Thursday 30 August 2018

Kids Story : पैसे का पेड़

पैसे का पेड़


सुबोध के बाबू जी किसान थे। उनका सारा समय खेतों में ही गुजरता। सुबोध को सारे दिन सिर्फ माँ का ही साथ मिलता। वो घर में ही माँ के आगे पीछे घूमा करता।
जब वो छह साल का हो गया, तब एक दिन सुबह खाना जल्दी नहीं बन पाया था। तो माँ खाना देने खेतों में जा रही थी।सुबोध ने माँ से कहा, मुझे भी बाबू जी के पास जाना है।
माँ उसे अपने साथ खेतों में ले गयी। उस दिन पहली बार सुबोध ने देखा कि उसके पिता क्या करते हैं। उस दिन बाबू जी खेतों में बीज डालने का काम कर रहे थे। उन्हें देख कर वो बोला, बाबू जी आप क्या कर रहे हैं?
वो बोले, मैं बीज बो रहा हूँ। उससे क्या होगा? बाबू जी बोले, उससे पौधे निकलेंगे।
तब फिर क्या होगा? सुबोध का कौतूहल बढ़ता जा रहा था। जब फसल पूरी बढ़ी हो जाएगी, तब उसे बाजार में बेच देंगे। और उससे तुम्हें जो चाहिए, वो हम लोग खरीद लेंगे।
इसमे कितने दिन लग जाएंगे? वो बोले कम से कम छह महीने तो लग ही जाएंगे। सुबोध मायूस हो गया, इतने दिन बाद.... 
उसने बढ़ी ही जिज्ञासा से पूछा, क्या पैसे का पेड़ नही लगा सकते?
बाबू जी हँसने लगे, बोले बेटा, हमने तो आज तक नहीं लगाए, तुम लगाना, बड़े होकर लगाना।
सुबोध के मन में बात बैठ गयी। सुबोध ने सोचा बाबू जी को ठीक से पैसे का पेड़ लगाना नहीं आता होगा, तभी तो वो पैसे का पेड़ नहीं लगा पाते।
उसने घर से एक कलश लिया, और घर के बाहर चार दिन तक गड्ढा खोदता रहा, जब कलश उसके अंदर चला गया, तब उसने अपनी गुल्लक में जितने पैसे थे, सारे डाल कर उसे प्लेट से ढक दिया,और उस पर मिट्टी डाल  दी।
अब तो उसने नियम बना लिया, उसे जहां कहीं से पैसे मिलते, वो कलश में डाल देता।   
बारिश का मौसम आ गया, पर पूरे महीने एक बूंद भी पानी नहीं टपका। खड़ी फसल सूखने लगी, बाबू जी को औने-पौने दाम में फसल बेचनी पड़ी। खाने-पीने के समान लाने में ही सारा पैसा खत्म हो गया। अगली फसल के लिए वो अच्छे बीज नहीं ला पाये।
लौटते हुए बाबू जी, साहूकार से पैसा मांगने गए भी, पर वो नहीं था, उन्हें पैसे नहीं मिल पाये।  
शाम को सुबोध, बाबूजी के पास आकर दुखी हो कर बोला, इस बारिश ने तो मेरा भी पेड़ नहीं होने दिया।
बाबू जी चौंके, एँ, तुमने कौन सा पेड़ लगाया था? उसने बड़ी मासूमियत से बोला, पैसों का....  
आइये दिखाता हूँ। मैंने बहुत सारे बीज डाले थे, पर पेड़ नहीं हुआ।
जब बाबू जी ने कलश निकाला, वो पैसों से भरा हुआ था, माँ भी आ गयी थी, देख कर गुस्साई, रे दुष्ट यहाँ छिपाया हुआ है, और मैं छह महीने से फिक्र में घुली जा रही थी कि कलश ना जाने कौन चोर ले गया। मैं तो इसलिए लाया था, क्योंकि यही सबसे बड़ा था, मुझे बहुत सारे बीज जो डालने थे, सुबोध डर के बोला। पर बाबू जी ने नन्हें सुबोध को गले लगा लिया, बोले आज मेरे बेटे ने मुझे पैसों का पेड़ लगाना सीखा दिया।
संचय करने से ही पैसों का पेड़ लगाया जा सकता है। और सबको अपने जीवन में संचय करके पैसों का पेड़ लगाना चाहिए।

वो पैसों से अच्छे बीज ले आए। अगली फसल बहुत अच्छी हुई। फसल से मिले पैसों के कुछ भाग से बाबू जी ने भी पैसों का पेड़ लगाना शुरू कर दिया (अर्थात कुछ पैसे संचय के लिए भी रखने शुरू कर दिए)। और फिर कभी उन्हें पैसों के लिए किसी से मदद नहीं मांगनी पड़ी।  

11 comments:

  1. Thank you for your valuable comment😊

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  2. Good way to teach children the importance of savings 👍👍

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  3. Beautiful explanation of importance of savings👍👌👌

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  4. Excellent way to give moral to our children.nice story.

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    1. Thank you Ma'am,
      It's small step from my side.
      It becomes bigger with the support of you all

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