पुराने खिलौने
किरण के बच्चे बड़े हो गए थे और अपनी-अपनी नौकरी के लिए दूसरे शहर भी चले गए थे।
जिन बच्चों के शोरगुल से घर में रौनक थी, वो अब शांत और सुनसान हो चला था।
एक दिन घर के काम निपटा कर किरण बच्चों के कमरे में कुछ ढूंढने के लिए गयी, पर वो सामान कहीं नहीं मिल रहा था।
आखिरकार उसने बच्चों के खिलौने की अलमारी खोली तो धड़धड़ा कर बहुत से खिलौने नीचे गिर गये।
सभी पुराने हो चुके थे, कुछ बहुत पुराने भी...
पर उनके गिरते ही, किरण के मन में उनसे जुड़ी यादें नई हो चली थी...
कितना दीवाने थे बच्चे उन खिलौनों के लिए... कि बंदऔर उसने कितने जतन से जोड़े थे, अलमारी भर कर खिलौने...
पर आज सब बच्चों के बिना, बेकार से प्रतीत हो रहे थे।
वो यादों में खोई थी कि घंटी बजी, प्रेस के कपड़े लिए प्रेमा अपनी बेटी मोहिनी के साथ खड़ी थी।
मोहिनी, अपने नाम सी ही सबको बड़ी जल्दी अपनी ओर मोह लेती थी।
किरण भी, जब वो आती थी, उसको कुछ न कुछ अवश्य देती थी।
किरण ने देखा, मोहिनी एकटक उसके हाथ की तरफ देखे जा रही थी।
दरअसल किरण, दरवाजा खोलने आई थी तो एक छोटा सा खरगोश लिए ही चली आई थी और बच्चे तो खिलौनों के दीवाने होते ही हैं...
मोहिनी की चमकती आंखों को देख कर किरण का मन पसीज गया और उसने अपने बेटे के favourite खरगोश को मोहिनी को दे दिया।
मोहिनी खरगोश पाकर खुशी से नाचने लगी और किरण से प्यार से चिपक गई। मोहिनी के प्यार को पाकर किरण भी अभिभूत हो गई।
प्रेमा बोली, दीदी आप मोहिनी को इतना कुछ देती हैं कि आपके घर कपड़े देने आती हूं तो यह भी पीछे पीछे चली ही आती है। यह कहते हुए प्रेमा भी खुश नज़र आ रही थी।
प्रेमा के जाने के बाद, किरण ने बारी-बारी से दोनों बच्चों को फोन किया, और बताया कि खरगोश दे दिया और बाकी भी खिलौने दें, मोहिनी को?
बेटी ने अपने कुछ favourite खिलौने छोड़ कर बाकी सभी खिलौने दें देने को बोल दिया। बेटा खरगोश देने के कारण थोड़ा नाराज़ हुआ, पर बाद में उसने भी कुछ खिलौने देने को बोल दिया।
अगले दिन किरण, एक बड़े से bag में बहुत सारे खिलौने भरकर, मोहिनी को देने ले गई।
वहां पहुंच कर उसने वो सारे खिलौने बाहर निकाल दिए...
खिलौनों को देखकर, मोहिनी कुछ बोलती, उससे पहले ही जगदीश बोल उठा, क्या मैडम, इतने सारे पुराने खिलौने क्यों लेकर आई हो मेरी बेटी के लिए?
यह मोहिनी भी न, जाने क्या कह आती है सबको कि लोग अपने घर का कूड़ा हमारे घर खाली करने आ जाते हैं। और हम रद्दी वाले को रद्दी बेच बेचकर परेशान हो जाते हैं।
सुनकर किरण को बहुत बुरा लगा, वो सारे खिलौने उठाने लगी, तभी एक रद्दी वाला आया।
जगदीश ने उसको बेचने के लिए, बहुत सारे पुराने खिलौने और सामान निकाले। उनमें, किरण का दिया हुआ खरगोश भी शामिल था।
किरण ने देखा कि सामान पुराने अवश्य थे, लेकिन सभी ठीक अवस्था में थे।
उसने तुरंत वो खरगोश उठा लिया और जगदीश को बोला, यह पुराने खिलौने, मेरे बच्चों की खुशी और मीठी यादें थी, और यह सभी एकदम ठीक हैं, कोई कूड़ा नहीं हैं। इन्हें मैं मोहिनी को इसलिए देने आई थी, क्योंकि खिलौने देखकर उसकी आंखें खुशी से चमकने लगती हैं, जो उसके सुखद बचपन को दर्शाती है।
पर जब तुम्हें कद्र नहीं है, अपनी बेटी की आंखों की चमक की, तो मैं क्यों अपने बच्चों की मीठी यादों को तुम जैसे हृदयहीन इंसान को दूं।
यह कह कर वो अपने सारे खिलौनों को अपने साथ लौटा लाई, कभी न देने के लिए, क्योंकि यादों का बहुमूल्य होना, सिर्फ वो ही समझता है, जिसकी वो हो, बाकी के लिए वो पुराना होता है।
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