त्योहार
की बहार
कहीं
संक्रांत, कहीं लोहड़ी
कहीं पोंगल की बहार है
कहीं पोंगल की बहार है
हो रही
कटाई है
समृद्धि
और संपन्नता
चहुं ओर छाई है
चहुं ओर छाई है
मकर में हो रहा,
सूर्य का प्रवेश है
नीले-नीले अम्बर पर
रंगीनी छाई है
पॉपकोर्न, रेवड़ी,तिल-गुड़ की
सौगात है
सौगात है
खिचड़ी
में पिघलते घी की
क्या बात है
क्या बात है
ढोल की ताल पर
थिरक रहा तन है
खुशियों की आस में
झूम रहा मन है
आओ मनाए त्योहार
संग संग
भारत
को हम रंग दे
एक रंग
एक रंग
शरद
ऋतु में रंगों का,
निखार है
निखार है
हर
ओर दिख रही
त्योहार की बहार है
त्योहार की बहार है
Nice poem.
ReplyDeleteThank you Ma'am for your appreciation
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