तुम बिन (भाग - 2) के आगे...
तुम बिन (भाग -3)
घर में तीनों उनकी सेवा में जुट गए, पर अबकी बार संजना जी ठीक ही नहीं हो रही थीं।
आखिर वही हुआ, जिसका डर था...
वो दिन भी आ गया, जब गरिमा को घर छोड़कर जाना था।
गरिमा, संजना जी के सिरहाने आकर बैठ गई, आज भी उसकी आंखें नम थीं?
क्या हुआ गरिमा?
माँ जी, आज मेरे इस घर से जाने का दिन आ गया है। मेरी जिंदगी में कुछ भी नहीं बदला।
वो सुबक सुबक कर रोते हुए बोली, आज भी मैं उनके दिल में अपने लिए जगह नहीं बना पायी।
और उसके लिए, तुम्हारे दिल में क्या है? संजना जी ने सधे हुए शब्दों में कहा।
उससे फ़र्क क्या पड़ता है, मैं तो जब इस घर में आयी थी, तब भी उन्हें दिल में बसा कर आयी थी। अब तो केवल सूनापन बचा है।
तो तुम ने क्या सोचा है? संजना जी ने कुछ सोचते हुए पूछा।
पता नहीं माँ जी? ना आप को ऐसे छोड़कर जाना चाहती हूँ, ना अब और रुकना चाहती हूँ।
तो तुम चली जाओ।
माँ जी....... आप को ऐसी अवस्था में छोड़कर?
मेरी चिंता कब तक करोगी? तुम जब भी जाओगी, मेरे लिए वो दिन, मेरी जिंदगी के आखिरी दिन होंगे।
माँ जी......
हाँ बेटा, पर अब मैं तुम्हें रोक कर तुम्हारी जिन्दगी को और बर्बाद नहीं करना चाहती।
तुम्हारा सामान मैंने car में रखवा दिया है। तुम्हें driver तुम्हारे मायके छोड़ आएगा।
भारी मन से गरिमा, वहांँ से चली गई।
राहुल सोकर उठा तो सारे घर में गरिमा को ढूंढने लगा। पर गरिमा कहीं नहीं मिली।
वो गरिमा को ढूंढता हुआ माँ के पास आ गया।
माँ, आप ने गरिमा को कहीं देखा है? पूरा घर ढूंढ डाला, कहीं नहीं है। उसकी आवाज़ में गज़ब की बैचेनी थी।
क्यों, तुम्हें क्या काम है गरिमा से? तुम्हें कब से उसकी परवाह होने लगी?
राहुल झेंपते हुए बोला, बस वैसे ही, दिख नहीं रही थी, इसलिए ही.....
वो अपने घर चली गई।
घर......
पर क्यों....?
आप को अकेला छोड़ कर......
वो तो बड़ी समझदार है, उसने ऐसा क्यों किया.......?
मैं अकेले कहाँ हूँ? तुम और पापा जी दोनों तो साथ हैं मेरे।
फिर धीमें से बोलीं, अकेली तो बेचारी वो थी।
राहुल, माँ की आखिरी बात सुने बिना ही कमरे से चला गया।
बस दो दिन ही बीते थे, पर राहुल को गरिमा की इतनी याद आने लगी कि वो विरह अग्नि में झुलसने लगा।
वो बैचेनी से अपने कमरे में घूम रहा था कि उसका हाथ अपनी शादी की फोटो पर पड़ी, जिससे photo गिर गई।
राहुल, जब उसे उठा कर रख रहा था तो उसकी नज़र गरिमा की photo पर गई।
राहुल की निगाह वहीं टिक गई।
आह! कितनी खूबसूरत है गरिमा.....
मेरी सोच से भी ज्यादा सुन्दर....। फिर उसकी समझदारी और संस्कारों के तो कहने ही क्या......
राहुल से और रुका ही नहीं गया, वो driver के पास गया और बोला, गरिमा madam को जहाँ छोड़ा था, मुझे वहीं ले चलो।
राहुल, गरिमा के मायके पहुंच गया।
दरवाजा गरिमा ने ही खोला, वो नहाकर ही निकली थी।
उसकी जुल्फ़ें अभी भी गीली थीं, उससे टपकती पानी की बूंदें, गरिमा को और हसीन बना रही थीं।
राहुल ने उसे अपनी बाहों में भरते हुए कहा कि तुम, मुझे छोड़कर कैसे आ सकती हो?
तुम्हारी अनुपस्थिति ने मुझे बैचेन कर दिया। क्या तुम नहीं तड़प रही थी, मेरे बिना?
गरिमा, विस्मय पूर्वक, राहुल को देख रही थी। उसके शरीर में सिहरन दौड़ गई थी। आज पहली बार वो राहुल की बाहों में थी।
अपने को संभालते हुए बोली, तड़प....
अब तुम एक पल यहांँ नहीं रुकोगी, अभी चलो।
तभी अन्दर से गरिमा की माँ आ गयीं। बोलीं, जमाई राजा, नाश्ता तो करके ही जाएं, सब तैयार है। आप पहली बार ससुराल आए हैं।
सारी रस्में खत्म करके दोनों घर आ गए।
गरिमा सीधे, संजना जी के कमरे में आ गई, पीछे पीछे राहुल भी आ गया था।
माँ बोल दो अपनी बहू को आगे से ऐसा नहीं चलेगा। यह कहकर राहुल अपने कमरे में चला गया।
माँ हंस दी.... पगला कहीं का.....
जब गरिमा, अपने कमरे में पहुंची तो, कमरा पहली रात सा ही सजा था।
राहुल ने गरिमा को अपनी बाहों में भरते हुए कहा, मैं नहीं रह सकता तुम बिन..... और उसके माथे को चूम लिया.....
गरिमा ने आंखें बन्द करे हुए कहा, मैं भी नहीं रह सकती, तुम बिन......
उसके साथ ही कमरा बंद हो गया.....
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