आज आप सब के साथ मुझे फिरोजाबाद के श्री योगेश प्रताप सिंह जी के द्वारा भेजी गई माता सरस्वती की वंदना को साझा करते हुए अपार प्रसन्नता हो रही है।
हे विमल-मति वरदान दे
हे विमल-मति वरदान दे
झकझोर जर्जर प्राणों को, नव चेतना को तान दे,
हे विमल-मति वरदान दे
तुझको समर्पित हो सकूँ, निज भाव अर्पित कर सकूँ पीड़ा मैं बिंबित कर सकूँ मुझको मुखर वह गान दे।
हे विमल-मति वरदान दे
कवि कर्म दूभर हो गया निज से विमुख मैं हो गया, आ बैठ मेरे हृदय में, मुझको स्वयं का ज्ञान दे।
हे विमल-मति वरदान दे
भाव कुंठित हो गये, प्राण कलुषित हो गये, आ बैठ मेरे कंठ में, वाणी में अब सुगान दे।
हे विमल-मति वरदान दे
स्वप्न अतिव्यापित हुए उद्देश्य सब श्रापित हुए आ बैठ मेरी वाणी में, मुझको नई पहचान दे
हे विमल-मति वरदान दे
सुंदर वंदना !
ReplyDeleteसुंदर रचना ।
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