आज एक और विधा के साथ आप सबके समक्ष प्रस्तुत हुई हूँ ... संस्मरण (Memoirs)
यह संस्मरण हमारी जिंदगी का सबसे खूबसूरत, सबसे डरावना, ईश्वर की कृपा और उपस्थिति को बताने वाला संस्मरण है। आज आप के साथ वही share कर रहे हैं।
अंजाना
बात उन दिनों की है, जब हमारी शादी हो चुकी थी, और बेटी भी। बेटी के होने पर पति ने कार ली थी।
बेटी साल भर की हो चुकी थी, वो बहुत ही शान्त बच्ची थी, कभी तंग नहीं करती थी।
शादी के बाद की, मेरे husband की दूसरी birthday थी।
नयी नयी शादी हुई थी, नयी ही कार थी, तो सोचा, पति को surprise देते हैं।
उन दिनों हम, दुर्गापुर (West Bengal का एक शहर) में रहते थे। सारे अपने बहुत दूर थे, तो जल्दी कोई आता जाता नहीं था।
सोचा, आस-पास कहीं का, कार से घूमने का program बनाया जाए।
तो Mukutmanipur जो कि वहाँ से निकट का scenic spot था। वहाँ का एक resort book कर लिया था।
दुर्गापुर ही छोटी जगह थी, Mukutmanipur उससे भी छोटी जगह थी।
वहाँ पहुंचने के लिए एक छोटा सा गांव पार करना था।
पति को बताया, तो वो चलने को तैयार हो गए, अपनों से दूर थे, तो अकेले रहते-रहते मन उकता जाता था। ऐसे में एक Nature walk program तरो-ताजा करने वाला था।
बस हम सुबह 5 बजे ही निकल लिए, कार में पानी और खाने-पीने के सामानों के साथ।
तीन दिन का हमारा program था।
पूरा रास्ता, हरियाली और सुंदरता से भरपूर था, बस एक कमी थी, वो एक गांव था, वो भी बंगाल का, तो हमारे स्वाद के अनुसार खाने- पीने की ज्यादा चीजें नहीं मिल रहीं थीं। पर हमने साथ में बहुत कुछ रखा था, तो problem भी नहीं हो रही थी।
हम लोग वहाँ पहुंच गए, resort बहुत ही खूबसूरत था।
उसी शाम से घूमने का प्रोग्राम था।
हम Dam, मंदिर, और पास के बाजार घूमने गए, टेराकोटा के बेहद बेहतरीन बहुत सस्ते सामान थे, वो लिए और लौट आए।
अगले दिन, हमें अयोध्या hills जाना था।
तब तक कोई hills नहीं देखे थे, तो अलग ही उत्साह था।
हम resort से नाश्ता कर के निकले।
जब निकले तो, पता चला, कुछ दूर पर ही hills है।
हम चल दिए और बस फिर चलते रहे और चलते ही रहे, पर कोई hills नजर नहीं आ रहा था।
जिससे पूछते, hills कहाँ हैं?
बस थोड़ी दूर और, कहकर वो आगे चले जाते।
पर दूरी थी, कि खत्म होने का नाम नहीं ले रही थी।
सुबह से दोपहर हो चली, पर hills नहीं आया। अब तो एक-दो, लोग ही दिख रहे थे, और हमारा resort भी हमसे बहुत दूर हो गया था।
उस समय Google भी वहाँ काम नहीं कर रहा था।
अब बस हम आगे बढ़ते जा रहे थे। Hills को देखने की चाह में....
