फ़र्ज़
डॉ. ईला बच्चों की बहुत अच्छी doctor थी।
वो जितनी अच्छी डॉक्टर थी, इंसान भी उतनी ही अच्छी थी, किसी भी जरूरतमंद का कभी फ़ायदा नहीं उठाती थी। गरीबों का तो मुफ्त में इलाज कर देती थी, साथ ही जरूरत की दवाई भी free में दे देती थी। और बच्चों को तो बहुत ज्यादा ही प्यार करती थी। इसके कारण surgery करनी हो, vaccination करना हो या treatment करना हो, बच्चों को problem होने से बच्चे और उनके parents सब डॉ. ईला को ही prefer करते थे।
वो जितनी अच्छी डॉक्टर थी, इंसान भी उतनी ही अच्छी थी, किसी भी जरूरतमंद का कभी फ़ायदा नहीं उठाती थी। गरीबों का तो मुफ्त में इलाज कर देती थी, साथ ही जरूरत की दवाई भी free में दे देती थी। और बच्चों को तो बहुत ज्यादा ही प्यार करती थी। इसके कारण surgery करनी हो, vaccination करना हो या treatment करना हो, बच्चों को problem होने से बच्चे और उनके parents सब डॉ. ईला को ही prefer करते थे।
डॉ. ईला का बहुत ही प्यारा बेटा था, निखिल। वो उस पर अपनी जान छिड़कती थीं। निखिल था भी बहुत ही अच्छा, अपनी माँ की हर बात मानने वाला, सीधा-साधा मासूम-सा।
ईला घर आने के बाद अपना सारा समय, उसके ही साथ बिताती थीं। इधर कुछ दिन से, निखिल कुछ
सुस्त-सा रह रहा था। ईला ने सोचा गर्मी बहुत है, शायद यही
कारण है। पर अब वो आए दिन ही बीमार और dull-सा रहने लगा।
उसकी बिगड़ती हालत देखकर ईला ने test कराये, उसके जो result आए, उन्हें देखकर ईला बुरी तरह हिल गयी, निखिल को bone marrow
transplant की जरूरत थी।
ईला ने अपनी पूरी ताकत लगा दी, पर किसी
का bone marrow match नहीं कर रहा था। इधर निखिल की हालत
बहुत तेज़ी से खराब हो रही थी। ईला ईश्वर को याद करने लगी, हे
प्रभू! अगर मैं अपने ही बच्चे को नहीं बचा सकी, तो मेरे डॉक्टर होने का क्या फायदा?
आज एक गरीब औरत उसके पास आई, उसकी बेटी का accident हो गया था। आते ही बोली
डॉक्टर जी, मेरी रेखा को बचा लो। मेरे पास तो पैसे भी नही
हैं, इसके अलावा मेरी तीन छोरियाँ और हैं। इसका बापू तो बोल रहा था,
हमारे पास पैसा है नहीं। अगर भगवान, मेरे कंधों से इसका बोझ उतारना चाहते हैं, तो
मैं क्या करूँ।
ईला बोली, तुम चिंता मत
करो। मैं इसे बचाने की पूरी कोशिश करूंगी, इसके सारे test
करा लेती हूँ। हाँ डॉक्टर जी, बड़ा नाम सुना है
आपका। आप हम गरीबों की मसीहा हैं, रेखा की माँ बोली।
ऐसा कुछ नहीं है, मैं बस कोशिश भर करती हूँ। सब का ईश्वर वही है और सब का रक्षक भी वही है। ये कहते हुए ईला pathology lab की ओर बढ़ गयी।
Test की reports देखकर ईला
के हाथ काँपने लगे, रेखा की सारी reports निखिल से मिल रही थी। निखिल का bone marrow
transplant किया जा सकता था।
ईला कशमकश में पड़ गयी थी, एक जगह उसका एकलौता बेटा था, दूसरी तरफ उस गरीब औरत
की ऐसी लड़की, जिसके जीने-मरने से किसी को ज्यादा फ़र्क नहीं
पड़ रहा था। वो माँ का फ़र्ज़ निभाए, या एक dr. का........ फ़र्ज़ (भाग - 2) में
अगर आप डॉ. ईला की जगह होते
तो, क्या करते?.....
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