीय शब्द मुझे लिखते रहने की प्रेरणा प्रदान कर रहे हैं 😊
Wah kya bat hai , kam shabdo main kitna bada rahasya samjha diya , u r great
ReplyDeleteआप के सराहनीय शब्दों का अनेकानेक धन्यवाद 🙏❤️
Deleteआप के सराहनीय शब्द मुझे लिखते रहने की प्रेरणा प्रदान कर रहे हैं 😊