Friday 20 July 2018

Story Of Life : तृप्ति भाग -३

अब तक आपने पढ़ा - आस्था और सुगंधा दोनों ही पक्की सहेली हैं, जो अपने जीवन के ३० साल बाद फिर मिली, दोनों ने ही अपनी अपनी जिंदगी जी है, अब आगे.....    


तृप्ति भाग -३ 

मैं इतनी पढ़ी हुई हूँ, तभी अपने बच्चों में इतने अच्छे संस्कार डाल पायीं हूँ, अपने बच्चों से सम्मान पाती हूँ, आज वो जानते हैं, कि उनकी माँ, इसलिए house-wife नहीं हैं कि वो योग्य नहीं हैं, बल्कि इसलिए हैं, क्योंकि उन्हें उनकी सफलताओं की कामना थी।

तभी परेशान सी कंचन आई। माँ वो union वालों से आज ही मीटिंग है, मुझे आते आते देर हो जायेगी, मैं आपके साथ खाना बनवाने में कोई मदद नहीं कर पाऊँगी। कोई बात नहीं बेटा। आस्था बोली, बेटा ये सुगंधा मौसी हैं-मेरी सहेली तुम बैठो इनके पास मैं अभी आई।

अंदर से आस्था गुलाब-जामुन ले कर बाहर आई, तुम अपना favorite गुलाब जामुन खा कर जाओ, और शांत मन से मीटिंग करो, सब ठीक होगा। माँ आप कैसे जानतीं हैं कि मुझे कब क्या चाहिए? आप world’s best mom हैं। तीनों बैठ के बात करने लगे, तभी कंचन को फोन आ गया, वो बोली-मैं office जा रही हूँ। माँ को खूब सारा प्यार कर के कंचन चली गयी।

ये कहाँ गयी?

इसका business है, आज इसकी एक workers’ union से मीटिंग है, इसी की उसे tension थी। गुलाब जामुन खा के गयी है, अब पक्का ही good news लाएगी। तभी phone बज उठा, माँ workers मान गये, आज आपके बनाए हुए गुलाब-जामुन फिर जीत गए।

आस्था तुम कैसे जानती थीं? कि ऐसा ही फोन आएगा। शांत मन से गयी है, तो निश्चय ही सही decision लेगी। मैं अपने बच्चों के बारे में सब जानती हूँ। आस्था की आवाज़ में गज़ब का आत्मविश्वास था। वो बोली कि तुम कह रही थीं कि इतना पढ़ने लिखने से क्या फायदा? ये मेरे इतने पढ़ने लिखने का ही नतीजा है कि मैं अपने बच्चों का सही मार्गदर्शन कर पाती हूँ।

सुगंधा सोचने बैठ गयी, उसके husband भी MNC में CEO ही हैं। उसे भी job करने की कोई आवश्यकता नहीं थी, फिर भी अपनी संतुष्टि के लिए उसने job join  कर ली। 

इसके कारण उसकी ज़िंदगी में कितनी बार कलेश हुआ। बच्चों को Neni देखती थी, तो उनमें कोई संस्कार नहीं हैं। बड़ों का सम्मान करना तो छोड़ ही दो, दोनों बेटे उसका और उसके पति रवि का भी सम्मान नहीं करते हैं, दोनों इसी फिराक में रहते हैं, माँ पापा दोनों ही job करते हैं, तो फिर उन्हें मेहनत करने की क्या आवश्यकता। 

आज वो अपनी company में GM बन गयी। पर फिर भी वो खुश नहीं थी। क्योंकि उसने कितना कुछ कीमती खो दिया, अपने बच्चों का बचपन, उनके संस्कार, उनका भविष्य। सुगंधा समझ गयी थी कि तृप्ति घर में रह कर अपने परिवार को बना के ही मिलती है।


आज फिर से आस्था उससे आगे निकाल गयी थी, और वो भी अपने जीवन से पूर्णत: तृप्त।  

4 comments:

  1. तथ्य को उजागर करने वाली अच्छी कहानी है

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    1. धन्यवाद
      आपके शब्द मुझे मार्ग दर्शन प्रदान करते हैं

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  2. Very intresting story ..read in one breath.

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    1. Thank you for your time and valuable appreciation.

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