तभी कुछ लोग मिले, बोले, यहाँ कोई hills नहीं है, अयोध्या hills बस जगह का नाम भर है, और वो भी अब खण्डर हो चुकी है। सुनकर बड़ी हताशा हुई।
Hills देखने की इच्छा पर वज्रपात हो चुका था। साथ ही इतना समय और मेहनत बर्बाद हो चुका था। उस समय क्रोध और दुःख के मिश्रित भाव से शरीर थकान से चूर होने लगा।
वो लोग बोले, आप लौट जाओ।
पर आपको लौटने के लिए बनते हुए पुल को cross करना होगा
पुल में बहुत बड़े-बड़े पत्थर पड़े थे। जिन पर car चलाना नामुमकिन लग रहा था।
लौटना था, पर लौटें कैसे? यह समझ नहीं आ रहा था। क्योंकि हमारी छोटी कार थी, और बस first gear पर चलना था, कार बंद होती और हम फंस जाते।
ईश्वर का नाम लेकर हम चल पड़े, जैसे-तैसे पुल पार किया।
उसके बाद तो लोग दिखना ही बन्द हो गये। दूर-दूर तक केवल रेतिला मैदान था। कहाँ जाना है, कैसे जाना है। कुछ पता नहीं था, बस एक अंदाजे से, हम बस बढ़ते जा रहे थे।
हम और आगे बढ़े, तो गाड़ी अचानक से रुक गई, उतर कर देखा तो पाया एक पत्थर से रुक गई थी।
पर अगर वहाँ, ना रुकती तो सामने इतनी बड़ी खाई थी, कि हम कार सहित उसमें समा जाते और किसी को हम कभी ना मिलते।
यह देखकर दिल दहल गया, शाम हो चुकी थी, खाने-पीने का सामान भी खत्म हो रहा था। रास्ता, लौटने-का दिख नहीं रहा था। हम पूरी तरह से भटक चुके थे।
सोच ही रहे थे कि क्या करें, तभी एक आदमी, Motorcycle के साथ सामने खड़ा था। वो लम्बा-चौड़ा, घनी मूंछों वाला, below middle class का पढ़ा-लिखा लग रहा था।
हमें देखकर बोला, मुसाफिर लगते हो, रास्ता भटक गए हो?
मेरे पीछे आओ, मंजिल पर पहुंचा दूंगा।
रात हो गई, तो गांव पार करना मुश्किल हो जाएगा, क्योंकि यहाँ रात में बिजली नहीं रहती है, और गांव वालों का कोई भी जानवर गाड़ी के नीचे आ गया, तो यह लोग अनजानों को छोड़ते नहीं हैं, और आप बाहर के हो तो ना वो आपकी भाषा समझेंगे ना आप उनकी।
अनजान जगह, अंजाना इंसान! बहुत डर लग रहा था, ना जाने आगे क्या होगा?
पर हमारे पास, उसके पीछे जाने के अलावा कोई रास्ता नहीं था।
वो आगे-आगे, हम पीछे-पीछे। हम जिस रास्ते से पहले आगे बढ़ रहे थे, यह रास्ता उसके बिल्कुल opposite था।
वो हमें main road तक ले आया, फिर वो बोला, मेरी बेटी बीमार है, इसलिए मुझे जल्दी घर जाना है, क्या अब आप अपने ठिकाने पहुंच जाएंगे?
हमने उसे अपनी मदद करने के लिए, money offer किया, उसकी बेटी के treatment के लिए...
पर उसने इंकार कर दिया, वो बोला मैं आपको चाय पिलाने लें चलता, अगर मुझे जल्दी ना होती...
हमने उस देवदूत को बहुत सारा धन्यवाद दिया और अपने resort को चल दिए।
रात होने से पहले हम अपने resort में थे।
अगले दिन, हमने सारे घूमने के program cancel कर दिए और घर लौट आए।
वो adventurous सफ़र और वो देवदूत हमारी जिंदगी का अहम हिस्सा बन गया। अगर वो अंजाना इंसान, उस दिन ना आता, तो शायद हम जीवित भी ना होते!!
पर जब ईश्वर आपके साथ हों तो वो ऐसे रूप में ही हमारे समक्ष प्रकट होते हैं, और हमारी रक्षा करते हैं।
बस यही सत्य है...
कितनी हो कठिन डगर
मुझको लगता नहीं है डर
है उनका आशीर्वाद तो
किस बात की फ़िक्र...
जय श्री चच्चा जी महाराज 🙏🏻🙏🏻
अगर आप के जीवन में भी ऐसी कोई घटना घटित हुई है, जिसने आप के मन में ईश्वर के प्रति अटूट आस्था बढ़ा दी हो तो, हम से share कीजिए... हम उसे blog में post करेंगे।
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