संपूर्ण महामृत्युंजय मंत्र,अर्थ, जप विधि व लाभ
सावन मास, भगवान शिव की आराधाना के लिए समर्पित होता है। ऐसे में आज हम सावन के दूसरे सोमवार में, आपको उनके सबसे प्रभावशाली महामृत्युंजय मंत्र के बारे में बता रहे हैं।
महामृत्युंजय मंत्र का अर्थ क्या है?
महामृत्युंजय मंत्र के जाप की विधि क्या है?
महामृत्युंजय मंत्र के जाप से होने वाले लाभ क्या हैं?
महामृत्युंजय मंत्र का जाप करते समय किन बातों का ध्यान रखें?
इस मंत्र की रचना मार्कंडेय ऋषि ने की थी। इसका वर्णन ऋग्वेद से लेकर यजुर्वेद तक में मिलता है। वहीं शिवपुराण सहित अन्य ग्रंथो में भी इसका महत्व बताया गया है।
संस्कृत में महामृत्युंजय उस व्यक्ति को कहते हैं जो मृत्यु को जीतने वाला हो। इसलिए भगवान शिव की स्तुति के लिए महामृत्युंजय मंत्र का जप किया जाता है।
संपूर्ण महामृत्युंजय मंत्र
ॐ हौं जूं स: ॐ भूर्भुव: स्व: ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात् ॐ स्व: भुव: भू: ॐ स: जूं हौं ॐ !!
लघु मृत्युंजय मंत्र
ॐ जूं स माम् पालय पालय स: जूं ॐ।
महामृत्युंजय मंत्र का बीज मंत्र
ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ !!
रोगों से मुक्ति के लिए वैसे तो महामृत्युंजय मंत्र विस्तृत है लेकिन आप बीज मंत्र के स्वस्वर जाप करके भी रोगों से मुक्ति पा सकते हैं। इस बीज मंत्र को जितना तेजी से बोलेंगे आपके शरीर में कंपन होगा और यही औषधि रामबाण होगी। जाप के बाद शिवलिंग पर काले तिल और सरसों का तेल(तीन बूंद) चढाएं।
महामृत्युंजय मंत्र का अर्थ
इस पूरे संसार के पालनहार, तीन नेत्र वाले भगवान शिव की हम पूजा करते हैं। इस पूरे विश्व में सुरभि फैलाने वाले भगवान शंकर हमें मृत्यु के बंधनों से मुक्ति प्रदान करें, जिससे कि मोक्ष की प्राप्ति हो जाए।
महामृत्युंजय मंत्र जप की विधि
- महामृत्युंजय मंत्र का जाप आपको सवा लाख बार करना चाहिए।
- वहीं, भोलेनाथ के लघु मृत्युंजय मंत्र का जाप 11 लाख बार किया जाता है।
- सावन माह में इस मंत्र का जाप अत्यंत ही कल्याणकारी माना जाता है।
- वैसे आप यदि अन्य माह में इस मंत्र का जाप करना चाहते हैं तो सोमवार के दिन से इसका प्रारंभ कराना चाहिए।
- इस मंत्र के जाप में रुद्राक्ष की माला का प्रयोग करें। इस बात का ध्यान रखें कि दोपहर 12 बजे के बाद महामृत्युंजय मंत्र का जाप न करें।
- मंत्र का जाप पूर्ण होने के बाद हवन करन उत्तम माना जाता है।
क्यों करते हैं महामृत्युंजय मंत्र का जाप
महामृत्युंजय मंत्र का जाप विशेष परिस्थितियों में ही किया जाता है। अकाल मृत्यु, महारोग, धन-हानि, गृह क्लेश, ग्रहबाधा, ग्रहपीड़ा, सज़ा का भय, प्रॉपर्टी विवाद, समस्त पापों से मुक्ति, आदि जैसे स्थितियों में भगवान शिव के महामृत्युंजय मंत्र का जाप किया जाता है। इसके चमत्कारिक लाभ देखने को मिलते हैं। इन सभी समस्याओं से मुक्ति के लिए महामृत्युंजय मंत्र या लघु मृत्युंजय मंत्र का जाप किया जाता है।
शिव पुराण में भगवान शिव को खुश करने के लिए बहुत सारे मंत्र बताए गए हैं। महामृत्युंजय मंत्र भगवान शिव का बहुत प्रिय मंत्र है। इस मंत्र के जाप से व्यक्ति मौत पर भी जीत हासिल कर सकता है। इस मंत्र के जाप से भोलेनाथ प्रसन्न होते हैं और असाध्य रोगों का भी नाश होता है। शास्त्रों में इस मंत्र को अलग-अलग संख्या में करने का विधान है।
महामृत्युंजय मंत्र -
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्॥
भय मुक्ति के लिए
महामृत्युंजय पाठ 1100 बार करने पर भय से छुटकारा मिलता है। महामृत्युंजय मंत्र 108 बार पढ़ने से भी फायदा मिलता है।
रोग मुक्ति के लिए
ओम त्र्यंबकम यजामहे मंत्र का 11000 बार जाप करने पर रोगों से मुक्ति मिलती है।
पुत्र व सफलता के लिए
महामृत्युंजय मंत्र का जाप सवा लाख बार करने से पुत्र और सफलता की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही अकाल मृत्यु से भी बचाव होता है।
महामृत्युंजय मंत्र का जाप करते समय रखें इन बातों का ध्यान-
- मंत्रों का जाप सुबह-शाम किया जाता है।
- जैसी भी समस्या क्यों न हो, यह मंत्र अपना चमत्कारी प्रभाव देता है।
- भगवान शिव के मंत्रों का जाप रुद्राक्ष की माला से करना चाहिए।
- भगवान शिव की प्रतिमा, फोटो या शिवलिंग के सामने आसन बिछाकर इस मंत्र का जाप करें।
- मंत्र जाप शुरू करने से पहले भगवान शिव को बेलपत्र और जल चढ़ाएं।
- पूरी श्रद्धा और विश्वास से साधना करने पर इच्छित फल की प्राप्ति होती है।
- महामृत्युंजय चालीसा का उच्चारण सही तरीके और शुद्धता से करना चाहिए।
- मंत्र उच्चारण के समय एक शब्द की गलती भी भारी पड़ सकती है।
- मंत्र के जप के लिए एक निश्चित संख्या निर्धारित कर लें। जप की संख्या धीरे-धीरे बढ़ाएं लेकिन कम न करें।
- महामृत्युंजय का मंत्र जाप धीमे स्वर में करें। मंत्र जप के समय इसका उच्चारण होठों से बाहर नहीं आना चाहिए।
- महामृत्युंजय मंत्र के दौरान धूप-दीप जला कर रखें।
- मंत्र का जप सदैव पूर्व दिशा की ओर मुंह करके करना चाहिए। जब तक मंत्र का जप करें, उतने दिनों तक तामसिक चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए। आहार-विहार शुद्ध व सात्विक होना चाहिए।
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